शिमला: एक पौधे की नन्हीं शुरूआत कैसे वट वृक्ष में बदल जाती है, इसे आईजीएमसी अस्पताल के सीटीवीएस (कार्डियो थ्रेसिक एंड वस्कुलर सर्जरी) डिपार्टमेंट ने साबित किया है. ओपन हार्ट सर्जरी के माहिर और मरीजों की मन-प्राण से सेवा करने वाले सर्जन प्रोफेसर रजनीश पठानिया के कुशल मार्गदर्शन में इस डिपार्टमेंट ने करीब 5000 ऑपरेशन किये हैं.
बड़ी बात ये है कि यहां दिल के मरीजों के ऑपरेशन की सक्सेस रेट 99 फीसदी के करीब है. ये सक्सेस रेट देश के किसी भी नामी स्वास्थ्य संस्थान से टक्कर लेती है. हार्ट सर्जन प्रोफेसर रजनीश पठानिया चाहते तो वे किसी भी निजी अस्पताल में भारी-भरकम सैलेरी पैकेज पर चले जाते, लेकिन उन्होंने अपने राज्य के गरीब व साधनहीन मरीजों की सेवा का लक्ष्य चुना. यहां बता दें कि प्रोफेसर पठानिया को दिल्ली के मैक्स अस्पताल सहित अन्य कई संस्थानों से आकर्षक सैलेरी पैकेज के ऑफर आए थे, लेकिन उन्होंने सभी ऑफर ठुकरा दिए.
कुछ समय नेरचौक मेडिकल कॉलेज अस्पताल में सेवाएं देने के बाद अब वे इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज अस्पताल शिमला के मुखिया बने हैं. वे सोमवार को दोपहर बाद कार्यभार संभालेंगे. दिसंबर 2005 में आईजीएमसी अस्पताल में ओपन हार्ट सर्जरी के लिए सीटीवीएस डिपार्टमेंट शुरू हुआ. आरंभ में एम्स से आई टीम ने मशहूर हार्ट सर्जन प्रोफेसर एन. वेणुगोपाल की देखरेख में शुरुआती ऑपरेशन किए. उसके बाद से प्रोफेसर रजनीश पठानिया की टीम ने जिम्मा संभाला और इस डिपार्टमेंट का अब तक का सफर मिसाल है.
गरीब मरीजों को सीएम रिलीफ फंड सहित अन्य योजनाओं से निशुल्क इलाज
सीटीवीएस डिपार्टमेंट में गरीब मरीजों को विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से निशुल्क इलाज मिलता है. यहां अधिकतर ऑपरेशन सीएम रिलीफ फंड से मिली मदद से होते हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना, स्कूल हैल्थ प्रोग्राम, राष्ट्रीय आरोग्य निधि आदि योजनाओं से भी मरीजों को मदद दी जाती है. वैसे भी आईजीएमसी अस्पताल में हार्ट सर्जरी देश के अन्य अस्पतालों के मुकाबले सस्ती है. यहां वाल्व रिप्लेसमेंट से लेकर कोरोनरी आर्टरी बाइपास ड्राफ्टिंग जैसे ऑपरेशन महज 75 हजार से 1.25 लाख रुपए में हो जाते हैं.
प्रोफेसर पठानिया की टीम ने किए कई जटिल ऑपरेशन
आईजीएमसी अस्पताल के इस डिपार्टमेंट ने कई जटिल ऑपरेशन किए हैं. उनमें से दो केस का जिक्र जरूरी है. पहला केस तो ऐसा है कि समूचे विश्व में अब तक वैसे 120 ऑपरेशन ही हुए हैं. ऐसे केस रेयरेस्ट ऑफ रेयर की श्रेणी में आते हैं. एक महिला की बच्चेदानी में रसौली थी. गरीब परिवार की सुषमा नामक महिला को इलाज के लिए आईजीएमसी अस्पताल लाया गया तो पता चला कि रसौली की ग्रोथ नसों से होकर दिल तक पहुंच गई. ये ट्यूमर एबडोमिन से दिल तक आया था और महिला को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी. डॉ. पठानिया की टीम ने छह घंटे तक चले ऑपरेशन के बाद इस ट्यूमर को सफलता से रिमूव कर महिला की जान बचा ली. इसी तरह एक बच्चे को फेफड़े से हार्ट तक खून ले जाने वाली एक नाड़ी ही नहीं थी. उसका भी सफल ऑपरेशन किया गया. अस्पताल ने नवजात बच्चों से लेकर नब्बे साल तक की आयु के मरीजों के ऑपरेशन सफलता से किए हैं.
हार्ट सर्जरी और एमसीएच की डिग्री करवाने वाला नार्थ इंडिया का पहला सरकारी अस्पताल
आईजीएमसी अस्पताल में हार्ट सर्जरी तो की ही जाती है, साथ ही इस संस्थान में एमसीएच (मास्टर ऑफ चेरीचुरी) की डिग्री भी करवाई जाती है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने यहां पांच साल पहले एमसीएच डिग्री कोर्स की मंजूरी दी है. दो सीटों की मंजूरी मिली है और अब हार्ट सर्जरी में एमसीएच की डिग्री पूरी कर दो बैच पासआउट हो चुके हैं. इससे अस्पताल के इस डिपार्टमेंट को विशेषज्ञ डॉक्टर्स की कमी नहीं झेलनी होगी.
दो महिला हार्ट सर्जन सहित सात कंसल्टेंट
प्रोफेसर रजनीश पठानिया की टीम में सात कंसल्टेंट हैं. बड़ी बात ये है कि इनमें से दो महिला सर्जन हैं. महिला सर्जन में डॉ. कविता व डॉ. सीमा का नाम शामिल है. इसके अलावा टीम में डॉ. आरएस कंवर, डॉ. सुधीर मेहता, डॉ. प्रवीण धौल्टा सहित कार्डिएक एनेस्थेसिस्ट डॉ. यशवंत वर्मा हैं. टीम में पांच सीनियर रेजीडेंट्स भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. उल्लेखनीय सेवाओं के लिए प्रोफेसर रजनीश पठानिया व उनकी टीम को हिमाचल गौरव सम्मान मिल चुका है