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कोरोना की भेंट चढ़ा 6 सौ साल पुराना बातल दशहरा मेला, कुछ ही लोगों के साथ निभाई जाएगी परंपरा

इस बार कोरोना के चलते बातल के प्राचीन दशहरा मेले का मुख्य आकर्षण घड़ा फोड़ना, खेल प्रतियोगिताएं और रात्रि कार्यक्रम नहीं होंगे. करीब 600 सालों से मनाए जा रहे दशहरा पर्व में इस बार कुछ ही लोगों के साथ लक्ष्मी नारायण की रथ यात्रा निकाल कर पुरानी परंपरा का निर्वहन होगा.

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Published : Oct 25, 2020, 8:40 AM IST

सोलन: बाघल रियासत में मनाया जाने वाला ऐतिहासिक बातल दशहरा मेला इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गया है. बातल के प्राचीन दशहरा मेले का मुख्य आकर्षण घड़ा फोड़ना, खेल प्रतियोगिताएं और रात्रि कार्यक्रम कोरोना के चलते इस बार आयोजित नहीं किए जाएंगे.

करीब 600 सालों से मनाए जा रहे दशहरा पर्व में इस बार कुछ ही लोगों के साथ लक्ष्मी नारायण की रथ यात्रा निकाल कर पुरानी परंपरा का निर्वहन होगा. बातल पंचायत के उप प्रधान नरेंद्र शर्मा ने बताया कि दशहरे के दिन पुरानी परंपरा के अनुसार बातल गांव से कुछ लोग अर्की से भगवान लक्ष्मी नारायण की पालकी लेकर आएंगे. सूक्ष्म रूप से ही कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.

नरेंद्र शर्मा ने बताया कि हर साल हर्षोल्लास के साथ सैकड़ों लोग अर्की से वाद्य यंत्रों और भजन कीर्तन करते हुए भगवान लक्ष्मी नारायण की पालकी लाते रहे हैं. गांव में पालकी का स्वागत करने के बाद पाप के घड़े को फोड़ने की परंपरा रही है.

हालांकि, इस बार प्रशासन के निर्देशों के अनुसार केवल परंपरा का निर्वहन करते हुए कार्यक्रम को सूक्ष्म रूप में किया जाएगा. बाघल रियासत के राजघराने की 18वीं पीढ़ी के कुंवर नागेंद्र सिंह ने बताया कि यह पहली बार है कि बातल दशहरा नहीं मनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि सदियों से बातल में दशहरा मनाया जाता रहा है. उसमें राज घराने के लोग मुख्य रूप से शामिल हुआ करते थे.

सोलन: बाघल रियासत में मनाया जाने वाला ऐतिहासिक बातल दशहरा मेला इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गया है. बातल के प्राचीन दशहरा मेले का मुख्य आकर्षण घड़ा फोड़ना, खेल प्रतियोगिताएं और रात्रि कार्यक्रम कोरोना के चलते इस बार आयोजित नहीं किए जाएंगे.

करीब 600 सालों से मनाए जा रहे दशहरा पर्व में इस बार कुछ ही लोगों के साथ लक्ष्मी नारायण की रथ यात्रा निकाल कर पुरानी परंपरा का निर्वहन होगा. बातल पंचायत के उप प्रधान नरेंद्र शर्मा ने बताया कि दशहरे के दिन पुरानी परंपरा के अनुसार बातल गांव से कुछ लोग अर्की से भगवान लक्ष्मी नारायण की पालकी लेकर आएंगे. सूक्ष्म रूप से ही कार्यक्रम का आयोजन किया जाएगा.

नरेंद्र शर्मा ने बताया कि हर साल हर्षोल्लास के साथ सैकड़ों लोग अर्की से वाद्य यंत्रों और भजन कीर्तन करते हुए भगवान लक्ष्मी नारायण की पालकी लाते रहे हैं. गांव में पालकी का स्वागत करने के बाद पाप के घड़े को फोड़ने की परंपरा रही है.

हालांकि, इस बार प्रशासन के निर्देशों के अनुसार केवल परंपरा का निर्वहन करते हुए कार्यक्रम को सूक्ष्म रूप में किया जाएगा. बाघल रियासत के राजघराने की 18वीं पीढ़ी के कुंवर नागेंद्र सिंह ने बताया कि यह पहली बार है कि बातल दशहरा नहीं मनाया जाएगा. उन्होंने कहा कि सदियों से बातल में दशहरा मनाया जाता रहा है. उसमें राज घराने के लोग मुख्य रूप से शामिल हुआ करते थे.

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