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यहां आज भी मौजूद है 300 साल पुरानी रहस्यमयी सीढ़ी, 1942 के पझौता आंदोलन से जुड़ा है गहरा राज

सिरमौर के एक गांव में सैकड़ों साल पुरानी एक ऐसी सीढ़ी मौजूद है जिसका इस्तेमाल आत्म सुरक्षा के लिए किया जाता था. इसका इस्तेमाल पुराने समय में गांव की महिलाएं और बच्चे युद्ध या फिर डाकुओं से बचने के लिए किया करते थे.

सिरमौर में ऐतिहासिक सीढ़ी
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Published : Mar 21, 2019, 5:49 AM IST

नाहन: जिला मुख्यालय नाहन से करीब 130 किलोमीटर दूर पच्छाद क्षेत्र के गांव फागू में एक ऐतिहासिक सीढ़ी है जिसका इस्तेमाल आत्म सुरक्षा के लिए किया जाता था.डाकूओं के आक्रमण के समय महिलाएं और बच्चे गांव के किले या बड़े घर में इस सीढ़ी के माध्यम से छत पर इकट्ठा हो जाया करती थीं. साथ ही सुरक्षा के लिए महिलाएं पत्थर भी छत पर इकट्ठा कर लेती थी और इन पत्थरों का इस्तेमाल महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए करती थी.

सिरमौर में ऐतिहासिक सीढ़ी

स्थानीय निवासी शेरजंग चौहान बताते हैं कि स्थानीय भाषा में इसे शीढ कहा जाता है. ये सीढ़ी देवदार के एक ही पेड़ की गरी यानी अंदर के हिस्से को कट लगाकर बनाई जाती थी, जिस कारण इस सीढ़ी पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. जिस घर के अंदर से ये सीढ़ी छत पर जाने के लिए लगाई जाती थी, उस कक्ष का दरवाजा भी करीब 2 इंच मोटा हुआ करता था, जिसको बंद करने के बाद आगल यानी एक मोटी लकड़ी लगा दी जाती थी, जिसको तोड़ना आसान नहीं होता था. इसके चलते घर के अंदर मौजूद महिलाएं व बच्चे सुरक्षित रह पाती थी. बता दें कि 1942 में हुए पझौता आंदोलन के दौरान भी इस तरह की सीढ़ियां सुरक्षा में बेहद कारगर साबित हुई थी. जानकारों का कहना है कि आंदोलन में लोगों ने इन सीढ़ियों के जरिए अपनी सुरक्षा की थी.

नाहन: जिला मुख्यालय नाहन से करीब 130 किलोमीटर दूर पच्छाद क्षेत्र के गांव फागू में एक ऐतिहासिक सीढ़ी है जिसका इस्तेमाल आत्म सुरक्षा के लिए किया जाता था.डाकूओं के आक्रमण के समय महिलाएं और बच्चे गांव के किले या बड़े घर में इस सीढ़ी के माध्यम से छत पर इकट्ठा हो जाया करती थीं. साथ ही सुरक्षा के लिए महिलाएं पत्थर भी छत पर इकट्ठा कर लेती थी और इन पत्थरों का इस्तेमाल महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए करती थी.

सिरमौर में ऐतिहासिक सीढ़ी

स्थानीय निवासी शेरजंग चौहान बताते हैं कि स्थानीय भाषा में इसे शीढ कहा जाता है. ये सीढ़ी देवदार के एक ही पेड़ की गरी यानी अंदर के हिस्से को कट लगाकर बनाई जाती थी, जिस कारण इस सीढ़ी पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता. जिस घर के अंदर से ये सीढ़ी छत पर जाने के लिए लगाई जाती थी, उस कक्ष का दरवाजा भी करीब 2 इंच मोटा हुआ करता था, जिसको बंद करने के बाद आगल यानी एक मोटी लकड़ी लगा दी जाती थी, जिसको तोड़ना आसान नहीं होता था. इसके चलते घर के अंदर मौजूद महिलाएं व बच्चे सुरक्षित रह पाती थी. बता दें कि 1942 में हुए पझौता आंदोलन के दौरान भी इस तरह की सीढ़ियां सुरक्षा में बेहद कारगर साबित हुई थी. जानकारों का कहना है कि आंदोलन में लोगों ने इन सीढ़ियों के जरिए अपनी सुरक्षा की थी.
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