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पर्यटकों से गुलजार शिमला में आई बहार, पानी से संबधित किसी भी शिकायत के लिए डायल करें ये नंबर

कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नम्बर 1916 पर अपनी शिकायत दर्ज कर समस्या का समाधान पा सकता है. संजौली और रिज पर दो शिकायत कक्ष भी बनाए गए हैं, जो सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे कार्य कर रहे हैं. यदि कहीं पानी का रिसाव अथवा टंकी ओवरफ्लो की शिकायत प्राप्त होती है तो उपभोक्ता को पहले चेतावनी दी जाती है. यदि फिर भी रिसाव अथवा ओवरफ्लो जारी रहता है तो कनेक्शन काट दिया जाता है.

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Published : May 26, 2019, 8:57 PM IST

शिमला: राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कहा कि जिला में हर रोज हर घर में पानी की आपूर्ति हो रही है. वर्ष भर पहले पानी के संकट से जुड़ी अनेक समस्याएं अब छू-मंतर हो गई हैं. वर्तमान सरकार ने जल संसाधन प्रबन्धन और जलापूर्ति में सुधार एवं स्वच्छता लाने के लिए ठोस कदम उठाए.


गत वर्ष जल संकट के दौर में प्रतिदिन जलापूर्ति की समीक्षा की गई. सरकार द्वारा देश में पहली बार शिमला में नवीन प्रयोग किया गया. शहर की जलापूर्ति योजना का गूगल मैप ड्रोन की मदद से तैयार किया गया और इसे जीआईएस में परिवर्तित किया गया. योजनाओं को चिन्हित कर इनके सवंर्धन का कार्य आरम्भ किया गया. राज्य सरकार ने संकट की उस घड़ी में हर चीज का बारीकी से आकंलन किया.


वर्ष 1921 में गुम्मा परियोजना का शुभारम्भ 22 एमएलडी जलापूर्ति की क्षमता के साथ किया गया था. वर्तमान राज्य सरकार ने परियोजना का संवर्धन किया. अब यहां से प्रतिदिन 27 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. यहां आठ पंप बदलकर नए लगाए गए हैं. यहीं 1.50 करोड़ रुपये की लागत से नई वाटर ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी भी शुरू की गई. इलेक्ट्रिक पैनल और ट्रांसफार्मर भी बदले गए. पुराने पम्पों को बदलने से बिजली की खपत में 6 प्रतिशत तक कमी आयी है.


गिरी परियोजना में 8 करोड़ रुपये की लागत से 5500 मीटर पाईप लाईन बदली गई है. गिरी परियोजना में सैंज खड्ड से पानी लिया जाता है, यहां से प्रतिदिन 20-21 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जाती थी. अश्वनी खड्ड की जलापूर्ति प्रणाली को कोटी-बराड़ी-बीन नाला में सुधारा गया, 4.6 किलोमीटर लम्बाई में 5 करोड़ रुपये की लागत से इसे ऊंचा किया गया. अश्वनी खड्ड योजना से जलापूर्ति नहीं की जा रही है, लेकिन पंपिंग के खर्च को कम करने की दृष्टि से यहां के केवल पंपिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है.


चुरूट परियोजना से प्रतिदिन 4.4 एमएलडी और चेड़ जलापूर्ति से प्रतिदिन 2.5 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. सभी परियोजनाओं के संवर्धन कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण किया गया और सभी कार्य समय-सीमा के भीतर गुणवत्ता बनाए रखते हुए पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए.


69 करोड़ रुपये की चाबा उठाऊ जलापूर्ति संवर्धन योजना का कार्य युद्धस्तर पर किया गया और चाबा से पानी उठाकर गुम्मा तक पहुंचाने का कार्य केवल 142 दिन के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया, जो स्वयं में एक उपलब्धि है. जलापूर्ति के दौरान पानी की क्षति को रोकने के लिए क्रेगनैनो से ढ़ली तक 7.2 किलोमीटर क्षेत्र में 8.50 करोड़ रुपये की लागत से और संजौली से ढ़ली 2.25 किलोमीटर लम्बी नई पाइप लाइन 2.10 करोड़ रुपये की लागत से बिछाई गई.


गुम्मा पंपिंग स्टेशन एवं जाखू, ढिंगुधार, कामनादेवी और नॉर्थओक के पुराने पंप बदले गए। 14 किलोमीटर लम्बी पुरानी पाइपों को बदलकर नई पाइप बिछाई गईं, इससे वितरण की हानि 5 प्रतिशत से अधिक कम करने में सफलता मिली। गुम्मा, गिरी तथा कोटी बरांडी में फिल्टरेशन प्रणाली को भी आधुनिक तकनीक के अनुरूप स्तरोन्नत किया गया.


राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 10 हजार की जनसंख्या के लिए पानी की जांच का महीने में एक बार नमूना लिया जाता है, लेकिन शिमला में प्रतिदिन 20 विभिन्न स्थानों से नमूने एकत्र कर उनकी जांच की जाती है. सरकार शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वचन निरन्तर निभा रही है. ईमानदार प्रयासों का ही प्रतिफल है कि इस वर्ष शिमला में पीलिया का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया.


शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड ने दिसम्बर माह तक सभी घरों के रसाई एवं स्नानघरों के जल को सीवरेज नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य रखा है. उपभोक्ताओं को पानी के बिल जमा करने में सुविधा की दृष्टि से टेरिफ वॉलेनटीयर भी कार्य कर रहे हैं. प्राकृतिक जल स्रोतों का भी संरक्षण किया जा रहा है. 13 बावड़ियों में 35 लाख रुपये की लागत से कार्बन फिल्टर लगाए गए.


इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नम्बर 1916 पर अपनी शिकायत दर्ज कर समस्या का समाधान पा सकता है. संजौली और रिज पर दो शिकायत कक्ष भी बनाए गए हैं, जो सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे कार्य कर रहे हैं. यदि कहीं पानी का रिसाव अथवा टंकी ओवरफ्लो की शिकायत प्राप्त होती है तो उपभोक्ता को पहले चेतावनी दी जाती है. यदि फिर भी रिसाव अथवा ओवरफ्लो जारी रहता है तो कनेक्शन काट दिया जाता है.

ये भी पढ़ें- NSG कमांडो विवेक ठाकुर ने फतेह किया माउंट एवरेस्ट, JNV नाहन के नाम की उपलब्धि

शिमला: राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कहा कि जिला में हर रोज हर घर में पानी की आपूर्ति हो रही है. वर्ष भर पहले पानी के संकट से जुड़ी अनेक समस्याएं अब छू-मंतर हो गई हैं. वर्तमान सरकार ने जल संसाधन प्रबन्धन और जलापूर्ति में सुधार एवं स्वच्छता लाने के लिए ठोस कदम उठाए.


गत वर्ष जल संकट के दौर में प्रतिदिन जलापूर्ति की समीक्षा की गई. सरकार द्वारा देश में पहली बार शिमला में नवीन प्रयोग किया गया. शहर की जलापूर्ति योजना का गूगल मैप ड्रोन की मदद से तैयार किया गया और इसे जीआईएस में परिवर्तित किया गया. योजनाओं को चिन्हित कर इनके सवंर्धन का कार्य आरम्भ किया गया. राज्य सरकार ने संकट की उस घड़ी में हर चीज का बारीकी से आकंलन किया.


वर्ष 1921 में गुम्मा परियोजना का शुभारम्भ 22 एमएलडी जलापूर्ति की क्षमता के साथ किया गया था. वर्तमान राज्य सरकार ने परियोजना का संवर्धन किया. अब यहां से प्रतिदिन 27 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. यहां आठ पंप बदलकर नए लगाए गए हैं. यहीं 1.50 करोड़ रुपये की लागत से नई वाटर ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी भी शुरू की गई. इलेक्ट्रिक पैनल और ट्रांसफार्मर भी बदले गए. पुराने पम्पों को बदलने से बिजली की खपत में 6 प्रतिशत तक कमी आयी है.


गिरी परियोजना में 8 करोड़ रुपये की लागत से 5500 मीटर पाईप लाईन बदली गई है. गिरी परियोजना में सैंज खड्ड से पानी लिया जाता है, यहां से प्रतिदिन 20-21 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जाती थी. अश्वनी खड्ड की जलापूर्ति प्रणाली को कोटी-बराड़ी-बीन नाला में सुधारा गया, 4.6 किलोमीटर लम्बाई में 5 करोड़ रुपये की लागत से इसे ऊंचा किया गया. अश्वनी खड्ड योजना से जलापूर्ति नहीं की जा रही है, लेकिन पंपिंग के खर्च को कम करने की दृष्टि से यहां के केवल पंपिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है.


चुरूट परियोजना से प्रतिदिन 4.4 एमएलडी और चेड़ जलापूर्ति से प्रतिदिन 2.5 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. सभी परियोजनाओं के संवर्धन कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण किया गया और सभी कार्य समय-सीमा के भीतर गुणवत्ता बनाए रखते हुए पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए.


69 करोड़ रुपये की चाबा उठाऊ जलापूर्ति संवर्धन योजना का कार्य युद्धस्तर पर किया गया और चाबा से पानी उठाकर गुम्मा तक पहुंचाने का कार्य केवल 142 दिन के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया, जो स्वयं में एक उपलब्धि है. जलापूर्ति के दौरान पानी की क्षति को रोकने के लिए क्रेगनैनो से ढ़ली तक 7.2 किलोमीटर क्षेत्र में 8.50 करोड़ रुपये की लागत से और संजौली से ढ़ली 2.25 किलोमीटर लम्बी नई पाइप लाइन 2.10 करोड़ रुपये की लागत से बिछाई गई.


गुम्मा पंपिंग स्टेशन एवं जाखू, ढिंगुधार, कामनादेवी और नॉर्थओक के पुराने पंप बदले गए। 14 किलोमीटर लम्बी पुरानी पाइपों को बदलकर नई पाइप बिछाई गईं, इससे वितरण की हानि 5 प्रतिशत से अधिक कम करने में सफलता मिली। गुम्मा, गिरी तथा कोटी बरांडी में फिल्टरेशन प्रणाली को भी आधुनिक तकनीक के अनुरूप स्तरोन्नत किया गया.


राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 10 हजार की जनसंख्या के लिए पानी की जांच का महीने में एक बार नमूना लिया जाता है, लेकिन शिमला में प्रतिदिन 20 विभिन्न स्थानों से नमूने एकत्र कर उनकी जांच की जाती है. सरकार शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वचन निरन्तर निभा रही है. ईमानदार प्रयासों का ही प्रतिफल है कि इस वर्ष शिमला में पीलिया का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया.


शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड ने दिसम्बर माह तक सभी घरों के रसाई एवं स्नानघरों के जल को सीवरेज नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य रखा है. उपभोक्ताओं को पानी के बिल जमा करने में सुविधा की दृष्टि से टेरिफ वॉलेनटीयर भी कार्य कर रहे हैं. प्राकृतिक जल स्रोतों का भी संरक्षण किया जा रहा है. 13 बावड़ियों में 35 लाख रुपये की लागत से कार्बन फिल्टर लगाए गए.


इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नम्बर 1916 पर अपनी शिकायत दर्ज कर समस्या का समाधान पा सकता है. संजौली और रिज पर दो शिकायत कक्ष भी बनाए गए हैं, जो सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे कार्य कर रहे हैं. यदि कहीं पानी का रिसाव अथवा टंकी ओवरफ्लो की शिकायत प्राप्त होती है तो उपभोक्ता को पहले चेतावनी दी जाती है. यदि फिर भी रिसाव अथवा ओवरफ्लो जारी रहता है तो कनेक्शन काट दिया जाता है.

ये भी पढ़ें- NSG कमांडो विवेक ठाकुर ने फतेह किया माउंट एवरेस्ट, JNV नाहन के नाम की उपलब्धि

पर्यटकों से गुलज़ार शिमला में आई बहार
राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा है कि सरकार के सतत्, सार्थक सुप्रयासों से अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। इन दिनों पर्यटकों से गुलज़ार हैं यहॉं की फिज़ाए। 
हर रोज़ हर घर में पानी की आपूर्ति हो रही है। वर्ष भर पहले पानी के संकट से जुड़ी अनेक समस्याएं अब छू-मंतर हो गई हैं। वर्तमान सरकार ने जल संसाधन प्रबन्धन और जलापूर्ति में सुधार एवं स्वच्छता लाने के लिए ठोस कदम उठाए। गत वर्ष जल संकट के दौर में प्रतिदिन जलापूर्ति की समीक्षा की गई। 
सरकार द्वारा देश में पहली बार शिमला में नवीन प्रयोग किया गया। शहर की जलापूर्ति योजना का गूगल मैप ड्रोन की मदद से तैयार किया गया और इसे जीआईएस में परिवर्तित किया गया। योजनाओं को चिन्हित कर इनके सवंर्धन का कार्य आरम्भ किया गया। राज्य सरकार ने संकट की उस घड़ी में हर चीज का बारीकी से आकलन किया। शहरवासियों को तत्कालीन जल संकट से निज़ात दिलाने और भविष्य की योजना तैयार करने के लिए तीन चरणों में प्रयास शुरू हुए। 
तत्काल, अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक समाधान के लिए विचार विमर्श हुआ, योजनाएं बनाईं, योजनाओं को कार्य रुप देने और निरन्तर संवर्धन योजनाओं की प्रगति और गुणवत्ता का अवलोकन किया गया। जून, 2018 में जन्म हुआ शिमला जल प्रबन्धन निगम लिमिटेड का। सकारात्मक सोच के साथ ठोस फैसलों के सुखद परिणाम हमारे सामने हैं। राष्ट्रीय मानकों के अनुसार आज शिमला शहर में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से पानी घर-घर पहुच रहा है।
निगम के सतत् प्रयासों से जलापूर्ति योजनाओं के संवर्धन का काम शुरु हुआ। वर्ष 1921 में गुम्मा परियोजना का शुभारम्भ 22 एमएलडी जलापूर्ति की क्षमता के साथ किया गया था। वर्तमान राज्य सरकार ने परियोजना का संवर्धन किया। अब यहां से प्रतिदिन 27 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है। यहां आठ पंप बदलकर नए लगाए गए हैं।
यहीं 1.50 करोड़ रुपये की लागत से नई वाटर ट्रीटमेंट टैक्नोलॉजी भी आरम्भ की गई। इलैक्ट्रिक पैनल और ट्रांसफार्मर भी बदले गए। पुराने पम्पों को बदलने से बिजली की खपत में 6 प्रतिशत तक कमी आयी है।
गिरी परियोजना में 8 करोड़ रुपये की लागत से 5500 मीटर पाईप लाईन बदली गई है। गिरी परियोजना में सैंज खड्ड से पानी लिया जाता है, यहां से प्रतिदिन 20-21 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जाती थी।
अश्वनी खड्ड की जलापूर्ति प्रणाली को कोटी-बराड़ी-बीन नाला में सुधारा गया, 4.6 किलोमीटर लम्बाई में 5 करोड़ रुपये की लागत से इसे ऊंचा किया गया। अश्वनी खड्ड योजना से जलापूर्ति नहीं की जा रही है, लेकिन पंपिंग के खर्च को कम करने की दृष्टि से यहॉं के केवल पंपिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है।
चुरूट परियोजना से प्रतिदिन 4.4 एमएलडी और चेड़ जलापूर्ति से प्रतिदिन 2.5 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है।
सभी परियोजनाओं के संवर्धन कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण किया गया और सभी कार्य समय-सीमा के भीतर गुणवत्ता बनाए रखते हुए पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए।
69 करोड़ रुपये की चाबा उठाऊ जलापूर्ति संवर्धन योजना का कार्य युद्धस्तर पर किया गया और चाबा से पानी उठाकर गुम्मा तक पहुंचाने का कार्य केवल 142 दिन के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया, जो स्वयं में एक उपलब्धि है।
जलापूर्ति के दौरान पानी की क्षति को रोकने के लिए क्रेगनैनो से ढ़ली तक 7.2 किलोमीटर क्षेत्र में 8.50 करोड़ रुपये की लागत से और संजौली से ढ़ली 2.25 किलोमीटर लम्बी नई पाईप लाईन 2.10 करोड़ रुपये की लागत से बिछाई गई।
गुम्मा पंपिंग स्टेशन एवं जाखू, ढिंगुधार, कामनादेवी और नॉर्थओक के पुराने पंप बदले गए। 14 किलोमीटर लम्बी पुरानी पाईपों को बदलकर नई पाईपें बिछाई गईं, इससे वितरण की हानि 5 प्रतिशत से अधिक कम करने में सफलता मिली। गुम्मा, गिरी तथा कोटी बरांडी में फिल्टरेशन प्रणाली को भी आधुनिक तकनीक के अनुरूप स्तरोन्नत किया गया।
शिमला शहर में प्रतिदिन 47 एमएलडी पानी की आवश्यकता रहती है और सप्ताह के अंत में 55 एमएलडी पानी, जिसकी सुचारु आपूर्ति की जा रही है। गत वर्ष शिमला शहर में प्रतिदिन 18-19 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही थी, जबकि अब राज्य सरकार के प्रयासों के परिणामस्वरूप प्रतिदिन 50 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है।
राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 10 हजार की जनसंख्या के लिए पानी की जांच का महीने में एक बार नमूना लिया जाता है। लेकिन शिमला में प्रतिदिन 20 विभिन्न स्थानों से नमूने एकत्र कर उनकी जांच की जाती है। सरकार शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वचन निरन्तर निभा रही है। सत्त ईमानदार प्रयासों का ही प्रतिफल है कि इस वर्ष शिमला में पीलिया का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया।
जल भण्डारण टैंकों की सुरक्षा और सफाई के लिए भी सभी मापदंडों को अपनाया जा रहा है। पार्षदों और आम जनता की उपस्थिति में वर्ष में दो बार टैंकों की सफाई की जा रही है। टैंकों की तालाबंदी का भी ख़ास ख्याल रखा जा रहा है।
सीवरेज संग्रहण एवं उपचार में 100 प्रतिशत वृद्धि हुई है, जो अब 7 एमएलडी से बढ़कर 14 एमएलडी तक पहुंच गया है। अमरुत योजना के अन्तर्गत 90 किलोमीटर के क्षेत्र में 22 करोड़ रुपये की लागत से सीवरेज नेटवर्क बनाया गया।
शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड ने दिसम्बर माह तक सभी घरों के रसाई एवं स्नानघरों के जल को सीवरेज नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य रखा है। उपभोक्ताओं को पानी के बिल जमा करने में सुविधा की दृष्टि से टेरिफ वॉलेनटीयर भी कार्य कर रहे है। अब उपभोक्ता उतने ही पानी का भुगतान कर रहे हैं, जितने पानी का वे उपयोग कर रहे हैं। इससे घरेलू पानी के बिलों में 50 प्रतिशत से अधिक कटौती आयी  है।
पानी के दुरूपयोग एवं रिसाव को रोकने के लिए एसजेपीएनएल द्वारा उपभोक्ताओं को जागरूक भी किया जा रहा है। स्वयं सेवी संस्थाओं को भी जल संरक्षण जागरूकता कार्यक्रमों में सहभागी बनाया ेगया है, जो विद्यालयों में जाकर विद्यार्थियों को जल संरक्षण के गुर सिखा रही हैं। वास्तव में जल की एक-एक बूंद कीमती होती है। इसी संबंध में कार्यशालाओं का आयोजन कर जन-जन को जल की एक-एक बूंद के संरक्षण के संबंध में बताया और समझाया जा रहा है। प्राकृतिक जल स्रोतों का भी संरक्षण किया जा रहा है। 13 बावड़ियों में 35 लाख रुपये की लागत से कार्बन फिल्टर लगाए गए।
जल संरक्षण की दिशा में जल सखी नवीन रूप में उभरकर सामने आई हैं। अब तक सात जल सखी ग्रुप बनाए गए हैं। पानी के रिसाव, टंकियों के ओवरफ्लो, पानी के दुरूपयोग अथवा अन्य जल संबंधी शिकायतें एसजेपीएनएल तक पहुंचाने में जल सखियां अहम भूमिका निभा रही हैं। इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नम्बर 1916 पर अपनी शिकायत दर्ज कर समस्या का समाधान पा सकता है। संजौली और रिज पर दो शिकायत कक्ष भी बनाए गए हैं, जो सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे कार्य कर रहे हैं।
यदि कहीं पानी का रिसाव अथवा टंकी ओवरफ्लो की शिकायत प्राप्त होती है तो उपभोक्ता को पहले चेतावनी दी जाती है। यदि फिर भी रिसाव अथवा ओवरफ्लो जारी रहता है तो कनैक्शन काट दिया जाता है। उपभोक्ता द्वारा 2500 रुपये जुर्माना भरने के पश्चात् ही कनैक्शन पुनः बहाल किया जाता है।
शिमला शहर के सभी 43 पानी के टैंकों में सैंसर लगाए जा रहे हैं। इनके माध्यम से यह सूचना किसी भी समय मिल जाती है कि किस टैंक में कितना पानी है और पानी में कलोरीन की मात्रा कितनी है। टैंक में जल स्तर कम होने अथवा कलोरीन की मात्रा कम होने की स्थिति में तत्काल कदम उठाए जाते हैं।
अन्य वर्षों की तरह इस वर्ष नए पानी के कनैक्शन देने पर किसी भी तरह की रोक नहीं लगाई गई। 1489 नए पानी के कनैक्शन दिए गए। समयबद्ध एवं पर्याप्त जलापूर्ति सुनिश्चित बनाने के लिए 154 पुराने कंट्रोल वाल्वस बदले गए। इस वर्ष शीतकालीन खेल प्रेमियों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब शिमला के ऐतिहासिक आईस स्केटिंग रिंक में पर्याप्त पानी की उपलब्धता के फलस्वरुप आईस स्केटिंग प्रेमियों ने इसका भरपूर मज़ा लिया।
कठिन भौगोलिक स्थलाकृति वाले इलाके शिमला में पानी की पंपिंग की लागत काफी अधिक रहती है। शिमला में भी जलापूर्ति के लिए जल को 1500 मीटर ऊपर तक पंप किया जाता है। फलस्वरूप प्रति किलो लीटर पानी का मूल्य लगभग 100 रुपये बनता है, जबकि घरेलू उपभोक्ताओं को केवल 14.50 रुपये प्रति किलो लीटर के अनुसार जलापूर्ति की जाती है। शेष राशि सरकार स्वयं वहन करती है।
देश, दुनिया के अन्य भागों से अलग यहां हर दिन, हर घर, हर नल में आता पानी बहुत सुकून देता है। बस प्रत्येक नागरिक को यह समझना बाकी है कि हर बूंद को बचाने की शपथ लेना और उसे निभाना अपने लिए और भावी पीढ़ियों के लिए नितांत आवश्यक है, अन्यथा शाश्वत सत्य है- जल बिन जीवन नहीं।

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