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वैलेंटाइन डे स्पेशल: यहां पति के करीब दफन होने के लिए पत्नी ने किया 38 साल का इंतजार

नाहन में आज भी इतिहास के पन्नों में दफ्न एक प्रेम कहानी लोगों को प्यार सीख दे रही है. नाहन के ऐतिहासिक विला राउंड के उत्तरी हिस्से में दफन डॉ. इडविन पियरसाल और उनकी पत्नी लूसिया की कब्र अपने आप में मिसाल है.

special story on valentine day from nahan
वैलेंटाइन डे स्पेशल
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Published : Feb 14, 2020, 11:21 AM IST

नाहन: आज के दौर में जहां परिवार बिखर रहे हैं. पति-पत्नी के रिश्ते दांव पर लगे है, मोहब्बत और अपनापन खोखला हो रहा है. वहीं ईटीवी भारत 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे पर आपको एक ऐसी प्रेम कहानी से रुबरू करवाएगा, जो किसी हीर-रांझा, रोमियो जूलियट की नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक शहर नाहन में इतिहास के पन्नों में दफ्न एक अमर प्रेम कहानी है. जो आज अपने आप में मिसाल है.

रियासतकाल में एक अंग्रेज अफसर की पत्नी ने अपने पति की बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का लंबा इंतजार किया. यहां जिक्र लेडी लूसिया पियरसाल का हो रहा है. रियासतकाल में लूसिया अपने पति डॉ. इडविन पियरसाल के साथ नाहन पहुंची थीं.

वीडियो रिपोर्ट

50 साल की आयु में हुआ पति का इंतकाल

लूसिया के पति डॉ. इडविन पियरसाल महाराजा के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट थे. डॉ. पियरसाल ने महाराजा के यहां करीब 11 साल अपनी सेवाएं दीं और 19 नवंबर 1883 में डॉ. इडविन का 50 साल की आयु में निधन हो गया. महाराजा ने डॉ. पियरसाल को मिलिटरी ऑनर के साथ ऐतिहासिक विला राउंड के उत्तरी हिस्से में दफन करवाया.

मरने से पहले पियरसाल ने यह जगह खुद चुनी थी और कहा था कि उन्हें यहां दफनाया जाए. उस वक्त लूसिया 49 साल की थीं. डॉ. पियरसाल की भांति लूसिया भी एक रहम दिल और रियासत में लोकप्रिय महिला के तौर पर विख्यात थीं. कहते हैं कि पति की मौत के बाद लूसिया वापस इंगलैंड नहीं गईं. उन्होंने अपने अन्य परिवार के सदस्यों को भी छोड़ दिया.

19 अक्तूबर 1921 को खत्म हुआ इंतजार

1885 में लूसिया ने भारी-भरकम रकम खर्च करके अपने पति की कब्र को पक्का किया, क्योंकि वह अपने पति डॉ. पियरसाल से बेपनाह मोहब्बत करती थीं. ऐसे में लूसिया ने पति की बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का इंतजार किया. 19 अक्टूबर 1921 को वह घड़ी आई जब लूसिया का इंतजार खत्म हुआ और अपने पति को याद करते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. लूसिया की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए महाराजा ने सम्मान सहित लूसिया को भी उसके पति डॉ. पियरसाल की कब्र की बगल में दफनाया. आज भी विला राउंड स्थित कैथोलिक कब्रगाह में इस पियरसाल दंपति के अमर प्रेम की कहानी बयां करती वास्तुकला से परिपूर्ण कब्रें यहां आने-जाने वालों को आकर्षित करती है.

क्या कहते हैं शाही परिवार के सदस्य

शाही परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर सिंह ने भी इसे एक अद्भुत प्रेम कहानी बताते हुए पूरे मामले की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि निसंदेह यह एक अद्भुत प्रेम कहानी थी. इस दंपति की कब्रें आज भी इस प्रेमी कहानी को बयां करती है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश के लाइब्रेरी में सहेज कर रखी गई पांडुलिपियां और दुर्लभ ग्रन्थ होंगे डिजिटलाइज्ड

नाहन: आज के दौर में जहां परिवार बिखर रहे हैं. पति-पत्नी के रिश्ते दांव पर लगे है, मोहब्बत और अपनापन खोखला हो रहा है. वहीं ईटीवी भारत 14 फरवरी यानी वैलेंटाइन डे पर आपको एक ऐसी प्रेम कहानी से रुबरू करवाएगा, जो किसी हीर-रांझा, रोमियो जूलियट की नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक शहर नाहन में इतिहास के पन्नों में दफ्न एक अमर प्रेम कहानी है. जो आज अपने आप में मिसाल है.

रियासतकाल में एक अंग्रेज अफसर की पत्नी ने अपने पति की बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का लंबा इंतजार किया. यहां जिक्र लेडी लूसिया पियरसाल का हो रहा है. रियासतकाल में लूसिया अपने पति डॉ. इडविन पियरसाल के साथ नाहन पहुंची थीं.

वीडियो रिपोर्ट

50 साल की आयु में हुआ पति का इंतकाल

लूसिया के पति डॉ. इडविन पियरसाल महाराजा के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट थे. डॉ. पियरसाल ने महाराजा के यहां करीब 11 साल अपनी सेवाएं दीं और 19 नवंबर 1883 में डॉ. इडविन का 50 साल की आयु में निधन हो गया. महाराजा ने डॉ. पियरसाल को मिलिटरी ऑनर के साथ ऐतिहासिक विला राउंड के उत्तरी हिस्से में दफन करवाया.

मरने से पहले पियरसाल ने यह जगह खुद चुनी थी और कहा था कि उन्हें यहां दफनाया जाए. उस वक्त लूसिया 49 साल की थीं. डॉ. पियरसाल की भांति लूसिया भी एक रहम दिल और रियासत में लोकप्रिय महिला के तौर पर विख्यात थीं. कहते हैं कि पति की मौत के बाद लूसिया वापस इंगलैंड नहीं गईं. उन्होंने अपने अन्य परिवार के सदस्यों को भी छोड़ दिया.

19 अक्तूबर 1921 को खत्म हुआ इंतजार

1885 में लूसिया ने भारी-भरकम रकम खर्च करके अपने पति की कब्र को पक्का किया, क्योंकि वह अपने पति डॉ. पियरसाल से बेपनाह मोहब्बत करती थीं. ऐसे में लूसिया ने पति की बगल में दफन होने के लिए 38 साल मौत का इंतजार किया. 19 अक्टूबर 1921 को वह घड़ी आई जब लूसिया का इंतजार खत्म हुआ और अपने पति को याद करते हुए उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया. लूसिया की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए महाराजा ने सम्मान सहित लूसिया को भी उसके पति डॉ. पियरसाल की कब्र की बगल में दफनाया. आज भी विला राउंड स्थित कैथोलिक कब्रगाह में इस पियरसाल दंपति के अमर प्रेम की कहानी बयां करती वास्तुकला से परिपूर्ण कब्रें यहां आने-जाने वालों को आकर्षित करती है.

क्या कहते हैं शाही परिवार के सदस्य

शाही परिवार के सदस्य कंवर अजय बहादुर सिंह ने भी इसे एक अद्भुत प्रेम कहानी बताते हुए पूरे मामले की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने कहा कि निसंदेह यह एक अद्भुत प्रेम कहानी थी. इस दंपति की कब्रें आज भी इस प्रेमी कहानी को बयां करती है.

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