शिमला: हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है. अदालत ने ये व्यवस्था नौकरी के लिए अपनाई गई चयन प्रक्रिया के संदर्भ में दी है. हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई उम्मीदवार किसी चयन प्रक्रिया में बिना किसी आपत्ति अथवा विरोध के हिस्सा लेता है और बाद में चयनित होने में असफल रहता है तो वो चयन प्रक्रिया को चुनौती नहीं दे सकता. अदालत ने कहा कि ऐसे उम्मीदवार को चयन प्रक्रिया को चुनौती देने का कोई हक नहीं रहता है.
हाई कोर्ट की न्यायाधीश न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने ये अहम व्यवस्था दी है. इस मामले में न्यायमूर्ति ज्योत्सना रिवाल दुआ ने प्रार्थी संतोष रांटा की तरफ से दाखिल की गई याचिका को खारिज कर दिया और उक्त व्यवस्था दी है. प्रार्थी संतोष रांटा ने याचिका में चयन प्रक्रिया को चुनौती दी थी. इस मामले में सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने अपने फैसले में ये साफ कहा है कि यदि किसी उम्मीदवार के लिए चयन प्रक्रिया का परिणाम सुखद नहीं रहा है, तो वह ये आरोप नहीं लगा सकता है कि साक्षात्कार लेने में किसी तरह की खामियां थी.
याचिका में प्रार्थी ने न तो चयन कमेटी को प्रतिवादी बनाया था और न ही किसी के खिलाफ द्वेष भावना का आरोप लगाया था. प्रार्थी ने याचिका में दलील दी थी कि उसने और अन्य ने वर्ष 2008 में कला अध्यापक के पद के लिए साक्षात्कार में भाग लिया था. यह पद सामान्य श्रेणी के विकलांग अभ्यर्थियों के लिए आरक्षित रखा गया था. आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता को 13.07 अंक दिए गए जबकि चयनित उम्मीदवार को 13.57 अंक देकर सफल घोषित किया गया.
इस चयन प्रक्रिया के दो साल बाद याचिकाकर्ता ने चयनित उम्मीदवार की नियुक्ति को चुनौती दी. दलील दी गई थी कि जिस शैक्षणिक योग्यता के चयनित उम्मीदवार को अधिक अंक दिए गए हैं, उसका कला अध्यापक के पद के साथ कोई संबंध नहीं है. अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि असफल रहने के बाद प्रार्थी चयन प्रक्रिया को चुनौती देने का हक नहीं रखता है.