शिमलाः सरकाघाट निवासी कोरोना संक्रमित अर्पित पलसरा का कथिततौर पर गैर जिम्मेदाराना तरीके से अंतिम संस्कार करने के मामले में अब सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी.
मुख्य न्यायाधीश लिंगप्पा नारायण स्वामी व न्यायाधीश ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने हिमाचल सरकार द्वारा दायर शपथ पत्र का अवलोकन करने के बाद मंडलायुक्त शिमला की अध्यक्षता में इस मामले की जांच करने के लिए एक कमेटी का गठन किया गया है. यह कमेटी 1 सप्ताह के अंदर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.
हाईकोर्ट के अधिवक्ता अनिल कुमार द्वारा दायर याचिका के तथ्यों के अनुसार अर्पित पलसरा की 5 मई 2020 को कोविड-19 से मौत हो गई थी. 11से 3 बजे के बीच रात को लावारिस शव की तरह उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
दायर याचिका के मुताबिक शव जलाने से पहले उसके पिता के आने का इंतजार तक नहीं किया गया. उसके शव को जल्द जलाने के लिए डीजल का प्रयोग किया गया. केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा निर्देशों के अनुसार यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी हिन्दू व्यक्ति की कोविड-19 से हुई मौत हो जाती है, तो उसका अंतिम संस्कार पूर्णतया हिंदू रीति से किया जाएगा.
शव जलाने के लिए हिन्दू रीति के अनुसार पवित्र मंत्र पढ़े जाने चाहिए. हिंदू रीति के अनुसार सूर्यास्त के पश्चात किसी भी व्यक्ति का अंतिम संस्कार नहीं किया जा सकता. जबकि प्रशासन ने शव को जलाने के लिए मात्र औपचारिकता पूरी की. यह ध्यान नहीं रखा कि रात को शव जलाने के लिए हिन्दू रीति मान्यता नहीं देती है.
हालांकि अंतिम संस्कार एसडीएम शिमला की निगरानी में किया गया मगर स्वास्थ्य विभाग का कोई भी अधिकारी या कर्मी अंतिम संस्कार के आखिरी समय तक वहां पर मौजूद नहीं रहा. जोकि भारत सरकार द्वारा जारी निर्देशों का सरासर उल्लंघन है.
प्रार्थी ने हिमाचल हाईकोर्ट से गुहार लगाई है कि केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के बावजूद अर्पित प्लसरा के पिता को शिमला प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना रवैये के कारण उसके पितृत्व अधिकार से वंचित रहना पड़ा. इस कारण उन्हें शिमला प्रशासन से उचित मुआवजा दिए जाने के आदेश पारित किए जांए.
इसके अलावा यह तय किया जाए कि कोविड-19 से किसी भी हिंदू व्यक्ति की मौत होती है, तो उसका अंतिम संस्कार संस्कार हिंदू रीति के अनुसार ही किया जाए. अब इस याचिका पर सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी.
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