शिमला: शिक्षा विभाग के डिप्टी डायरेक्टर के पद पर कार्यरत (वैज्ञानिक) अजय शर्मा के न्यूटन के तीसरे नियम पर किए जा रहे शोध की महत्वत्ता को समझते हुए उपराष्ट्रपति की ओर से संज्ञान लिया गया है. इसके बाद अपने शोध को लेकर अजय शर्मा की उम्मीद भी बढ़ी है. अजय शर्मा लंबे समय से अपने शोध पर कार्य कर रहे हैं लेकिन उन्हें कुछ एक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था, जिसके चलते वह न्यूटन के तीसरे नियम को गलत साबित करने के लिए प्रयोगशाला की सुविधा दिलवाने की मांग सरकार से कर रहे थे.
अजय शर्मा की ओर से लिखी गई चिट्ठी पर उप राष्ट्रपति कार्यालय ने संज्ञान लिया है. उप राष्ट्रपति सचिवालय ने अजय शर्मा की ओर से की गई अपील को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव को भेजा है. वहीं इसके बारे में कार्यवाही के लिए सचिवालय को भी अवगत करवाने के लिए कहा गया है.
अजय शर्मा का कहना है कि देश विदेश के सभी वैज्ञानिक सहमत हैं कि अभी तक 335 वर्ष पुराने न्यूटन के नियम को पूरी तरह से समझा ही नहीं गया है. न्यूटन का नियम वस्तु के आकार की अनदेखी करता है. इसे भिन्न-भिन्न आकार की वस्तुओं से प्रयोग करने से किया जा सकता है.
इन शर्तों के साथ नहीं जांचा गया न्यूटन का तीसरा नियम
अजय शर्मा का मानना है कि वस्तु के गोल, अर्धगोल, त्रिभुज, शंकु, बहुभुज, लंबी पाइप, फ्लैट और अनियमित आकार के होने पर अभी तक न्यूटन के नियम को नहीं परखा गया है. किसी भी आकार के लिए न्यूटन के नियम को ना परखते हुए सभी आकारों के लिए सही माना जा रहा है, लेकिन ऐसा नहीं है और इसी पर अपना शोध कर रहे हैं, लेकिन इन प्रयोगों पर लगभग एक लाख खर्च होंगे और एक लैब की भी उन्हें जरूरत है, जिसे उपलब्ध करवाने की मांग को सरकार से कर रहे हैं.
सरकार से की ये अपील
अजय शर्मा का कहना है वित्त एवं कारपोरेट मामलों के मंत्री अनुराग ठाकुर भी विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विभाग के मंत्री के समक्ष उनके प्रोजेक्ट को रख चुके हैं, उसके बावजूद भी किसी तरह की मदद ही नहीं मिल पाई है. अजय शर्मा भारत सरकार से वर्षों से प्रार्थना कर रहे हैं कि वह न्यूटन के नियम में संशोधन नामक टॉपिक पर सेमिनार करवाएं ताकि प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाया जा सके. उनका कहना है कि वह 31 मार्च 2021 को अपने पद से सेवानिवृत्त हो रहे हैं और फिर उन्हें इस शोध कार्य को करने में वितीय खर्च में भी कठिनाई उठानी पड़ेगी.
10 लाख रुपये तक की मदद की दरकार
अजय शर्मा का कहना है कि विदेशों में हुई कार्यशालाओं में विदेशी वैज्ञानिक भी उनके शोध को सही मान रहे हैं और वह इसे प्रयोगों से सिद्ध करने की बात कह रहे हैं, लेकिन यह तब तक संभव नहीं है जब तक सरकार उन्हें मदद नहीं देती है. हालांकि प्रदेश सरकार की ओर से भी अजय शर्मा के इस प्रोजेक्ट को विभाग के पास भेजा है. जहां यह प्रोजेक्ट अभी तक विचाराधीन है.
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