शिमला: राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कहा कि जिला में हर रोज हर घर में पानी की आपूर्ति हो रही है. वर्ष भर पहले पानी के संकट से जुड़ी अनेक समस्याएं अब छू-मंतर हो गई हैं. वर्तमान सरकार ने जल संसाधन प्रबन्धन और जलापूर्ति में सुधार एवं स्वच्छता लाने के लिए ठोस कदम उठाए.
गत वर्ष जल संकट के दौर में प्रतिदिन जलापूर्ति की समीक्षा की गई. सरकार द्वारा देश में पहली बार शिमला में नवीन प्रयोग किया गया. शहर की जलापूर्ति योजना का गूगल मैप ड्रोन की मदद से तैयार किया गया और इसे जीआईएस में परिवर्तित किया गया. योजनाओं को चिन्हित कर इनके सवंर्धन का कार्य आरम्भ किया गया. राज्य सरकार ने संकट की उस घड़ी में हर चीज का बारीकी से आकंलन किया.
वर्ष 1921 में गुम्मा परियोजना का शुभारम्भ 22 एमएलडी जलापूर्ति की क्षमता के साथ किया गया था. वर्तमान राज्य सरकार ने परियोजना का संवर्धन किया. अब यहां से प्रतिदिन 27 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. यहां आठ पंप बदलकर नए लगाए गए हैं. यहीं 1.50 करोड़ रुपये की लागत से नई वाटर ट्रीटमेंट टेक्नोलॉजी भी शुरू की गई. इलेक्ट्रिक पैनल और ट्रांसफार्मर भी बदले गए. पुराने पम्पों को बदलने से बिजली की खपत में 6 प्रतिशत तक कमी आयी है.
गिरी परियोजना में 8 करोड़ रुपये की लागत से 5500 मीटर पाईप लाईन बदली गई है. गिरी परियोजना में सैंज खड्ड से पानी लिया जाता है, यहां से प्रतिदिन 20-21 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जाती थी. अश्वनी खड्ड की जलापूर्ति प्रणाली को कोटी-बराड़ी-बीन नाला में सुधारा गया, 4.6 किलोमीटर लम्बाई में 5 करोड़ रुपये की लागत से इसे ऊंचा किया गया. अश्वनी खड्ड योजना से जलापूर्ति नहीं की जा रही है, लेकिन पंपिंग के खर्च को कम करने की दृष्टि से यहां के केवल पंपिंग सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है.
चुरूट परियोजना से प्रतिदिन 4.4 एमएलडी और चेड़ जलापूर्ति से प्रतिदिन 2.5 एमएलडी पानी की आपूर्ति की जा रही है. सभी परियोजनाओं के संवर्धन कार्यों का समय-समय पर निरीक्षण किया गया और सभी कार्य समय-सीमा के भीतर गुणवत्ता बनाए रखते हुए पूरा करने के दिशा-निर्देश दिए.
69 करोड़ रुपये की चाबा उठाऊ जलापूर्ति संवर्धन योजना का कार्य युद्धस्तर पर किया गया और चाबा से पानी उठाकर गुम्मा तक पहुंचाने का कार्य केवल 142 दिन के रिकॉर्ड समय में पूरा किया गया, जो स्वयं में एक उपलब्धि है. जलापूर्ति के दौरान पानी की क्षति को रोकने के लिए क्रेगनैनो से ढ़ली तक 7.2 किलोमीटर क्षेत्र में 8.50 करोड़ रुपये की लागत से और संजौली से ढ़ली 2.25 किलोमीटर लम्बी नई पाइप लाइन 2.10 करोड़ रुपये की लागत से बिछाई गई.
गुम्मा पंपिंग स्टेशन एवं जाखू, ढिंगुधार, कामनादेवी और नॉर्थओक के पुराने पंप बदले गए। 14 किलोमीटर लम्बी पुरानी पाइपों को बदलकर नई पाइप बिछाई गईं, इससे वितरण की हानि 5 प्रतिशत से अधिक कम करने में सफलता मिली। गुम्मा, गिरी तथा कोटी बरांडी में फिल्टरेशन प्रणाली को भी आधुनिक तकनीक के अनुरूप स्तरोन्नत किया गया.
राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 10 हजार की जनसंख्या के लिए पानी की जांच का महीने में एक बार नमूना लिया जाता है, लेकिन शिमला में प्रतिदिन 20 विभिन्न स्थानों से नमूने एकत्र कर उनकी जांच की जाती है. सरकार शुद्ध पेयजल आपूर्ति का वचन निरन्तर निभा रही है. ईमानदार प्रयासों का ही प्रतिफल है कि इस वर्ष शिमला में पीलिया का एक भी मामला प्रकाश में नहीं आया.
शिमला जल प्रबंधन निगम लिमिटेड ने दिसम्बर माह तक सभी घरों के रसाई एवं स्नानघरों के जल को सीवरेज नेटवर्क के तहत लाने का लक्ष्य रखा है. उपभोक्ताओं को पानी के बिल जमा करने में सुविधा की दृष्टि से टेरिफ वॉलेनटीयर भी कार्य कर रहे हैं. प्राकृतिक जल स्रोतों का भी संरक्षण किया जा रहा है. 13 बावड़ियों में 35 लाख रुपये की लागत से कार्बन फिल्टर लगाए गए.
इसके अतिरिक्त कोई भी व्यक्ति टोल फ्री नम्बर 1916 पर अपनी शिकायत दर्ज कर समस्या का समाधान पा सकता है. संजौली और रिज पर दो शिकायत कक्ष भी बनाए गए हैं, जो सप्ताह के सातों दिन 24 घंटे कार्य कर रहे हैं. यदि कहीं पानी का रिसाव अथवा टंकी ओवरफ्लो की शिकायत प्राप्त होती है तो उपभोक्ता को पहले चेतावनी दी जाती है. यदि फिर भी रिसाव अथवा ओवरफ्लो जारी रहता है तो कनेक्शन काट दिया जाता है.
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