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चूड़धार में अब भी कई फीट बर्फ, शिरगुल महाराज की पूजा अर्चना जारी - चूड़धार शिरगुल महादेव मंदिर सिरमौर

हिमाचल के जिला सिरमौर और शिमला की सीमा पर 12 हजार फीट की उंचाई पर अब भी 10 से 15 फीट बर्फ के बीच स्वामी कमलानंद द्वारा शिरगुल महाराज की पूजा अर्चना जारी है. साथ ही स्वामी कमलानंद अपनी योग और साधना को भी लगातार जारी रखे हुए है. कई जगहों पर तेज हवाओं के कारण बर्फ के कई-कई फुट तक उंचे टीले भी बन चुके हैं. मई माह तक चोटी पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है.

shirgul mahadev temple churdhar solan
शिरगुल महाराज मंदिर में स्वामी कमलानंद
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Published : Mar 20, 2020, 8:08 PM IST

नाहनः हिमाचल के जिला सिरमौर और शिमला की सीमा पर 12 हजार फीट की उंचाई वाली चूड़धार में अभी भी 10 से 15 फीट बर्फ के बीच स्वामी कमलानंद द्वारा शिरगुल महाराज की पूजा अर्चना जारी है. साथ ही स्वामी कमलानंद अपनी योग और साधना को भी लगातार जारी रखे हुए है.

हालांकि मौसम साफ होने चलते कई फुट बर्फ पिघल चुकी है, लेकिन चंद दिनों पहले तक चोटी पर 20 से 25 फीट बर्फ के बीच भी पूजा अर्चना का यह क्रम जारी था. हर साल की तरह इस साल भी स्वामी कमलानंद चोटी पर ही डटे रहे.

दरअसल इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो करीब 20 साल पहले स्वामी कमलानंद अपने समाधि में लीन हो चुके गुरु श्यामानंद महाराज के सानिध्य में चोटी पर पहुंचे थे. लगभग 20 साल पहले गुरु ने उन्हें बर्फ के दौरान चोटी पर रहने का आदेश दिया था, जिसकी पालना कर रहे हैं.

वीडियो.

बता दें कि जिस समय समाधि में लीन हो चुके गुरु श्यामानंद चोटी पर अकेले रहा करते थे, उस समय भी 30 फीट तक भी बर्फबारी हुआ करती थी और उस समय संसाधन भी नहीं थे. हालांकि बदलते वक्त में अब स्वामी कमलानंद से मोबाइल के जरिये कभी कबार संपर्क करना संभव हो जाता है.

मगर बर्फ के बीच ऑक्सीजन की कमी कई मर्तबा जीवन पर भारी भी पड़ती है. इस बार भी हालत कुछ ऐसे ही बन गए थे. इस समय भी चूड़धार में स्वामी कमलानंद के साथ उनका एक चेला मौजूद है. चूड़धार की कपाट मई माह में ही खुलेंगे. साधना व योग के बूते ब्रह्मचारी कमलानंद हर बरस चोटी पर विकट से विकट परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित रखने में सफल हो जाते हैं.

इतने अधिक हिमपात में आश्रम से एक कदम भी बाहर रखना आसान नहीं होता. इसके बावजूद वह एक सुरंग के जरिये प्राचीन शिरगुल महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना को भी जारी रखते हैं. आश्रम व शिरगुल मंदिर के बीच कुछ ही मीटरों की दूरी है और मंदिर आश्रम से मंदिर जाने के लिए बर्फ के बीच ही एक गुफा नुमा रास्ता हर साल बनाया जाता है.

कई जगहों पर तेज हवाओं के कारण बर्फ के कई-कई फीट तक ऊंचे टीले भी बन चुके हैं. मई माह तक चोटी पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है. स्वामी कमलानंद जी ने बताया कि मोबाइल चार्जिंग की थोड़ी बहुत व्यवस्था है. इसके जरिये ही उनका कुशलक्षेम श्रद्धालुओं व अन्य लोगों तक पहुंच जाता हैं.

कुल मिलाकर चोटी पर ब्रह्मचारी कमलानंद की जबरदस्त बर्फ के बीच मौजूदगी इस बात को साबित करती है कि गुरु व शिष्य का रिश्ता कितना अटूट होता है. मगर इस साल यह समस्या कुछ ज्यादा है, क्योंकि इस बार चूड़धार में बर्फबारी ने अपना पिछला लगभग तीन दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया.

पढ़ेंः कोरोना वायरस: हरियाणा नबंर की दो बसों ने हिमाचल में किया प्रवेश, पुलिस ने भेजा वापस

नाहनः हिमाचल के जिला सिरमौर और शिमला की सीमा पर 12 हजार फीट की उंचाई वाली चूड़धार में अभी भी 10 से 15 फीट बर्फ के बीच स्वामी कमलानंद द्वारा शिरगुल महाराज की पूजा अर्चना जारी है. साथ ही स्वामी कमलानंद अपनी योग और साधना को भी लगातार जारी रखे हुए है.

हालांकि मौसम साफ होने चलते कई फुट बर्फ पिघल चुकी है, लेकिन चंद दिनों पहले तक चोटी पर 20 से 25 फीट बर्फ के बीच भी पूजा अर्चना का यह क्रम जारी था. हर साल की तरह इस साल भी स्वामी कमलानंद चोटी पर ही डटे रहे.

दरअसल इतिहास पर नजर दौड़ाई जाए तो करीब 20 साल पहले स्वामी कमलानंद अपने समाधि में लीन हो चुके गुरु श्यामानंद महाराज के सानिध्य में चोटी पर पहुंचे थे. लगभग 20 साल पहले गुरु ने उन्हें बर्फ के दौरान चोटी पर रहने का आदेश दिया था, जिसकी पालना कर रहे हैं.

वीडियो.

बता दें कि जिस समय समाधि में लीन हो चुके गुरु श्यामानंद चोटी पर अकेले रहा करते थे, उस समय भी 30 फीट तक भी बर्फबारी हुआ करती थी और उस समय संसाधन भी नहीं थे. हालांकि बदलते वक्त में अब स्वामी कमलानंद से मोबाइल के जरिये कभी कबार संपर्क करना संभव हो जाता है.

मगर बर्फ के बीच ऑक्सीजन की कमी कई मर्तबा जीवन पर भारी भी पड़ती है. इस बार भी हालत कुछ ऐसे ही बन गए थे. इस समय भी चूड़धार में स्वामी कमलानंद के साथ उनका एक चेला मौजूद है. चूड़धार की कपाट मई माह में ही खुलेंगे. साधना व योग के बूते ब्रह्मचारी कमलानंद हर बरस चोटी पर विकट से विकट परिस्थितियों में भी खुद को सुरक्षित रखने में सफल हो जाते हैं.

इतने अधिक हिमपात में आश्रम से एक कदम भी बाहर रखना आसान नहीं होता. इसके बावजूद वह एक सुरंग के जरिये प्राचीन शिरगुल महाराज के मंदिर में पूजा-अर्चना को भी जारी रखते हैं. आश्रम व शिरगुल मंदिर के बीच कुछ ही मीटरों की दूरी है और मंदिर आश्रम से मंदिर जाने के लिए बर्फ के बीच ही एक गुफा नुमा रास्ता हर साल बनाया जाता है.

कई जगहों पर तेज हवाओं के कारण बर्फ के कई-कई फीट तक ऊंचे टीले भी बन चुके हैं. मई माह तक चोटी पर चढ़ाई पर प्रतिबंध है. स्वामी कमलानंद जी ने बताया कि मोबाइल चार्जिंग की थोड़ी बहुत व्यवस्था है. इसके जरिये ही उनका कुशलक्षेम श्रद्धालुओं व अन्य लोगों तक पहुंच जाता हैं.

कुल मिलाकर चोटी पर ब्रह्मचारी कमलानंद की जबरदस्त बर्फ के बीच मौजूदगी इस बात को साबित करती है कि गुरु व शिष्य का रिश्ता कितना अटूट होता है. मगर इस साल यह समस्या कुछ ज्यादा है, क्योंकि इस बार चूड़धार में बर्फबारी ने अपना पिछला लगभग तीन दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया.

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