पांवटा साहिब: गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व को लेकर होने वाले कार्यक्रम हर बार की तरह गुरुद्वारे के अंदर ही किए जा रहे हैं. इन कार्यक्रमों में कोरोना प्रोटोकॉल का पालन भी किया जा रहा है. गौरतलब है कि गुरु भूमि पांवटा साहिब के ऐतिहासिक गुरुद्वारे में गुरु तेग बहादुर के प्रकाश पर्व को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन इस बार कोरोना के चलते इसकी रौनक कम है.
कोरोना प्रोटोकॉल के साथ आयोजन
गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के उपप्रधान हरभजन सिंह ने बताया कि ऐतिहासिक गुरुद्वारे को दुल्हन की तरह सजा दिया गया है. गुरुद्वारा का गेट भले ही खोल दिया गया है, लेकिन कोरोना के खतरे के बीच श्रद्धालु नहीं आ रहे हैं. सिर्फ यहां के सेवादार गुरुद्वारे में शांति पूर्वक आयोजन करेंगे.
उन्होंने कहा कि गुरुद्वारा पांवटा साहिब में हर वर्ष की तरह इस वर्ष खुले दीवान लगाए जाएंगे. सारे कार्यक्रम उसी भांति गुरुद्वारा में अंदर किए जाएंगे. संगत से अपील है कि कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करें. लोगों के लिए पांवटा ऐतिहासिक गुरुद्वारे में पुख्ता इंतजाम किया गया है. गेट परिसर पर सैनिटाइजर मशीन लगाई गई है. बिना मास्क के किसी को भी एंट्री नहीं दी जाएगी.
कौन थे तेग बहादुर और कैसे पड़ा नाम
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था. वह गुरु हरगोविन्द सिंह के पांचवे पुत्र थे. सिखों के आठवें गुरु 'हरिकृष्ण राय' जी की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण जनमत द्वारा गुरु तेग बहादुर को गुरु बनाया गया था. उनके बचपन का नाम त्यागमल था. मात्र 14 वर्ष की आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमले के खिलाफ हुए युद्ध में उन्होंने वीरता का परिचय दिया. उनकी वीरता से प्रभावित होकर उनके पिता ने उनका नाम त्यागमल से तेगबहादुर (तलवार के धनी) रख दिया.
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