ETV Bharat / state

अद्भुत हिमाचल: यहां दीवाली से एक महीने बाद मनाया जाता है भगवान राम के लौटने का जश्न, सदियों से चल रही परंपरा

बूढ़ी दिवाली हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के गिरीपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में दिवाली के एक महीने बाद अमावस्या की रात को सदियों से मनाया जा रहा है. बूढ़ी दिवाली को मशराली के नाम से भी मनाया जाता है.

budi diwali, बूढ़ी दीवाली
author img

By

Published : Aug 23, 2019, 9:01 PM IST

सिरमौर: बूढ़ी दीवाली के अवसर पर ग्रामीण अपनी बेटियों और बहनों को खासतौर पर आमंत्रित करते हैं. इस दिन ग्रामीण पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं और सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली और अखरोट बांट कर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं. इसी दौरान स्थानीय लोग लिंबर नृत्य के साथ मशाल यात्रा निकालते हैं और कुछ गांव में हारूल गीतों की ताल पर बढ़ेचू और बुड़ियात नृत्य कर देव परंपरा निभाई जाती है.

बूढ़ी दिवाली गिरिपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में हर साल हर्षोल्लास और पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. आधी रात को हाथों में मशाल लेकर इस महापर्व का आगाज किया जाता है और ये पर्व एक हफ्ते तक जारी रहता है.

ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: यहां चोट लगना माना जाता है सौभाग्य, जब तक किसी का खून न बहने लगे, तब तक होती है पत्थरबाजी

बूढ़ी दीवाली को लेकर जनश्रुतियां

⦁ देरी से मिली थी भगवान श्री राम के लौटने की खबर
मान्यता है कि गिरिपार में भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीना देरी से मिली थी. इस कारण यहां एक महीने बाद दीवाली की परंपरा का निर्वहन करते हैं. बूढ़ी दीवाली के दिन शनैचरी अमावस्या होने से इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.

budi diwali, बूढ़ी दीवाली
देरी से मिली थी भगवान श्री राम के लौटने की खबर

⦁ पांडव वंशज के लोग करते हैं बलिराज का दहन
पांडव वंशज के लोगों का विश्वास है कि अमावस्या की रात को मशाल जुलूस निकालने से क्षेत्र में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और गांव में समृद्धि के द्वार खुलते हैं. कौरव वंशज के लोग अमावस्या की आधी रात को पूरे गांव में मशाल के साथ परिक्रमा कर एक भव्य जुलूस निकालते हैं और गांव के सामूहिक स्थल पर बलिराज दहन की परंपरा निभाते हैं.

budi diwali, बूढ़ी दीवाली
पांडव वंशज के लोग करते हैं बलिराज का दहन

ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: इस गांव में है दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, यहां चलता है देवता का राज!

गिरिपार क्षेत्र में मुख्य दीवाली भी धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन बूढ़ी दीवाली को लेकर लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. गिरिपार के हर एक गांव में लोग बूढ़ी दीवाली को अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं.

ऐसे में कहा जा सकता है कि आधुनिकता के दौर में सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र अपनी प्राचीन परंपराओं को बखूबी संजोए हुए है. इन परंपराओं के निर्वहन से लोगों में आपसी भाईचारे के साथ-साथ सहयोग की भावना भी देखने को मिलती है. इन परंपराओं को संजोए रखने से देवभूमि हिमाचल की पुरानी संस्कृति के संरक्षण को भी बल मिलता है.

सिरमौर: बूढ़ी दीवाली के अवसर पर ग्रामीण अपनी बेटियों और बहनों को खासतौर पर आमंत्रित करते हैं. इस दिन ग्रामीण पारंपरिक व्यंजन बनाते हैं और सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली और अखरोट बांट कर त्यौहार की शुभकामनाएं देते हैं. इसी दौरान स्थानीय लोग लिंबर नृत्य के साथ मशाल यात्रा निकालते हैं और कुछ गांव में हारूल गीतों की ताल पर बढ़ेचू और बुड़ियात नृत्य कर देव परंपरा निभाई जाती है.

बूढ़ी दिवाली गिरिपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में हर साल हर्षोल्लास और पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है. आधी रात को हाथों में मशाल लेकर इस महापर्व का आगाज किया जाता है और ये पर्व एक हफ्ते तक जारी रहता है.

ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: यहां चोट लगना माना जाता है सौभाग्य, जब तक किसी का खून न बहने लगे, तब तक होती है पत्थरबाजी

बूढ़ी दीवाली को लेकर जनश्रुतियां

⦁ देरी से मिली थी भगवान श्री राम के लौटने की खबर
मान्यता है कि गिरिपार में भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीना देरी से मिली थी. इस कारण यहां एक महीने बाद दीवाली की परंपरा का निर्वहन करते हैं. बूढ़ी दीवाली के दिन शनैचरी अमावस्या होने से इस पर्व का महत्व और बढ़ जाता है.

budi diwali, बूढ़ी दीवाली
देरी से मिली थी भगवान श्री राम के लौटने की खबर

⦁ पांडव वंशज के लोग करते हैं बलिराज का दहन
पांडव वंशज के लोगों का विश्वास है कि अमावस्या की रात को मशाल जुलूस निकालने से क्षेत्र में नकारात्मक शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और गांव में समृद्धि के द्वार खुलते हैं. कौरव वंशज के लोग अमावस्या की आधी रात को पूरे गांव में मशाल के साथ परिक्रमा कर एक भव्य जुलूस निकालते हैं और गांव के सामूहिक स्थल पर बलिराज दहन की परंपरा निभाते हैं.

budi diwali, बूढ़ी दीवाली
पांडव वंशज के लोग करते हैं बलिराज का दहन

ये भी पढ़ें-अद्भुत हिमाचल: इस गांव में है दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र, यहां चलता है देवता का राज!

गिरिपार क्षेत्र में मुख्य दीवाली भी धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन बूढ़ी दीवाली को लेकर लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है. गिरिपार के हर एक गांव में लोग बूढ़ी दीवाली को अपने-अपने रीति-रिवाजों के अनुसार मनाते हैं.

ऐसे में कहा जा सकता है कि आधुनिकता के दौर में सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र अपनी प्राचीन परंपराओं को बखूबी संजोए हुए है. इन परंपराओं के निर्वहन से लोगों में आपसी भाईचारे के साथ-साथ सहयोग की भावना भी देखने को मिलती है. इन परंपराओं को संजोए रखने से देवभूमि हिमाचल की पुरानी संस्कृति के संरक्षण को भी बल मिलता है.

Intro:Body:

budhi diwali


Conclusion:
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.