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देवभूमि में प्राचीन परंपरा कायम, कोरोना काल में भी नहीं रुका दो बहनों का मिलन

कोरोना काल में भी मां शूलिनी का आज अपनी बहन दुर्गा से मिलन हो ही गया. प्रशासन द्वारा शुक्रवार को सोलन शहर में 10 बजे से 3 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया था ताकि लोगों का हुजूम मंदिर के आस पास इकट्ठा ना हो सकें. इस दौरान करीब 21 गांव के 1-1 व्यक्ति ने आकर माता के चरणों मे अपनी हाजिरी लगाई है.

शूलिनी माता
shoolini mata
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Published : Jun 25, 2021, 8:18 PM IST

सोलन: देवभूमि हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले पारंपरिक एवं प्रसिद्ध मेलों में माता शूलिनी (Mata Shoolini) का मेला भी प्रमुख माना जाता है. बदलते परिवेश के बावजूद यह मेला अपने प्राचीन परंपरा को संजोए हुए हैं. सोलन जिला में मनाया जाने वाला राज्यस्तरीय शूलिनी मेला (State Level Shoolini Fair ) भले ही दूसरे साल भी कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया हो, लेकिन सालों से चलती आ रही देव परंपराएं और पौराणिक विधि-विधान से शुक्रवार को सोलन में मां शूलिनी का अपनी बहन दुर्गा से मिलन हो ही गया.

विधि विधान से हुआ दोनों बहनों का मिलन

प्रशासन द्वारा शुक्रवार को सोलन शहर में 10 बजे से 3 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया था ताकि लोगों का हुजूम मंदिर के आस पास इकट्ठा न हो सकें. वहीं, माता शूलिनी की प्रतिमा को परिक्रमा ना करवाकर सीधा ही गंज बाजार में अपनी बहन के घर लाया गया. जहां पूरे विधि विधान से दोनों बहनों का मिलन हुआ.

21 गांवों के लोगों ने लगाई हाजिरी

मां शूलिनी के कल्याणा समिति के अध्यक्ष ठाकुर शेर सिंह का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते इस बार भी मां शूलिनी की शोभायात्रा का भले ही सूक्ष्म रूप रहा हो लेकिन जो हमारी परंपरा थी, उसे हमने निभाया है, उन्होंने बताया कि आज करीब 21 गांव के 1-1 व्यक्ति ने आकर माता के चरणों मे अपनी हाजिरी लगाई है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से पहले भी मां शूलिनी की कृपा सोलन शहर पर रही है उसी तरह आगे भी मां की कृपा सब पर बनी रहेगी.

वीडियो रिपोर्ट.

लोगों से डीसी की अपील

डीसी सोलन कृतिका कुल्हारी ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि आज से सूक्ष्म रूप में राज्यस्तरीय शूलिनी मेले की शुरुआत हो चुकी है. पूजा अर्चना के साथ परम्पराओं को निभाते हुए मेले की शुरुआत हुई है. उन्होंने कहा कि लोग मेले के दौरान इकट्ठे न हो इसके लिए शहर में धारा 144 लगाई गई थी. इसके साथ ही लोगों से भी अपील की है कि लोग कोरोना नियमों का पालन करें.

प्राचीन परंपरा कायम

बदलते परिवेश के बावजूद यह मेला अपने प्राचीन परंपरा को संजोए हुए हैं. सोलन के 200 साल पुराने शूलिनी मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुलश्रेष्ठा देवी मानी जाती हैं. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में विद्यमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाए भी मौजूद हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक हैं. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं.

माता शूलिनी के नाम से हुआ सोलन शहर का नामकरण

माता शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन शहर का नामकरण हुआ था, जो कि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है. सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी. इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी. 12 घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था. इस रियासत के प्रारंभ में राजधानी जौनाजी और फिर बाद कोटि और बाद में सोलन बनी.

बता दें कि राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे. रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है. जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे.

ये भी पढ़ें- दो दिवसीय दौरे पर शिमला पहुंचे सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे

सोलन: देवभूमि हिमाचल प्रदेश में मनाए जाने वाले पारंपरिक एवं प्रसिद्ध मेलों में माता शूलिनी (Mata Shoolini) का मेला भी प्रमुख माना जाता है. बदलते परिवेश के बावजूद यह मेला अपने प्राचीन परंपरा को संजोए हुए हैं. सोलन जिला में मनाया जाने वाला राज्यस्तरीय शूलिनी मेला (State Level Shoolini Fair ) भले ही दूसरे साल भी कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया हो, लेकिन सालों से चलती आ रही देव परंपराएं और पौराणिक विधि-विधान से शुक्रवार को सोलन में मां शूलिनी का अपनी बहन दुर्गा से मिलन हो ही गया.

विधि विधान से हुआ दोनों बहनों का मिलन

प्रशासन द्वारा शुक्रवार को सोलन शहर में 10 बजे से 3 बजे तक कर्फ्यू लगाया गया था ताकि लोगों का हुजूम मंदिर के आस पास इकट्ठा न हो सकें. वहीं, माता शूलिनी की प्रतिमा को परिक्रमा ना करवाकर सीधा ही गंज बाजार में अपनी बहन के घर लाया गया. जहां पूरे विधि विधान से दोनों बहनों का मिलन हुआ.

21 गांवों के लोगों ने लगाई हाजिरी

मां शूलिनी के कल्याणा समिति के अध्यक्ष ठाकुर शेर सिंह का कहना है कि कोरोना महामारी के चलते इस बार भी मां शूलिनी की शोभायात्रा का भले ही सूक्ष्म रूप रहा हो लेकिन जो हमारी परंपरा थी, उसे हमने निभाया है, उन्होंने बताया कि आज करीब 21 गांव के 1-1 व्यक्ति ने आकर माता के चरणों मे अपनी हाजिरी लगाई है. उन्होंने कहा कि जिस तरह से पहले भी मां शूलिनी की कृपा सोलन शहर पर रही है उसी तरह आगे भी मां की कृपा सब पर बनी रहेगी.

वीडियो रिपोर्ट.

लोगों से डीसी की अपील

डीसी सोलन कृतिका कुल्हारी ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा कि आज से सूक्ष्म रूप में राज्यस्तरीय शूलिनी मेले की शुरुआत हो चुकी है. पूजा अर्चना के साथ परम्पराओं को निभाते हुए मेले की शुरुआत हुई है. उन्होंने कहा कि लोग मेले के दौरान इकट्ठे न हो इसके लिए शहर में धारा 144 लगाई गई थी. इसके साथ ही लोगों से भी अपील की है कि लोग कोरोना नियमों का पालन करें.

प्राचीन परंपरा कायम

बदलते परिवेश के बावजूद यह मेला अपने प्राचीन परंपरा को संजोए हुए हैं. सोलन के 200 साल पुराने शूलिनी मेले का इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा है. माता शूलिनी बघाट रियासत के शासकों की कुलश्रेष्ठा देवी मानी जाती हैं. वर्तमान में माता शूलिनी का मंदिर सोलन शहर के दक्षिण में विद्यमान है. इस मंदिर में माता शूलिनी के अतिरिक्त शिरगुल देवता, माली देवता इत्यादि की प्रतिमाए भी मौजूद हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार माता शूलिनी सात बहनों में से एक हैं. अन्य बहनें हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी, लुगासना देवी, नैना देवी और तारा देवी के नाम से विख्यात हैं.

माता शूलिनी के नाम से हुआ सोलन शहर का नामकरण

माता शूलिनी देवी के नाम से ही सोलन शहर का नामकरण हुआ था, जो कि मां शूलिनी की अपार कृपा से दिन प्रतिदिन समृद्धि की ओर अग्रसर हो रहा है. सोलन नगर बघाट रियासत की राजधानी हुआ करती थी. इस रियासत की नींव राजा बिजली देव ने रखी थी. 12 घाटों से मिलकर बनने वाली बघाट रियासत का क्षेत्रफल 36 वर्ग मील में फैला हुआ था. इस रियासत के प्रारंभ में राजधानी जौनाजी और फिर बाद कोटि और बाद में सोलन बनी.

बता दें कि राजा दुर्गा सिंह इस रियासत के अंतिम शासक थे. रियासत के विभिन्न शासकों के काल से ही माता शूलिनी देवी का मेला लगता आ रहा है. जनश्रुति के अनुसार बघाट रियासत के शासक अपनी कुलश्रेष्ठा की प्रसन्नता के लिए मेले का आयोजन करते थे.

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