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सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की बैठक, 26 को होने वाली हड़ताल में लेंगे हिस्सा

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Published : Nov 6, 2020, 1:16 PM IST

सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की झाकड़ी में बैठक हुई. इस दौरान 26 नवंबर को मोदी सरकार के खिलाफ होने वाली हड़ताल में भाग लेने का फैसला लिया गया.

Sutlej Hydroelectric Contract Workers Union
सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन

रामपुर: 26 नवंबर 2020 को होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की झाकड़ी में बैठक हुई. बैठक में सीटू के कई नेता मौजूद रहे. इस दौरान फैसला लिया गया कि 26 नवंबर को मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल में सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्करज यूनियन (सम्बन्धित सीटू) रतनपुर भी भाग लेगी.

इस दिन नाथपा झाकड़ी पावर स्टेशन 1500 मेगावाट के सभी मजदूर भी हड़ताल पर रहेंगे और सभी सफाई मजदूर सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे. मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है और मजदूर विरोधी फैसले ले रही है. पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

इस दौरान कहा गया कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है. मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के साथ ही किसान विरोधी तीन कानूनों को पारित करने से यह साबित हो गया है कि ये सरकार मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी है.

यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ काम कर रही है. सरकार के इन फैसलों से अस्सी करोड़ से ज्यादा मजदूर व किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे. सरकार ने फैक्ट्री मजदूरों के लिए 8 घंटे से बदल कर 12 घंटे काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है. आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साजिश की जा रही है.

नई शिक्षा नीति से योजनकर्मी बर्बाद हो जाएंगे. उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है. केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है.

सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हजार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है. मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोजगार से वंचित हो जाएंगे और विदेशी कंपनियों का बोलबाला हो जाएगा. मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में 15 करोड़ मजदूरों की नौकरियां चली गयी हैं और वे बेरोजगार हो गए हैं. मजदूरों को नियमित रोजगार से वंचित करके फिक्स टर्म रोजगार की ओर धकेला जा रहा है. वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है.

यूनियन ने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हजार रुपये घोषित किया जाए. केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए. किसान विरोधी हाल ही में पारित किए गए तीनों कानून को रद्द किया जाए और किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं.

साथ ही आंगनबाड़ी, मिड डे मील, आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए और नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए. मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए और राज्य सरकार द्वारा घोषित 275 रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए. श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए. मजदूरों की पेंशन तीन हजार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए.

कॉन्ट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोजगार दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए. नई पेंशन नीति(एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन नीति(ओपीएस) बहाल की जाए.

बैंक, बीमा, बीएसएनएल, रक्षा, बिजली, परिवहन, पोस्टल, रेलवे, एनटीपीएस, एनएचपीसी, एसजेवीएनएल., कोयला, बंदरगाहों, एयरपोर्टों, सीमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बंद किया जाए. मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी धाराओं को वापिस लिया जाए.

चवालिस श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का फैसले वापिस लिया जाए. सभी मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, नियमित रोज़गार, पेंशन, दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए. भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए. पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं. सेवारत कर्मचारियों की पचास वर्ष की आयु व तैंतीस वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए. सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए.

बैठक में सीटू राज्य उपाध्यक्ष बिहारी सेवगी, सीटू जिला शिमला, अध्यक्ष कुलदीप सिंह, यूनियन के प्रधान राजेश कुमार, सचिव नरेंद्र देष्टा, उपाध्यक्ष पोविन्दर शर्मा, कोषाध्यक्ष शाम लाल, सदस्य रोशन लाल, प्रवीण शर्मा, पवन कुमार, श्यामा देवी, प्रोमिला, रणवीर नेगी, चन्दर शर्मा और मनमोहन ने भाग लिया.

रामपुर: 26 नवंबर 2020 को होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल के सिलसिले में सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन की झाकड़ी में बैठक हुई. बैठक में सीटू के कई नेता मौजूद रहे. इस दौरान फैसला लिया गया कि 26 नवंबर को मोदी सरकार की मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ होने वाली राष्ट्रव्यापी हड़ताल में सतलुज जल विद्युत कॉन्ट्रैक्ट वर्करज यूनियन (सम्बन्धित सीटू) रतनपुर भी भाग लेगी.

इस दिन नाथपा झाकड़ी पावर स्टेशन 1500 मेगावाट के सभी मजदूर भी हड़ताल पर रहेंगे और सभी सफाई मजदूर सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे. मजदूर सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार व प्रदेश सरकार की मजदूर व कर्मचारी विरोधी नीतियों के खिलाफ हल्ला बोलेंगे. मोदी सरकार पूंजीपतियों के हित में काम कर रही है और मजदूर विरोधी फैसले ले रही है. पिछले सौ साल के अंतराल में बने 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं अथवा लेबर कोड बनाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

इस दौरान कहा गया कि कोरोना काल का फायदा उठाते हुए मोदी सरकार के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश जैसी कई राज्य सरकारों ने आम जनता, मजदूरों व किसानों के लिए आपदाकाल को पूंजीपतियों व कॉरपोरेट्स के लिए अवसर में तब्दील कर दिया है. मजदूरों के 44 कानूनों को खत्म करने, सार्वजनिक क्षेत्र को बेचने के साथ ही किसान विरोधी तीन कानूनों को पारित करने से यह साबित हो गया है कि ये सरकार मजदूर, कर्मचारी व किसान विरोधी है.

यह सरकार लगातार गरीबों के खिलाफ काम कर रही है. सरकार के इन फैसलों से अस्सी करोड़ से ज्यादा मजदूर व किसान सीधे तौर पर प्रभावित होंगे. सरकार ने फैक्ट्री मजदूरों के लिए 8 घंटे से बदल कर 12 घंटे काम करने के आदेश जारी करके उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की कोशिश कर रही है. आंगनबाड़ी, आशा व मिड डे मील योजनकर्मियों के निजीकरण की साजिश की जा रही है.

नई शिक्षा नीति से योजनकर्मी बर्बाद हो जाएंगे. उन्हें वर्ष 2013 के पैंतालीसवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार नियमित कर्मचारी घोषित नहीं किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 26 अक्तूबर 2016 को समान कार्य के लिए समान वेतन के आदेश को आउटसोर्स, ठेका, दिहाड़ीदार मजदूरों के लिए लागू नहीं किया जा रहा है. केंद्र व राज्य के मजदूरों को एक समान वेतन नहीं दिया जा रहा है. हिमाचल प्रदेश के मजदूरों के वेतन को महंगाई व उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के साथ नहीं जोड़ा जा रहा है.

सातवें वेतन आयोग व 1957 में हुए पन्द्रहवें श्रम सम्मेलन की सिफारिश अनुसार उन्हें इक्कीस हजार रुपये वेतन नहीं दिया जा रहा है. मोटर व्हीकल एक्ट में मालिक व मजदूर विरोधी परिवर्तनों से वे रोजगार से वंचित हो जाएंगे और विदेशी कंपनियों का बोलबाला हो जाएगा. मोदी सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के कारण कोरोना काल में 15 करोड़ मजदूरों की नौकरियां चली गयी हैं और वे बेरोजगार हो गए हैं. मजदूरों को नियमित रोजगार से वंचित करके फिक्स टर्म रोजगार की ओर धकेला जा रहा है. वर्ष 2003 के बाद नौकरी में लगे कर्मचारियों का नई पेंशन नीति के माध्यम से शोषण किया जा रहा है.

यूनियन ने मांग की है कि मजदूरों का न्यूनतम वेतन इक्कीस हजार रुपये घोषित किया जाए. केंद्र व राज्य का एक समान वेतन घोषित किया जाए. किसान विरोधी हाल ही में पारित किए गए तीनों कानून को रद्द किया जाए और किसानों की फसल के लिए स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशें लागू की जाएं.

साथ ही आंगनबाड़ी, मिड डे मील, आशा व अन्य योजना कर्मियों को सरकारी कर्मचारी घोषित किया जाए और नई शिक्षा नीति को वापिस लिया जाए. मनरेगा में दो सौ दिन का रोजगार दिया जाए और राज्य सरकार द्वारा घोषित 275 रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए. श्रमिक कल्याण बोर्ड में मनरेगा व निर्माण मजदूरों का पंजीकरण सरल किया जाए. मजदूरों की पेंशन तीन हजार रुपये की जाए व उनके सभी लाभों में बढ़ोतरी की जाए.

कॉन्ट्रैक्ट, फिक्स टर्म, आउटसोर्स व ठेका प्रणाली की जगह नियमित रोजगार दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार समान काम का समान वेतन दिया जाए. नई पेंशन नीति(एनपीएस) की जगह पुरानी पेंशन नीति(ओपीएस) बहाल की जाए.

बैंक, बीमा, बीएसएनएल, रक्षा, बिजली, परिवहन, पोस्टल, रेलवे, एनटीपीएस, एनएचपीसी, एसजेवीएनएल., कोयला, बंदरगाहों, एयरपोर्टों, सीमेंट, शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सार्वजनिक उपक्रमों का विनिवेश व निजीकरण बंद किया जाए. मोटर व्हीकल एक्ट में परिवहन मजदूर व मालिक विरोधी धाराओं को वापिस लिया जाए.

चवालिस श्रम कानून खत्म करके मजदूर विरोधी चार श्रम संहिताएं(लेबर कोड) बनाने का फैसले वापिस लिया जाए. सभी मजदूरों को ईपीएफ, ईएसआई, ग्रेच्युटी, नियमित रोज़गार, पेंशन, दुर्घटना लाभ आदि सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए. भारी महंगाई पर रोक लगाई जाए. पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस की कीमतें कम की जाएं. सेवारत कर्मचारियों की पचास वर्ष की आयु व तैंतीस वर्ष की नौकरी के बाद जबरन रिटायर करना बंद किया जाए. सेवाकाल के दौरान मृत कर्मचारियों के आश्रितों को बिना शर्त करूणामूलक आधार पर नौकरी दी जाए.

बैठक में सीटू राज्य उपाध्यक्ष बिहारी सेवगी, सीटू जिला शिमला, अध्यक्ष कुलदीप सिंह, यूनियन के प्रधान राजेश कुमार, सचिव नरेंद्र देष्टा, उपाध्यक्ष पोविन्दर शर्मा, कोषाध्यक्ष शाम लाल, सदस्य रोशन लाल, प्रवीण शर्मा, पवन कुमार, श्यामा देवी, प्रोमिला, रणवीर नेगी, चन्दर शर्मा और मनमोहन ने भाग लिया.

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