शिमला/सरगुजा: राजमाता देवेन्द्र कुमारी ने दुनिया को भले अलविदा कह दिया है लेकिन लोगों के दिलों में उनकी छाप हमेशा अमिट रहेगी. एक युग अपने साथ लिए राजमाता देवेन्द्र कुमारी ने 10 फरवरी को लंबी बीमारी के बाद आखिरी सांस ली.
राजमाता देवेन्द्र कुमारी का सफर हिमाचल से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ का रहा. राजमाता देवेन्द्र कुमारी का जन्म 13 जुलाई 1933 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था. वो जुब्बल रियासत के महाराज स्वर्गीय दिग्विजय सिंह की बेटी थीं. 21 अप्रैल 1948 को इनका विवाह सरगुजा महाराज रामानुज शरण सिंहदेव के बेटे IAS मदनेश्वर शरण सिंहदेव से हुआ.
इलाहाबाद और मध्य प्रदेश के कई जिलों में रहीं राजमाता
विवाह के बाद वो उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में रह रहे थे और वहीं, 31 अक्टूबर 1952 को जन्म हुआ 'बाबा' यानी की वर्तमान स्वास्थ्य, पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंहदेव का. इसके बाद राजमाता अपने पति के साथ मध्यप्रदेश के जबलपुर, रतलाम, छतरपुर, अमरावती में रहीं.
इन जिलों में उनके पति मदनेश्वर शरण सिंहदेव की बतौर कलेक्टर पोस्टिंग हुई थी और अंत में वे मध्यप्रदेश के चीफ सेक्रेटरी बने और वहीं से रिटायर हुए. बाद में उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष भी बनाया गया.
1967 में राजनीति में रखा पहला कदम
1965 में देवेन्द्र कुमारी के ससुर महाराज रामानुज शरण सिंहदेव का निधन हुआ और 1966 में इनके बड़े बेटे अम्बिकेश्वर शरण सिंहदेव का निधन हो गया, जिसके बाद से सरगुजा नेतृत्व विहीन हो चुका था. राजपरिवार की बागडोर संभालने वाला कोई नहीं बचा था क्योंकि महाराजा के बेटे IAS थे.
इसके बाद देवेन्द्र कुमारी ने सरगुजा की बागडोर अपने हाथ में ली और 1967 में सरगुजा की राजनीति में सक्रिय हुईं. तभी 1967 के भयंकर अकाल में राजमाता ने ही सरगुजा का नेतृत्व किया और इंदिरा गांधी अम्बिकापुर पहुंची. तब से राजमाता देवेन्द्र कुमारी इंदिरा गांधी की करीबी हुई और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व में भी सक्रिय हुईं.
बैकुंठपुर विधानसभा से बनीं विधायक
इसके बाद देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव अंबिकापुर विधानसभा से विधायक बनीं और मध्यप्रदेश के प्रकाश चंद्र सेठी मंत्रीमंडल में आवास, पर्यावरण, वित्त एवं पृथक आगम मंत्री रहीं. इसके बाद वो वर्तमान में कोरिया और तब के सरगुजा जिले की बैकुंठपुर विधानसभा से विधायक बनीं और अर्जुन सिंह मंत्रीमंडल में लघु एवं मध्यम सिंचाई मंत्री रहीं.
इंदिरा गांधी के बहुत करीबी थीं राजमाता
सरगुजा राजपरिवार के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि राजमाता और इंदिरा गांधी की बहुत करीबी थी. इमरजेंसी के बाद साहा कमेटी के सिफारिश पर इंदिरा गांधी को जेल भेज दिया गया था और देश भर में कांग्रेस ने जनता दल सरकार के खिलाफ जेल भरो आंदोलन किया.
तब देवेंद्र कुमारी ने लाठियां खाई और हाथ फैक्चर हो जाने के बाद भी वो जेल में रहीं, जबकि उन्हें माफी मांगने और जमानत कराने की सलाह दी गई थी, लेकिन उन्होंने टूटे हाथ के बावजूद जेल जाना ज्यादा मुनासिब समझा.
लोगों की परेशानियों पर लेती थीं संज्ञान
सरगुजा के विकास के संदर्भ में कई किस्से बताए जाते हैं कि किस तरह से वो खुद ही लोगों की परेशानियों पर संज्ञान लेती थीं. किसी शासकीय कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसकी तेरहवीं होने से पहले घर में अनुकंपा नियुक्ति का लेटर पहुंच जाया करता था. सिंचाई मंत्री रहते हुए उन्होंने घुनघुट्टा नदी को अम्बिकापुर के लिए आरक्षित करा दिया था, जिसकी पाइप लाइन आज अमृत मिशन योजना के तहत बिछाई जा रही है.
देश में 562 रियासतें हुआ करती थीं, लेकिन इनमें से कुछ ऐसी रियासतें हुई हैं जिन्होंने देश, समाज और लोगों के लिये कुछ ऐसा किया कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनकी विरासत को आगे बढ़ा रही हैं.
राजमाता के निधन के बाद उनके पीछे दो बेटे और तीन बेटियां हैं, सबसे बड़ी बेटी मोहिनी राणा, त्रिभुवनेश्वर शरण सिंहदेव (टीएस बाबा) मंत्री छत्तीसगढ़, आशा कुमारी (डलहौजी विधायक व पंजाब कांग्रेस प्रभारी), मंजूश्री आनंद और सबसे छोटे बेटे छोटे बाबा अरुणेश्वर शरण सिंहदेव हैं.
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