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बिशप कॉटन स्कूल से पढ़े थे राजा वीरभद्र सिंह, आज भी यादों में दर्ज है रोल नंबर '5359' - Virbhadra Singh

शिमला के बिशप कॉटन स्कूल में आने वाले हर व्यक्ति को वह रजिस्टर खोल कर दिखाया जाता है जिसमें 5359 रोल नंबर के सामने वीरभद्र सिंह का नाम लिखा हुआ है. शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई करने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की. वीरभद्र सिंह हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वीरभद्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा.

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Published : Jul 8, 2021, 3:00 PM IST

Updated : Jul 8, 2021, 6:12 PM IST

शिमलाः बात देश की आजादी के कुछ समय पहले की है. ब्रिटिश शासन काल में ग्रीष्मकालीन राजधानी होने की वजह से शिमला का जलवा कायम था. शिमला स्थित एशिया के सबसे पुराने बिशप कॉटन स्कूल में रामपुर रियासत का राजकुमार पढ़ने आया. देशभर के बड़े परिवारों के बच्चे आम तौर पर इसी स्कूल में पढ़ने आया करते थे, लेकिन उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि इस स्कूल में पढ़ने वाला छात्र एक दिन देश-प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम कमाएगा. वीरभद्र सिंह 6 बार मुख्यमंत्री और 5 बार सांसद बने. वह यूपीए-2 में केंद्रीय इस्पात मंत्री भी रहे.

किसी आम विद्यार्थी की तरह वीरभद्र भी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आज स्कूल आने-जाने वाले हर एक व्यक्ति को वह रजिस्टर खोल कर दिखाया जाता है जिसमें 5359 रोल नंबर के सामने वीरभद्र सिंह का नाम लिखा हुआ है. शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई करने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की. वीरभद्र सिंह हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वीरभद्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा.

शिमला का बिशप कॉटन स्कूल एशिया का सबसे पुराना स्कूल है. यह 28 जुलाई, 1859 को बना था. साल 1905 में स्कूल की बिल्डिंग में आग लग गई. इसके बाद साल 1907 में इसे फिर से बनाया गया. स्कूल अपने आप खुद में कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है. साल 1914 में हुए विश्व युद्ध के शहीदों के नाम भी इस स्कूल में सुरक्षित रखे गए हैं.

22 अक्टूबर 1947 को भारत पाक विभाजन के समय स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए गए थे. इस समय यहां पाकिस्तान के 42 छात्र पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन विभाजन की वजह से इन विद्यार्थियों को स्कूल छोड़ना पड़ा था. अंतिम दिन इरविन हॉल में हुई स्पीच में छात्रों को यह जानकारी दी गई कि विभाजन की वजह से पाकिस्तान के छात्रों को स्कूल छोड़ कर जाना होगा. यहां आखरी बार छात्र एक दूसरे से मिले. इसके बाद पाकिस्तान के छात्र हमेशा के लिए स्कूल छोड़ कर चले गए. साल 1947 से लेकर साल 2009 तक विद्यालय के इरविन हॉल को बंद रखा गया. साल 2009 में इरविन हॉल के दरवाजे जब खोले गए, तब 62 साल पहले स्कूल छोड़कर जाने वाले छात्रों को भी इस में आमंत्रित किया गया था. यह लोग कालका-शिमला टॉय ट्रेन में सवार होकर स्कूल पहुंचे थे.

ये भी पढ़ें: जन-जन के प्यार की पूंजी समेट अनंत सफर पर निकले राजनीति के राजा, यूं ही नहीं कोई हो जाता है वीरभद्र सिंह

शिमलाः बात देश की आजादी के कुछ समय पहले की है. ब्रिटिश शासन काल में ग्रीष्मकालीन राजधानी होने की वजह से शिमला का जलवा कायम था. शिमला स्थित एशिया के सबसे पुराने बिशप कॉटन स्कूल में रामपुर रियासत का राजकुमार पढ़ने आया. देशभर के बड़े परिवारों के बच्चे आम तौर पर इसी स्कूल में पढ़ने आया करते थे, लेकिन उस समय यह किसी ने नहीं सोचा था कि इस स्कूल में पढ़ने वाला छात्र एक दिन देश-प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम कमाएगा. वीरभद्र सिंह 6 बार मुख्यमंत्री और 5 बार सांसद बने. वह यूपीए-2 में केंद्रीय इस्पात मंत्री भी रहे.

किसी आम विद्यार्थी की तरह वीरभद्र भी स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन आज स्कूल आने-जाने वाले हर एक व्यक्ति को वह रजिस्टर खोल कर दिखाया जाता है जिसमें 5359 रोल नंबर के सामने वीरभद्र सिंह का नाम लिखा हुआ है. शिमला के बिशप कॉटन स्कूल से पढ़ाई करने के बाद वीरभद्र सिंह ने दिल्ली के सेंट स्टीफन्स कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की. वीरभद्र सिंह हिस्ट्री के प्रोफेसर बनना चाहते थे, लेकिन लाल बहादुर शास्त्री के कहने पर वीरभद्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा.

शिमला का बिशप कॉटन स्कूल एशिया का सबसे पुराना स्कूल है. यह 28 जुलाई, 1859 को बना था. साल 1905 में स्कूल की बिल्डिंग में आग लग गई. इसके बाद साल 1907 में इसे फिर से बनाया गया. स्कूल अपने आप खुद में कई ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है. साल 1914 में हुए विश्व युद्ध के शहीदों के नाम भी इस स्कूल में सुरक्षित रखे गए हैं.

22 अक्टूबर 1947 को भारत पाक विभाजन के समय स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए गए थे. इस समय यहां पाकिस्तान के 42 छात्र पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन विभाजन की वजह से इन विद्यार्थियों को स्कूल छोड़ना पड़ा था. अंतिम दिन इरविन हॉल में हुई स्पीच में छात्रों को यह जानकारी दी गई कि विभाजन की वजह से पाकिस्तान के छात्रों को स्कूल छोड़ कर जाना होगा. यहां आखरी बार छात्र एक दूसरे से मिले. इसके बाद पाकिस्तान के छात्र हमेशा के लिए स्कूल छोड़ कर चले गए. साल 1947 से लेकर साल 2009 तक विद्यालय के इरविन हॉल को बंद रखा गया. साल 2009 में इरविन हॉल के दरवाजे जब खोले गए, तब 62 साल पहले स्कूल छोड़कर जाने वाले छात्रों को भी इस में आमंत्रित किया गया था. यह लोग कालका-शिमला टॉय ट्रेन में सवार होकर स्कूल पहुंचे थे.

ये भी पढ़ें: जन-जन के प्यार की पूंजी समेट अनंत सफर पर निकले राजनीति के राजा, यूं ही नहीं कोई हो जाता है वीरभद्र सिंह

Last Updated : Jul 8, 2021, 6:12 PM IST
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