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एप्पल प्रोडक्शन का लीडर हिमाचल: देवभूमि से फार्मिंग के गुर सीखने आ रहे अरुणाचल व कश्मीर के बागवान

हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत व सीखने की ललक से नाम कमाया है. अब देश के अन्य राज्य के बागवान भी नई किस्मों की प्लांटेशन सीखने के लिए हिमाचल आ रहे हैं. यही नहीं, कश्मीर के बागवान हिमाचल (Himachal) के प्रगतिशील बागवानों को भी अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं. इसके अलावा कश्मीर के बागवान शिमला आकर भी विदेशी किस्मों व हाई डैंसिटी फार्मिंग के गुर सीख रहे हैं.

Apple Production Himachal News, एप्पल प्रोडक्शन हिमाचल न्यूज
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Published : Jul 24, 2021, 8:40 PM IST

शिमला: देश की एप्पल बाउल हिमाचल सेब उत्पादन में लीडर बनकर उभरा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत व सीखने की ललक से नाम कमाया है. अब देश के अन्य राज्य के बागवान भी नई किस्मों की प्लांटेशन सीखने के लिए हिमाचल (Himachal) आ रहे हैं.

यही नहीं, कश्मीर के बागवान हिमाचल के प्रगतिशील बागवानों को भी अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं. हाल ही में हिमाचल के शिमला जिला के बागवान डिंपल पांजटा ने कश्मीर में कैंप लगाए थे. ये कैंप उन्होंने कश्मीर के बागवानों के आग्रह पर लगाए थे.

इसके अलावा कश्मीर के बागवान शिमला आकर भी विदेशी किस्मों व हाई डैंसिटी फार्मिंग के गुर सीख रहे हैं. इसी तरह अरुणाचल के सबसे बड़े बागवानों में शुमार फाइचुलपा भी शिमला में युवा बागवान संजीव चौहान के बागीचे में आकर नई किस्मों की सफलता से बागवानी के गुर सीख चुके हैं.

संजीव चौहान के अलावा हिमाचल (Himachal) के सबसे सफल बागवानों में शामिल रामलाल चौहान के पास भी कश्मीर, उत्तराखंड के बागवान नियमित रूप से आकर नई बातें सीखते हैं. हिमाचल में सेब उत्पादन का सफर सौ साल से अधिक का हो गया है. पहले पहल यहां सेब की परंपरागत रॉयल किस्म लगाई जाती थी.

एक दशक से विदेशी किस्मों का बोलबाला हुआ है. हिमाचल ने इसमें गजब की सफलता पाई है. सौ साल से भी लंबे सेब बागवानी के इतिहास में मौजूदा दशक विदेशी किस्मों की बादशाहत का साबित हो रहा है. सेब की विदेशी किस्में हिमाचल में अंगद के पैर की तरह जम गई हैं.

नई किस्मों में इटालियन किस्म रेड विलॉक्स महंगे दर पर बिकता है. ये सेब सीधा देश के महानगरों में फाइव स्टार होटल्स में जाता है. इटली की सेब किस्म रेड विलॉक्स वर्ष 2012 में हिमाचल में आई थी. कई बागवान इस किस्म को अपना रहे हैं. इटली की अन्य सेब किस्मों में मेमा मास्टर, किंग रोट, मोडी एप्पल आदि हैं.

हिमाचल में चार लाख बागवान परिवार हैं और इनमें से अधिकांश अब सेब की परंपरागत रॉयल किस्म का मोह छोड़कर विदेशी किस्मों में हाथ आजमा रहे हैं. विदेशी किस्म के पौधे कम समय में फल देना शुरू कर देते हैं. यही कारण है कि उनकी तरफ बागवानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है.

हिमाचल (Himachal) की इस सफलता से प्रभावित होकर देश के अन्य राज्यों से भी बागवान यहां के बागवानों से सीख रहे हैं. हिमाचल में सालाना 3 से 4 करोड़ पेटी सेब पैदा होता है. हिमाचल की सफलता से सीख लेकर अरुणाचल प्रदेश के बागवान भी आगे बढ़ रहे हैं. कुछ समय अरूणाचल प्रदेश से पेशे से इंजीनियर एन. फाइचुलपा अपनी पत्नी के साथ ऊपरी शिमला के बखोल आए थे.

यहां संजीव चौहान के बागीचे में उन्होंने सेब की विदेशी किस्मों की पैदावार व अन्य पहलुओं की सीख ली. वैसे तो अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में हिमाचल से बेहतर जमीन है, लेकिन अनुभव व सेब उत्पादन की बारीकियां न जानने के कारण वहां बहुत कम सेब पैदा होता है.

अरुणाचल के बागवान एन. फाईचुलपा व उनकी पत्नी एससी फाईचुलपा ने कोटखाई व आसपास के बागीचों में पैदा की जा रही विदेशी किस्मों की जानकारी लेकर उन्हें अपने राज्य में आजमाया है. वे फोन के माध्यम से संजीव चौहान से संपर्क में रहते हैं और नई बातें सीख कर उन्हें अपना रहे हैं. फाइचुलपा के पास अरुणाचल प्रदेश में 200 एकड़ जमीन है.

हिमाचल के प्रगतिशील बागवान अब विदेशी स्पर किस्मों को सफलता से पैदा कर रहे हैं. इन स्पर किस्मों की खासियत यह है कि इनका पौधा आकार में छोटा होता है और लगाने के बाद यह सेब भी जल्दी देना शुरू कर देता है. अमेरिका, चीन, न्यूजीलैंड, इटली आदि देशों में स्पर किस्मों का बोलबाला है. हिमाचल के बागवानों ने अपने स्तर पर इस फील्ड में सफलता हासिल की है.

यहां स्पर किस्मों में सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर-टू, वॉशिंगटन, रेडलम गाला, गेल गाला, जेरोमाइन, रेड विलॉक्स आदि शामिल हैं. वहीं, अरुणाचल प्रदेश में दिरांग, तवांग, जेरो व सियांग में सेब उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा कश्मीर के कई बागवान शिमला आते हैं.

यहां से युवा बागवान डिंपल पांजटा का कहना है कि उन्हें कश्मीर से लगातार कैंप लगाने के लिए आग्रह आते हैं. गौरतलब है कि हिमाचल (Himachal) में शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, सिरमौर, किन्नौर व लाहौल-स्पीति में जहां सेब उत्पादन होता है, वहां की भौगोलिक परिस्थितियां कश्मीर से विकट हैं.

हिमाचल (Himachal) में सिंचाई के लिए भी खास व्यवस्था नहीं है, लेकिन यहां के बागवानों ने विकट परिस्थितियों में भी अपनी मेहनत से कामयाबी हासिल की है. हिमाचल में आने वाले समय में सेब उत्पादन का आंकड़ा और भी बढ़ने वाला है, क्योंकि यहां नई किस्मों पर सरकार भी जोर दे रही है.

ये भी पढ़ें- जानें क्यों HRTC के ड्राइवरों और कंडक्टरों ने की हड़ताल, लोग हो रहे परेशान

शिमला: देश की एप्पल बाउल हिमाचल सेब उत्पादन में लीडर बनकर उभरा है. हिमाचल के बागवानों ने अपनी मेहनत व सीखने की ललक से नाम कमाया है. अब देश के अन्य राज्य के बागवान भी नई किस्मों की प्लांटेशन सीखने के लिए हिमाचल (Himachal) आ रहे हैं.

यही नहीं, कश्मीर के बागवान हिमाचल के प्रगतिशील बागवानों को भी अपने यहां आमंत्रित कर रहे हैं. हाल ही में हिमाचल के शिमला जिला के बागवान डिंपल पांजटा ने कश्मीर में कैंप लगाए थे. ये कैंप उन्होंने कश्मीर के बागवानों के आग्रह पर लगाए थे.

इसके अलावा कश्मीर के बागवान शिमला आकर भी विदेशी किस्मों व हाई डैंसिटी फार्मिंग के गुर सीख रहे हैं. इसी तरह अरुणाचल के सबसे बड़े बागवानों में शुमार फाइचुलपा भी शिमला में युवा बागवान संजीव चौहान के बागीचे में आकर नई किस्मों की सफलता से बागवानी के गुर सीख चुके हैं.

संजीव चौहान के अलावा हिमाचल (Himachal) के सबसे सफल बागवानों में शामिल रामलाल चौहान के पास भी कश्मीर, उत्तराखंड के बागवान नियमित रूप से आकर नई बातें सीखते हैं. हिमाचल में सेब उत्पादन का सफर सौ साल से अधिक का हो गया है. पहले पहल यहां सेब की परंपरागत रॉयल किस्म लगाई जाती थी.

एक दशक से विदेशी किस्मों का बोलबाला हुआ है. हिमाचल ने इसमें गजब की सफलता पाई है. सौ साल से भी लंबे सेब बागवानी के इतिहास में मौजूदा दशक विदेशी किस्मों की बादशाहत का साबित हो रहा है. सेब की विदेशी किस्में हिमाचल में अंगद के पैर की तरह जम गई हैं.

नई किस्मों में इटालियन किस्म रेड विलॉक्स महंगे दर पर बिकता है. ये सेब सीधा देश के महानगरों में फाइव स्टार होटल्स में जाता है. इटली की सेब किस्म रेड विलॉक्स वर्ष 2012 में हिमाचल में आई थी. कई बागवान इस किस्म को अपना रहे हैं. इटली की अन्य सेब किस्मों में मेमा मास्टर, किंग रोट, मोडी एप्पल आदि हैं.

हिमाचल में चार लाख बागवान परिवार हैं और इनमें से अधिकांश अब सेब की परंपरागत रॉयल किस्म का मोह छोड़कर विदेशी किस्मों में हाथ आजमा रहे हैं. विदेशी किस्म के पौधे कम समय में फल देना शुरू कर देते हैं. यही कारण है कि उनकी तरफ बागवानों का रुझान लगातार बढ़ रहा है.

हिमाचल (Himachal) की इस सफलता से प्रभावित होकर देश के अन्य राज्यों से भी बागवान यहां के बागवानों से सीख रहे हैं. हिमाचल में सालाना 3 से 4 करोड़ पेटी सेब पैदा होता है. हिमाचल की सफलता से सीख लेकर अरुणाचल प्रदेश के बागवान भी आगे बढ़ रहे हैं. कुछ समय अरूणाचल प्रदेश से पेशे से इंजीनियर एन. फाइचुलपा अपनी पत्नी के साथ ऊपरी शिमला के बखोल आए थे.

यहां संजीव चौहान के बागीचे में उन्होंने सेब की विदेशी किस्मों की पैदावार व अन्य पहलुओं की सीख ली. वैसे तो अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में हिमाचल से बेहतर जमीन है, लेकिन अनुभव व सेब उत्पादन की बारीकियां न जानने के कारण वहां बहुत कम सेब पैदा होता है.

अरुणाचल के बागवान एन. फाईचुलपा व उनकी पत्नी एससी फाईचुलपा ने कोटखाई व आसपास के बागीचों में पैदा की जा रही विदेशी किस्मों की जानकारी लेकर उन्हें अपने राज्य में आजमाया है. वे फोन के माध्यम से संजीव चौहान से संपर्क में रहते हैं और नई बातें सीख कर उन्हें अपना रहे हैं. फाइचुलपा के पास अरुणाचल प्रदेश में 200 एकड़ जमीन है.

हिमाचल के प्रगतिशील बागवान अब विदेशी स्पर किस्मों को सफलता से पैदा कर रहे हैं. इन स्पर किस्मों की खासियत यह है कि इनका पौधा आकार में छोटा होता है और लगाने के बाद यह सेब भी जल्दी देना शुरू कर देता है. अमेरिका, चीन, न्यूजीलैंड, इटली आदि देशों में स्पर किस्मों का बोलबाला है. हिमाचल के बागवानों ने अपने स्तर पर इस फील्ड में सफलता हासिल की है.

यहां स्पर किस्मों में सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर-टू, वॉशिंगटन, रेडलम गाला, गेल गाला, जेरोमाइन, रेड विलॉक्स आदि शामिल हैं. वहीं, अरुणाचल प्रदेश में दिरांग, तवांग, जेरो व सियांग में सेब उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा कश्मीर के कई बागवान शिमला आते हैं.

यहां से युवा बागवान डिंपल पांजटा का कहना है कि उन्हें कश्मीर से लगातार कैंप लगाने के लिए आग्रह आते हैं. गौरतलब है कि हिमाचल (Himachal) में शिमला, कुल्लू, मंडी, चंबा, सिरमौर, किन्नौर व लाहौल-स्पीति में जहां सेब उत्पादन होता है, वहां की भौगोलिक परिस्थितियां कश्मीर से विकट हैं.

हिमाचल (Himachal) में सिंचाई के लिए भी खास व्यवस्था नहीं है, लेकिन यहां के बागवानों ने विकट परिस्थितियों में भी अपनी मेहनत से कामयाबी हासिल की है. हिमाचल में आने वाले समय में सेब उत्पादन का आंकड़ा और भी बढ़ने वाला है, क्योंकि यहां नई किस्मों पर सरकार भी जोर दे रही है.

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