शिमला: छोटे पहाड़ी राज्य में खेती के लायक जमीन की उपलब्धता कम है. यही कारण है कि हिमाचल में जमीन सोने से कीमती मानी जाती है. राज्य के गठन के समय से ही हिमाचल की बेशकीमती जमीन पर धन्नासेठों सहित धार्मिक संस्थाओं की नजर रही है.
हाल ही में राधास्वामी सतसंग ब्यास ने अपनी होल्डिंग की सरप्लस जमीन बेचने की अनुमति मांगी. इस घटनाक्रम को लेकर हिमाचल में सियासत गर्म हो गई है. कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने चेताया है कि कांग्रेस ऐसे किसी भी कदम का विरोध करेगी. उनके बयान पर भाजपा ने पलटवार किया है और कहा है कि ऐसा कहने से पहले विक्रमादित्य सिंह को कांग्रेस का इतिहास देखना चाहिए.
यहां इस स्टोरी में ईटीवी भारत ऐसे तथ्यों को सामने रख रहा है, जिससे ये पता चलेगा कि हिमाचल में सरकार किसी की भी हो, सिक्का डेरों के बाबाओं का ही चलता है. यहां सिलसिलेवार तथ्यों से समझते हैं कि कैसे डेरों के मुखिया हिमाचल में बेशकीमती जमीन वाले जागीरदार बन गए.
बात वर्ष 2017 की है. राधास्वामी सतसंग ब्यास ने वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन हिमाचल सरकार को आवेदन कर कहा कि उनके पास जरूरत से अधिक जमीन हो गई है, लिहाजा उन्हें जमीन बेचने की अनुमति दी जाए. भू-सुधार कानूनों में छूट लेकर कौडिय़ों के दाम खरीदी गई जमीन को राधास्वामी सतसंग ब्यास का प्रबंधन करोड़ों रुपये में बेचने की जुगत कर रहा था.
उसके बाद एक अन्य धार्मिक संस्था निरंकारी सतसंग को भी लगा कि वो भी बहती गंगा में हाथ धो ले. उसी दौरान निरंकारी मिशन प्रबंधन ने भी हिमाचल सरकार ने किसान का दर्जा मांग लिया. निरंकारी मिशन ने कहा है कि राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह उसे भी हिमाचल में कृषक का दर्जा दिया जाए. यदि मिशन को किसान का दर्जा मिलता है तो वो हिमाचल में जितनी चाहे, उतनी जमीन खरीदने का हकदार हो जाएगा.
हालांकि, ये दर्जा हासिल करने के लिए मिशन को कैबिनेट की मंजूरी चाहिए थी. हिमाचल में फिलहाल कृषक का दर्जा हासिल करने वाले अधिकतम 150 बीघा जमीन रख सकते हैं. लेकिन धार्मिक संस्थाओं व लोकसेवा के काम करने वाले चैरिटेबल ट्रस्ट 150 बीघा की लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर है.
हिमाचल में राधास्वामी सतसंग ब्यास को भी लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर किया हुआ है. ऐसे में ब्यास डेरा राज्य में जितनी चाहे, उतनी जमीन खरीद सकता है. इसी को देखते हुए निरंकारी मिशन भी पहले किसान का दर्जा चाहता है और फिर प्रदेश में जितनी चाहे उतनी जमीन खरीद सकेगा.
कृषक का दर्जा हासिल करने के बाद मिशन भूमि सुधार कानून की धारा-118 से मुक्त हो जाएगा और जमीन खरीद का रास्ता खुल जाएगा. किसान का ये स्टेट्स मिलने से निरंकारी मिशन भी राधास्वामी सतसंग ब्यास की तरह टैनेंसी एंड लैंड रिफार्म एक्ट की धारा 118 से मुक्त हो जाएगा. हालांकि अभी निरंकारी मिशन की ये इच्छा पूरी नहीं हुई है.
बेशकीमती जमीन का लालच, धर्मगुरू बने किसान
हिमाचल की बेशकीमती जमीन के लालच में धर्मगुरू किसान बन गए हैं. धार्मिक संस्थाओं को सरकार ने कृषक कैटेगरी में डाला है. इसी का फायदा उठाकर धार्मिक संस्थाएं हजारों बीघा जमीन दान में लेती आई हैं. प्रदेश में इस समय दस हजार बीघा जमीन पर धार्मिक गुरुओं की संस्थाओं का कब्जा है, यानी वे दस हजार बीघा जमीन के मालिक हैं. अकेले राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास छह हजार बीघा जमीन है.
पहले धूमल सरकार ने की थी डेरा ब्यास पर मेहरबानी
हिमाचल में जब प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री थे, तब डेरा ब्यास पर मेहरबानी की गई. तत्कालीन सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट 1972 में सशर्त संशोधन किया था. उस संशोधन के जरिए राधास्वामी सतसंग ब्यास को लैंड सीलिंग एक्ट से बाहर कर दिया था.
लैंड सीलिंग एक्ट का प्रावधान है कि उसके तहत किसी के पास भी 150 बीघा से अधिक जमीन नहीं हो सकती. लैंड सीलिंग एक्ट से इस समय हिमाचल में दो कैटेगरी बाहर हैं. एक चाय बागान व दूसरे राधास्वामी सतसंग ब्यास. डेरा ब्यास से लैंड सीलिंग एक्ट के हटते ही उसके पास अधिकतम जमीन की कोई सीमा नहीं रही. उसके बाद से डेरा ब्यास हिमाचल में छह हजार बीघा जमीन का मालिक है.
पहले भाजपा और फिर कांग्रेस सरकार की बारी
डेरा ब्यास पर पहले भाजपा सरकार ने लैंड सीलिंग एक्ट से उन्हें बाहर करने की मेहरबानी दिखाई. बाद में 2017 में कांग्रेस भी यही मेहरबानी करने वाली थी. हैरानी की बात है कि कांग्रेस ये मेहरबानी उस समय कर रही थी, जब हिमाचल में 2017 में विधानसभा चुनाव नजदीक थे.
बेनामी भू-सौदों की जांच के लिए बने आयोग में भी की थी सख्त टिप्पणी
हिमाचल में पूर्व धूमल सरकार के समय हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज न्यायमूर्ति डीपी सूद की अगुवाई में आयोग का गठन किया गया, जिसे बेनामी भू-सौदों की जांच का जिम्मा सौंपा गया. आयोग की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि प्रदेश में दस हजार बीघा जमीन बाबाओं के डेरों की मल्कीयत है. अकेले 6 हजार बीघा जमीन राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास है.
डीपी सूद की अध्यक्षता वाले आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि भूमि सुधार कानून 1953 व लैंड सीलिंग एक्ट 1972 के जरिए हिमाचल में जमींदारी प्रथा को खत्म किया गया था, लेकिन धर्मगुरुओं को इनसे बाहर करने पर वे नए किस्म के जमींदार बन गए हैं.
आयोग की रिपोर्ट अप्रैल 2012 में आई थी. हिमाचल में कुछ धार्मिक संस्थाएं कृषक की कैटेगरी में डाली गई हैं. राधास्वामी सतसंग ब्यास सहित अन्य संस्थाएं इस श्रेणी में हैं. चूंकि ये कृषक की श्रेणी में हैं, लिहाजा इन्हें हिमाचल में जमीन लेने के लिए धारा-118 के तहत सरकार के पास आवेदन नहीं करना पड़ता.
भूमि सुधार कानून में हैं कई सख्त प्रावधान
हिमाचल में भू-सुधार कानून की धारा-118 में गैर कृषक हिमाचल में जमीन या प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकते. इसके लिए कैबिनेट से मंजूरी लेनी होती है. निरंकारी मिशन को यदि कृषक का दर्जा दे दिया जाता तो ये प्रदेश में कहीं भी जमीन बिना कैबिनेट की अनुमति के खरीद सकते हैं.
हिमाचल में धार्मिक और चैरिटेबल संस्थाएं पहले ही लैंड सिलिंग एक्ट के दायरे से बाहर हैं तो ये जितनी चाहे उतनी जमीन अपने पास रख सकते हैं. वहीं, राज्य का आम आदमी इस एक्ट के कारण 150 बीघा से अधिक जमीन का मालिक नहीं हो सकता.
संत निरंकारी मिशन के पास शिमला के बैमलोई व मंडी के डडौर इलाके सहित प्रदेश में कई स्थानों पर डेरे हैं. लेकिन धारा-118 से बाहर न होने के कारण इनकी लैंड होल्डिंग राधास्वामी सत्संग ब्यास से काफी कम है.
अकेले राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास छह हजार बीघा जमीन
हिमाचल में धार्मिक संस्थाओं के पास दस हजार बीघा से अधिक बेशकीमती जमीन है. अकेले राधास्वामी सतसंग ब्यास के पास छह हजार बीघा जमीन है. बताया जाता है कि 2017 में डेरा ब्यास प्रबंधन जमीन के एक टुकड़े का सौदा ही 90 करोड़ रुपये से अधिक में करने का इरादा रखता था. ये जमीन डेरा ब्यास को दान में मिली है अथवा उसने स्थानीय लोगों से काफी कम कीमत पर खरीदी है.
बाबा रामदेव को भी लीज पर मिली है जमीन
इसके अलावा बाबा रामदेव को मामूली रकम पर बेशकीमती जमीन लीज पर देने का विवाद भी खासा चर्चित रहा है. बाबा रामदेव को सोलन जिला के साधुपुल में भाजपा सरकार के समय बेहद कम दाम पर लीज पर जमीन दी गई थी.
कांग्रेस सरकार ने आकर उस लीज डीड को रद्द कर दिया था, लेकिन बाद में वीरभद्र सरकार ने बाबा को फिर से लीज पर जमीन देने की तैयारी शुरू कर दी थी. हिमाचल में बेनामी भू सौदों को लेकर जस्टिस डीडी सूद आयोग की रिपोर्ट में ऐसी संस्थाओं को जमीन देने को लेकर तल्ख टिप्पणी की गई है.