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धूमल और वीरभद्र सरकार में डॉ. बाल्दी के पास रही खजाने की चाबी, फिर भी बढ़ता गया कर्ज का मर्ज - जयराम सरकार

डॉ. बाल्दी लंबे समय तक हिमाचल में वित्त महकमे को संभालते रहे हैं. वर्ष 2007 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार में डॉ. बाल्दी वित्त महकमे के मुखिया थे. तब बजट उन्हीं की देखरेख में लाए गए. उसके बाद दिसंबर 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. तब भी वित्त विभाग का जिम्मा श्रीकांत बाल्दी के पास ही था

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Published : Sep 2, 2019, 9:24 PM IST

शिमला: हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अफसरशाही के मुखिया का पद डॉ. श्रीकांत बाल्दी को सौंपा है. नौकरशाही के नए मुखिया के नाम के आगे बेशक डॉक्टर लगा है, लेकिन हिमाचल के कर्ज का मर्ज ये भी दूर नहीं कर पाए.

डॉ. बाल्दी लंबे समय तक हिमाचल में वित्त महकमे को संभालते रहे हैं. वर्ष 2007 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार में डॉ. बाल्दी वित्त महकमे के मुखिया थे. तब बजट उन्हीं की देखरेख में लाए गए. उसके बाद दिसंबर 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. तब भी वित्त विभाग का जिम्मा श्रीकांत बाल्दी के पास ही था और राज्य के बजट उन्हीं की अगुवाई में तैयार हुए.

इस दफा हिमाचल में नए चेहरे के साथ राजनीति के नए युग की शुरूआत हुई और जयराम ठाकुर सीएम बने. मजे की बात ये रही कि जयराम सरकार का पहला बजट भी डॉ. श्रीकांत बाल्दी की पैनी नजर से होकर गुजरा. कहा जा सकता है कि करीब एक दशक तक श्रीकांत बाल्दी ने खजाने की चाबी संभाली, लेकिन हिमाचल के कर्ज के मर्ज का तोड़ नहीं तलाश पाए. इस समय हिमाचल प्रदेश पर पचास हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. श्रीकांत बाल्दी की गिनती बेशक काबिल अफसरों में होती है, लेकिन कर्ज की बीमारी का माकूल इलाज वे भी नहीं कर पाए.

वर्ष 1985 बैच के आईएएस अफसर डॉ. बाल्दी के पास साढ़े तीन दशक का ब्यूरोक्रेसी का अनुभव है. वित्त विभाग में बाल्दी की पोस्टिंग जुलाई 2011 को हुई थी. उन्होंने आठ बजट पेश करने में अपनी भूमिका अदा की. वे कई महकमों को संभाल चुके हैं और अब उनकी सेवानिवृति के महज चार महीने रहे हैं. बीके अग्रवाल के केंद्र में प्रथम लोकपाल के सचिव के तौर पर नियुक्ति के बाद जयराम सरकार ने उन्हें मुख्य सचिव का पद सौंपा है. वे सीनियोरिटी में सबसे आगे थे. इससे पहले वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सीनियोरिटी को सुपरसीड कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था.

मुख्य सचिव किसे बनाया जाए, ये सरकार की पसंद की बात है. कुछ मुख्यमंत्री सीनियोरिटी के हिसाब से चलते हैं तो कुछ अपनी पसंद के अफसर को मुख्य सचिव बनाते हैं. जहां तक राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधियों की बात की जाए तो प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह, इन दोनों ने ही वित्त महकमे के लिए श्रीकांत बाल्दी को अपनी पसंद बनाया. लेकिन ये भी सच है कि एक दशक में हिमाचल से कर्ज का बोझ कम होना तो दूर, लगातार बढ़ता गया.

हिमाचल में जयराम ठाकुर की अगुवाई वाली सरकार ने सत्ता संभालने के बाद राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर एक प्रेजेंटेशन तैयार करने को कहा था. वित्त विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने तब प्रेजेंटेशन दी. उसके बाद एक समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य की आर्थिक हालत वाकई चिंताजनक हैं.

सरकार पर हिमाचल को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी है और वे नए संसाधन तलाश कर कोई न कोई उपाय सामने लाएंगे. यही नहीं, कैग की रिपोर्ट में हर बार हिमाचल को चेताया जाता है कि वो कर्ज के ट्रैप में फंसता जा रहा है. समय रहते उपाय नहीं किए गए तो आर्थिक रूप से बदहाल होने की नौबत आएगी. अब सवाल यही है कि कई साल से बजट की केंद्रीय भूमिका में होने के बावजूद वित्त मामलों के जानकार आईएएस श्रीकांत बाल्दी क्या सुझाव देते रहे, जो स्थिति काबू में ही नहीं आ पाई.

कर्ज 50 हजार करोड़ पार, संकट में जयराम सरकार
हिमाचल प्रदेश पर 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है. कर्ज का ये मर्ज कोई अभी का नहीं है. हर सरकार के समय में ये कर्ज का बोझ रहा है. आय के नए साधन तलाशने की बजाय राज्य सरकारें बिना बजट के संस्थान खोलने के लिए तत्पर रहती है. वीरभद्र सिंह सरकार के समय 2016 में माननीयों का वेतन बढ़ाया गया. इस बार जयराम सरकार ने माननीयों को निशुल्क यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना कर दिया.

जयराम सरकार ने सत्ता में आने पर कर्मचारियों को आठ फीसदी अंतरिम राहत की घोषणा की. इस घोषणा से सरकार पर सालाना 700 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा. हालात ये हैं कि सरकार को कर्मचारियों के वेतन के लिए भी लोन लेना पड़ा है. सरकार के बजट का 19 हजार करोड़ रुपए सालाना कर्मचारियों व पेंशनर्स के वेतन-भत्तों पर खर्च हो जाता है. इसके अलावा पहले से लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ता है.

कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया यानी कैग की रिपोर्ट में वर्ष 2011-12 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज 40,904 रुपए था, जो 2015-16 में बढक़र 57462 रुपए हो गया. है. इस मामले में हिमाचल का नंबर विशेष दर्जा हासिल राज्यों में सिक्किम व मिजोरम के बाद आता है. लगातार कर्ज लेने से आगामी सात साल में राज्य सरकार को हर हाल में 62 फीसदी कर्ज का ही भुगतान करना होगा. हालात ये हैं कि सरकार ने पूर्व में 2015-16 में जो कर्ज लिया, उसमें से 32 फीसदी रकम पहले से लिए गए कर्ज को चुकाने में लगाई. डॉ. श्रीकांत बाल्दी भी मानते हैं कि हिमाचल की सबसे बड़ी चुनौती कर्ज का मर्ज है. वे पर्यटन, पावर सेक्टर व पारदर्शी खनन के माध्यम से आय के संसाधन जुटाने की बात करते हैं.

शिमला: हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अफसरशाही के मुखिया का पद डॉ. श्रीकांत बाल्दी को सौंपा है. नौकरशाही के नए मुखिया के नाम के आगे बेशक डॉक्टर लगा है, लेकिन हिमाचल के कर्ज का मर्ज ये भी दूर नहीं कर पाए.

डॉ. बाल्दी लंबे समय तक हिमाचल में वित्त महकमे को संभालते रहे हैं. वर्ष 2007 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार में डॉ. बाल्दी वित्त महकमे के मुखिया थे. तब बजट उन्हीं की देखरेख में लाए गए. उसके बाद दिसंबर 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. तब भी वित्त विभाग का जिम्मा श्रीकांत बाल्दी के पास ही था और राज्य के बजट उन्हीं की अगुवाई में तैयार हुए.

इस दफा हिमाचल में नए चेहरे के साथ राजनीति के नए युग की शुरूआत हुई और जयराम ठाकुर सीएम बने. मजे की बात ये रही कि जयराम सरकार का पहला बजट भी डॉ. श्रीकांत बाल्दी की पैनी नजर से होकर गुजरा. कहा जा सकता है कि करीब एक दशक तक श्रीकांत बाल्दी ने खजाने की चाबी संभाली, लेकिन हिमाचल के कर्ज के मर्ज का तोड़ नहीं तलाश पाए. इस समय हिमाचल प्रदेश पर पचास हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. श्रीकांत बाल्दी की गिनती बेशक काबिल अफसरों में होती है, लेकिन कर्ज की बीमारी का माकूल इलाज वे भी नहीं कर पाए.

वर्ष 1985 बैच के आईएएस अफसर डॉ. बाल्दी के पास साढ़े तीन दशक का ब्यूरोक्रेसी का अनुभव है. वित्त विभाग में बाल्दी की पोस्टिंग जुलाई 2011 को हुई थी. उन्होंने आठ बजट पेश करने में अपनी भूमिका अदा की. वे कई महकमों को संभाल चुके हैं और अब उनकी सेवानिवृति के महज चार महीने रहे हैं. बीके अग्रवाल के केंद्र में प्रथम लोकपाल के सचिव के तौर पर नियुक्ति के बाद जयराम सरकार ने उन्हें मुख्य सचिव का पद सौंपा है. वे सीनियोरिटी में सबसे आगे थे. इससे पहले वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सीनियोरिटी को सुपरसीड कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था.

मुख्य सचिव किसे बनाया जाए, ये सरकार की पसंद की बात है. कुछ मुख्यमंत्री सीनियोरिटी के हिसाब से चलते हैं तो कुछ अपनी पसंद के अफसर को मुख्य सचिव बनाते हैं. जहां तक राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधियों की बात की जाए तो प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह, इन दोनों ने ही वित्त महकमे के लिए श्रीकांत बाल्दी को अपनी पसंद बनाया. लेकिन ये भी सच है कि एक दशक में हिमाचल से कर्ज का बोझ कम होना तो दूर, लगातार बढ़ता गया.

हिमाचल में जयराम ठाकुर की अगुवाई वाली सरकार ने सत्ता संभालने के बाद राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर एक प्रेजेंटेशन तैयार करने को कहा था. वित्त विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने तब प्रेजेंटेशन दी. उसके बाद एक समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य की आर्थिक हालत वाकई चिंताजनक हैं.

सरकार पर हिमाचल को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी है और वे नए संसाधन तलाश कर कोई न कोई उपाय सामने लाएंगे. यही नहीं, कैग की रिपोर्ट में हर बार हिमाचल को चेताया जाता है कि वो कर्ज के ट्रैप में फंसता जा रहा है. समय रहते उपाय नहीं किए गए तो आर्थिक रूप से बदहाल होने की नौबत आएगी. अब सवाल यही है कि कई साल से बजट की केंद्रीय भूमिका में होने के बावजूद वित्त मामलों के जानकार आईएएस श्रीकांत बाल्दी क्या सुझाव देते रहे, जो स्थिति काबू में ही नहीं आ पाई.

कर्ज 50 हजार करोड़ पार, संकट में जयराम सरकार
हिमाचल प्रदेश पर 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है. कर्ज का ये मर्ज कोई अभी का नहीं है. हर सरकार के समय में ये कर्ज का बोझ रहा है. आय के नए साधन तलाशने की बजाय राज्य सरकारें बिना बजट के संस्थान खोलने के लिए तत्पर रहती है. वीरभद्र सिंह सरकार के समय 2016 में माननीयों का वेतन बढ़ाया गया. इस बार जयराम सरकार ने माननीयों को निशुल्क यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना कर दिया.

जयराम सरकार ने सत्ता में आने पर कर्मचारियों को आठ फीसदी अंतरिम राहत की घोषणा की. इस घोषणा से सरकार पर सालाना 700 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा. हालात ये हैं कि सरकार को कर्मचारियों के वेतन के लिए भी लोन लेना पड़ा है. सरकार के बजट का 19 हजार करोड़ रुपए सालाना कर्मचारियों व पेंशनर्स के वेतन-भत्तों पर खर्च हो जाता है. इसके अलावा पहले से लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ता है.

कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया यानी कैग की रिपोर्ट में वर्ष 2011-12 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज 40,904 रुपए था, जो 2015-16 में बढक़र 57462 रुपए हो गया. है. इस मामले में हिमाचल का नंबर विशेष दर्जा हासिल राज्यों में सिक्किम व मिजोरम के बाद आता है. लगातार कर्ज लेने से आगामी सात साल में राज्य सरकार को हर हाल में 62 फीसदी कर्ज का ही भुगतान करना होगा. हालात ये हैं कि सरकार ने पूर्व में 2015-16 में जो कर्ज लिया, उसमें से 32 फीसदी रकम पहले से लिए गए कर्ज को चुकाने में लगाई. डॉ. श्रीकांत बाल्दी भी मानते हैं कि हिमाचल की सबसे बड़ी चुनौती कर्ज का मर्ज है. वे पर्यटन, पावर सेक्टर व पारदर्शी खनन के माध्यम से आय के संसाधन जुटाने की बात करते हैं.

धूमल और वीरभद्र सरकार में डॉ. बाल्दी के पास रही खजाने की चाबी, फिर भी बढ़ता गया कर्ज का मर्ज
शिमला। हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने अफसरशाही के मुखिया का पद डॉ. श्रीकांत बाल्दी को सौंपा है। नौकरशाही के नए मुखिया के नाम के आगे बेशक डॉक्टर लगा है, लेकिन हिमाचल के कर्ज का मर्ज ये भी दूर नहीं कर पाए। डॉ. बाल्दी लंबे समय तक हिमाचल में वित्त महकमे को संभालते रहे हैं। वर्ष 2007 में सत्ता में आई प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली सरकार में डॉ. बाल्दी वित्त महकमे के मुखिया थे। तब बजट उन्हीं की देखरेख में लाए गए। उसके बाद दिसंबर 2012 में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। तब भी वित्त विभाग का जिम्मा श्रीकांत बाल्दी के पास ही था और राज्य के बजट उन्हीं की अगुवाई में तैयार हुए। इस दफा हिमाचल में नए चेहरे के साथ राजनीति के नए युग की शुरूआत हुई और जयराम ठाकुर सीएम बने। मजे की बात ये रही कि जयराम सरकार का पहला बजट भी डॉ. श्रीकांत बाल्दी की पैनी नजर से होकर गुजरा। कहा जा सकता है कि करीब एक दशक तक श्रीकांत बाल्दी ने खजाने की चाबी संभाली, लेकिन हिमाचल के कर्ज के मर्ज का तोड़ नहीं तलाश पाए। इस समय हिमाचल प्रदेश पर पचास हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। श्रीकांत बाल्दी की गिनती बेशक काबिल अफसरों में होती है, परंतु कर्ज की बीमारी का माकूल इलाज वे भी नहीं कर पाए। वर्ष 1985 बैच के आईएएस अफसर डॉ. बाल्दी के पास साढ़े तीन दशक का ब्यूरोक्रेसी का अनुभव है। वित्त विभाग में बाल्दी की पोस्टिंग जुलाई 2011 को हुई थी। उन्होंने आठ बजट पेश करने में अपनी भूमिका अदा की। वे कई महकमों को संभाल चुके हैं और अब उनकी सेवानिवृति के महज चार महीने रहे हैं। बीके अग्रवाल के केंद्र में प्रथम लोकपाल के सचिव के तौर पर नियुक्ति के बाद जयराम सरकार ने उन्हें मुख्य सचिव का पद सौंपा है। वे सीनियोरिटी में सबसे आगे थे। इससे पहले वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने सीनियोरिटी को सुपरसीड कर वीसी फारका को मुख्य सचिव बनाया था। मुख्य सचिव किसे बनाया जाए, ये सरकार की पसंद की बात है। कुछ मुख्यमंत्री सीनियोरिटी के हिसाब से चलते हैं तो कुछ अपनी पसंद के अफसर को मुख्य सचिव बनाते हैं। जहां तक राजनीति में एक-दूसरे के धुर विरोधियों की बात की जाए तो प्रेम कुमार धूमल और वीरभद्र सिंह, इन दोनों ने ही वित्त महकमे के लिए श्रीकांत बाल्दी को अपनी पसंद बनाया। लेकिन ये भी सच है कि एक दशक में हिमाचल से कर्ज का बोझ कम होना तो दूर, लगातार बढ़ता गया।
हिमाचल में जयराम ठाकुर की अगुवाई वाली सरकार ने सत्ता संभालने के बाद राज्य की आर्थिक स्थिति को लेकर एक प्रेजेंटेशन तैयार करने को कहा था। वित्त विभाग के तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. श्रीकांत बाल्दी ने तब प्रेजेंटेशन दी। उसके बाद एक समारोह में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि राज्य की आर्थिक हालत वाकई चिंताजनक हैं। सरकार पर हिमाचल को आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की जिम्मेदारी है और वे नए संसाधन तलाश कर कोई न कोई उपाय सामने लाएंगे। यही नहीं, कैग की रिपोर्ट में हर बार हिमाचल को चेताया जाता है कि वो कर्ज के ट्रैप में फंसता जा रहा है। समय रहते उपाय नहीं किए गए तो आर्थिक रूप से बदहाल होने की नौबत आएगी। अब सवाल यही है कि कई साल से बजट की केंद्रीय भूमिका में होने के बावजूद वित्त मामलों के जानकार आईएएस श्रीकांत बाल्दी क्या सुझाव देते रहे, जो स्थिति काबू में ही नहीं आ पाई।
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कर्ज 50 हजार करोड़ पार, संकट में जयराम सरकार
हिमाचल प्रदेश पर 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज हो गया है। कर्ज का ये मर्ज कोई अभी का नहीं है। हर सरकार के समय में ये कर्ज का बोझ रहा है। आय के नए साधन तलाशने की बजाय राज्य सरकारें बिना बजट के संस्थान खोलने के लिए तत्पर रहती है। वीरभद्र सिंह सरकार के समय 2016 में माननीयों का वेतन बढ़ाया गया। इस बार जयराम सरकार ने माननीयों को निशुल्क यात्रा भत्ता चार लाख रुपए सालाना कर दिया। फिर, जयराम सरकार ने सत्ता में आने पर कर्मचारियों को आठ फीसदी अंतरिम राहत की घोषणा की। इस घोषणा से सरकार पर सालाना 700 करोड़ रुपए का बोझ पड़ा। हालात ये हैं कि सरकार को कर्मचारियों के वेतन के लिए भी लोन लेना पड़ा है। सरकार के बजट का 19 हजार करोड़ रुपए सालाना कर्मचारियों व पेंशनर्स के वेतन-भत्तों पर खर्च हो जाता है। इसके अलावा पहले से लिए गए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए भी लोन लेना पड़ता है। कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया यानी कैग की रिपोर्ट में वर्ष 2011-12 में प्रदेश में प्रति व्यक्ति कर्ज 40,904 रुपए था, जो 2015-16 में बढक़र 57462 रुपए हो गया। है। इस मामले में हिमाचल का नंबर विशेष दर्जा हासिल राज्यों में सिक्किम व मिजोरम के बाद आता है। लगातार कर्ज लेने से आगामी सात साल में राज्य सरकार को हर हाल में 62 फीसदी कर्ज का ही भुगतान करना होगा। हालात ये हैं कि सरकार ने पूर्व में 2015-16 में जो कर्ज लिया, उसमें से 32 फीसदी रकम पहले से लिए गए कर्ज को चुकाने में लगाई। डॉ. श्रीकांत बाल्दी भी मानते हैं कि हिमाचल की सबसे बड़ी चुनौती कर्ज का मर्ज है। वे पर्यटन, पावर सेक्टर व पारदर्शी खनन के माध्यम से आय के संसाधन जुटाने की बात करते हैं। 
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