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उत्तर भारत का एकमात्र गांधी मंदिर...जहां होती है बापू की पूजा, नेता-अधिकारी भूले यहां का रास्ता - महात्मा गांधी का मंदिर

पांवटा साहिब के अमबोया में 50 के दशक में बना महात्मा गांधी का मंदिर लगातार सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. राष्ट्रपिता के जन्मदिन या बलिदान दिवस पर भी कोई नेता या अधिकारी पुष्प तक चढ़ाने यहां नहीं आता.

उत्तर भारत का इकलौता गांधी मंदि
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Published : Oct 2, 2019, 7:23 PM IST

Updated : Oct 2, 2019, 7:40 PM IST

पांवटा साहिब: देश भर में जहां महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है, वहीं उत्तर भारत का इकलौता गांधी मंदिर सिस्टम के अनदेखी की मार झेल रहा है. प्रशासन की तरफ से आज तक इस मंदिर में कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा है, लेकिन स्थानीय पंचायत व स्कूली बच्चों ने राष्ट्रपिता को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की

अमबोया में 50 के दशक में बने इस मंदिर पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है. स्थानीय लोगों की माने तो आज तक कोई भी अधिकारी या नेता इस मंदिर में माथा टेकने तक नहीं आए. जानकारी के अनुसार अमबोया का गांधी मंदिर उत्तरी भारत का एकमात्र गांधी मंदिर है. इतिहास के प्रवक्ता प्रकाश शर्मा ने 3 वर्ष के शौध के भीतर यह पाया है, कि अमबोया का गांधी मंदिर 50 के दशक में बना देश का दूसरा गांधी मंदिर है.

उत्तर भारत का इकलौता गांधी मंदिर

बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में उनके मंदिर बनाने की मुहिम भी चली थी. उस मुहिम के दौरान देशभर में सैकड़ों मंदिर बनाए गए थे, लेकिन कुछ सालों बाद देशभर में महात्मा गांधी के गिने-चुने मंदिर ही शेष रह गए. जिनमें से बचे हुए तीन मंदिरों में से एक मंदिर पौंटा साहिब विकासखंड के अमबोया गांव में स्थित है.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह मंदिर आकार में भले ही छोटा है, लेकिन मंदिर निर्माण का उद्देश्य समाज को नेकी की राह दिखाना है. यह अनूठा मंदिर लगातार सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. राष्ट्रपिता के बलिदान और उनकी शिक्षाओं के स्मारक पर उनके जन्मदिन या बलिदान दिवस पर भी कोई नेता या अधिकारी पुष्प तक चढ़ाने यहां नहीं आता हालांकि गांधी जयंती के अवसर पर स्थानीय पंचायत व स्कूली बच्चों ने राष्ट्रपिता को जरूर याद किया.

पांवटा साहिब: देश भर में जहां महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाई जा रही है, वहीं उत्तर भारत का इकलौता गांधी मंदिर सिस्टम के अनदेखी की मार झेल रहा है. प्रशासन की तरफ से आज तक इस मंदिर में कोई भी अधिकारी नहीं पहुंचा है, लेकिन स्थानीय पंचायत व स्कूली बच्चों ने राष्ट्रपिता को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की

अमबोया में 50 के दशक में बने इस मंदिर पर प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है. स्थानीय लोगों की माने तो आज तक कोई भी अधिकारी या नेता इस मंदिर में माथा टेकने तक नहीं आए. जानकारी के अनुसार अमबोया का गांधी मंदिर उत्तरी भारत का एकमात्र गांधी मंदिर है. इतिहास के प्रवक्ता प्रकाश शर्मा ने 3 वर्ष के शौध के भीतर यह पाया है, कि अमबोया का गांधी मंदिर 50 के दशक में बना देश का दूसरा गांधी मंदिर है.

उत्तर भारत का इकलौता गांधी मंदिर

बता दें कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में उनके मंदिर बनाने की मुहिम भी चली थी. उस मुहिम के दौरान देशभर में सैकड़ों मंदिर बनाए गए थे, लेकिन कुछ सालों बाद देशभर में महात्मा गांधी के गिने-चुने मंदिर ही शेष रह गए. जिनमें से बचे हुए तीन मंदिरों में से एक मंदिर पौंटा साहिब विकासखंड के अमबोया गांव में स्थित है.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह मंदिर आकार में भले ही छोटा है, लेकिन मंदिर निर्माण का उद्देश्य समाज को नेकी की राह दिखाना है. यह अनूठा मंदिर लगातार सरकारी उपेक्षाओं का शिकार हो रहा है. राष्ट्रपिता के बलिदान और उनकी शिक्षाओं के स्मारक पर उनके जन्मदिन या बलिदान दिवस पर भी कोई नेता या अधिकारी पुष्प तक चढ़ाने यहां नहीं आता हालांकि गांधी जयंती के अवसर पर स्थानीय पंचायत व स्कूली बच्चों ने राष्ट्रपिता को जरूर याद किया.

Intro:उत्तरी भारत का इकलौता गांधी मंदिर सिस्टम के अनदेखी का शिकार विकास के लिए तरस रहा है महात्मा गांधी का मंदिर शासन प्रशासन कोई भी अधिकारी आज तक नहीं पहुंचा माथा टेकने महात्मा गांधी की हत्या के बाद कई मंदिर बनाए गए थे लेकिन अब मात्र तीन ही मंदिर शेष बचे हैं समय के साथ साथ सभी भूल चुके हैं महात्मा गांधी के बलिदान को


Body:अमबोया में 50 के दशक में बने उत्तरी भारत का एकमात्र गांधी मंदिर में कई नेता या अधिकारी माथा टेकने तक नहीं पहुंचे अमबोया पांवटा साहिब विकासखंड का एक गांव है मंदिर हालांकि आज की स्थिति है लेकिन मंदिर के प्रति देश और प्रदेश की आस्था बदल गई है भारतीय स्थानीय पंचायत के अलावा जिला प्रशासन और प्रदेश सरकार इस मंदिर की कोई ध्यान नहीं दे रही है

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद देशभर में उनके मंदिर बनाने की मुहिम भी चली थी उस मुहिम के दौरान देशभर में सैकड़ों मंदिर बनाए गए थे लेकिन कुछ ही सालों बाद देशभर में महात्मा गांधी के गिने-चुने मंदिर ही बच्चे रहे बाकी सब मंदिर समय के साथ साथ समाप्त हो गए बचे हुए 3 मंदिर में से एक मंदिर पौंटा साहिब विकासखंड के अमबोया गांव में स्थित है
अमबोया का गांधी मंदिर उत्तरी भारत का एक एकमात्र गांधी मंदिर है इतिहास के प्रवक्ता प्रकाश शर्मा ने 3 वर्ष के शौध के भीतर में यह पाया है कि अमबोया का गांधी मंदिर 50 के दशक में बना स्ंभवत देश का दूसरा गांधी मंदिर है

बाइट प्रकाश शर्मा गांधी मंदिर शोधार्थी


राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का यह मंदिर आकार में भले ही छोटा है लेकिन इसकी भव्यता विकराल है इस मंदिर के निर्माण के उद्देश्य समाज को नेकी की राह दिखाने वाला है लेकिन विडंबना देखिए यह अनूठा मंदिर लगातार सरकारी उपेक्षाओ का शिकार हो रहा है राष्ट्रपिता के बलिदान और उनकी शिक्षाओं के स्मारक पर उनके जन्मदिन या बलिदान दिवस पर भी कोई नेता या अधिकारी पुष्प तक चढ़ाने नहीं आता हालांकि गांधी जयंती के अवसर पर स्थानीय पंचायत व स्कूली बच्चे राष्ट्रपिता को जरूर याद किया मंदिर बनाने वाले बुजुर्गों के राज पिता के चरणों पर पुष्प अर्पित कर उनके योगदान को याद किया और बच्चों ने भजन-कीर्तन गाकर महात्मा गांधी की शिक्षाओं का बखान किया मंदिर का रखरखाव कर रहे अ अबवोया पंचायत के लोगों को भी इस बात का मलाल है कि इस मंदिर को हालात के सहारे छोड़ दिया गया है जबकि लोग इस मंदिर को भव्य बनाने के लिए सरकार की ओर निहार रहे हैं

बाइट नीतीश प्रधान
बाइट ग्रामीण


इस मंदिर का निर्माण करने वाले महात्मा गांधी के प्रवतर्क कुछ बुजुर्गों आज भी गांव में मौजूद है मंदिर की अनदेखी से यह बुजुर्ग भी खित्र है दुख इस बात को लेकर है कि इस मंदिर को जो स्थान और अहमियत मिली नहीं चाहिए थी वह मिली नहीं

बाइट गांव के बुजुर्ग


Conclusion:
Last Updated : Oct 2, 2019, 7:40 PM IST
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