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मिशन रिपीट से पहले सीएम जयराम के राजनीतिक कौशल की परीक्षा लेंगे तीन बाई-इलेक्शन

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Published : Jun 7, 2021, 8:54 PM IST

सरकार का कार्यकाल जब अंतिम पड़ाव में होता है तो एंटी इन्कंबैंसी फैक्टर भी प्रभावी होने लगता है. ठीक ऐसे ही समय में हिमाचल में भाजपा को तीन उपचुनाव झेलने हैं. विधानसभा चुनाव से पहले ये तीन चुनाव जयराम ठाकुर का आगामी राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे. भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि उनकी पार्टी नियमित रूप से सक्रिय रहती है. संगठन के काम साथ-साथ चलते रहते हैं.

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फोटो.

शिमला: हिमाचल भाजपा को अपने मिशन रिपीट के सपने से पहले तीन उपचुनावों से गुजरना होगा. इन बाई इलेक्शन में सीएम जयराम ठाकुर के राजनीतिक कौशल की परीक्षा भी होगी. हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से भाजपा ने कोई उपचुनाव नहीं हारा है.

पच्छाद और धर्मशाला के उपचुनाव में भाजपा को जीत मिली है. यही नहीं, लोकसभा चुनाव में तो चारों सीटों पर भारी मतों से विजयश्री हासिल हुई थी. उस जीत में खास बात ये थी कि भाजपा को सभी 68 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के मुकाबले बढ़त मिली थी. उस समय सरकार का फील गुड समय चला हुआ था, लेकिन इस साल नगर निकाय चुनाव में भाजपा के पैरों तले थोड़ी जमीन खिसकी है.

पालमपुर में लगा झटका

खासकर सोलन व पालमपुर नगर निगम में हार ने भाजपा को जोरदार धक्का दिया है. हिमाचल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले जयराम ठाकुर को उप चुनाव की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. किसी भी सरकार का कार्यकाल जब अंतिम पड़ाव में होता है तो एंटी इन्कंबैंसी फैक्टर भी प्रभावी होने लगता है. ठीक ऐसे ही समय में हिमाचल में भाजपा को तीन उपचुनाव झेलने हैं.

मंडी के सांसद रहे रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद यहां उपचुनाव होना है. इसके अलावा कांगड़ा जिला की फतेहपुर सीट से कांग्रेस विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन से ये सीट खाली है. हाल ही में जुब्बल-कोटखाई से भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा का निधन हुआ है. इस तरह की दुखद परिस्थितियों के बीच हिमाचल में तीन उपचुनाव होने हैं. विधानसभा चुनाव से पहले ये तीन चुनाव जयराम ठाकुर का आगामी राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे.

भाजपा में बड़े बदलाव की अफवाहें

ये सही है कि इन दिनों राजनीतिक फिजाओं में हिमाचल भाजपा में बड़े बदलाव की अफवाहें तैर रही हैं, परंतु इन अफवाहों में खास दम नहीं लग रहा. कारण ये है कि दिल्ली दौरे पर गए सीएम जयराम ठाकुर की जिन भी नेताओं से मुलाकात हुई है, उनके चित्र बता रहे हैं कि सीएम की बॉडी लैंग्वेज कंफर्टेबल है. ये बात अलग है कि आरएसएस की रूटीन कवायद में सरकार के कामकाज की समीक्षा होती है और साथ ही मंत्रियों के काम को भी परखा जाता है.

अब सभी सरकारों में सब कुछ सही नहीं होता है. यही कारण है कि समय-समय पर नेतृत्व परिवर्तन की अफवाह उड़ती रहती है. इससे पहले भी हिमाचल में टॉप कुर्सी बदलने की बात चली थी, जो निराधार साबित हुई. याद रखने वाली बात है कि जब 2017 में विधानसभा चुनाव हुए थे तो अमित शाह ने कहा था कि हिमाचल में आने वाले समय में पंद्रह साल के लिए भाजपा की सरकार चाहिए. तभी विकास की रफ्तार बढ़ेगी. साथ ही जंजैहली में एक रैली में उन्होंने जयराम ठाकुर को बड़ी जिम्मेदारी देने का वादा किया था.

हाईकमान जयराम ठाकुर के नाम पर संतुष्ट

ऐसे में पूर्व निर्धारित रणनीति तो यही कहती है कि हाईकमान जयराम ठाकुर के नाम पर संतुष्ट है. हिमाचल के लिहाज से देखें तो भाजपा के लिए स्थितियां अब पहले जैसी नहीं हैं. कोविड संकट में अर्थ व्यवस्था पटरी से उतरी है. पर्यटन कारोबार से जुड़े लोग सरकार से नाराज हैं. इसके अलावा निजी बस ऑपरेटर्स की नाराजगी भी सामने है. राज्य सरकार को आर्थिक मदद के लिए केंद्र पर निर्भर रहना पड़ रहा है.इन परिस्थितियों के राजनीतिक अर्थ निकालें तो सरकार के लिए मुश्किल का समय है.

कांग्रेस में खींचतान

वहीं, राहत की बात ये है कि कांग्रेस में भी आपसी खींचतान बरकरार है. हाल ही में पोस्टर विवाद ने कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियों को उजागर किया है. कांग्रेस के पास ले-देकर हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नाम पर एकजुट होने का विकल्प रह जाता है और कांग्रेस वही कर भी रही है. यदि उपचुनाव के दौरान भी कांग्रेस में यही सिलसिला जारी रहा तो भाजपा के लिए स्थितियां अनुकूल हो जाएंगी. उपचुनाव में भाजपा के लिए मंडी से उम्मीदवार तय करना पहली मुसीबत है. यहां ब्राह्मण व अन्य समीकरण देखने पड़ रहे हैं. इसी तरह जुब्बल-कोटखाई में भी भाजपा के लिए अब समय कठिन है. कारण ये है कि नरेंद्र बरागटा के निधन से पैदा हुआ खालीपन भरना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

पार्टी नियमित रूप से सक्रिय: सुरेश कश्यप

वहीं, फतेहपुर सीट पहले कांग्रेस के पास थी. भाजपा को यहां भी जीत हासिल करने में पसीना बहाना होगा. यदि पार्टी को उपचुनाव में सफलता मिल गई और तीनों सीटों पर जीत हासिल हुई तो ये आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगी. वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि उनकी पार्टी नियमित रूप से सक्रिय रहती है. संगठन के काम साथ-साथ चलते रहते हैं.

भाजपा बूथ स्तर पर मजबूती पर अधिक फोकस करती है. इसके अलावा संगठन के विभिन्न प्रकोष्ठों की मीटिंग भी समय-समय पर आयोजित की जाती है. कश्यप का कहना है कि पार्टी उपचुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है. उन्होंने दावा किया कि भाजपा काफी पहले से मिशन रिपीट पर काम कर रही है. आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ही सरकार बनाएगी.

सीएम जयराम ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से 25 एनएच का काम जल्द शुरू करने का किया आग्रह

शिमला: हिमाचल भाजपा को अपने मिशन रिपीट के सपने से पहले तीन उपचुनावों से गुजरना होगा. इन बाई इलेक्शन में सीएम जयराम ठाकुर के राजनीतिक कौशल की परीक्षा भी होगी. हिमाचल में जयराम ठाकुर के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद से भाजपा ने कोई उपचुनाव नहीं हारा है.

पच्छाद और धर्मशाला के उपचुनाव में भाजपा को जीत मिली है. यही नहीं, लोकसभा चुनाव में तो चारों सीटों पर भारी मतों से विजयश्री हासिल हुई थी. उस जीत में खास बात ये थी कि भाजपा को सभी 68 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस के मुकाबले बढ़त मिली थी. उस समय सरकार का फील गुड समय चला हुआ था, लेकिन इस साल नगर निकाय चुनाव में भाजपा के पैरों तले थोड़ी जमीन खिसकी है.

पालमपुर में लगा झटका

खासकर सोलन व पालमपुर नगर निगम में हार ने भाजपा को जोरदार धक्का दिया है. हिमाचल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले जयराम ठाकुर को उप चुनाव की कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ेगा. किसी भी सरकार का कार्यकाल जब अंतिम पड़ाव में होता है तो एंटी इन्कंबैंसी फैक्टर भी प्रभावी होने लगता है. ठीक ऐसे ही समय में हिमाचल में भाजपा को तीन उपचुनाव झेलने हैं.

मंडी के सांसद रहे रामस्वरूप शर्मा के निधन के बाद यहां उपचुनाव होना है. इसके अलावा कांगड़ा जिला की फतेहपुर सीट से कांग्रेस विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन से ये सीट खाली है. हाल ही में जुब्बल-कोटखाई से भाजपा विधायक नरेंद्र बरागटा का निधन हुआ है. इस तरह की दुखद परिस्थितियों के बीच हिमाचल में तीन उपचुनाव होने हैं. विधानसभा चुनाव से पहले ये तीन चुनाव जयराम ठाकुर का आगामी राजनीतिक भविष्य भी तय करेंगे.

भाजपा में बड़े बदलाव की अफवाहें

ये सही है कि इन दिनों राजनीतिक फिजाओं में हिमाचल भाजपा में बड़े बदलाव की अफवाहें तैर रही हैं, परंतु इन अफवाहों में खास दम नहीं लग रहा. कारण ये है कि दिल्ली दौरे पर गए सीएम जयराम ठाकुर की जिन भी नेताओं से मुलाकात हुई है, उनके चित्र बता रहे हैं कि सीएम की बॉडी लैंग्वेज कंफर्टेबल है. ये बात अलग है कि आरएसएस की रूटीन कवायद में सरकार के कामकाज की समीक्षा होती है और साथ ही मंत्रियों के काम को भी परखा जाता है.

अब सभी सरकारों में सब कुछ सही नहीं होता है. यही कारण है कि समय-समय पर नेतृत्व परिवर्तन की अफवाह उड़ती रहती है. इससे पहले भी हिमाचल में टॉप कुर्सी बदलने की बात चली थी, जो निराधार साबित हुई. याद रखने वाली बात है कि जब 2017 में विधानसभा चुनाव हुए थे तो अमित शाह ने कहा था कि हिमाचल में आने वाले समय में पंद्रह साल के लिए भाजपा की सरकार चाहिए. तभी विकास की रफ्तार बढ़ेगी. साथ ही जंजैहली में एक रैली में उन्होंने जयराम ठाकुर को बड़ी जिम्मेदारी देने का वादा किया था.

हाईकमान जयराम ठाकुर के नाम पर संतुष्ट

ऐसे में पूर्व निर्धारित रणनीति तो यही कहती है कि हाईकमान जयराम ठाकुर के नाम पर संतुष्ट है. हिमाचल के लिहाज से देखें तो भाजपा के लिए स्थितियां अब पहले जैसी नहीं हैं. कोविड संकट में अर्थ व्यवस्था पटरी से उतरी है. पर्यटन कारोबार से जुड़े लोग सरकार से नाराज हैं. इसके अलावा निजी बस ऑपरेटर्स की नाराजगी भी सामने है. राज्य सरकार को आर्थिक मदद के लिए केंद्र पर निर्भर रहना पड़ रहा है.इन परिस्थितियों के राजनीतिक अर्थ निकालें तो सरकार के लिए मुश्किल का समय है.

कांग्रेस में खींचतान

वहीं, राहत की बात ये है कि कांग्रेस में भी आपसी खींचतान बरकरार है. हाल ही में पोस्टर विवाद ने कांग्रेस की आंतरिक कमजोरियों को उजागर किया है. कांग्रेस के पास ले-देकर हिमाचल में वीरभद्र सिंह के नाम पर एकजुट होने का विकल्प रह जाता है और कांग्रेस वही कर भी रही है. यदि उपचुनाव के दौरान भी कांग्रेस में यही सिलसिला जारी रहा तो भाजपा के लिए स्थितियां अनुकूल हो जाएंगी. उपचुनाव में भाजपा के लिए मंडी से उम्मीदवार तय करना पहली मुसीबत है. यहां ब्राह्मण व अन्य समीकरण देखने पड़ रहे हैं. इसी तरह जुब्बल-कोटखाई में भी भाजपा के लिए अब समय कठिन है. कारण ये है कि नरेंद्र बरागटा के निधन से पैदा हुआ खालीपन भरना पार्टी के लिए आसान नहीं होगा.

पार्टी नियमित रूप से सक्रिय: सुरेश कश्यप

वहीं, फतेहपुर सीट पहले कांग्रेस के पास थी. भाजपा को यहां भी जीत हासिल करने में पसीना बहाना होगा. यदि पार्टी को उपचुनाव में सफलता मिल गई और तीनों सीटों पर जीत हासिल हुई तो ये आने वाले विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए संजीवनी का काम करेगी. वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश कश्यप का कहना है कि उनकी पार्टी नियमित रूप से सक्रिय रहती है. संगठन के काम साथ-साथ चलते रहते हैं.

भाजपा बूथ स्तर पर मजबूती पर अधिक फोकस करती है. इसके अलावा संगठन के विभिन्न प्रकोष्ठों की मीटिंग भी समय-समय पर आयोजित की जाती है. कश्यप का कहना है कि पार्टी उपचुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार है. उन्होंने दावा किया कि भाजपा काफी पहले से मिशन रिपीट पर काम कर रही है. आने वाले विधानसभा चुनाव में भी भाजपा ही सरकार बनाएगी.

सीएम जयराम ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी से 25 एनएच का काम जल्द शुरू करने का किया आग्रह

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