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बूढ़ी दिवाली के समापन पर पहली बार हाथी नृत्य का आयाजन, लोगों की उमड़ी भीड़

बूढ़ी दिवाली के समापन समारोह में पहली बार उत्तराखंड की प्रसिद्ध हाथी नृत्य का आयोजन किया गया. पर्व के दौरान हाथी नृत्य, हिरण नृत्य, सहित नुक्क्ड़ नाटक के माध्मय से शिक्षा के घटते स्तर व स्वच्छ हिमाचल, सुदृढ़ भारत की शिक्षा दी गई.

Budhi Diwali closing ceremony
क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली समापन पर पहली बार हाथी नृत्य का आयाजन.
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Published : Dec 1, 2019, 12:37 PM IST

पांवटा साहिब: जिला सिरमौर में बूढ़ी दिवाली की धूम हर जगह नजर आ रही है, लेकिन शिलाई में पहली बार समापन के दौरान उत्तराखंड की प्रसिद्ध हाथी नृत्य का आयोजन किया गया. हाथी नृत्य को देखने के लिए क्षेत्र में लोगों की खासी भीड़ उमड़ी.

बता दें कि जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र में आदिकाल से चल रहा बूढ़ी दिवाली पर्व संपन्न हो गया है. क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े गावों में पर्व में हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया. पर्व के पांचवें व आखिरी दिन शिलाई में लोगों का हुजूम रहा. इससे पहले जिला सिरमौर के द्राबिल गावं में शिमला व उत्तराखंड के लोग शिरोमणि महासू महाराज के आंगन में एकत्रित हुए. पर्व के दौरान हजारों लोगों ने महासू महाराज के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त किया.

वीडियो रिपोर्ट.

स्थानीय लोगों ने प्राचीन व प्रारंपरिक परिधान चोल्टू पहन कर मेहमानों के लिए रासास, हारुल सहित लोक नृत्य पेश कर मनोरंजन किया. महिलाओं व लड़कियों ने लोक नाटियों सहित माला नृत्य की प्रस्तुति दी. पर्व के दौरान हाथी नृत्य, हिरण नृत्य, सहित नुक्क्ड़ नाटक के माध्मय से शिक्षा के घटते स्तर व स्वच्छ हिमाचल, सुदृढ़ भारत की शिक्षा दी गई.

पर्व के आखरी दिन क्षेत्र के लोग देवी ठारी नानी शिलाई सांझा आंगन में एकत्रित हुए और हुड़क नृत्य से दिन की शुरुआत की गई. दोपहर बाद मेहमानों को पारंपरिक परिधान पहनाकर नाचने-गाने का अवसर दिया गया. हारुल नृत्य के बीच में नुक्क्ड़ नाटक का मंचन किया गया. माला नृत्य व रासा नृत्य का दौर देर रात तक चलता रहा. इसके साथ ही द्राबिल गांव में रात को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया. उत्तराखंड व प्रदेश के मशहूर लोकगायक अजु तोमर की पार्टी ने पूरी रात हिमाचली व उत्तराखंडी लोक गीतों से समा बांधकर लोगों का मनोरंजन किया.

यह क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति है, जिसे क्षेत्र की युवा पीढ़ी पुराने रीती-रिवाजों की तर्ज पर मनाती आ रही है. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस पर्व को भगवान राम के बनवास से घर लौटने की सुचना देरी से मिलने के लिए मनाया जाता है, जबकि यह बात बिलकुल गलत है.

ये भी पढ़ें: 'मेरा खिन्नू बड़ा उस्ताद' पर जमकर नाचे ध्वाला, स्कूल के वार्षिक समारोह में शामिल होने आए थे कुटियारा

पांवटा साहिब: जिला सिरमौर में बूढ़ी दिवाली की धूम हर जगह नजर आ रही है, लेकिन शिलाई में पहली बार समापन के दौरान उत्तराखंड की प्रसिद्ध हाथी नृत्य का आयोजन किया गया. हाथी नृत्य को देखने के लिए क्षेत्र में लोगों की खासी भीड़ उमड़ी.

बता दें कि जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र में आदिकाल से चल रहा बूढ़ी दिवाली पर्व संपन्न हो गया है. क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े गावों में पर्व में हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया. पर्व के पांचवें व आखिरी दिन शिलाई में लोगों का हुजूम रहा. इससे पहले जिला सिरमौर के द्राबिल गावं में शिमला व उत्तराखंड के लोग शिरोमणि महासू महाराज के आंगन में एकत्रित हुए. पर्व के दौरान हजारों लोगों ने महासू महाराज के दर्शन करके आशीर्वाद प्राप्त किया.

वीडियो रिपोर्ट.

स्थानीय लोगों ने प्राचीन व प्रारंपरिक परिधान चोल्टू पहन कर मेहमानों के लिए रासास, हारुल सहित लोक नृत्य पेश कर मनोरंजन किया. महिलाओं व लड़कियों ने लोक नाटियों सहित माला नृत्य की प्रस्तुति दी. पर्व के दौरान हाथी नृत्य, हिरण नृत्य, सहित नुक्क्ड़ नाटक के माध्मय से शिक्षा के घटते स्तर व स्वच्छ हिमाचल, सुदृढ़ भारत की शिक्षा दी गई.

पर्व के आखरी दिन क्षेत्र के लोग देवी ठारी नानी शिलाई सांझा आंगन में एकत्रित हुए और हुड़क नृत्य से दिन की शुरुआत की गई. दोपहर बाद मेहमानों को पारंपरिक परिधान पहनाकर नाचने-गाने का अवसर दिया गया. हारुल नृत्य के बीच में नुक्क्ड़ नाटक का मंचन किया गया. माला नृत्य व रासा नृत्य का दौर देर रात तक चलता रहा. इसके साथ ही द्राबिल गांव में रात को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया. उत्तराखंड व प्रदेश के मशहूर लोकगायक अजु तोमर की पार्टी ने पूरी रात हिमाचली व उत्तराखंडी लोक गीतों से समा बांधकर लोगों का मनोरंजन किया.

यह क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति है, जिसे क्षेत्र की युवा पीढ़ी पुराने रीती-रिवाजों की तर्ज पर मनाती आ रही है. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि इस पर्व को भगवान राम के बनवास से घर लौटने की सुचना देरी से मिलने के लिए मनाया जाता है, जबकि यह बात बिलकुल गलत है.

ये भी पढ़ें: 'मेरा खिन्नू बड़ा उस्ताद' पर जमकर नाचे ध्वाला, स्कूल के वार्षिक समारोह में शामिल होने आए थे कुटियारा

Intro:क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली समापन पर पहली बार किया हाथी नृत्य
उत्तराखंड का सबसे प्रसिद्ध नृत्य कहा जाता है हाथी नृत्य
आयोजन देखने के लिए क्षेत्र में लोगों की उमड़ी भीड़
आज भी कायम है प्राचीन काल से चल रही परंपराएं शिलाई क्षेत्र मेंBody:
सिरमौर जिला में बूढ़ी दिवाली की धूम हर जगह नजर है लेकिन इस बार शिलाई क्षेत्र में लोगों ने बूढ़ी दिवाली समापन के दौरान उत्तराखंड का प्रसिद्ध हाथी नृत्य शिलाई में पहली बार समापन के दौरान हाथी नृत्य का आयोजन भी किया जिसे देखने के लिए क्षेत्र में लोगों की उमड़ी भीड़ बता दें कि जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र में आदिकाल से चल रहे बूढ़ी दिवाली पर्व संपन्न हो गया है। क्षेत्र के सभी छोटे-बड़े गावों में पर्व संपन्न होने के बाद पांचवां दिन क्षेत्र के केंद्र बिंदू शिलाई में हर्षोउल्लास के साथ मनाया गया। पर्व के आखिरी दिन लोगों का हुजूम रहा। इससे पहले द्राबिल गावं में जिला सिरमौर, शिमला सहित उत्तराखंड प्रदेश के लोग शिरोमणि महासू महाराज के आंगन में एकत्रित हुए पर्व के दौरान हजारों लोगों ने महासू महाराज के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

स्थानीय लोगों ने प्राचीन एवं प्रारंपरिक परिधान चोल्टू पहन कर मेहमानों के लिए रासा, हारुल सहित लोक नृत्य पेश कर मनोरंजन किया, जबकि महिलाओं व लड़कियों द्धारा लोक नाटियों सहित माला नृत्य की प्रस्तुति की गई। पर्व के दौरान हाथी नृत्य, हिरण नृत्य, सहित नुक्क्ड़ नाटक के माध्मय से शिक्षा के घटते स्तर व स्वच्छ हिमाचल, सुदृढ़ भारत कैसे बनेगा की शिक्षा दी गई।



पर्व के आखरी दिन समूचे क्षेत्र के लोग देवी ठारी नानी शिलाई सांझा आंगन में एकत्रित हुए तथा हुड़क नृत्य से दिन की शुरुआत की गई, दोपहर बाद मेहमानों को पारंपरिक परिधान पहनाकर नाच-गाने का अवसर दिया गया। हारुल नृत्य के बीच में नुक्क्ड़ नाटक का मंचन किया गया ततपश्चात माला नृत्य व रासा नृत्य का दौर दिन से लेकर देर रात तक चलता रहा, जबकि द्राबिल गांव में रात को सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। इसमें उत्तराखंड प्रदेश के मशहूर लोकगायक अजु तोमर एंड पार्टी ने पूरी रात हिमाचली व उत्तराखंडी लोक गीतों से समा बांधकर लोगों का मनोरंजन किया।

यह क्षेत्र की प्राचीन संस्कृति है, जिसे क्षेत्र की युवा पीढ़ी आज भी पुराने रीती-रिवाजों की तर्ज पर मनाती आ रही है। क्षेत्र की धरोहर को कई लोग अयोध्या राजा रामचंद्र के बनवास से घर लौटने की सुचना देरी से मिलने को बताते हैं, जबकि यह बात बिलकुल गलत है।Conclusion:
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