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शिलाई में गोगा नवमीं पर मंदिर नहीं पहुंचे श्रद्धालु, पुजारी ने ही किया पूजा पाठ - goga temple of Shilai

मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को गोगा पंचमी के रुप में मनाया जाता हैं. इस दिन गोगा देव का त्यौहार मनाया जाता है. वहीं, इस साल यह त्यौहार बुधवार को मनाया गया. इस त्यौहार पर शिलाई के ऐतिहासिक गोगा मंदिर में गोगा नवमी के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते थे, लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण सभी धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के लिए बंद है, जिसके कारण लोग मंदिर नहीं जा पा रहे हैं.

Goga navami festival
फोटो.
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Published : Aug 13, 2020, 1:34 PM IST

पांवटा साहिब: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को गोगा पंचमी के रुप में मनाया जाता हैं. इस दिन गोगा देव का त्यौहार मनाया जाता है. वहीं, इस साल यह पवित्र त्योहार बुधवार को मनाया गया.

इस त्यौहार पर पर शिलाई के ऐतिहासिक गोगा मंदिर में गोगा नवमी के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते थे. प्रदेश समेत दूसरे राज्यों उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा से भी लोग यहां मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते थे, लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण सभी धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के लिए बंद है, जिसके कारण लोग मंदिर नहीं जा पा रहे हैं.

वीडियो.

क्यों मनाई जाती हैं गोगा नवमीं?

गोगा नवमीं को गुग्गा नवमीं के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गोगा देव नाग की पूजा की जाती है. बता दें कि ये त्यौहार गोगा नवमीं भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमीं पर मनाया जाता है.

हर साल गोगा महाराज की छड़ी ढोल नगाड़ों के साथ गोगा महाराज के मंदिर तक लाई जाती थी. इस छड़ी को लाते समय कई हजारों लोग मौजूद रहते थे. कुछ क्षेत्रों में भगवान गोगा की पूजा का अनुष्ठान श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बंधन के दिन) से शुरू होकर अगले नौ दिनों तक जारी रहता है.

स्थानीय लोगों ने बताया कि गोगा नवमीं के दिन व्यापारियों की आमदनी 10 गुना बढ़ जाती थी. इस दिन प्रदेश और बाहरी राज्यों के लोग आने से यहां के स्थानीय लोगों के सामान की बिक्री हो जाती थी. वहीं, इस साल ना तो श्रद्धालु पहुंचे और ना ही मेला हुआ है. साथ ही श्रद्धालुओं के न पहुंचने पर व्यापारियों को भी नुकसान झेलना पड़ा है.

इस साल गोगा नवमीं पर गांव के कुछ लोग मिलकर मंदिर में पालकी लेकर पहुंचे और पूजा पाठ करके वापस घर आ गए, जबकि हर साल यहां पर विशाल जागरण का आयोजन किया जाता था. साथ ही लोहे की गर्म छड़ों से देवता के आशीर्वाद के रूप में अपनी पीठ को थपथपाया जाता था.

वहीं, मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुनील के अनुसार मंदिर की सजावट में इस बार काफी कमी देखी गई है दूर-दूर से लोग यहां पर शीश झुकाने के लिए पहुंचते थे और अपनी मनोकामना पूर्ण करते थे.

मंदिर अध्यक्ष सुनील ने कहा कि इस मंदिर में दूर-दूर से लोग शीश नवाने पहुंचते थे. वहीं, इस साल कोरोना के चलते मंदिर की सजावट भी कम की गई है. उन्होंने कहा कि बिच्छू और सांप के काटने पर इस मंदिर में रात भर जागने से सारा जहर खत्म जाता है.

पुजारी ने बताया कि बुजुर्गों का कहना था कि पुराने समय में शिलाई बाजार की जगह एक पहाड़ होता था. यहां पर किसी भी व्यक्ति के सफेद रंग के कपड़े में पहुंचने पर उस पर बुरी शक्तियों का प्रभाव पड़ता था और उनकी मृत्यु भी हो जाती थी. इससे ग्रामीण परेशान हो गए थे, तभी एक बुजुर्ग को सपने में गोगा महाराज दिखे.

सपने में गोगा महाराज ने लोगों को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए मंदिर बनाने की बात कही. इसके बाद ग्रामीण बागड़ से मिट्टी लेकर आए और यहां पर मंदिर बनाया. तब से आज तक यहां पर किसी बुरी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ा है.

कोरोना वायरस ने ईद के बाद अब हिंदुओं के त्यौहारों को भी फीका कर दिया है. रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और अब गोगा नवमीं पर बाजार सूने रहे. कोरोना काल ने ऐतिहासिक मंदिरों में होने वाले बड़े बड़े आयोजनों को इस बार तहस-नहस कर दिया है. इन त्यौहारों में लोग एक दूसरे से मिलते थे. वहीं, इस साल कोरोना के कारण त्यौहारों की चमक फीकी पड़ रही है.

पांवटा साहिब: हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को गोगा पंचमी के रुप में मनाया जाता हैं. इस दिन गोगा देव का त्यौहार मनाया जाता है. वहीं, इस साल यह पवित्र त्योहार बुधवार को मनाया गया.

इस त्यौहार पर पर शिलाई के ऐतिहासिक गोगा मंदिर में गोगा नवमी के दिन हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते थे. प्रदेश समेत दूसरे राज्यों उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा से भी लोग यहां मंदिर में दर्शनों के लिए पहुंचते थे, लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण सभी धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं के लिए बंद है, जिसके कारण लोग मंदिर नहीं जा पा रहे हैं.

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क्यों मनाई जाती हैं गोगा नवमीं?

गोगा नवमीं को गुग्गा नवमीं के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन गोगा देव नाग की पूजा की जाती है. बता दें कि ये त्यौहार गोगा नवमीं भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की नवमीं पर मनाया जाता है.

हर साल गोगा महाराज की छड़ी ढोल नगाड़ों के साथ गोगा महाराज के मंदिर तक लाई जाती थी. इस छड़ी को लाते समय कई हजारों लोग मौजूद रहते थे. कुछ क्षेत्रों में भगवान गोगा की पूजा का अनुष्ठान श्रावण पूर्णिमा (रक्षा बंधन के दिन) से शुरू होकर अगले नौ दिनों तक जारी रहता है.

स्थानीय लोगों ने बताया कि गोगा नवमीं के दिन व्यापारियों की आमदनी 10 गुना बढ़ जाती थी. इस दिन प्रदेश और बाहरी राज्यों के लोग आने से यहां के स्थानीय लोगों के सामान की बिक्री हो जाती थी. वहीं, इस साल ना तो श्रद्धालु पहुंचे और ना ही मेला हुआ है. साथ ही श्रद्धालुओं के न पहुंचने पर व्यापारियों को भी नुकसान झेलना पड़ा है.

इस साल गोगा नवमीं पर गांव के कुछ लोग मिलकर मंदिर में पालकी लेकर पहुंचे और पूजा पाठ करके वापस घर आ गए, जबकि हर साल यहां पर विशाल जागरण का आयोजन किया जाता था. साथ ही लोहे की गर्म छड़ों से देवता के आशीर्वाद के रूप में अपनी पीठ को थपथपाया जाता था.

वहीं, मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सुनील के अनुसार मंदिर की सजावट में इस बार काफी कमी देखी गई है दूर-दूर से लोग यहां पर शीश झुकाने के लिए पहुंचते थे और अपनी मनोकामना पूर्ण करते थे.

मंदिर अध्यक्ष सुनील ने कहा कि इस मंदिर में दूर-दूर से लोग शीश नवाने पहुंचते थे. वहीं, इस साल कोरोना के चलते मंदिर की सजावट भी कम की गई है. उन्होंने कहा कि बिच्छू और सांप के काटने पर इस मंदिर में रात भर जागने से सारा जहर खत्म जाता है.

पुजारी ने बताया कि बुजुर्गों का कहना था कि पुराने समय में शिलाई बाजार की जगह एक पहाड़ होता था. यहां पर किसी भी व्यक्ति के सफेद रंग के कपड़े में पहुंचने पर उस पर बुरी शक्तियों का प्रभाव पड़ता था और उनकी मृत्यु भी हो जाती थी. इससे ग्रामीण परेशान हो गए थे, तभी एक बुजुर्ग को सपने में गोगा महाराज दिखे.

सपने में गोगा महाराज ने लोगों को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए मंदिर बनाने की बात कही. इसके बाद ग्रामीण बागड़ से मिट्टी लेकर आए और यहां पर मंदिर बनाया. तब से आज तक यहां पर किसी बुरी शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ा है.

कोरोना वायरस ने ईद के बाद अब हिंदुओं के त्यौहारों को भी फीका कर दिया है. रक्षाबंधन, जन्माष्टमी और अब गोगा नवमीं पर बाजार सूने रहे. कोरोना काल ने ऐतिहासिक मंदिरों में होने वाले बड़े बड़े आयोजनों को इस बार तहस-नहस कर दिया है. इन त्यौहारों में लोग एक दूसरे से मिलते थे. वहीं, इस साल कोरोना के कारण त्यौहारों की चमक फीकी पड़ रही है.

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