पांवटा साहिब: फाल्गुन मास में देश के हर हिस्से में होली का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. रंगों के इस पर्व को देश में अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है. खुशी और उमंग लिए होली का पर्व हिमाचल के ऐतिहासिक व धार्मिक नगरी पांवटा साहिब में होला-मोहल्ला उत्सव के रूप में मनाया जाता है. गुरुभूमि में आयोजित होने वाला 339वां होला महल्ला मेले को लेकर तैयारियां जोरों से चल रही हैं.
इसी संदर्भ में आज गुरुद्वारा श्री पांवटा साहिब में श्री अखंड पाठ शुरू हो गया है. जिसमें एसडीएम गुंजीत सिंह चीमा मौजूद रहे. जानकारी देते हुए मैनेजर जगीर सिंह ने बताया की इस बार होला महल्ला को खास और बेहतर बनाया जाएगा. खास तौर पर मेले में आने वाले लोगों को उचित व्यवस्था दी जाएगी. इसके लिए वह हर संभव कोशिश करेंगे. उन्होंने बताया की होली मेला 8 से 19 मार्च तक आयोजित हो रहा है जबकि गुरुद्वारा में 6 से 8 मार्च तक कार्यक्रम आयोजित करवाया जाएगा.
गुरद्वारा प्रबंधक कमेठी के प्रधान जागीर सिंह ने कहा की 6 मार्च को पांवटा शहर में नगर कीर्तन निकाला जाएगा. जगह-जगह कीर्तन के स्वागत के लिए स्टाल लगाए जाएंगे. वहीं, 7 मार्च को खुले पंडाल में दीवान साहिब लगेगा, जबकि रात को कवि दरबार सजाया जाएगा. 8 मार्च को निशान साहिब की सेवा की जाएगी. बता दें की होला महल्ला मेले को लेकर गुरुद्वारा सहित शहर को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है. जिसको लेकर अभी से ही गुरद्वारा प्रबंधक कमेठी तैयारियों में जुट गई है.
सुबह से शाम तक लंगर की व्यवस्था का उचित प्रबंध किया जाएगा. वहीं, गुरुद्वारा प्रधान हरभजन सिंह ने बताया की इस बार उम्मीद है की पिछले वर्ष से ज्यादा श्रद्धालु गुरुद्वारा पहुंचेंगे. खास तौर पर उत्तराखंड और पंजाब से भारी संख्या में श्रद्धालुओं की पहुंचने की उम्मीद है. गुरु गोविंद सिंह द्वारा शुरू किए गए होला मोहल्ला को पांवटा साहिब में सदियों से मनाया जा रहा है, जिसकी शुरुआत गुरु गोबिंद सिंह ने सिख कौम में वीरता का रस भरने के लिए किया था.
होला शब्द होली से और मोहल्ला शब्द मय और हल्ला शब्द से बना है, जिसमें मय का अर्थ बनावटी और हल्ला का अर्थ हमला होता है. इस तरह गुरु साहिब ने होली के पर्व पर दो टोली बनाकर सिखों में वीरता के जज्बे को बढ़ाने के लिए इसकी शुरुआत की थी. पांवटा साहिब में गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन के साढ़े चार साल बिताए और यहां के भगाणी साहिब में अपने जीवन का पहला धर्म युद्ध लड़ा जिसमें फतेह हासिल की.
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