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Shoolini Mela Solan: सदियों पुराना है मां शूलिनी मेले का इतिहास, बघाट रियासत की कुलदेवी हैं माता

राज्यस्तरीय शूलिनी मेला 23 जून से 25 जून तक मनाया जाएगा. माता शूलिनी सोलन की अधिष्ठात्री देवी हैं. ये मेला 3 दिनों तक मनाया जाता है. आइए जानते हैं मां शूलिनी का इतिहास और इससे जुड़ी हुई मान्यताएं......

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Published : Jun 22, 2023, 8:38 PM IST

Shoolini Mela Solan.
सोलन में स्थित है माता शूलिनी का मंदिर.

सोलन: राज्यस्तरीय शूलिनी मेला कल 23 जून से 25 जून तक मनाया जाना है. जिसको लेकर जिला प्रशासन सोलन ने भी तैयारियां पूरी कर ली हैं. बहरहाल शूलिनी मेला सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी माता शूलिनी के नाम से मनाया जाता है. तीन दिनों तक माता शूलिनी अपनी बड़ी बहन के पास अपने मुख्य मंदिर परिसर से गंज बाजार स्थित मंदिर में रहती हैं. इन तीन दिनों को सोलन शहर में मेले के रूप में मनाया जाता है. प्रदेशभर से लोग इस मेले में शामिल होने आते हैं. मेले की सांस्कृतिक संध्याएं भी इसके आकर्षण का केंद्र रहती हैं.

बघाट रियासत की कुलदेवी हैं मां शूलिनी: शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी को बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी देवी माना जाता है. माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था. माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया.

State level Shoolini Mela 2023.
बघाट रियासत की कुलदेवी हैं माता शूलिनी.

कुलदेवी की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन: मान्यता के अनुसार बघाट के राजा अपनी कुल देवी यानी की माता शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए हर मेले का आयोजन करते थे. यहां के लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के खुश होने पर यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि शहर में सिर्फ खुशहाली आती है. इसलिए आज भी मेले की यह परंपरा कायम है. मां शूलिनी की अपार कृपा के कारण ही शहर दिन-प्रतिदिन सुख व समृद्धि की ओर अग्रसर है. पहले शूलिनी मेला सिर्फ एक दिन के लिए ही मनाया जाता था, लेकिन सोलन जिला के अस्तित्व में आने के बाद से इसके सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने और इसे आकर्षक बनाने के लिए इसे तीन दिवसीय राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दिया गया.

State level Shoolini Mela 2023.
सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है माता शूलिनी का मंदिर.

जून माह के तीसरे सप्ताह में 3 दिनों तक मनाया जाता है मेला: अब यह मेला जून माह के तीसरे सप्ताह में तीन दिनों तक मनाया जाता है. पहले छोटे स्तर पर आयोजित होने वाले शूलिनी मेले का आज स्वरूप विशाल हो गया है. अब यह तीन दिवसीय राज्य स्तरीय शूलिनी मेले के रूप में मनाया जाता है. जिला प्रशासन इस मेले को करवाता और अब मेले का बजट एक करोड़ तक पहुंच गया है.

State level Shoolini Mela 2023.
सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी हैं माता शूलिनी.

बड़ी बहन के घर पर 3 दिनों तक रुकती हैं माता: माता शूलिनी मेले के पहले दिन पालकी में बैठकर अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने गंज बाजार पहुंचती हैं. दो बहनों के इस मिलन के साथ ही राज्य स्तरीय मां शूलिनी मेले का आगाज हो जाता है. मां शूलिनी अपने मंदिर से पालकी में बैठकर शहर की परिक्रमा करने के बाद गंज बाजार स्थित अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती हैं. मां शूलिनी 3 दिनों तक लोगों को दर्शन देने के लिए वहीं विराजमान रहती हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
राज्यस्तरीय शूलिनी मेला 2023.

ये भी पढ़ें: Shoolini Mela Solan: शूलिनी मेले की सांस्कृतिक संध्याओं में ये मशहूर गायक मचाएंगे धमाल

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी: मंदिर के पुजारी रामस्वरूप शर्मा की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है. शूलिनी मां माता दुर्गा का अवतार हैं. त्रिशूल धारी होने के कारण माता का नाम शूलिनी पड़ा है. उनके अनुसार माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी हैं. जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे, तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आए थे. बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी माता शूलिनी उनके सभी मनोकामनाओं को पूरा करती थीं. तब से लेकर आज तक सोलन शहर पर मां शूलिनी की अपार कृपा है.

State level Shoolini Mela 2023.
हर साल सोलन में मनाया जाता है राज्य स्तरीय शूलिनी मेला.

शूलिनी मेले में तीन दिनों तक नहीं रहती खानपान की चिंता: शूलिनी मेले में स्थानीय व्यापारी वर्ग व लोग भी खुलकर दान करते हैं. जिले भर में दर्जनों भंडारे सड़कों पर लगे होते हैं. कहीं पर अलग-अलग तरह के व्यंजन तो कहीं पर जूस, आइसक्रीम, खीर, पूड़े, चने भटूरे आदि अनेकों तरह के पकवान मेले में आने वाले हजारों लोगों को खाने को मिलते हैं. यहां पर कहते हैं कि लोग अगर जेब में सिर्फ किराया लेकर भी मेले में आ जाएं तो भी अच्छे से मेला घूमकर पेट भरकर वापस जा सकते हैं. प्रदेश में इस तरह का यह पहला मेला है, जहां पर तीन दिनों तक सारा दिन दर्जनों भंडारे लगते हैं.

ये कहते हैं साहित्यकार: वरिष्ठ साहित्यकार मदन हिमाचली बताते हैं कि शूलिनी मेला पुरानी संस्कृतियों को संजोए हुए है, जिस तरह से माता की शोभायात्रा पहले निकला करती थी. आज भी वैसे ही पुरानी कचहरी से होते हुए गंज बाजार तक शूलिनी पीठम मंदिर तक निकलती है, लेकिन आज मेले का स्वरूप बढ़ चुका है तो शोभायात्रा भी आज बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. सोलन के आसपास के गांव के लोग इस शोभायात्रा में हिस्सा लेते हैं और इस दौरान माता से सोलन शहर की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
जून माह के तीसरे सप्ताह में 3 दिनों तक मनाया जाता है शूलिनी मेला.

दुर्गा का अवतार हैं माता शूलिनी: साहित्यकार मदन हिमाचली बताते हैं कि जब बघाट रियासत के राजाओं की राजधानी जौनाजी हुआ करती थी तो उस वक्त उनकी कुलदेवी लगासन देवी होती थी, लेकिन जब बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह ने सोलन को अपनी राजधानी बनाया. उस वक्त उन्होंने अपनी कुलदेवी को सोलन में बसाया और उसे शूलिनी देवी का नाम दिया, क्योंकि माता त्रिशूल धारी दुर्गा स्वरूप में शूलिनी मंदिर में विराजमान हैं. वहीं, गंज बाजार में जहां माता अपनी बहन से मिलने के लिए मेले के दौरान जाती है, उसे शूलिनी पीठम का नाम दिया गया और वहां पर माता दुर्गा शिव शक्ति के रूप में विराजमान हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
बघाट रियासत के समय से होता है छिंज का आयोजन.

बघाट रियासत काल से होता है छिंज का आयोजन: मदन हिमाचली बताते हैं कि पहले जब मेले की शुरुआत हुई तो स्थानीय दुकानदार चार-चार आने इकट्ठा करके छींज (कुश्ती) का आयोजन किया करते थे. दुकानें भी कम हुआ करती थी, लेकिन उस वक्त छिंज का लोग ज्यादा लुफ्त जाते थे. खेतों से मेले की शुरुआत हुई फिर मिले का स्वरूप बदला और चौक बाजार में मेला हुआ और आज मेला ठोडो ग्राउंड सोलन में होता है. उन्होंने बताया कि राजा अपनी कुलमाता को खुश करने के लिए हर साल इस मेले का आयोजन करते थे और छींज का मेले में आयोजन किया था. उसके बाद मेले का स्वरूप बदला और दंगल शुरू हुआ, ठोडा नृत्य शुरू हुआ, जो हिमाचल की एक संस्कृति की पहचान है और उसे इस मेले में तवज्जो दी जाने लगी. आज कई प्रकार के खेल इस मेले में आयोजित किए जाते हैं.

ये भी पढ़ें: Shoolini Mela 2023: शूलिनी मेले में 500 पुलिसकर्मी संभालेंगे सुरक्षा जिम्मा, 8 DSP स्तर के अधिकारी रहेंगे मौजूद

सोलन: राज्यस्तरीय शूलिनी मेला कल 23 जून से 25 जून तक मनाया जाना है. जिसको लेकर जिला प्रशासन सोलन ने भी तैयारियां पूरी कर ली हैं. बहरहाल शूलिनी मेला सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी माता शूलिनी के नाम से मनाया जाता है. तीन दिनों तक माता शूलिनी अपनी बड़ी बहन के पास अपने मुख्य मंदिर परिसर से गंज बाजार स्थित मंदिर में रहती हैं. इन तीन दिनों को सोलन शहर में मेले के रूप में मनाया जाता है. प्रदेशभर से लोग इस मेले में शामिल होने आते हैं. मेले की सांस्कृतिक संध्याएं भी इसके आकर्षण का केंद्र रहती हैं.

बघाट रियासत की कुलदेवी हैं मां शूलिनी: शूलिनी माता का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी को बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी देवी माना जाता है. माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है. शहर की अधिष्ठात्री देवी शूलिनी माता के नाम से ही शहर का नाम सोलन पड़ा, जो देश की स्वतंत्रता से पूर्व बघाट रियासत की राजधानी के रूप में जाना जाता था. माना जाता है कि बघाट रियासत के शासकों ने यहां आने के साथ ही अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की स्थापना सोलन गांव में की और इसे रियासत की राजधानी बनाया.

State level Shoolini Mela 2023.
बघाट रियासत की कुलदेवी हैं माता शूलिनी.

कुलदेवी की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन: मान्यता के अनुसार बघाट के राजा अपनी कुल देवी यानी की माता शूलिनी को प्रसन्न करने के लिए हर मेले का आयोजन करते थे. यहां के लोगों का मानना है कि मां शूलिनी के खुश होने पर यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी का प्रकोप नहीं होता, बल्कि शहर में सिर्फ खुशहाली आती है. इसलिए आज भी मेले की यह परंपरा कायम है. मां शूलिनी की अपार कृपा के कारण ही शहर दिन-प्रतिदिन सुख व समृद्धि की ओर अग्रसर है. पहले शूलिनी मेला सिर्फ एक दिन के लिए ही मनाया जाता था, लेकिन सोलन जिला के अस्तित्व में आने के बाद से इसके सांस्कृतिक महत्व बनाए रखने और इसे आकर्षक बनाने के लिए इसे तीन दिवसीय राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दिया गया.

State level Shoolini Mela 2023.
सोलन शहर के शीली मार्ग पर स्थित है माता शूलिनी का मंदिर.

जून माह के तीसरे सप्ताह में 3 दिनों तक मनाया जाता है मेला: अब यह मेला जून माह के तीसरे सप्ताह में तीन दिनों तक मनाया जाता है. पहले छोटे स्तर पर आयोजित होने वाले शूलिनी मेले का आज स्वरूप विशाल हो गया है. अब यह तीन दिवसीय राज्य स्तरीय शूलिनी मेले के रूप में मनाया जाता है. जिला प्रशासन इस मेले को करवाता और अब मेले का बजट एक करोड़ तक पहुंच गया है.

State level Shoolini Mela 2023.
सोलन शहर की अधिष्ठात्री देवी हैं माता शूलिनी.

बड़ी बहन के घर पर 3 दिनों तक रुकती हैं माता: माता शूलिनी मेले के पहले दिन पालकी में बैठकर अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने गंज बाजार पहुंचती हैं. दो बहनों के इस मिलन के साथ ही राज्य स्तरीय मां शूलिनी मेले का आगाज हो जाता है. मां शूलिनी अपने मंदिर से पालकी में बैठकर शहर की परिक्रमा करने के बाद गंज बाजार स्थित अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती हैं. मां शूलिनी 3 दिनों तक लोगों को दर्शन देने के लिए वहीं विराजमान रहती हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
राज्यस्तरीय शूलिनी मेला 2023.

ये भी पढ़ें: Shoolini Mela Solan: शूलिनी मेले की सांस्कृतिक संध्याओं में ये मशहूर गायक मचाएंगे धमाल

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी: मंदिर के पुजारी रामस्वरूप शर्मा की माने तो उनका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी करीब 200 सालों से माता शूलिनी देवी की पूजा अर्चना करता आ रहा है. शूलिनी मां माता दुर्गा का अवतार हैं. त्रिशूल धारी होने के कारण माता का नाम शूलिनी पड़ा है. उनके अनुसार माता शूलिनी सोलन में बघाट रियासतों के राजाओं के समय से बसी हैं. जब बघाट रियासत के राजा सोलन में बसे थे, तो वो मां शूलिनी को अपने साथ ही सोलन लेकर आए थे. बघाट रियासत के राजाओं की कुलदेवी माता शूलिनी उनके सभी मनोकामनाओं को पूरा करती थीं. तब से लेकर आज तक सोलन शहर पर मां शूलिनी की अपार कृपा है.

State level Shoolini Mela 2023.
हर साल सोलन में मनाया जाता है राज्य स्तरीय शूलिनी मेला.

शूलिनी मेले में तीन दिनों तक नहीं रहती खानपान की चिंता: शूलिनी मेले में स्थानीय व्यापारी वर्ग व लोग भी खुलकर दान करते हैं. जिले भर में दर्जनों भंडारे सड़कों पर लगे होते हैं. कहीं पर अलग-अलग तरह के व्यंजन तो कहीं पर जूस, आइसक्रीम, खीर, पूड़े, चने भटूरे आदि अनेकों तरह के पकवान मेले में आने वाले हजारों लोगों को खाने को मिलते हैं. यहां पर कहते हैं कि लोग अगर जेब में सिर्फ किराया लेकर भी मेले में आ जाएं तो भी अच्छे से मेला घूमकर पेट भरकर वापस जा सकते हैं. प्रदेश में इस तरह का यह पहला मेला है, जहां पर तीन दिनों तक सारा दिन दर्जनों भंडारे लगते हैं.

ये कहते हैं साहित्यकार: वरिष्ठ साहित्यकार मदन हिमाचली बताते हैं कि शूलिनी मेला पुरानी संस्कृतियों को संजोए हुए है, जिस तरह से माता की शोभायात्रा पहले निकला करती थी. आज भी वैसे ही पुरानी कचहरी से होते हुए गंज बाजार तक शूलिनी पीठम मंदिर तक निकलती है, लेकिन आज मेले का स्वरूप बढ़ चुका है तो शोभायात्रा भी आज बड़ी धूमधाम के साथ मनाई जाती है. सोलन के आसपास के गांव के लोग इस शोभायात्रा में हिस्सा लेते हैं और इस दौरान माता से सोलन शहर की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
जून माह के तीसरे सप्ताह में 3 दिनों तक मनाया जाता है शूलिनी मेला.

दुर्गा का अवतार हैं माता शूलिनी: साहित्यकार मदन हिमाचली बताते हैं कि जब बघाट रियासत के राजाओं की राजधानी जौनाजी हुआ करती थी तो उस वक्त उनकी कुलदेवी लगासन देवी होती थी, लेकिन जब बघाट रियासत के 77वें राजा दुर्गा सिंह ने सोलन को अपनी राजधानी बनाया. उस वक्त उन्होंने अपनी कुलदेवी को सोलन में बसाया और उसे शूलिनी देवी का नाम दिया, क्योंकि माता त्रिशूल धारी दुर्गा स्वरूप में शूलिनी मंदिर में विराजमान हैं. वहीं, गंज बाजार में जहां माता अपनी बहन से मिलने के लिए मेले के दौरान जाती है, उसे शूलिनी पीठम का नाम दिया गया और वहां पर माता दुर्गा शिव शक्ति के रूप में विराजमान हैं.

State level Shoolini Mela 2023.
बघाट रियासत के समय से होता है छिंज का आयोजन.

बघाट रियासत काल से होता है छिंज का आयोजन: मदन हिमाचली बताते हैं कि पहले जब मेले की शुरुआत हुई तो स्थानीय दुकानदार चार-चार आने इकट्ठा करके छींज (कुश्ती) का आयोजन किया करते थे. दुकानें भी कम हुआ करती थी, लेकिन उस वक्त छिंज का लोग ज्यादा लुफ्त जाते थे. खेतों से मेले की शुरुआत हुई फिर मिले का स्वरूप बदला और चौक बाजार में मेला हुआ और आज मेला ठोडो ग्राउंड सोलन में होता है. उन्होंने बताया कि राजा अपनी कुलमाता को खुश करने के लिए हर साल इस मेले का आयोजन करते थे और छींज का मेले में आयोजन किया था. उसके बाद मेले का स्वरूप बदला और दंगल शुरू हुआ, ठोडा नृत्य शुरू हुआ, जो हिमाचल की एक संस्कृति की पहचान है और उसे इस मेले में तवज्जो दी जाने लगी. आज कई प्रकार के खेल इस मेले में आयोजित किए जाते हैं.

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