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कोविड-19 का इफेक्ट: कबाड़ियों पर रोजी-रोटी का संकट, सरकार से सहायता की मांग

कोराना संकट काल में कबाड़ियों पर रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा हैं. लोग घरों और दुकानों से लोहा-लगंड़ डर के कारण नहीं दे रहे. कबाड़ियों की मानें तो जहां हफ्ते में पहले दो-तीन गाड़िया भरती थी अब महीने में एक नहीं भर पा रही.

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Published : Jul 23, 2020, 9:57 PM IST

Scrap business affected in paonta sahib
कोरोना संकट से कबाड़ कारोबार प्रभावित.

पांवटा साहिब: कोविड-19 से पूरा देश लड़ रहा है. प्रदेश में रोज कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आ रहे हैं. लोगों में भय के चलते कामकाज पटरी पर पूरी तरह नहीं लौट पा रहा है. इसका असर कबाड़ का काम कर रोजी-रोटी कमाने वालों पर भी दिखाई दे रहा. नगर के चार कबाड़ियों की बात की जाए जिनसे कई लोगों को रोजगार मिलता था, लेकिन हालात यह हो गए कि खुद का खर्चा चलाने के लिए भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा.

दामों में भारी गिरावट

घर-घर से लोहा-लक्कड़ इकट्ठा कर रहे दिव्यांग अमशाद अली ने बताया कि कोरोना के चलते कोई घरों में नहीं आने दे रहा. कामकाज ठप होने के कारण रोजी-रोटी को लेकर संकट खड़ा हो गया है. थोड़ा कबाड़ मिल भी रहा है तो उसके दाम कम मिल रहे हैं. कब कोरोना से निजात मिलेगी और कामकाज पटरी पर लौटेगा इसी तरफ ध्यान रहता है. अमर कुमार ने बताया कि लोग खराब समान कम दे रहे हैं. घरों से निकलते तो हैं, लेकिन कामगाज ना के बराबर होता है. दो वक्त की रोटी के लिए लोगों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा है.

वीडियो रिपोर्ट.

महिला कबाड़ी कारोबारी ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान प्रशासन ने राशन दिया, लेकिन अब पढ़ा लिखा नहीं होने के कारण रोटी का संकट खड़ा हो गया है. घरों से रद्दी एकत्रित कर जैसे-तैसे बच्चों के लिए रोटी का इंतजाम कर रही हूं. प्रशासन को कबाड़ियों के लिए कुछ करना चाहिए, जब तक कोरोना का असर पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता.

महीने में केवल एक गाड़ी भर रही

कबाड़ी व्यापारी सतपाल सिंह ने बताया वह कई लोगों को रोजगार देते थे, लेकिन अब नहीं दे पा रहे. अगर कुछ मिल भी जाए तो दामों में इतनी गिरावट आ गई कि घर चलाना मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया दिल्ली तांबा पीतल लोहा प्लास्टिक पहुंचाने के लिए परमिशन मिल रही है. जिसके चलते नुकसान उठाना पड़ रहा है. पहले सप्ताह में दो या तीन गाड़ियां भेजते थे, अब एक गाड़ी महीने भर में भेजने में परेशानी हो रही है. वहीं, दुकानदार जसबीर सिंह ने बताया कि घर में बुलाने से कबाड़ी को डर लगता है .जिसके चलते घर में और दुकान में कबाड़ इकट्ठा हो रहा साथ ही दाम भी बहुत कम मिल रहे हैं. ऐसे में परेशानी और बढ़ती ही जा रही है.

ये भी पढ़ें: शिमला के टुटू में बंगाला कॉलोनी में धंस रहे ढारे, खौफ के साये में रहने को मजबूर लोग

पांवटा साहिब: कोविड-19 से पूरा देश लड़ रहा है. प्रदेश में रोज कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आ रहे हैं. लोगों में भय के चलते कामकाज पटरी पर पूरी तरह नहीं लौट पा रहा है. इसका असर कबाड़ का काम कर रोजी-रोटी कमाने वालों पर भी दिखाई दे रहा. नगर के चार कबाड़ियों की बात की जाए जिनसे कई लोगों को रोजगार मिलता था, लेकिन हालात यह हो गए कि खुद का खर्चा चलाने के लिए भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा.

दामों में भारी गिरावट

घर-घर से लोहा-लक्कड़ इकट्ठा कर रहे दिव्यांग अमशाद अली ने बताया कि कोरोना के चलते कोई घरों में नहीं आने दे रहा. कामकाज ठप होने के कारण रोजी-रोटी को लेकर संकट खड़ा हो गया है. थोड़ा कबाड़ मिल भी रहा है तो उसके दाम कम मिल रहे हैं. कब कोरोना से निजात मिलेगी और कामकाज पटरी पर लौटेगा इसी तरफ ध्यान रहता है. अमर कुमार ने बताया कि लोग खराब समान कम दे रहे हैं. घरों से निकलते तो हैं, लेकिन कामगाज ना के बराबर होता है. दो वक्त की रोटी के लिए लोगों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा है.

वीडियो रिपोर्ट.

महिला कबाड़ी कारोबारी ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान प्रशासन ने राशन दिया, लेकिन अब पढ़ा लिखा नहीं होने के कारण रोटी का संकट खड़ा हो गया है. घरों से रद्दी एकत्रित कर जैसे-तैसे बच्चों के लिए रोटी का इंतजाम कर रही हूं. प्रशासन को कबाड़ियों के लिए कुछ करना चाहिए, जब तक कोरोना का असर पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता.

महीने में केवल एक गाड़ी भर रही

कबाड़ी व्यापारी सतपाल सिंह ने बताया वह कई लोगों को रोजगार देते थे, लेकिन अब नहीं दे पा रहे. अगर कुछ मिल भी जाए तो दामों में इतनी गिरावट आ गई कि घर चलाना मुश्किल हो गया है. उन्होंने बताया दिल्ली तांबा पीतल लोहा प्लास्टिक पहुंचाने के लिए परमिशन मिल रही है. जिसके चलते नुकसान उठाना पड़ रहा है. पहले सप्ताह में दो या तीन गाड़ियां भेजते थे, अब एक गाड़ी महीने भर में भेजने में परेशानी हो रही है. वहीं, दुकानदार जसबीर सिंह ने बताया कि घर में बुलाने से कबाड़ी को डर लगता है .जिसके चलते घर में और दुकान में कबाड़ इकट्ठा हो रहा साथ ही दाम भी बहुत कम मिल रहे हैं. ऐसे में परेशानी और बढ़ती ही जा रही है.

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