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बापू की कर्मस्थली शिमला में कब लगी राष्ट्रपिता की प्रतिमा, किसने बनाई, कोई नहीं जानता

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली शिमला में उनकी प्रतिमा मौजूद जरूर है, लेकिन ये किसने बनाई और कब यहां लगी, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है.

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Published : Oct 2, 2019, 12:01 AM IST

महात्मा गांधी

शिमला: भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महापुरुष और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली शिमला में उनकी प्रतिमा मौजूद जरूर है, लेकिन ये किसने बनाई और कब यहां लगी, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है.

नगर निगम शिमला के कर्ता-धर्ताओं को भी इसकी जानकारी नहीं है और न ही भाषा विभाग के पास कोई ब्यौरा है. देश इस दफा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है, लेकिन राष्ट्रपिता से जुड़ी अहम जानकारी आम जनता तक पहुंचाने की सुध कोई नहीं ले रहा.

वीडियो

भारत पर अंग्रेजी शासन के समय महात्मा गांधी कई दफा शिमला आए. यहां कई महत्वपूर्ण वार्ताएं हुईं. शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी विभिन्न स्थानों पर ठहरे थे. ऐसे में शिमला से उनकी कई यादें जुड़ी हैं. देश-विदेश से आए सैलानी शिमला के रिज मैदान पर स्थापित गांधी जी की प्रतिमा को कैमरे में कैद करते हैं. यहां गांधी जी की कांस्य प्रतिमा स्थापित है. इसके नीचे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लिखा हुआ है साथ ही उनके जन्म वर्ष व देहावसान का वर्ष लिखा गया है.

इसके अलावा प्रतिमा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह भी मालूम नहीं है कि बापू की यह प्रतिमा रिज मैदान पर किस दिन व किस वर्ष स्थापित की गई. किसी को यह भी नहीं मालूम कि ये किस मूर्तिकार की कला का नमूना है.
ये सही है कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती व 30 जनवरी को उनकी पुण्य तिथि के अवसर परइस प्रतिमा के सामने बापू के प्रिय भजन जरूर गाए जाते हैं. इस प्रतिमा को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है और सभी दलों के नेता राष्ट्रपिता की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हैं, लेकिन इस मूर्ति की कोई विस्तृत जानकारी नहीं है.

पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में दर्ज महज खरीद की तारीख
नगर निगम शिमला की पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में महज इतना दर्ज है कि बापू की कांस्य प्रतिमा 12 सितंबर 1956 में खरीदी गई थी तब यह प्रतिमा कुल 11,250 रुपये में खरीदी गई थी. इससे एक अनुमान यह लगाया जाता है कि यदि प्रतिमा सितंबर 1956 में खरीदी गई तो इसे स्वभाविक रूप से उसी वर्ष 1956 में 2 अक्टूबर को उनकी जयंती पर स्थापित किया गया होगा.

वर्ष 1956 में अक्टूबर की 2 तारीख को मंगलवार का दिन था, लेकिन यह मात्र एक अनुमान है. महात्मा गांधी की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बापू की शिमला यात्राओं का विवरण दर्ज है, परंतु इसमें भी उनकी वर्ष 1939 की दो यात्राओं का जिक्र नहीं है.

वर्ष 1939 में महात्मा गांधी ने दो बार शिमला की यात्राएं की थीं. वर्ष 1939 में सितंबर 4 व सितंबर 26 को बापू शिमला आए थे. उनकी यात्राओं का मकसद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करना था. उस समय गांधी राजकुमारी अमृत कौर के समरहिल स्थित निवास मेनरविले में ठहरे थे.

शिमला के इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले सेवानिवृत आईएएस अधिकारी व मशहूर लेखक श्रीनिवास जोशी के अनुसार, नगर निगम शिमला के पास महात्मा गांधी की रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमा के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं है.
नगर निगम प्रशासन और राज्य के भाषा विभाग ने इस बारे में कोई खोजबीन नहीं की है. जोशी के मुताबिक शिमला व बापू एक-दूसरे से गहराई से जुड़े रहे हैं. ऐसे में महात्मा गांधी के बारे में संपूर्ण जानकारियों से युक्त कोई पंफलेट तैयार कर उसे जगह विशेष में रखा जाना चाहिए, जिससे सैलानियों की बापू व शिमला को लेकर जिज्ञासा शांत हो सके.

एचपीयू से सेवानिवृत लेखक डॉ. कुलराजीव पंत कहते हैं कि इनसान स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है. शिमला में हर साल लाखों सैलानी आते हैं. यहां रिज मैदान एक ऐसा स्थान है, जहां से शिमला की खूबसूरती को निहारा जा सकता है. रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने सभी देशी-विदेशी सैलानी फोटो खिंचवाते हैं.

ऐसे में लोगों में सहज ही जिज्ञासा पैदा होती है कि बापू की यह प्रतिमा यहां कब लगी, किसने बनाई और इससे जुड़े एनकडोट यानी रोचक किस्से क्या हैं? लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. उल्लेखनीय है कि बापू की प्रतिमा शहरवासियों के लिए एक ऐसा स्थान है, जहां किसी को भी मिलने के लिए समय दिया जाता है.

यदि कोई व्यक्ति किसी से मिलना तय करे तो फटाक से यही कहा जाता है-फलां टाइम पर महात्मा गांधी की मूर्ति के पास मिलते हैं. फिलहाल, इस मूर्ति के मूर्तिकार व यहां इसे स्थापित करने के समय को लेकर प्रशासन के पास कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है.

शिमला: भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महापुरुष और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली शिमला में उनकी प्रतिमा मौजूद जरूर है, लेकिन ये किसने बनाई और कब यहां लगी, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है.

नगर निगम शिमला के कर्ता-धर्ताओं को भी इसकी जानकारी नहीं है और न ही भाषा विभाग के पास कोई ब्यौरा है. देश इस दफा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है, लेकिन राष्ट्रपिता से जुड़ी अहम जानकारी आम जनता तक पहुंचाने की सुध कोई नहीं ले रहा.

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भारत पर अंग्रेजी शासन के समय महात्मा गांधी कई दफा शिमला आए. यहां कई महत्वपूर्ण वार्ताएं हुईं. शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी विभिन्न स्थानों पर ठहरे थे. ऐसे में शिमला से उनकी कई यादें जुड़ी हैं. देश-विदेश से आए सैलानी शिमला के रिज मैदान पर स्थापित गांधी जी की प्रतिमा को कैमरे में कैद करते हैं. यहां गांधी जी की कांस्य प्रतिमा स्थापित है. इसके नीचे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लिखा हुआ है साथ ही उनके जन्म वर्ष व देहावसान का वर्ष लिखा गया है.

इसके अलावा प्रतिमा के बारे में कोई जानकारी नहीं है. यह भी मालूम नहीं है कि बापू की यह प्रतिमा रिज मैदान पर किस दिन व किस वर्ष स्थापित की गई. किसी को यह भी नहीं मालूम कि ये किस मूर्तिकार की कला का नमूना है.
ये सही है कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती व 30 जनवरी को उनकी पुण्य तिथि के अवसर परइस प्रतिमा के सामने बापू के प्रिय भजन जरूर गाए जाते हैं. इस प्रतिमा को फूलों की मालाओं से सजाया जाता है और सभी दलों के नेता राष्ट्रपिता की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हैं, लेकिन इस मूर्ति की कोई विस्तृत जानकारी नहीं है.

पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में दर्ज महज खरीद की तारीख
नगर निगम शिमला की पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में महज इतना दर्ज है कि बापू की कांस्य प्रतिमा 12 सितंबर 1956 में खरीदी गई थी तब यह प्रतिमा कुल 11,250 रुपये में खरीदी गई थी. इससे एक अनुमान यह लगाया जाता है कि यदि प्रतिमा सितंबर 1956 में खरीदी गई तो इसे स्वभाविक रूप से उसी वर्ष 1956 में 2 अक्टूबर को उनकी जयंती पर स्थापित किया गया होगा.

वर्ष 1956 में अक्टूबर की 2 तारीख को मंगलवार का दिन था, लेकिन यह मात्र एक अनुमान है. महात्मा गांधी की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बापू की शिमला यात्राओं का विवरण दर्ज है, परंतु इसमें भी उनकी वर्ष 1939 की दो यात्राओं का जिक्र नहीं है.

वर्ष 1939 में महात्मा गांधी ने दो बार शिमला की यात्राएं की थीं. वर्ष 1939 में सितंबर 4 व सितंबर 26 को बापू शिमला आए थे. उनकी यात्राओं का मकसद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करना था. उस समय गांधी राजकुमारी अमृत कौर के समरहिल स्थित निवास मेनरविले में ठहरे थे.

शिमला के इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले सेवानिवृत आईएएस अधिकारी व मशहूर लेखक श्रीनिवास जोशी के अनुसार, नगर निगम शिमला के पास महात्मा गांधी की रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमा के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं है.
नगर निगम प्रशासन और राज्य के भाषा विभाग ने इस बारे में कोई खोजबीन नहीं की है. जोशी के मुताबिक शिमला व बापू एक-दूसरे से गहराई से जुड़े रहे हैं. ऐसे में महात्मा गांधी के बारे में संपूर्ण जानकारियों से युक्त कोई पंफलेट तैयार कर उसे जगह विशेष में रखा जाना चाहिए, जिससे सैलानियों की बापू व शिमला को लेकर जिज्ञासा शांत हो सके.

एचपीयू से सेवानिवृत लेखक डॉ. कुलराजीव पंत कहते हैं कि इनसान स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है. शिमला में हर साल लाखों सैलानी आते हैं. यहां रिज मैदान एक ऐसा स्थान है, जहां से शिमला की खूबसूरती को निहारा जा सकता है. रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने सभी देशी-विदेशी सैलानी फोटो खिंचवाते हैं.

ऐसे में लोगों में सहज ही जिज्ञासा पैदा होती है कि बापू की यह प्रतिमा यहां कब लगी, किसने बनाई और इससे जुड़े एनकडोट यानी रोचक किस्से क्या हैं? लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है. उल्लेखनीय है कि बापू की प्रतिमा शहरवासियों के लिए एक ऐसा स्थान है, जहां किसी को भी मिलने के लिए समय दिया जाता है.

यदि कोई व्यक्ति किसी से मिलना तय करे तो फटाक से यही कहा जाता है-फलां टाइम पर महात्मा गांधी की मूर्ति के पास मिलते हैं. फिलहाल, इस मूर्ति के मूर्तिकार व यहां इसे स्थापित करने के समय को लेकर प्रशासन के पास कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है.

बापू की कर्मस्थली शिमला में कब लगी राष्ट्रपिता की प्रतिमा, किसने बनाई, कोई नहीं जानता
शिमला। भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महापुरुष और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मस्थली शिमला में उनकी प्रतिमा मौजूद जरूर है, लेकिन ये किसने बनाई और कब यहां लगी, इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। नगर निगम शिमला के कर्ता-धर्ताओं को भी इसकी जानकारी नहीं है और न ही भाषा विभाग के पास कोई ब्यौरा है। देश इस दफा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहा है, लेकिन राष्ट्रपिता से जुड़ी अहम जानकारी आम जनता तक पहुंचाने की सुध कोई नहीं ले रहा। भारत पर अंग्रेजी शासन के समय महात्मा गांधी कई दफा शिमला आए। यहां कई महत्वपूर्ण वार्ताएं हुईं। शिमला प्रवास के दौरान महात्मा गांधी विभिन्न स्थानों पर ठहरे थे। ऐसे में शिमला से उनकी कई यादें जुड़ी हैं। देश-विदेश से आए सैलानी शिमला के रिज मैदान पर स्थापित गांधी जी की प्रतिमा को कैमरे में कैद करते हैं। यहां गांधी जी की कांस्य प्रतिमा स्थापित है। इसके नीचे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी लिखा हुआ
है। साथ ही उनके जन्म वर्ष व देहावसान का वर्ष लिखा गया है। इसके अलावा
प्रतिमा के बारे में कोई जानकारी नहीं है। यह भी मालूम नहीं है कि बापू
की यह प्रतिमा रिज मैदान पर किस दिन व किस वर्ष स्थापित की गई। किसी को यह भी नहीं मालूम कि ये किस मूर्तिकार की कला का नमूना है। ये सही है कि 2 अक्टूबर को गांधी जयंती व 30 जनवरी को उनकी पुण्य तिथि के अवसर परइस प्रतिमा के सामने बापू के प्रिय भजन जरूर गाए जाते हैं। इस प्रतिमा कोफूलों की मालाओं से सजाया जाता है और सभी दलों के नेता राष्ट्रपिता की प्रतिमा के सामने नतमस्तक होते हैं। लेकिन इस मूर्ति की कोई विस्तृत जानकारी नहीं है। 
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पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में दर्ज महज खरीद की तारीख
नगर निगम शिमला की पुरानी स्टॉक बुक एंट्री में महज इतना दर्ज है कि बापू की कांस्य प्रतिमा 12 सितंबर 1956 में खरीदी गई थी। तब यह प्रतिमा कुल 11,250 रुपए में खरीदी गई थी। इससे एक अनुमान यह लगाया जाता है कि यदि प्रतिमा सितंबर 1956 में खरीदी गई तो इसे स्वभाविक रूप से उसी वर्ष 1956 में 2 अक्टूबर को उनकी जयंती पर स्थापित किया गया होगा। वर्ष 1956 में अक्टूबर की 2 तारीख को मंगलवार का दिन था। लेकिन यह मात्र अनुमान है। महात्मा गांधी की प्रतिमा के पृष्ठ भाग में बापू की शिमला यात्राओं का विवरण दर्ज है, परंतु इसमें भी उनकी वर्ष 1939 की दो यात्राओं का जिक्र नहीं है। वर्ष 1939 में महात्मा गांधी ने दो बार शिमला की यात्राएं की थीं। वर्ष 1939 में सितंबर 4 व सितंबर 26 को बापू शिमला आए थे। उनकी यात्राओं का मकसद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो से मुलाकात करना था। उस समय गांधी राजकुमारी अमृत कौर के समरहिल स्थित निवास मेनरविले में ठहरे थे। शिमला के इतिहास में गहरी रुचि रखने वाले सेवानिवृत आईएएस अधिकारी व मशहूर लेखक श्रीनिवास जोशी के अनुसार नगर निगम शिमला के पास महात्मा गांधी की रिज मैदान पर स्थापित प्रतिमा के बारे में संपूर्ण जानकारी नहीं है। नगर निगम प्रशासन और राज्य के भाषा विभाग ने इस बारे में कोई खोजबीन नहीं की है। जोशी के मुताबिक शिमला व बापू एक-दूसरे से गहराई से जुड़े रहे हैं। ऐसे में महात्मा गांधी के बारे में संपूर्ण जानकारियों से युक्त कोई पंफलेट तैयार कर उसे जगह विशेष में रखा जाना चाहिए, जिससे सैलानियों की बापू व शिमला को लेकर जिज्ञासा शांत हो सके। एचपीयू से सेवानिवृत लेखक डॉ. कुलराजीव पंत कहते हैं कि इनसान स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है। शिमला में हर साल लाखों सैलानी आते हैं। यहां रिज मैदान एक ऐसा स्थान है, जहां से शिमला की खूबसूरती को निहारा जा सकता है। रिज पर महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने सभी देशी-विदेशी सैलानी फोटो खिंचवाते हैं। ऐसे में लोगों में सहज ही जिज्ञासा पैदा होती है कि बापू की यह प्रतिमा यहां कब लगी, किसने बनाई और इससे जुड़े एनकडोट यानी रोचक किस्से क्या हैं? लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है। उल्लेखनीय है कि बापू की प्रतिमा शहरवासियों के लिए एक ऐसा स्थान है, जहां किसी को भी मिलने के लिए समय दिया जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी से मिलना तय करे तो फटाक से यही कहा जाता है-फलां टाइम पर महात्मा गांधी की मूर्ति के पास मिलते हैं। फिलहाल, इस मूर्ति के मूर्तिकार व यहां इसे स्थापित करने के समय को लेकर प्रशासन के पास कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है।
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