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कांग्रेस में गंगूराम मुसाफिर को रिप्लेस करेंगी दयाल प्यारी? कभी थीं धूमल खेमे की समर्थक

उप चुनाव के बाद से ही कुछ लोग दयाल प्यारी में कांग्रेस का भविष्य देखने लगे थे. एकाएक वह बड़े नेताओं की नजर में भी आ गई थी. लेकिन गंगूराम मुसाफिर को मनाना शायद गंवारा न था. नाराजगी से बचने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने मिशन को कुछ इस कदर गोपनीय रखा की किसी को इसकी भनक नहीं लग पाई.

Dayal Pyari joins Congress
फोटो.
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Published : Apr 3, 2021, 4:40 PM IST

राजगढ़ः दयाल प्यारी का कांग्रेस के खेमे में चले जाना कोई इत्तेफाक नहीं है, उप चुनाव के बाद से ही पाला बदलने की कोशिशें परवान चढ़ने लगी थीं. धूमल समर्थकों में गिनी जाने वाली पच्छाद की तेजतर्रार नेत्री दयाल प्यारी विधान सभा चुनाव लड़ना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने दो बार प्रयास किए, लेकिन टिकट हाथ नहीं लगा. हल्के में 2019 में हुए उप चुनाव में तो उनका नाम दिल्ली तक गूंजा था, लेकिन रीना कश्यप बाजी मार गई.

दयाल प्यारी में देख रहे कांग्रेस का भविष्य

उप चुनाव के बाद से ही कुछ लोग दयाल प्यारी में कांग्रेस का भविष्य देखने लगे थे. एकाएक वह बड़े नेताओं की नजर में भी आ गई थी, लेकिन गंगूराम मुसाफिर को मनाना शायद मुश्किल था. उनकी नाराजगी से बचने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने मिशन को कुछ इस कदर गोपनीय रखा की किसी को इसकी भनक नहीं लग पाई. योजनाबद्ध तरीके से नगर निगम चुनाव का समय चुना गया. यही वजह है कि स्थानीय स्तर पर आने वाली परेशानियों से बचने के लिए उनकी भर्ती सीधे दिल्ली दरबार से प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला के हाथों करवा ली गई.

डेढ़ दशक तक रही जिला परिषद

पिछले डेढ़ दशक से लगातार जिला परिषद चुनाव जीत रही इस महिला नेत्री की बीजेपी में किसी से जम नहीं रही थी. जिला परिषद अध्यक्ष जैसे सम्मान जनक पद के बावजूद यह संगठन में उभर नहीं पाई. उप चुनाव में टिकट कटने पर दयाल प्यारी ने हार नहीं मानी. उन्होंने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 11651 लोगों का समर्थन प्राप्त कर उन्होंने सभी को हैरत में डाल दिया था, जबकि कांग्रेस के गंगूराम मुसाफिर 20 हजार पार नहीं जा सके थे.

वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की रिप्लेसमेंट हो सकती है दयाल प्यारी

दयाल प्यारी अब कांग्रेस की हो गई हैं. इसमें विधायक राजेन्द्र राणा मुख्य किरदार के तौर पर नजर आ रहे हैं, जबकि जिला के कुछ नेताओं सहित पूर्व व वर्तमान विधायकों की भी अहम भूमिका रही है. जाहिर है दयाल प्यारी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की रिप्लेसमेंट के तौर पर पार्टी में लाया गया है. यदि समय रहते उन्हें इस गुप्त मिशन की भनक लग जाती तो वह मुश्किलें खड़ी कर सकते थे. उनकी नाराजगी इस बात से साफ जाहिर हो जाती है कि सोलन चुनाव में होने के बावजूद वह आज सोलन में हुई दयाल प्यारी की प्रेसवार्ता से पूरी तरह किनारे रहे.

गंगूराम मुसाफिर ने किया स्वागत

गंगूराम मुसाफिर ने कहा कि दयाल प्यारी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई हैं हम उनका स्वागत करते हैं, जबकि पच्छाद के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि वह सेवा भाव से एक कार्यकर्ता के नाते पार्टी में आ रही हैं तो उनका स्वागत है यदि उनकी कोई और मंशा है तो वह पूरी होने वाली नहीं है.

पढ़ेंः हिमाचल प्रदेश के पूर्व मंत्री मोहन लाल का निधन, CM जयराम ठाकुर ने जताया शोक

राजगढ़ः दयाल प्यारी का कांग्रेस के खेमे में चले जाना कोई इत्तेफाक नहीं है, उप चुनाव के बाद से ही पाला बदलने की कोशिशें परवान चढ़ने लगी थीं. धूमल समर्थकों में गिनी जाने वाली पच्छाद की तेजतर्रार नेत्री दयाल प्यारी विधान सभा चुनाव लड़ना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने दो बार प्रयास किए, लेकिन टिकट हाथ नहीं लगा. हल्के में 2019 में हुए उप चुनाव में तो उनका नाम दिल्ली तक गूंजा था, लेकिन रीना कश्यप बाजी मार गई.

दयाल प्यारी में देख रहे कांग्रेस का भविष्य

उप चुनाव के बाद से ही कुछ लोग दयाल प्यारी में कांग्रेस का भविष्य देखने लगे थे. एकाएक वह बड़े नेताओं की नजर में भी आ गई थी, लेकिन गंगूराम मुसाफिर को मनाना शायद मुश्किल था. उनकी नाराजगी से बचने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने मिशन को कुछ इस कदर गोपनीय रखा की किसी को इसकी भनक नहीं लग पाई. योजनाबद्ध तरीके से नगर निगम चुनाव का समय चुना गया. यही वजह है कि स्थानीय स्तर पर आने वाली परेशानियों से बचने के लिए उनकी भर्ती सीधे दिल्ली दरबार से प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला के हाथों करवा ली गई.

डेढ़ दशक तक रही जिला परिषद

पिछले डेढ़ दशक से लगातार जिला परिषद चुनाव जीत रही इस महिला नेत्री की बीजेपी में किसी से जम नहीं रही थी. जिला परिषद अध्यक्ष जैसे सम्मान जनक पद के बावजूद यह संगठन में उभर नहीं पाई. उप चुनाव में टिकट कटने पर दयाल प्यारी ने हार नहीं मानी. उन्होंने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ा. इस चुनाव में 11651 लोगों का समर्थन प्राप्त कर उन्होंने सभी को हैरत में डाल दिया था, जबकि कांग्रेस के गंगूराम मुसाफिर 20 हजार पार नहीं जा सके थे.

वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की रिप्लेसमेंट हो सकती है दयाल प्यारी

दयाल प्यारी अब कांग्रेस की हो गई हैं. इसमें विधायक राजेन्द्र राणा मुख्य किरदार के तौर पर नजर आ रहे हैं, जबकि जिला के कुछ नेताओं सहित पूर्व व वर्तमान विधायकों की भी अहम भूमिका रही है. जाहिर है दयाल प्यारी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गंगूराम मुसाफिर की रिप्लेसमेंट के तौर पर पार्टी में लाया गया है. यदि समय रहते उन्हें इस गुप्त मिशन की भनक लग जाती तो वह मुश्किलें खड़ी कर सकते थे. उनकी नाराजगी इस बात से साफ जाहिर हो जाती है कि सोलन चुनाव में होने के बावजूद वह आज सोलन में हुई दयाल प्यारी की प्रेसवार्ता से पूरी तरह किनारे रहे.

गंगूराम मुसाफिर ने किया स्वागत

गंगूराम मुसाफिर ने कहा कि दयाल प्यारी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुई हैं हम उनका स्वागत करते हैं, जबकि पच्छाद के कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहना है कि यदि वह सेवा भाव से एक कार्यकर्ता के नाते पार्टी में आ रही हैं तो उनका स्वागत है यदि उनकी कोई और मंशा है तो वह पूरी होने वाली नहीं है.

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