शिमला: हिमाचल प्रदेश वन विभाग के वन्य प्राणी विंग 'हयूम्न वाईल्ड लाईफ कॉन्फलिकट मानव-वानर) विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया. कार्यशाला में मानव और वानर के बीच बढ़ते संघर्ष को कम करने के प्रयासों पर विचार-विमर्श किया गया. कार्यशाला में बताया गया कि बंदरों की समस्या से छुटकारा दिलाने का सबसे अच्छा उपाय बंदरों की नसबंदी ही है.
वन्य प्राणी -कम-चीफ वाईल्ड लाईफ वार्डन के प्रधान मुख्य अरण्यपाल डॉ. सविता ने कार्यशाला में बताया कि वन्य प्राणी प्रभाग की ओर से मानव वानर संघर्ष के समाधान के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में 1100 वानर हॉट स्पॉट की पहचान की गई है. प्रदेश की 548 पंचायतें वानरों की समस्या से अधिक संवेदनशील हैं.
प्रदेश में वानरों की जनसंख्या का आंकलन वर्ष 2003 से 2015 तक किया गया है. वर्ष 2019 में वानर जनसंख्या आंकलन पूरे प्रदेश में किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि वन्यप्राणी अधिनियम 1972 के अनुसार बंदर संरक्षित श्रेणी-2 का जानवर है,जिसको मारना अपराध है.
प्रदेश में लोगों के जीवन और संपति के लिए बंदर एक खतरा बन चुके है. इसे मध्यनजर रखते हुए वन्य प्राणी प्रभाग ने केंद्र सरकार से बंदरों को पीड़क जंतु घोषित करवाया है.
इस जंतु को वर्ष 2016 में प्रदेश की 38 तहसीलों में पीड़ित घोषित किया था. उसके बाद वर्ष 2019 में दोबारा प्रदेश के 11 जिलों की 91 तहसीलों/उप तहसीलों में बंदर पीड़ित जंतु घोषित किया गया. इन्हें मारकर मानव-वानर संघर्ष को कम किया जा सकें.
इसके अतिरिेक्त डॉ. सविता ने बताया कि लोगों को वानरों की समस्या के प्रति जागरूक करने के लिए प्रैस प्रिंटिग व इलेक्ट्रोनिक मिडिया के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है. इसके अतिरिक्त वन विभाग की तरफ से पौधरोपण कार्यक्रमों के माध्यम सो वनों में 40 प्रतिशत तक फलदार पौधे रोपित किए जा रहे, जिससे बंदरों को को वनों तक सीमित रखा जा सकें.