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धरोहर: इस भवन में हुआ था हिमाचल का नामकरण, इतिहास की गवाह ये इमारत आज है बेहाल

ईटीवी भारत की खास सीरीज हिमाचल की धरोहर में इस बार हम हिमाचल के नामकरण से जु़ड़े इतिहास के तथ्यों पर नजर डालेंगे. दुनिया के नक्शे पर पर अपनी पहचान बना चुके हिमाचल प्रदेश का नामकरण 72 साल पहले हुआ था.

heritage building in solan
हिमाचल में धरोहर
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Published : Jan 27, 2020, 12:49 PM IST

Updated : Jan 27, 2020, 4:47 PM IST

सोलन: दुनिया के नक्शे पर पर अपनी पहचान बना चुके हिमाचल प्रदेश का नामकरण 72 साल पहले हुआ था. दरअसल 1948 में 28 रियासतों के राजाओं ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई एस परमार की मौजूदगी में अपनी राज गद्दी छोड़ सरकार से हाथ मिला लिया था. हिमाचल प्रदेश के नामकरण से जु़ड़े ऐतिहासिक लम्हों की गवाही सोलन शहर की एक इमारत आज भी देती है.

शाही रजवाड़ा शैली का बना यह भवन आज भी अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर होने का एहसास दिलाता है, उस समय यह भवन बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबार हुआ करता था, जहां कभी बघाट रियासत के राजा का दरबार सजता था. आज भी ये गेट उस राजशााही ठाठ-बाठ की गवाही देता है. कलाकृतियों से सजे इस मुख्य द्वार के बाहर खड़े दरबान बघाट रियासत के राजाओं का स्वागत किया करते थे.

heritage building in solan
बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबारी गेट

जब एक साथ 28 रियासतों के राजाओं ने छोड़ा अपना शासन

ठीक 72 साल पहले 28 जनवरी 1948 को इसी भवन के दरबारी हॉल में एक साथ 28 रियासतों के राजाओं के बीच एक बैठक का आयोजन किया गया. इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के 28 रियासतों के राजाओं ने एकजुट होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार भी मौजूदगी में अपनी सत्ता को छोड़ने का ऐलान किया.

heritage building in solan
सोलन पीडब्ल्यूडी ऑफिस

जहां एक ओर आजादी के बाद का भारत विश्व मानचित्र पर अपनी नई पहचान बना रहा था, इसी बीच सोलन बघाट रियासत के दरबारी भवन की दीवारों के बीच प्रदेश के नाम को लेकर 28 रियासतों के राजा और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई एस परमार के बीच प्रदेश के नाम को लेकर खींचतान चल रही थी.

दरअसल, डॉ. परमार चाहते थे कि उत्तराखंड राज्य का जौनसर बाबर क्षेत्र भी हिमाचल में मिले और इसका नाम 'हिमालयन एस्टेट' रखा जाए, लेकिन बैठक में मौजूद 28 राजाओं के बीच डॉ. परमार को किसी का साथ नहीं मिला और देवभूमि का कागजी नाम 'हिमाचल प्रदेश' रखने पर सहमति बनी.

जिसके बाद एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को मंजूरी के लिए भेजा गया. सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव पर मोहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया और आज ये नाम इस पहाड़ी राज्य की पहचान है.

आज भी मौजूद है दरबारी द्वार और तीन कुर्सियां

आजादी के 7 दशक बाद भी ऐतिहासिक धरोहर की सुध नहीं ली जा रही है, हांलाकि दरबारी हॉल में आज भी कुछ चीजों में उस समय की झलकियां देखने को मिलती हैं. दरबारी द्वार और उस पर की गई नक्काशी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है.

heritage building in solan
बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबारी गेट पर की गई नक्काशी.

वहीं, दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं, लेकिन पर्याप्त रखरखाव ना होने के कारण इतिहास की गवाह इन कुर्सियों की हालत भी बद से बदतर हो चली है. कुर्सियों को लकड़ी ठोककर जुगाड़ के सहारे रखा गया है.

एक समया में राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही ये इमारत आज तिल-तिलकर दम तोड़ रही है. मौजूदा समय में यहां लोक निर्माण विभाग का कार्यालय है. जो बीते कई सालों से इस ऐतिहासिक इमारत में चल रहा है, लेकिन जिलेभर के सरकारी भवनों को बनाने और रखरखाव करने वाले लोक निर्माण विभाग का कार्यालय इस जर्जर भवन में चल रहा है.

वीडियो रिपोर्ट.

लोहे के एंगल के सपोर्ट पर खड़ी है इमारत

इतिहास को खुद में समेटे इस इमारत की सुध ना विभाग को है और ना सरकार ही को, हालत इतनी दयनीय है कि कई हिस्से लोहे के एंगल के सपोर्ट पर खड़े हैं. जो कभी भी हादसे का सबब भी बन सकते हैं. हालांकि, पूर्व की कांग्रेस सरकार के दौरान इस ऐतिहासिक भवन का कायाकल्प करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषणा भी की थी और इसका जीर्णोद्धार कर इसे हेरिटेज बिल्डिंग बनाने की बात भी कही थी, लेकिन सियासत और सरकार को इस इतिहास की शायद फिक्र नहीं है.

इस भवन को धरोहर घोषित करने की मांग

वहीं, साहित्यकारों का कहना है कि इस भवन को धरोहर घोषित करने के लिए उन्होंने पूर्व सरकार और मौजूदा सरकार से भी मांग की है ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सके इस भवन का हिमाचल के इतिहास में क्या महत्व है. लेकिन अब तक इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया है. इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए जो पहल होनी चाहिए थी उसका अब तक इंतजार है. कभी जहां राजा का दरबार लगता था, वहां सरकारी कार्यालय चल रहा है. इस धरोहर को भी इंतजार है कि कब कोई उसकी सुध लेगा.

ये भी पढ़ें: यहां समय बताने के लिए कभी चलती थी तोप! आवाज सुनकर लोग निपटाते थे अपना काम

सोलन: दुनिया के नक्शे पर पर अपनी पहचान बना चुके हिमाचल प्रदेश का नामकरण 72 साल पहले हुआ था. दरअसल 1948 में 28 रियासतों के राजाओं ने प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई एस परमार की मौजूदगी में अपनी राज गद्दी छोड़ सरकार से हाथ मिला लिया था. हिमाचल प्रदेश के नामकरण से जु़ड़े ऐतिहासिक लम्हों की गवाही सोलन शहर की एक इमारत आज भी देती है.

शाही रजवाड़ा शैली का बना यह भवन आज भी अपने आप में एक ऐतिहासिक धरोहर होने का एहसास दिलाता है, उस समय यह भवन बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबार हुआ करता था, जहां कभी बघाट रियासत के राजा का दरबार सजता था. आज भी ये गेट उस राजशााही ठाठ-बाठ की गवाही देता है. कलाकृतियों से सजे इस मुख्य द्वार के बाहर खड़े दरबान बघाट रियासत के राजाओं का स्वागत किया करते थे.

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बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबारी गेट

जब एक साथ 28 रियासतों के राजाओं ने छोड़ा अपना शासन

ठीक 72 साल पहले 28 जनवरी 1948 को इसी भवन के दरबारी हॉल में एक साथ 28 रियासतों के राजाओं के बीच एक बैठक का आयोजन किया गया. इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के 28 रियासतों के राजाओं ने एकजुट होकर तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार भी मौजूदगी में अपनी सत्ता को छोड़ने का ऐलान किया.

heritage building in solan
सोलन पीडब्ल्यूडी ऑफिस

जहां एक ओर आजादी के बाद का भारत विश्व मानचित्र पर अपनी नई पहचान बना रहा था, इसी बीच सोलन बघाट रियासत के दरबारी भवन की दीवारों के बीच प्रदेश के नाम को लेकर 28 रियासतों के राजा और प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉ. वाई एस परमार के बीच प्रदेश के नाम को लेकर खींचतान चल रही थी.

दरअसल, डॉ. परमार चाहते थे कि उत्तराखंड राज्य का जौनसर बाबर क्षेत्र भी हिमाचल में मिले और इसका नाम 'हिमालयन एस्टेट' रखा जाए, लेकिन बैठक में मौजूद 28 राजाओं के बीच डॉ. परमार को किसी का साथ नहीं मिला और देवभूमि का कागजी नाम 'हिमाचल प्रदेश' रखने पर सहमति बनी.

जिसके बाद एक प्रस्ताव पारित कर तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को मंजूरी के लिए भेजा गया. सरदार पटेल ने इस प्रस्ताव पर मोहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया और आज ये नाम इस पहाड़ी राज्य की पहचान है.

आज भी मौजूद है दरबारी द्वार और तीन कुर्सियां

आजादी के 7 दशक बाद भी ऐतिहासिक धरोहर की सुध नहीं ली जा रही है, हांलाकि दरबारी हॉल में आज भी कुछ चीजों में उस समय की झलकियां देखने को मिलती हैं. दरबारी द्वार और उस पर की गई नक्काशी इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है.

heritage building in solan
बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबारी गेट पर की गई नक्काशी.

वहीं, दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद हैं, लेकिन पर्याप्त रखरखाव ना होने के कारण इतिहास की गवाह इन कुर्सियों की हालत भी बद से बदतर हो चली है. कुर्सियों को लकड़ी ठोककर जुगाड़ के सहारे रखा गया है.

एक समया में राजसी शान-ओ-शौकत का गवाह रही ये इमारत आज तिल-तिलकर दम तोड़ रही है. मौजूदा समय में यहां लोक निर्माण विभाग का कार्यालय है. जो बीते कई सालों से इस ऐतिहासिक इमारत में चल रहा है, लेकिन जिलेभर के सरकारी भवनों को बनाने और रखरखाव करने वाले लोक निर्माण विभाग का कार्यालय इस जर्जर भवन में चल रहा है.

वीडियो रिपोर्ट.

लोहे के एंगल के सपोर्ट पर खड़ी है इमारत

इतिहास को खुद में समेटे इस इमारत की सुध ना विभाग को है और ना सरकार ही को, हालत इतनी दयनीय है कि कई हिस्से लोहे के एंगल के सपोर्ट पर खड़े हैं. जो कभी भी हादसे का सबब भी बन सकते हैं. हालांकि, पूर्व की कांग्रेस सरकार के दौरान इस ऐतिहासिक भवन का कायाकल्प करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषणा भी की थी और इसका जीर्णोद्धार कर इसे हेरिटेज बिल्डिंग बनाने की बात भी कही थी, लेकिन सियासत और सरकार को इस इतिहास की शायद फिक्र नहीं है.

इस भवन को धरोहर घोषित करने की मांग

वहीं, साहित्यकारों का कहना है कि इस भवन को धरोहर घोषित करने के लिए उन्होंने पूर्व सरकार और मौजूदा सरकार से भी मांग की है ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सके इस भवन का हिमाचल के इतिहास में क्या महत्व है. लेकिन अब तक इस ओर कोई कदम नहीं उठाया गया है. इतिहास को सुरक्षित रखने के लिए जो पहल होनी चाहिए थी उसका अब तक इंतजार है. कभी जहां राजा का दरबार लगता था, वहां सरकारी कार्यालय चल रहा है. इस धरोहर को भी इंतजार है कि कब कोई उसकी सुध लेगा.

ये भी पढ़ें: यहां समय बताने के लिए कभी चलती थी तोप! आवाज सुनकर लोग निपटाते थे अपना काम

Intro:ऐतिहासिक धरोहर जहां रखा गया हिमाचल प्रदेश का नाम....

■ जिस दरबारी हॉल में हिमाचल को बनाने के लिए एक साथ 28 राजाओं ने छोड़ा अपना शासन....
■ डॉ परमार चाहते थे हिमालयन एस्टेट रखना नाम... आखिर क्यों बदला गया नाम




■ हिमाचल का इतिहास......
हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है, यह उत्तर में जम्मू कश्मीर से, पश्चिम में पंजाब से , दक्षिण में उत्तर प्रदेश से और पूर्व मे उत्तराखंड से गिरा है। हिमाचल जिसका अर्थ है "बर्फ का घर" हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला है, और राज्य का कुल क्षेत्रफल 55673 वर्ग किलोमीटर है। यह राज्य प्राकृतिक सुंदरता का खजाना है और विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है , राज्य का ज्यादातर हिस्सा ऊंची पर्वत श्रृंखला गहरी घाटियों सुंदर झरनों और हरियाली से भरा है , यहां का मौसम जगह के हिसाब से बदलता रहता है कुछ जगहों पर भारी बरसात होती है और कुछ जगहों पर बिल्कुल बारिश नहीं होती , ऊंचाई पर स्थित होने के कारण इस राज्य में बर्फबारी आम बात है, राज्य में 12 जिले हैं जो प्रशासनिक सुविधाओं के लिए मंडलों गांवों और कस्बों में बंटे है। हिमाचल प्रदेश देश का दूसरा सबसे कम भ्रष्ट राज्य है, सेब के भारी उत्पादन के कारण हिमाचल प्रदेश को °°सेब का राज्य °° भी कहा जाता है।

हिमाचल प्रदेश का इतिहास बहुत समृद्ध है क्योंकि सभ्यता की शुरुआत से ही यहां विभिन्न कालों में कई वंश रहे हैं , सबसे पहले सिंधु घाटी सभ्यता के लोग यहां आ कर रहे , दूसरी या तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व वह लोग गंगा के मैदानों से यहां शांतिपूर्ण जीवन की खोज में आए थे, जल्द ही मंगोलियों ने क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और फिर आर्य आए। भारतीय महाकाव्य के अनुसार हिमाचल प्रदेश कई छोटे जनपदों और गणराज्यों का समूह था, इसके हर राज्य की एक सांस्कृतिक इकाई थी, इसके बाद मुगल आए जिसके राजा महमूद गजनवी , सिकंदर आदि थे। इन लोगों ने इस क्षेत्र को जीता और यहां अपना वर्चस्व स्थापित किया। जब उनके शासन का पतन होने लगा तब गोरखाओ ने इस भूमि पर कब्जा कर लिया। जल्दी एंग्लो गोरखा युद्ध के दौरान उन्होंने यह राज्य अंग्रेजों के हाथों को दिया। अंग्रेज इस राज्य की खूबसूरती के कायल हो गए उन्होंने इस जगह पर 1854 से 1914 तक राज किया। आजादी के बाद सन 1948 में करीब 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया। सन 1971 में हिमाचल प्रदेश भारतीय संघ का 18वां राज्य बनकर उभरा।


Body:■ Story...... दरबारी हॉल सोलन

हिमाचल प्रदेश एक छोटा सा राज्य जो देश नहीं बल्कि विश्व भर में विख्याती पा चुका है ,लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि जो हिमाचल आज ऊंचाइयों के नए आयाम छू रहा है ,उसका नाम सोलन शहर के चौक बाजार में बने एक भवन में रखा गया था ,जहां एक साथ हिमाचल के 28 रियासतों के राजाओं ने अपना शासन काल छोड़ा था ,आज आपको ईटीवी भारत उस भवन के बारे में बताएगा जहां हिमाचल प्रदेश का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करवाने के लिए राजाओं ने अपनी सियासत त्याग दी थी....ले चलते हैं सोलन शहर के चौक बाजार में बने उस भवन में जहां हिमाचल के नाम रखने की गूंज आज भी सुनाई देती है।

रजवाड़ा शाही शैली का बना यह भवन आज भी अपने आप होने का एहसास दिलाता है, यह भवन बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह का दरबार हुआ करता था ,जहां कभी बघाट रियासत के राजा आमजन की समस्याओं को सुना करते थे और अपना फरमान जारी किया करते थे ,आज भी इस भवन का मुख्य द्वार रजवाड़ा शाही शैली की बनी उन कलाकृतियों को दर्शाता है , कि किEस तरह उस समय की कलाकारी की जाती होगी आज भी वह मुख्य द्वार सुरक्षित मौजूद है जिसके बाहर खड़े दरबान बघाट रियासत के राजाओं का स्वागत करा करते थे।



■ 28 जनवरी 1948 का वो दिन जब एक साथ 28 रियासतों के राजाओं ने छोड़ा अपना शासन काल........
28 जनवरी 1948 का वह दिन जब एक साथ 28 रियासतों के राजाओं के बीच एक बैठक का आयोजन इस दरबारी हॉल में किया गया , इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के 28 रियासतों के राजाओं ने एकजुट होकर अपनी सत्ता को छोड़ने का ऐलान किया उस समय इस बैठक में तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार भी मौजूद थे, लेकिन राजाओं ने उनकी एक न सुनी, डॉ परमार चाहते थे कि उत्तराखंड राज्य का जौनसर बाबर क्षेत्र भी हिमाचल में मिले और इसका नाम हिमालयन एस्टेट रखा जाए ,लेकिन राजाओं ने उन
की एक नहीं सुनी और प्रदेश का नाम हिमाचल प्रदेश ही रखने पर सहमति बनी और एक प्रस्ताव पारित किया गया, यह प्रस्ताव मंजूरी के लिए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को भेजा गया, जिन्होंने इस पर मोहर लगाकर हिमाचल का नाम घोषित किया, तब से हिमाचल प्रदेश को अपना एक स्थाई नाम मिला।



■ आज भी मौजूद है दरबारी द्वार और उस समय की तीन कुर्सियां....
दरबारी हॉल में की कुछ चीजें आज भी देखने को मिलती है दरबारी द्वार और उस पर की गई निकासी को आज भी देखा जा सकता है वहीं दरबारी हॉल में उस समय की तीन कुर्सियां आज भी मौजूद है लेकिन पर्याप्त रखरखाव ना होने के कारण वो टूटने की कगार पर है हालांकि आज भी उसे कर्मचारी इस्तेमाल कर रहे हैं लेकिन रखरखाव का सलीका कुछ अलग है।





Conclusion:लेकिन रजवाड़ा शाही शैली का बना यह भवन आज बदहाली के आंसू रो रहा है मौजूदा स्थिति यह है कि भवन के कई हिस्सों को लोहे के एंगल लगाकर मजबूती दी गई है, हालांकि पूर्व की कांग्रेस सरकार के दौरान भवन का कायाकल्प करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने घोषणा भी की थी , और साथ ही कहा था कि भवन का जीर्णोद्धार कर इसे हेरिटेज बिल्डिंग बनाया जाए , बिल्डिंग कई मायनों में ऐतिहासिक है विडंबना इस बात की है कि आज आजादी के करीब 7 दशक बाद भी ऐतिहासिक बिल्डिंग की सुध नहीं ली जा रही है, हैरत इस बात की भी है कि जिस दरबार भवन की हालत खस्ता हो चुकी है, उसमें बीते कई वर्षों से लोक निर्माण विभाग जिला के मुख्य अधीक्षण अभियंता का कार्य चल रहा है, विचारनिय खोजने का विषय यह भी है कि जब पूर्व कांग्रेस सरकार ने इसके जीर्णोद्धार की घोषणा की थी, इसे अमलीजामा पहनाने में अभी तक ढील क्यों बरती जा रही है,

वहीं साहित्यकारों का कहना है कि इस भवन को धरोहर घोषित करने के लिए उन्होंने पूर्व सरकार और मौजूदा सरकार से भी मांग की है ताकि आने वाली पीढ़ियां जान सके इस भवन का हिमाचल के इतिहास में क्या महत्व है।

byte....साहित्यकार... मदन हिमाचली
Last Updated : Jan 27, 2020, 4:47 PM IST
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