शिमला: कुश्ती खिलाड़ी धर्मपाल उर्फ लंगड़ू पहलवान आज बदहाली में जी रहा है. कभी दंगल में बड़े बड़े पहलवानों को चित्त करने वाला लंगड़ू पहलवान आज खाने के लिए मोहताज है. लंगड़ू पहलवान ने ने राष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल का नाम रोशन किया है. वहीं, आज ये पहलवान राजधानी शिमला में रिज मैदान पर बांसुरी बजाकर अपने घर का गुजारा कर रहा हैं.
भले ही लंगडू पहलवान बचपन से दिव्यांग हैं. उनका एक पैर 8 साल की उम्र में जल गया था, जो सही से काम नहीं करता है, लेकिन एक पांव के दम पर ही उन्होंने कई पहलावानों को धूल चटाई. दिव्यांग होने के बावजूद भी उन्होंने कुश्ती की कई मालियां अपने नाम की हैं. वहीं, आज धर्मपाल उर्फ लंगडू पहलवान बांसुरी बजाकर अपना घर चला रहे हैं.
धर्मपाल ने पहलवानी में विश्व चैम्पियन दारा सिंह को लड़ते देखा. दारा सिंह कुश्ती करते देख उनके मन में प्रदेश के लिए कुछ करने इच्छा जगी. धर्मपाल ने 17 साल की उम्र से ही कुश्ती करना शुरू कर दी थी. ये हुनर उन्होंने अपने पिता से सीखा था. उनके पिता मजदूर थे और सड़क बनाने का काम करते थे. धर्मपाल ने कभी भी अपने कमजोर पैर की वजह से खुद को किसी से कम नहीं समझा और कई पहलवानों को धूल भी चटाई है. कहीं पर भी कुश्ती की प्रतियोगिता की सूचना मिलने पर धर्मपाल वहां पर कुश्ती के लिए पहुंच जाते थे.
धर्मपाल उर्फ लंगड़ू पहलवान ने प्रदेश के हर जिला में आयोजित होने वाली कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लिया है. वहीं, अगर बात करें हिमाचल से बाहर की तो हरियाणा में सोनीपत, पानीपत, चंडीगढ़ और पंजाब में कुश्ती लड़ी और राज्य का नाम रोशन किया.
एक कुश्ती प्रतियोगिता के दौरान उन्हें चोट लगने के कारण और शूगर की बीमारी होने की वजह से उन्हें कुश्ती छोड़नी पड़ी. तब से जीवन यापन के लिए कभी उन्होंने जूते सिलने का काम किया. वहीं, अब सड़कों पर बांसुरी बजाने का काम कर रहे है. 10 से 15 साल से वे अखाड़े में नहीं उतरे.
आज वो बीमारी के कारण बेबस हैं. वहीं, सरकार की ओर से उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली. धर्मपाल ने सरकार से मदद की कई बार गुहार लगाई, लेकिन उनकी बात को अनसुना किया गया. इस पर लंगड़ू पहलवान का कहना है कि सरकार उन्हें कोच की नौकरी दे सकती थी, या फिर सरकारी विभाग में कहीं भी नौकरी जी जा सकती थी. लेकिन उनसे सिर्फ कार्यलयों के चक्कर लगाए गए. लंगड़ू पहलावन चाहते हैं कि उनके योगदान को याद रखा जाए.
अपनी कुश्ती प्रतियोगिताओं की पुरानी यादों को देखते हुए लंगड़ू पहलवान बताते हैं कि सरकार से बस एक ही उम्मीद थी कि वो उनके इस हुनर को पहचान कर इसका लाभ दूसरे युवाओं को देते. ऐसे युवा जो पहलवानी में जाना चाहते हैं.
आजकल का युवा नशे की लत में फंसे हैं. इसलिए युवाओं को की खेलों को खेलने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, जिससे कि वो नशे की बुरी लत से बाहर निकल सके. वहीं, लंगड़ू पहलवान का कहना है कि लॉकडाउन के कारण कुश्ती के कार्यक्रम नहीं हुए. उन्होंने कहा कि कुश्ती के कार्यक्रम प्रदेश के हर जिला में किए जाने चाहिए.
पहलवान धर्मपाल उर्फ लंगडू पहलवान शिमला के रहने वाले हैं. इनके दो बच्चे हैं, जो सिरमौर में स्कूल में पढ़ते हैं. अपने परिवार का गुजर बसर धर्मपाल इसी तरह से सड़कों पर बैठकर बांसुरी बजाकर करते हैं.
लंगडू पहलवान बताते है बचपन में वे कुश्ती के मेलों में अपने माता-पिता के साथ जाते थे तो वह उन्हें बांसुरी खरीद कर दिलवाया करते थे और वह उस बांसुरी को बजाकर बेहद खुश होते थे.
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