सोलन: भारत पाक कारगिल युद्ध में सोलन जिला के भी दो वीर सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था. इसमें कसौली तहसील के बुघार कनैता गांव के सिपाही धर्मेंद्र सिंह और नालागढ़ तहसील के पंदल गांव निवासी राइफलमैन प्रदीप कुमार ने देश के लिए अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया था.
दोनों ही जवान अविवाहित थे. दोनों ही शहीदों के परिवारों को बेटों की शहादत पर गर्व है. उनके परिवारों से आज भी सेना में जाकर देश सेवा करने को अगली पीढ़ी तैयार है, लेकिन परिवार वाले सरकार और प्रशासन की अनदेखी से दुखी हैं.
शहीद धर्मेंद्र सिंह के पिता नरपत राम ने बताया कि धर्मेंद्र मात्र 20 साल की उम्र में ही देशसेवा करते हुए कारगिल युद्ध में 30 जून,1999 को शहीद हो गया था. उनका कहना है कि जब उनका बेटा शहीद हुआ उस वक्त उनसे मिले हुए सात महीने हो चुके थे. उस समय फोन पर बात नहीं होती थी बल्कि पत्र लिखकर ही संदेश पहुंचाया जाता था.
शहीद के पिता ने कहा कि उनका बेटा थर्ड पंजाब बटालियन में सिपाही था और करगिल में ही तैनात था. वह अवकाश पर आने को कह रहा था, लेकिन इस दौरान ही युद्ध की घोषणा हो गई. जब भी करगिल विजय दिवस आता है तो बेटे को याद किया जाता है, ऐसा लगता है कि उनका बेटा आज भी उनके बीच ही है. नरपत राम ने बताया कि धर्मेंद्र के शहीद होने के दो साल बाद ही उनका छोटा बेटा जोगिद्र कुमार भाई की शहीदी से प्रेरणा लेकर सुबाथू से सेना में भर्ती होकर देशसेवा में जुट गया था. अब वह भी सेवानिवृत्त हो गया है.
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वहीं, शहीद धर्मेंद्र के परिवार में अगली पीढ़ी भी सेना में जाने को बेकरार है. उनके भतीजे 22 साल राहुल वर्मा पुलिस भर्ती दे चुके हैं और उनका लिखित टेस्ट है. दूसरा भतीजा 18 साल कमलजीत ने भी सेना की भर्ती में मैदान पार कर लिया है. उसने भी रिटन टेस्ट क्लियर कर लिया है. उनका कहना है कि अपने चाचा की वीरता बचपन से सुनकर आज वे उनको अपनी प्रेरणा मानते है, वह गर्व महसूस करते हैं जब कोई उन्हें ये कहकर बुलाते हैं कि ये कारगिल में शहीद हुए धर्मेंद्र सिंह के भतीजे हैं.
क्या था ऑपरेशन रक्षक
1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद भी कई सैन्य संघर्ष होता रहा. दोनों देशों द्वारा परमाणु परीक्षण के कारण तनाव और बढ़ गया था. स्थिति को शांत करने के लिए दोनों देशों ने फरवरी 1999 में लाहौर में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए. जिसमें कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता द्वारा शांतिपूर्ण ढंग से हल करने का वादा किया गया था, लेकिन पाकिस्तान अपने सैनिकों और अर्ध-सैनिक बलों को छिपाकर नियंत्रण रेखा के पार भेजने लगा और इस घुसपैठ का नाम "ऑपरेशन बद्र" रखा था. इसका मुख्य उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच की कड़ी को तोड़ना और भारतीय सेना को सियाचिन ग्लेशियर से हटाना था. पाकिस्तान ये भी मानता है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार के तनाव से कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने में मदद मिलेगी.
शुरुआत में इसे घुसपैठ मान लिया था और दावा किया गया कि इन्हें कुछ ही दिनों में बाहर कर दिया जाएगा. नियंत्रण रेखा में खोज के बाद और इन घुसपैठियों के नियोजित रणनीति में अंतर का पता चलने के बाद भारतीय सेना को अहसास हो गया कि हमले की योजना बहुत बड़े पैमाने पर की गई है. इसके बाद भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय नाम से 2,00,000 सैनिकों को भेजा था. ये युद्ध आधिकारिक रूप से 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ. इस युद्ध के दौरान 527 सैनिकों ने अपने जीवन का बलिदान दिया था.