सोलन: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता और सहकारिता मंत्री डॉ. राजीव सैजल ने कहा कि हमारे देश में मेलों की प्राचीन परंपराएं हमारी समृद्ध संस्कृति की परिचायक हैं और इनका संवर्द्धन सभ्यता के क्रमिक विकास के लिए आवश्यक है. डॉ. सैजल सोलन जिला के अर्की उपमंडल में दो दिवसीय प्राचीन सायर उत्सव के शुभारंभ के अवसर पर उपस्थित जनसमूह को संबोधित कर रहे थे.
डॉ. सैजल ने कहा कि परंपराएं संस्कृति की पोषक हैं और संस्कृति मानव सभ्यता के लिए आवश्यक है. हमारी संस्कृति हम सभी को जहां प्राचीन से जोड़ती है. वहीं, नूतन के सृजन के लिए प्रेरित भी करती है. उन्होंने विशेष रूप से युवाओं का आह्वान किया कि अपनी समृद्ध संस्कृति और परंपराओं को जानें और इनके प्रचार प्रसार एवं संवर्द्धन में सहायक बनें.
क्यों मनाया जाता है सैर या सायर का पर्व और क्या है इसका महत्व
हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध संस्कृति, विभिन्न मेले, उत्सव और त्योहारों के लिए प्रसिद्ध है. ये सारे त्यौहार जहां हम सबको हमारे अपनों से जोड़े रखने का काम करते हैं, वहीं हिमाचली जनता के लिए एक रोजगार का काम भी कर रहे हैं. हिमाचल में यूं तो साल भर बहुत से त्योहार मनाए जाते हैं और लगभग हर महीने की सक्रांति यानि “सज्जी या साजा” को एक विशेष नाम से जाना जाता है और त्यौहार के तौर पर मनाया जाता है.
क्रमानुसार भारतीय देसी महीनों के बदलने और नए महीने के शुरू होने के प्रथम दिन को सक्रांति कहा जाता है. लगभग हर सक्रांति पर हिमाचल प्रदेश में कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है जो कि हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी संस्कृति का प्राचीन भारतीय सभ्यता या यूं कहें तो देसी कैलेंडर के साथ एकरसता का परिचायक है. 16 सितम्बर यानी अश्विन महीने की सक्रांति को कांगड़ा, मण्डी, हमीरपुर, बिलासपुर और सोलन सहित अन्य कुछ जिलो में सैर या सायर का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है.
अश्विन महीने की सक्रांति को सैर उत्सव या सायर उत्सव
सैर उत्सव या सायर उत्सव भी इन्हीं त्योहारों में से एक है. सैर का त्योहार (सायर त्योहार )अश्विन महीने की सक्रांति को मनाई जाती है. वास्तव में यह त्योहार वर्षा ऋतु के खत्म होने और शरद ऋतु के आगाज के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस समय खरीफ की फसलें पक जाती हैं और काटने का समय होता है, तो भगवान को धन्यवाद करने के लिए यह त्योहार मनाते हैं. सैर के बाद ही खरीफ की फसलों की कटाई की जाती है. इस दिन “सैरी माता” को फसलों का अंश और मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं और साथ ही राखियां भी उतार कर सैरी माता को चढ़ाई जाती हैं.
ठंडे इलाकों में इसे सर्दी की शुरुआत माना जाता है और सर्दी की तैयारी शुरू हो जाती है. लोग सर्दियों के लिए अनाज और लकड़ियां जमा करके रख लेते हैं. सैर आते ही बहुत से त्यौहारों का आगाज़ हो जाता है. सैर के बाद दिवाली तक विभिन्न व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं.
बरसात की समाप्ति, अन्न पूजा और पशुओं की खरीद फरोख्त
इस उत्सव को मनाने के पीछे एक धारणा यह है कि प्राचीन समय में बरसात के मौसम में लोग दवाइयां उपलब्ध न होने के कारण कई बीमारियों व प्राकृतिकआपदाओं का शिकार हो जाते थे और जो लोग बच जाते थे वे अपने आप को भाग्यशाली समझते थे तथा बरसात के बाद पड़ने वाले इस उत्सव को खुशी-खुशी मनाते थे. तब से लेकर आज तक इस उत्सव को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है. सायर का पर्व अनाज पूजा और बैलों की खरीद-फरोख्त के लिए मशहूर है. कृषि से जुड़ा यह पर्व ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. बरसात के मौसम के बाद खेतों में फसलों के पकने और सर्दियों के लिए चारे की व्यवस्था किसान और पशु पालक सायर के त्योहार के बाद ही करते हैं.
देवालयों के खुलते हैं कपाट
सायर का त्योहार बरसात की समाप्ति का भी सूचक माना जाता है. इस दिन भादो महीने का अंत होता है. भादो महीने के दौरान देवी-देवता डायनों से युद्ध लड़ने देवालयों से चले जाते हैं. वे सायर के दिन वापस अपने देवालयों में आ जाते हैं. इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों के देवालयों में देवी-देवता के गुरु देव खेल के माध्यम से लोगों को देव-डायन युद्ध का हाल बताते हैं और यह भी बताते हैं कि इसमें किस पक्ष की विजय हुई है. वहीं बरसात के मौसम में किस घर के प्राणी पर बुरी आत्माओं का साया पड़ा है. देवता का गुरु इसके उपचार के बारे में भी बताता है. सायर के दिन ही नव दुल्हनें मायके से ससुराल लौट आती हैं. ऐसी मान्यता है कि भादों महीने के दौरान विवाह के पहले साल दुल्हन सास का मुंह नहीं देखती है. ऐसे में वह एक महीने के लिए अपने मायके चली जाती है.