शिमला: सेब, किन्नू जैसे फलों के लिए हिमाचल सरकार की मध्यस्थता योजना (एमआईएस) पर संकट मंडरा सकता है. ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्र सरकार ने इसके लिए बजट में भारी कटौती की है. दरअसल मंडी मध्यस्थता योजना के तहत खरीदने जाने वाली फसल का 50 फीसदी भुगतान और बाकी 50 फीसदी राशि राज्य सरकारें वहन करती हैं, लेकिन किसान संगठनों का कहना है कि इस बजट में मात्र 1 लाख रुपए का प्रावधान इसके लिए किया गया है. ऐसे में इस योजना के खत्म होने के आसार बन गए हैं क्योंकि राज्य अपने स्तर पर पूरा भुगतान नहीं कर पाएंगे. किसान संगठन केंद्र सरकार द्वारा मंडी मध्यस्थता योजना के बजट में कटौती कर इसको समाप्त करने की कवायद को देश के किसानों व विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, कश्मीर व उत्तराखंड के सेब किसानों को बड़ा धोखा करार दे रहे हैं.
पिछले बजट में किया था 1550 करोड़ का प्रावधान: संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान और सह संयोजक संजय चौहान ने कहा है कि केंद्र सरकार ने मंडी मध्यस्थता योजना (MIS) के लिए पिछले वर्ष के बजट में 1550 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था और इस वर्ष के बजट में मात्र एक लाख रुपए का ही प्रावधान किया गया है. मंडी मध्यस्थता योजना के तहत सरकार मंडी में किसानों को कम दाम न मिले, इसके लिए देश में उन फसलों की खरीद करती है, जिनको न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) नहीं दिया जाता है. इनमें मुख्यता सेब, किन्नू, संतरा, आलू, प्याज, लहसुन ,बंद गोभी, नारियल, धनियां, मिर्च ,काली मिर्च, लौंग, सरसों आदि फसलों की खरीद की जाती रही है. इसके लिए केंद्र व राज्यों के द्वारा 50:50 प्रतिशत धन उपलब्ध करवाया जाता है.
हिमाचल में 1987-88 में शुरू की गई थी मंडी मध्यस्थता योजना: संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में यह योजना वर्ष 1987-88 से आरंभ की गई और इसके तहत सेब व किन्नू की फसल की खरीद की जाती है. वर्ष 2022 मे हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा करीब 90 करोड़ रुपए के सेब और 10 करोड़ किन्नू खरीद मंडी मध्यस्थता योजना के तहत की गई. हालांकि अभी बागवानों का सरकार के पास करीब 100 करोड़ रुपए का बकाया है. केंद्र व राज्य सरकार इसके लिए 50:50 प्रतिशत के अनुपात में धन उपलब्ध करवाता है, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इसके लिए उपलब्ध बजट को समाप्त करने से प्रदेश के बागवानों को भारी परेशानी होगी.
उन्होंने कहा है कि संयुक्त किसान मंच केंद्र सरकार से मांग करता है कि मंडी मध्यस्थता योजना के बजट में की गई कटौती के निर्णय को तुरंत वापस ले और कम से कम 5000 करोड़ रुपए का प्रावधान इस बजट में करें. अगर सरकार इस मांग पर अमल नहीं करती है तो संयुक्त किसान मंच सभी किसान व बागवान संगठनों को साथ लेकर बड़ा आंदोलन करेगें.
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