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WOMEN'S DAY: 33 वर्षों से महिलाओं के आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं ये महिला, आज तक नहीं की शादी

हिमाचल का किन्नौर व लाहौल स्पिति दो ऐसे जिले हैं जहां आज भी महिलाओं को 21वीं सदी में इस अधिकार से वंचित रखा गया है. इन महिलाओं को यह अधिकार दिलाने का  बीड़ा 67 वर्षीय रतन मंजरी देवी ने उठाया है और पिछले 33 साल से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं.

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Published : Mar 7, 2019, 10:58 PM IST

रतन मंजरी देवी

शिमला: जहां पूरे देश में महिलाओं को पैतृक संपत्ति का अधिकार है लेकिन, हिमाचल का किन्नौर व लाहौल स्पिति दो ऐसे जिले हैं जहां आज भी महिलाओं को 21वीं सदी में इस अधिकार से वंचित रखा गया है. इन महिलाओं को यह अधिकार दिलाने का बीड़ा 67 वर्षीय रतन मंजरी देवी ने उठाया है और पिछले 33 साल से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं.

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रतन मंजरी देवी
महिलाओं के अधिकार का कानून यहां लागू नहीं होने दिया गया. कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन, किन्नौर की महिलाओं का दर्द किसी भी सरकार ने नहीं समझा. इन महिलाओं को यह अधिकार दिलाने का बीड़ा 67 वर्षीय रतन मंजरी देवी ने उठाया है और पिछले 33 साल से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं. 21 साल की आयु में ही मंजरी ने महिलाओं की हालत को देखते हुए इनके सम्मान की जंग शुरू कर दी थी.परिवारों के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू होने के बाद मंजरी को लगा कि उनके क्षेत्र में महिला का नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होता है. यहां तक की छोटा बेटा भी संपत्ति से महरूम रहता है. इसको देखते हुए उन्होंने महिलाओं को सम्मान व अधिकार दिलाने की मन में ठान ली और तब से लेकर ये विभिन्न मंचों के माध्यम से क्षेत्र की महिलाओं को साथ लेकर अधिकार की लड़ाई लड़ रही है.रतन मंजरी का जन्म कर्नल पीएन नेगी के घर पर हुआ था. 67 साल की मंजरी, पांच बार रिब्बा पंचायत की प्रधान रह चुकी हैं और इतनी ही बार जिला परिषद की सदस्य रह चुकी हैं. इन्हें प्रदेश की पहली महिला प्रधान होने का गौरव भी प्राप्त है. रतन मंजरी को महिलाओं के अधिकार दिलाने का इतना जुनून सवार हो गया कि उन्होंने अब तक शादी तक नहीं की.मंजरी स्थानीय विधायक से लेकर देश के राष्ट्रपति तक महिलाओं के पैतृक अधिकार का मामला उठा चुकी हैं आज भी पैतृक अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं. मंजरी का कहना है कि इस लड़ाई को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है और जब तक महिलाओं को अधिकारी नहीं मिल जाते हैं तब तक वे अपनी इस लड़ाई को जारी रखेंगी. मंजरी का कहना है कि किन्नौर में महिलाओं को न तो मायके में और न ही ससुराल में जायदाद में हिस्सा मिलता है. जब बेटी जन्म लेती है तो पिता पर आश्रित रहना पड़ता है और शादी के बाद उसे पति पर निर्भर रहना पड़ता है उनका कहना है कि महिलाओं की इस पीड़ा को उन्होंने नजदीक से देखा है जहां भाई को सम्पति को बेचने का अधिकार है और बहनें खाने के लिए भी मोहताज हैं.मंजरी का कहना है कि आजादी के बाद जहां कई कानूनों में संशोधन किये गए तो फिर जनजातीय क्षेत्र में महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए क्यों नही संशोधन किया जाता है. उन्होंने महिलाओ को अधिकार देने के लिए विधायक मंत्री मुख्यमंत्रियों केंद्र सरकार से भी गुहार लगाई लेकिन, कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और अब सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के अधिकार देने के लिए याचिका दायर की गई है. उनका कहना है कि जब देश के सभी हिस्सों में महिलाओं को अधिकार है तो किन्नौर में क्यों नहीं दिए जाते हैं और अब इस बार लोकसभा चुनावो में जो दल महिलाओं को अधिकार दिलाने वादा घोषणा पत्र में करेगा जिला की सभी महिलाएं उन्हें अपना वोट देंगी और कोई दल उन्हें आश्वासन नहीं देता है तो महिलाएं पूरी तरह से चुनावों का बहिष्कार करेंगी.बता दें कि जनजातीय जिलों किन्नौर लाहौल स्पीति में भू-राजस्व अधिनियम 1954 लागू ही नहीं है. इस कारण यहां की महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं. बाकी सभी कानून जनजातीय क्षेत्र में लागू हैं. केवल भू स्वामित्व के अधिकार से महिलाओं को वंचित रखा गया है. इस कानून के तहत परिवार की संपत्ति बाहर के लोगों को न जाए इसलिए महिला संपत्ति का बंटवारा सिर्फ बेटों में होता है. बेटा न होने पर संपत्ति अपने आप उसके भाई के बेटों में ट्रांसफर हो जाती है.
रतन मंजरी देवी
भारत सरकार और हिमाचल सरकार ने देश प्रदेश की महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए कई कानूनों में संशोधन कर रखा है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि किन्नौर-लाहौल जिला की महिलाओं के साथ अभी तक भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है. यहां महिलाओं को आज भी अपने पिता या ससुराल में सम्पत्ति का अधिकार नहीं है. बेटियों को पैतृक संपत्ति का हिस्सा दिलाना यहां का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है. कहने को तो जहां महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकारी स्तर पर बहुत कुछ हुआ है. पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया हुआ है. लेकिन, किन्नौर जिला में महिलाओं को जरूरी अधिकार तक नहीं दिए जा रहे हैं.

शिमला: जहां पूरे देश में महिलाओं को पैतृक संपत्ति का अधिकार है लेकिन, हिमाचल का किन्नौर व लाहौल स्पिति दो ऐसे जिले हैं जहां आज भी महिलाओं को 21वीं सदी में इस अधिकार से वंचित रखा गया है. इन महिलाओं को यह अधिकार दिलाने का बीड़ा 67 वर्षीय रतन मंजरी देवी ने उठाया है और पिछले 33 साल से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं.

shimla, Rattan Manjari Devi, rights of women
रतन मंजरी देवी
महिलाओं के अधिकार का कानून यहां लागू नहीं होने दिया गया. कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन, किन्नौर की महिलाओं का दर्द किसी भी सरकार ने नहीं समझा. इन महिलाओं को यह अधिकार दिलाने का बीड़ा 67 वर्षीय रतन मंजरी देवी ने उठाया है और पिछले 33 साल से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं. 21 साल की आयु में ही मंजरी ने महिलाओं की हालत को देखते हुए इनके सम्मान की जंग शुरू कर दी थी.परिवारों के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू होने के बाद मंजरी को लगा कि उनके क्षेत्र में महिला का नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं होता है. यहां तक की छोटा बेटा भी संपत्ति से महरूम रहता है. इसको देखते हुए उन्होंने महिलाओं को सम्मान व अधिकार दिलाने की मन में ठान ली और तब से लेकर ये विभिन्न मंचों के माध्यम से क्षेत्र की महिलाओं को साथ लेकर अधिकार की लड़ाई लड़ रही है.रतन मंजरी का जन्म कर्नल पीएन नेगी के घर पर हुआ था. 67 साल की मंजरी, पांच बार रिब्बा पंचायत की प्रधान रह चुकी हैं और इतनी ही बार जिला परिषद की सदस्य रह चुकी हैं. इन्हें प्रदेश की पहली महिला प्रधान होने का गौरव भी प्राप्त है. रतन मंजरी को महिलाओं के अधिकार दिलाने का इतना जुनून सवार हो गया कि उन्होंने अब तक शादी तक नहीं की.मंजरी स्थानीय विधायक से लेकर देश के राष्ट्रपति तक महिलाओं के पैतृक अधिकार का मामला उठा चुकी हैं आज भी पैतृक अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रही हैं. मंजरी का कहना है कि इस लड़ाई को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है और जब तक महिलाओं को अधिकारी नहीं मिल जाते हैं तब तक वे अपनी इस लड़ाई को जारी रखेंगी. मंजरी का कहना है कि किन्नौर में महिलाओं को न तो मायके में और न ही ससुराल में जायदाद में हिस्सा मिलता है. जब बेटी जन्म लेती है तो पिता पर आश्रित रहना पड़ता है और शादी के बाद उसे पति पर निर्भर रहना पड़ता है उनका कहना है कि महिलाओं की इस पीड़ा को उन्होंने नजदीक से देखा है जहां भाई को सम्पति को बेचने का अधिकार है और बहनें खाने के लिए भी मोहताज हैं.मंजरी का कहना है कि आजादी के बाद जहां कई कानूनों में संशोधन किये गए तो फिर जनजातीय क्षेत्र में महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए क्यों नही संशोधन किया जाता है. उन्होंने महिलाओ को अधिकार देने के लिए विधायक मंत्री मुख्यमंत्रियों केंद्र सरकार से भी गुहार लगाई लेकिन, कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई और अब सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के अधिकार देने के लिए याचिका दायर की गई है. उनका कहना है कि जब देश के सभी हिस्सों में महिलाओं को अधिकार है तो किन्नौर में क्यों नहीं दिए जाते हैं और अब इस बार लोकसभा चुनावो में जो दल महिलाओं को अधिकार दिलाने वादा घोषणा पत्र में करेगा जिला की सभी महिलाएं उन्हें अपना वोट देंगी और कोई दल उन्हें आश्वासन नहीं देता है तो महिलाएं पूरी तरह से चुनावों का बहिष्कार करेंगी.बता दें कि जनजातीय जिलों किन्नौर लाहौल स्पीति में भू-राजस्व अधिनियम 1954 लागू ही नहीं है. इस कारण यहां की महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं. बाकी सभी कानून जनजातीय क्षेत्र में लागू हैं. केवल भू स्वामित्व के अधिकार से महिलाओं को वंचित रखा गया है. इस कानून के तहत परिवार की संपत्ति बाहर के लोगों को न जाए इसलिए महिला संपत्ति का बंटवारा सिर्फ बेटों में होता है. बेटा न होने पर संपत्ति अपने आप उसके भाई के बेटों में ट्रांसफर हो जाती है.
रतन मंजरी देवी
भारत सरकार और हिमाचल सरकार ने देश प्रदेश की महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए कई कानूनों में संशोधन कर रखा है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि किन्नौर-लाहौल जिला की महिलाओं के साथ अभी तक भेदभावपूर्ण व्यवहार हो रहा है. यहां महिलाओं को आज भी अपने पिता या ससुराल में सम्पत्ति का अधिकार नहीं है. बेटियों को पैतृक संपत्ति का हिस्सा दिलाना यहां का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है. कहने को तो जहां महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकारी स्तर पर बहुत कुछ हुआ है. पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया हुआ है. लेकिन, किन्नौर जिला में महिलाओं को जरूरी अधिकार तक नहीं दिए जा रहे हैं.
महिला दिवस के लिए 


किन्नौर में 33 वर्षों से महिलाओं के आत्म सम्मान की लड़ाई लड़ रही है रतन मंजरी, आज भी बेटियों को नही है  पैतृक संपत्ति पर दिया जाता है  अधिकार 

शिमला ! जहां पूरे देश में महिलाओं को पैतृक संपत्ति का अधिकार है लेकिन हिमाचल का किन्नौर लाहौल स्पिति दो ऐसे जिले है जहां  आज भी  महिलाओं को इस 21वीं सदी में इस अधिकार से वंचित रखा गया है। महिलाओं के अधिकार का भारत का क़ानून यहाँ लागू नहीं होने दिया गया। कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन किन्नौर की महिलाओं का दर्द किसी भी सरकार ने नहीं समझा । इन महिलाओं को  यह अधिकार दिलाने का  बीड़ा   67 वर्षीय  रतन मंजरी   देवी ने उठाया है और  पिछले 33  साल  से जिला किन्नौर की महिलाओं के आत्मसम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं !  21 साल की आयु में ही मंजरी ने महिलाआें की हालत को देखते हुए इनके सम्मान की जंग शुरू कर दी थी। परिवारों के बंटवारे की प्रक्रिया शुरू होने के बाद मंजरी को लगा कि उनके क्षेत्र में महिला का नाम राजस्व रिकार्ड में दर्ज नहीं होता है। यहां तक की छोटा बेटा भी संपत्ति से महरूम रहता है। इसको देखते हुए  उन्होंने महिलाओं को सम्मान अधिकार दिलाने की मन में ठान ली और तब से लेकर ये  विभिन मंचो के माध्यम से क्षेत्र की महिलाओं को साथ लेकर अधिकारी की लड़ाई लड़ रही है ! 

रतन मंजरी का  जन्म कर्नल पीएन नेगी के घर पर हुआ था।  67  साल की मंजरी, पांच बार रिब्बा पंचायत की प्रधान रह चुकी आैर इतनी ही बार जिला परिषद की सदस्य रह चुकी है। इन्हें प्रदेश की पहली  महिला प्रधान होने का गौरव भी प्राप्त है ! रत्न मंजरी को महिलाओं के अधिकार दिलाने का इतना जनून सवार हो गया की  उन्होंने अब तक शादी तक नहीं की। मंजरी  स्थानीय विधायक से लेकर देश के राष्ट्रपति तक महिलाआें के पैतृक अधिकार का मामला उठा चुकी है आज भी पत्रिक अधिकार दिलाने के लिए लड़ाई लड़  रही है ! 
मंजरी का कहना है कि इस लड़ाई को उन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया है और जब तक महिलाओं को अधिकारी नही मिल जाते है तब तक वे अपनी इस लड़ाई को जारी रखेगे ! 
उनका कहना है कि किन्नौर में महिलाओं को न तो मायके में और न ही ससुराल में  जायदाद में हिस्सा मिलता है ! जब बेटी जन्म लेती है तो  पिता पर आश्रित रहना पढ़ता है और शादी के बाद उसे पति पर निर्भर रहना पड़ता है उनका कहना है की महिलाओं की इस पीड़ा को उनोहने नजदीक से देखा है जहा भाई को  सम्पति को बेचने का अधिकार है और बहन खाने के लिए भी मोहताज है ! आजादी के बाद जहा कई कानूनों में संशोधन किये गए तो फिर जनजातीय क्षेत्र में महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए  क्यों नही संशोधन किया जाता है ! उन्होंने महिलाओ को अधिकार देने के लिए विधायक मंत्री मुख्यमंत्रियों केंद्र सरकार से भी गुहार लगाई लेकिन कही सुनवाई नही हुई और अब सुप्रीम कोर्ट में  महिलाओं के अधिकार देने के लिए याचिका दायर की गई है । उनका कहना है कि जब देश के सभी हिस्सों में महिलाओं को अधिकार है तो किन्नौर में क्यों नही दिए जाते है और अब इस बार लोकसभा चुनावो में जो दल महिलाओं को अधिकार  दिलाने वादा घोषणा पत्र में करेगा जिला की सभी महिलायें  उन्हें अपना वोट देंगी और कोई दल उन्हें आश्वाशन नही देता है तो महिलाएं पूरी तरह से चुनावों का वहिष्कार करेगी ! 
  


 बता दे जनजातीय जिलों किन्नौर लाहौल स्पिति में भू राजस्व अधिनियम 1954 लागू ही नहीं है। इस कारण यहां की महिलाएं खुद को असुरक्षित महसूस कर रही हैं। बाकी सभी कानून जनजातीय क्षेत्र में लागू हैं केवल भू स्वामित्व के अधिकार से महिलाओं को वंचित रखा गया है। इस कानून के तहत परिवार की संपत्ति बाहर के लोगों को न जाए इसलिए महिला संपत्ति का बंटवारा सिर्फ बेटों में होता है। बेटा न होने पर संपत्ति अपने आप उसके भाई के बेटों में ट्रांसफर हो जाती है।   भारत सरकार और हिमाचल सरकार ने देश प्रदेश की महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए कई कानूनों में संशोधन कर रखा है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि किन्नौर-लाहौल जिले की महिलाओं के साथ अभी तक भेदभाव पूर्ण व्यवहार हो रहा है। यहा  महिलाओं को आज भी अपने पिता या ससुराल में सम्पति का अधिकार नही है !  बेटियों को पैतृक संपत्ति का हिस्सा दिलाना यहां का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा है। कहने को तो जहां महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए सरकारी स्तर पर बहुत कुछ हुआ है। पंचायत चुनाव में महिलाओं को 50 फीसदी आरक्षण दिया हुआ है।  लेकिन किन्नौर जिला में महिलाओं को जरूरी अधिकार तक नही दिए जा रहे है ।
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