सोलन: आज यानि 15 सितंबर को हम इंजीनियर दिवस मना रहे हैं, इस दिन हम उस अनपढ़ ग्रामीण जो प्रतिभा के धनी और किसी भी सूरत में इंजीनियर से कमतर नहीं बाबा भलखू के योगदान को नहीं भूल सकते.
ऐतिहासिक विरासत कालका-शिमला रेलवे खंड निर्माण में बाबा भलखू के मार्गदर्शन और योगदान को अगर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि वो किसी मंझे हुए इंजीनियर से कम नहीं थे. सोलन जिला के झाजा गांव के भलखू को आज उनके योगदान के लिए याद किया जाता है. शिमला रेलवे स्टेशन में बाबा भलखू संग्रहालय बनाया गया है जबकि उनके गांव में उनकी प्रतिमा स्थापित है और हर साल उनकी याद में मेला लगता है.
देश-दुनिया से हजारों की संख्या में लोग शिमला घूमने आते हैं. वहीं, इस खूबसूरत शहर में कई ऐसी जगहें भी हैं, जहां अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है. जिनमें एक स्थान बड़ोग रेलवे स्टेशन के पास स्थित टनल नंबर 33 है. इस टनल के बारे में ऐसा कहा जाता है कि इस जगह पर भूत का साया है. क्या है इसकी कहानी, आइए जानते हैं.
● बड़ोग सुरंग में उनका विशेष योगदान
बात 1898 की है, जब ब्रितानी हुकूमत शिमला में अपना सराय बनाना चाहती थी. इसके लिए उन्होंने शिमला के विकास की एक योजना रखी. इस विकास योजना में शिमला-कालका रेलवे लाइन भी था जिसे एक दूसरे से जोड़ना था, लेकिन इस लाइन को बिछाने के बीच में एक पहाड़ आ रहा था. जिसे तोड़ने और लाइन बिछाने की जिम्मेवारी ब्रिटिश इंजिनियर कर्नल बड़ोग को दी गयी.
● मजदूर राह भटक गए
कर्नल बड़ोग ने पहाड़ के दोनों छोड़ में मजदूरों को खुदाई के लिए लगाया. उस समय पहाड़ को तोड़ने के लिए एसिटलिन गैस का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन कर्नल बड़ोग ने एसिटलिन गैस का इस्तेमाल नहीं किया. पहाड़ों को तोड़ते-तोड़ते मजदूर राह भटक गए, दोनों छोड़ के मजदूर एक दूसरे से नहीं मिल पाए जिससे ब्रितानी हुकूमत के पैसों की खूब बर्बादी हुई.
● टनल नंबर 33
इसके बाद ब्रितानी हुकूमत ने न केवल कर्नल बड़ोग से काम छीन लिया बल्कि कर्नल बड़ोग पर एक रुपये का जुर्माना भी लगाया. इस अपमान को कर्नल बड़ोग सह नहीं पाए और उसी सुरंग में अपनी आत्महत्या कर ली. जिसे आज टनल नंबर 33 के नाम से जाना जाता है. इसके बाद ब्रितानी हुकूमत ने 1900 में फिर से खुदाई करवाया. इस बार उन्हें सफलता मिली और 1903 में शिमला से कालका को जोड़ने वाली लाइन बिछी.
● लोहे का दरवाजा लगाया गया
हालांकि, ब्रितानी हुकूमत को सफलता मिल गयी, लेकिन कर्नल बड़ोग की आत्महत्या को भूल गए. इसके बाद कर्नल बड़ोग के काले साए ने आम लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया. इस टनल में लोहे का दरवाजा लगाकर ताला लगा दिया गया, लेकिन अगले दिन ताला टूटा मिला. इसके बाद उस टनल के दरवाजे पर ताला नहीं जड़ा गया. वहीं, नए टनल का नाम कर्नल बड़ोग के नाम पर ही रखा गया.
● छड़ी के सहारे सुरंग के लिए लगाए थे निशान
बताया जाता है कि भलखू ने अपनी छड़ी के सहारे सुरंग के निर्माण के लिए निशान लगाए थे जो सुरंग के दोनों छोर मिलने में सहायक रहे. इसके अलावा इस रेल लाइन में और भी कई जगह भलखू ने अंग्रेज इंजीनियरों का मार्गदर्शन किया था.
इसके अलावा कई पुलों के निर्माण में भी उन्होंने भूमिका निभाई थी. अनपढ़ होने के बावजूद भी इतनी प्रतिभा होने और अंग्रेजी सरकार का रेलवे खंड निर्माण में सहयोग देने पर भलखू को प्रशस्ति पत्रों के साथ सम्मानित किया था. आज भी कई पत्र उनके स्वजनों के पास है.
● झाजा में उनके घर को हेरिटेज घोषित करे सरकार
बाबा भलखू राम के घर सोलन के पर्यटक स्थल चायल के नजदीक झाजा गांव में है. आज भी उनका पुराना मकान गांव में स्थित है. इस घर को देखने के लिए लोग आते रहते हैं. सोलन के शिक्षाविद और साहित्यकार मदन हिमाचली के अनुसार बाबा भलखू एक दिव्य पुरूष थे. अनपढ़ होने के बावजूद भी कालका शिमला रेलवे लाइन और सुरंग निर्माण में उनका अहम योगदान है.
जहां अंग्रेज इंजीनियर असफल हो गए थे, वहां बाबा भलखू ने एक छड़ी के सहारे इसको मापकर सुरंग निर्माण करवा दिया था. भलखू के घर को सरकार को हेरिटेज घोषित करना चाहिए, ताकि इस दिव्य पुरुष के बारे में आगामी पीढ़ी भी जान सके.
यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल कालका-शिमला रेलवे लाइन में बनी बड़ोग सुरंग का इतिहास काफी दिलचस्प है. कालका से 41 किमी दूर आता है बड़ोग स्टेशन, जहां यह सुरंग है. बता दें कि 20वीं सदी में बनाई गई इस सुरंग का नाम ब्रिटिश इंजीनियर कर्नल बड़ोग के नाम पर पड़ा. इसके बनने के पीछे कर्नल बड़ोग की दुखभरी कहानी है.
क्या कहते हैं सुरंग को....
● बड़ोग रेलवे स्टेशन के पास है बड़ोग सुरंग, जिसे सुरंग नंबर 33 भी कहते हैं.
● 1143.61 मीटर लंबी यह सुरंग हॉन्टेड प्लेसेस में शुमार है.
● यह दुनिया की सबसे सीधी सुरंग है, जिसे पार करने में ट्रेन ढाई मिनट लेती है.
बाबा भलखू ने सुरंग को पूरा कराने में की मदद
कर्नल बड़ोग की मौत के बाद 1900 में सुरंग पर एचएस हर्लिंगटन ने फिर से काम शुरू किया और 1903 में सुरंग पूरी तरह तैयार हो गई.
● ब्रिटिश सरकार ने सुरंग का नाम इंजीनियर के नाम से ही रखा बड़ोग सुरंग.
● ऐसी कहानी प्रचलित है कि एचएस हर्लिंगटन भी इस सुरंग का काम पूरा नहीं कर पा रहे थे.
● आखिरकार चायल के रहने वाले बाबा भलकू ने इस काम को पूरा करवाया.
● शिमला गैजेट के मुताबिक, बाबा भलकू ने इस लाइन पर कई अन्य सुरंगें खोदने में भी ब्रिटिश सरकार की मदद की.
होती रहती हैं अप्रिय घटनाएं
● कहा जाता है कि इंजीनियर की मौत के बाद यहां अप्रिय घटनाएं होने लगी थीं. कई लोगों को इंजीनियर की आत्मा दिखाई देने लगी.
● लोगों ने बाद में यहां मंदिर और पूजा अर्चना करवाई मगर इसके बावजूद कई लोग ऐसे हैं जो यहां इंजीनियर के चिल्लाने की आवाजें सुन चुके हैं.
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