शिमला: छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल अपने गठन से पहले रियासतों में बंटा (Royal families in Himachal politics) था. देश में बेशक लोकतंत्र के 75 साल हो गए हैं, लेकिन कई जगह अभी भी राजपरिवार के लोग सत्ता में बने हुए हैं. हिमाचल में चुनाव प्रचार के लिए आए अमित शाह अपनी रैलियों में राजाओं-महाराजाओं के जमाने का जिक्र करते हुए कांग्रेस पर निशाना साध (Amit Shah on Royal families in Himachal election) रहे हैं, लेकिन भाजपा में भी रजवाड़ाशाही है. कुल्लू का राजपरिवार इसका उदाहरण है. खैर, अमित शाह के बयानों के आलोक में हिमाचल की राजनीति में रजवाड़ों की चर्चा दिलचस्प रहेगी.
हिमाचल में इस समय कांग्रेस की अध्यक्ष प्रतिभा सिंह हैं. वे जुन्गा के सेन वंश से संबंध रखती हैं. वीरभद्र सिंह के साथ विवाह के बाद उनका संबंध बुशहर रियासत से जुड़ा. अब वे अपने चाहने वालों के बीच राजमाता के नाम से चर्चित हैं. इसी तरह वीरभद्र सिंह के देहावसान के बाद विक्रमादित्य सिंह की औपचारिक रूप से बुशहर रियासत के मुखिया के तौर पर ताजपोशी हुई है. हिमाचल की राजनीति में सबसे प्रभावशाली राजपरिवार बुशहर रियासत का रहा है. (Virbhadra Singh family).
स्व. वीरभद्र सिंह इस परिवार से जुड़े ऐसे नेता रहे, जिन्होंने राज्य व राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में अपना अलग ही स्थान बनाया. हिमाचल की मंडी लोकसभा सीट की चर्चा करें तो यहां आरंभ से ही राजपरिवारों का दबदबा रहा है. वर्ष 1952 यानी देश के पहले आम चुनाव में मंडी सीट से कपूरथला घराने की रानी अमृत कौर ने चुनाव जीता था. फिर वर्ष 1957 के लोकसभा चुनाव में यहां से सुकेत रियासत के राजा जोगेंद्र सेन ने चुनाव में विजय हासिल की. दिलचस्प बात ये थी कि उनके मुकाबले बिलासपुर के राजपरिवार के राजा आनंद चंद खड़े थे.
इस चुनाव में जोगेंद्र सेन ने राजा आनंद चंद को परास्त किया था. अगले चुनाव में फिर से राजपरिवार से संबंध रखने वाले ललित सेन सांसद बने. उसके बाद मंडी लोकसभा सीट पर बुशहर रियासत के राजा वीरभद्र सिंह का प्रभाव बढ़ा. वर्ष 1971 में वीरभद्र सिंह ने मंडी सीट से चुनाव जीता. इस तरह दो दशक तक इस सीट पर राजपरिवारों की धूम रही. ये भी हैरानी की बात है कि मंडी सीट पर पहली बार गैर राजशाही परिवार वाले ने शाही परिवार को हराया था. ये बात 1977 के चुनाव की है. तब गंगा सिंह ठाकुर ने वीरभद्र सिंह को पराजित कर दिया था. हालांकि 1980 में वीरभद्र सिंह फिर से जीत गए थे. (Royal families in Himachal election).
यहां से वर्ष 1984 का चुनाव फिर ऐसा आया, जिसमें कोई भी प्रत्याशी राजपरिवार से नहीं था. तब पंडित सुखराम ने लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी. उन्होंने भाजपा के मधुकर को पराजित किया. इसी चुनाव में दौरान चंद्रश कुमारी भी कांगड़ा से जीत कर लोकसभा पहुंची. वे भी राजपरिवार से संबंध रखती हैं. अगले चुनाव में फिर से राजशाही का प्रभाव दिखा. कुल्लू के राजपरिवार के महेश्वर सिंह (Maheshwar singh Family kullu) ने मंडी सीट से पंडित सुखराम को हराया. वर्ष 1998 के चुनाव में मंडी से प्रतिभा सिंह को कांग्रेस का टिकट मिला.
प्रतिभा सिंह भी राजपरिवार से हैं. बुशहर रियासत की रानी ने कुल्लू राजपरिवार के नेता महेश्वर सिंह को हराया. फिर वर्ष 1999 में महेश्वर सिंह ने वापसी करते हुए कौल सिंह ठाकुर को पराजित किया. वर्ष 2004 में भी प्रतिभा सिंह ने मंडी से चुनाव जीता. उसके बाद फिर 2009 में फिर वीरभद्र सिंह ने मंडी से चुनाव जीता और मनमोहन सरकार में केंद्रीय मंत्री बने. अब प्रतिभा सिंह फिर से मंडी से सांसद हैं. इस तरह मंडी सीट पर अभी भी राजवंश का प्रतिनिधित्व है. (Himachal election 2022).
हिमाचल के राजपरिवारों से जुड़े नेताओं का जिक्र करें तो कुल्लू के राजपरिवार के ही स्व.कर्ण सिंह मंत्री रहे हैं. चंबा में आशा कुमारी भी राजपरिवार से संबंध रखती हैं और इस बार भी चुनाव में डल्हौजी सीट से प्रत्याशी हैं. चंद्रेश कुमार भी कटोच राजवंश से हैं. प्रतिभा सिंह की निकट संबंधी विजय ज्योति सेन कुसुम्पटी से चुनाव लड़ चुकी हैं. इस बार उन्हें टिकट नहीं मिला है. कसुम्पटी में कांग्रेस के प्रत्याशी अनिरुद्ध सिंह कोटी रियासत से संबंध रखते हैं. वे दो बार से विधायक हैं.
वहीं, सिरमौर के राजपरिवार में अजय बहादुर सिंह भी राजनीति में सक्रिय रहे हैं. जुब्बल में राजपरिवार से योगेंद्र चंद्र चौपाल से चुनाव लड़ते रहे. कुटलैहड़ रियासत से रणजीत सिंह भी विधायक रहे. नालागढ़ के राजा विजयेंद्र सिंह भी चुनाव जीतते रहे. उनकी रानी सुकृति सिंह भी चुनावी सियासत में सक्रिय रहीं. राजपरिवारों की अगली पीढ़ी में विक्रमादित्य सिंह, महेश्वर सिंह के बेटे हितेश्वर सिंह, दानवेंद्र सिंह, कर्ण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह सक्रिय हैं. फिलहाल, लोकतंत्र के इस स्वर्णिम दौर में भी राजशाही किसी न किसी रूप में मौजूद है.
ये भी पढ़ें: राजा, रानी, महाराजाओं का समय गया, लोकतंत्र में कोई राजा नहीं होता: अमित शाह