ऊना: उत्तरी भारत के हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल पीरनिगाह में इन दिनों श्रद्धालुओं का खूब तांता लगा हुआ है. चैत्र माह के पूरे एक महीने में देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पीरनिगाह मंदिर पहुंचते हैं. मंदिर में स्थित पंडित निगाइयां की दरगाह पर शीश निभाने के साथ-साथ लख दाता पीर का भी आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. पीरनिगाह मंदिर इस समय श्रद्धालुओं की भारी भीड़ से भरा हुआ है.
बैसाखी के दिन होता है मेले का आयोजन: चैत्र माह में पीरनिगाह मंदिर में बैसाखी के दिन मेले का आयोजन होता है. इस मेले को लेकर मंदिर को बहुत ही सुंदर तरीके से सजाया जाता है. श्रद्धालुओं की आमद को देखते हुए पीरनिगाह मंदिर कमेटी द्वारा श्रद्धालुओं की मूलभूत सुविधाओं और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. मान्यता के अनुसार पीर निगाह मंदिर में सच्चे मन से माथा टेकने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. खासकर चैत्र महीने में बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में पहुंचकर अपनी मन्नतें मांगते हैं.
देश-विदेश से आते हैं श्रद्धालु: हिमाचल प्रदेश देवभूमि के नाम से जानी जाती है और इसी देवभूमि के जिला ऊना में उत्तर भारत का सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल पीरनिगाह मंदिर भी स्थित है. जहां हर धर्म के श्रद्धालु बहुत ही श्रद्धा और आस्था के साथ पहुंचते हैं। यूं तो हर वीरवार और विशेषकर ज्येष्ठ वीरवार को पीरनिगाह मंदिर में हजारों श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं, लेकिन हर साल चैत्र माह में पीरनिगाह मंदिर में बैसाखी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें हिमाचल, पंजाब और हरियाणा सहित देश के विभिन्न हिस्सों से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी रोजाना हजारों श्रद्धालु यहां शीश नवाने के लिए पहुंचते हैं.
पीर बाबा को अर्पण करते हैं नई गेहूं की फसल: चैत्र माह में बैसाखी के पर्व पर दूरदराज इलाकों से श्रद्धालु अपनी गेंहूं की फसल का कुछ हिस्सा लेकर पीर बाबा को अर्पण करते हैं. इसी दिन मंदिर कमेटी द्वारा ढोल नगाड़ों की थाप पर झंडा चढ़ाने की रस्म भी अदा की जाती है. पीरनिगाह मंदिर कमेटी की अध्यक्षा शशि देवी ने बताया कि पीरनिगाह मंदिर में हर साल चैत्र माह में बैसाखी के दिन मेले आयोजित होता है. उन्होंने बताया कि श्रद्धालुओं की मूलभूत सुविधाओं का मंदिर प्रशासन ने पूरी तहर से प्रबंध किया है. दूरदराज से पहुंचे श्रद्धालुओं ने कहा कि वो पिछले लंबे समय से पीरनिगाह मंदिर में आ रहे हैं और इस धार्मिल स्थान पर श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य धार्मिक स्थल का निर्माण पांडवों के समय किया गया था.
पंडित निगाहिया की कथा: वहीं एक कथा के अनुसार इसी धार्मिक स्थल के समीप एक गांव में पंडित निगाहिया नामक व्यक्ति रहता था, जोकि कुष्ठ रोग से ग्रसित था. कुष्ठ रोग से पीड़ित ब्राह्मण को बताया गया कि पास के गांव बसोली के जंगल में लखदाता पीर जी आते हैं और लखदाता पीर ही उसके इस रोग को ठीक कर सकते हैं. जिसके बाद वह ब्राह्मण इस स्थान पर रहकर लखदाता पीर जी की आराधना करने लगा. जब लखदाता पीर जी वहां पहुंचे तो पंडित निगाइयां को पास ही के एक तालाब में स्नान करने को कहा. तालाब में स्नान करने के बाद पंडित निगाइयां को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई. जब लखदाता पीर इस स्थान से जाने लगे तो पंडित निगाइयां ने भी उनके साथ जाने की जिद की, लेकिन लखदाता पीर ने पंडित निगाइयां को इसी स्थान पर रहकर निरंतर पूजा-अर्चना करने के निर्देश दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस स्थान पर शीश नवाएगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी.
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