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पंडित सुखराम के राजनीतिक जीवन का इतिहास लिखेगा हॉट सीट मंडी का ये लोकसभा चुनाव

हॉट सीट मंडी में ये लोकसभा चुनाव 'तुंगल के शेर' कहे जाने वाले पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर का इतिहास लिखेगा. केंद्र और प्रदेश की राजनीति में प्रभाव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने इस बार कांग्रेस के टिकट से अपने पोते आश्रय शर्मा को लोकसभा चुनाव में उतारा.

पंडित सुखराम (फाइल फोटो)
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Published : May 21, 2019, 9:19 PM IST

शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मतदान संपन्न हो गया है. हिमाचल में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने कई संकेत दिए हैं. इस चुनाव में हिमाचल के कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है. हालांकि बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया है, लेकिन उनकी पार्टी के प्रत्याशी की जीत-हार से उनके राजनीतिक अनुभव को आंका जाएगा.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

हॉट सीट मंडी में ये लोकसभा चुनाव 'तुंगल के शेर' कहे जाने वाले पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर का इतिहास लिखेगा. केंद्र और प्रदेश की राजनीति में प्रभाव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने इस बार कांग्रेस के टिकट से अपने पोते आश्रय शर्मा को लोकसभा चुनाव में उतारा.

पढ़ेंः हिमाचल में इस लोकसभा चुनाव से शुरू होगा राजनीति का नया अध्याय

लोकसभा चुनाव में आश्रय की हार और जीत के साथ ही ये तय होगा कि दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक सफर को स्वर्णिम जीत के साथ या हार के जख्म के साथ विराम लगता है.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सीबीआई द्वारा छापेमारी के दौरान उनके बंगले से करोड़ों रुपये बरामद किए गए. बाद में आरोप साबित होने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

ये भी पढ़ेंः अगर फील्ड में उतरता तो नतीजे और अच्छे होते... ETV BHARAT से खास बातचीत में बोले अनिल शर्मा

1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.

हिविकां ने प्रदेश की राजनीति में खूब चर्चा बटौरी. 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए.

पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

ये भी पढ़ेंः Exit polls Effect! क्या अनुराग की उम्मीदों को लगेंगे पंख...शाह निभाएंगे अपना वादा

2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. उन्हें जयराम सरकार में मंत्री पद भी मिला. लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए. आश्रय के कांग्रेस में जाने के बाद जयराम सरकार से अनिल शर्मा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और मंत्री पद की सारी सुविधाएं उनसे वापस ले ली गई है.

लोकसभा चुनाव 2019 से ये तय होगा की दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक सफर को किस तरह विराम लगता है.

शिमला: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मतदान संपन्न हो गया है. हिमाचल में रिकॉर्डतोड़ वोटिंग ने कई संकेत दिए हैं. इस चुनाव में हिमाचल के कई दिग्गज नेताओं की साख दांव पर लगी है. हालांकि बहुत से वरिष्ठ नेताओं ने चुनावी राजनीति से किनारा कर लिया है, लेकिन उनकी पार्टी के प्रत्याशी की जीत-हार से उनके राजनीतिक अनुभव को आंका जाएगा.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

हॉट सीट मंडी में ये लोकसभा चुनाव 'तुंगल के शेर' कहे जाने वाले पंडित सुखराम के राजनीतिक सफर का इतिहास लिखेगा. केंद्र और प्रदेश की राजनीति में प्रभाव रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम ने इस बार कांग्रेस के टिकट से अपने पोते आश्रय शर्मा को लोकसभा चुनाव में उतारा.

पढ़ेंः हिमाचल में इस लोकसभा चुनाव से शुरू होगा राजनीति का नया अध्याय

लोकसभा चुनाव में आश्रय की हार और जीत के साथ ही ये तय होगा कि दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक सफर को स्वर्णिम जीत के साथ या हार के जख्म के साथ विराम लगता है.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

प्रदेश समेत देश की राजनीति में सुखराम का प्रभाव रहा है. केंद्र सरकार में सुखराम मंत्री पद पर भी आसीन रहे हैं. प्रदेश और देश में संचार क्रांति के लिए भी इन्हें जाना जाता है. हालांकि केंद्र में दूरसंचार मंत्री रहते हुए सुखराम पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और सीबीआई द्वारा छापेमारी के दौरान उनके बंगले से करोड़ों रुपये बरामद किए गए. बाद में आरोप साबित होने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा.

सुखराम ने सदर विधानसभा क्षेत्र से 13 बार चुनाव लड़े और हर बार जीत हासिल की. इसके साथ ही उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी लड़े और केंद्र में अलग-अलग मंत्री पद पर आसीन हुए. 1984 में सुखराम ने कांग्रेस के टिकट से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था और भारी बहुमत से जीत कर संसद पहुंचे.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

1989 के लोकसभा चुनाव में सुखराम को हार का सामना करना पड़ा और भाजपा के महेश्वर सिंह जीतकर संसद पहुंचे. 1991 के लोकसभा चुनाव में सुखराम ने महेश्वर सिंह को हराकर संसद में कदम रखा. 1996 में सुखराम फिर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे.

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1998 में पंडित सुखराम ने कांग्रेस से अलग होकर हिमाचल विकास कांग्रेस (हिविकां) के नाम से अपनी पार्टी बनाई. हालांकि हिविकां लोकसभा चुनाव में कुछ खास नहीं कर पाई और उनकी पार्टी से सिर्फ कर्नल धनीराम शांडिल ही जीतकर संसद पहुंच पाए.

हिविकां ने प्रदेश की राजनीति में खूब चर्चा बटौरी. 1998 के चुनाव में हिविकां ने 5 सीटें जीती. भाजपा-कांग्रेस के पाले में 31-31 सीटें आई. जिसके बाद सरकार बनाने के लिए हिविकां ने अहम रोल निभाया. हिविकां ने भाजपा को समर्थन दिया. वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनने से चूक गए और प्रेम कुमार धूमल पहली बार सीएम के पद पर आसीन हुए.

पंडित सुखराम ने 2003 में अपना आखिरी विधानसभा का चुनाव लड़ा और फिर 2007 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेकर अपनी राजनीतिक विरासत अपने बेटे अनिल शर्मा को सौंप दी.

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पंडित सुखराम (फाइल फोटो)

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2017 के विधानसभा चुनाव में पंडित सुखराम परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया और अनिल शर्मा ने बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा और जीते भी. उन्हें जयराम सरकार में मंत्री पद भी मिला. लोकसभा चुनाव 2019 में पंडित सुखराम पोते आश्रय को टिकट दिलाने के लिए फिर से कांग्रेस में शामिल हुए. आश्रय के कांग्रेस में जाने के बाद जयराम सरकार से अनिल शर्मा ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और मंत्री पद की सारी सुविधाएं उनसे वापस ले ली गई है.

लोकसभा चुनाव 2019 से ये तय होगा की दिग्गज नेता सुखराम के राजनीतिक सफर को किस तरह विराम लगता है.

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