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Himachal Hati ST Status: सिरमौर के हाटी समुदाय की दशकों पुरानी मांग पूरी, राज्यसभा में पास हुआ जनजातीय दर्जा देने वाला संशोधन बिल, लोगों में खुशी की लहर

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Published : Jul 26, 2023, 4:26 PM IST

Updated : Jul 26, 2023, 8:18 PM IST

हाटी समुदाय के लिए खुशखबरी है. हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़ा संशोधन बिल राज्यसभा में पारित हो गया है. सदन ने ध्वनिमत से संशोधन बिल को पास कर दिया. पढ़ें पूरी खबर... (Himachal Hati ST Status).

Himachal hati Tribal status
सिरमौर के हाटी समुदाय की दशकों पुरानी मांग पूरी
राज्यसभा में पास हुआ हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने वाला संशोधन बिल

शिमला: हिमाचल के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय को छह दशक के संघर्ष के बाद जनजातीय दर्जा मिल गया है. बुधवार को राज्यसभा में हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़ा संशोधन बिल पेश किया गया. बिल पर चर्चा के बाद केंद्रीय ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्टर अर्जुन मुंडा ने चर्चा का जवाब दिया. बाद में सदन ने ध्वनिमत से संशोधन बिल को पास कर दिया. बिल के पास होते ही सदन की कार्यवाही गुरूवार तक के लिए स्थगित कर दी गई. राज्यसभा में बिल पारित होने के बाद हिमाचल के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई. पूर्व विधायक बलदेव तोमर, हाटी संघर्ष समिति के पदाधिकारियों व इलाके के लोगों ने इस पर केंद्र सरकार का आभार जताया.

बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि हिमाचल के हाटी समुदाय की ये मांग दशकों पुरानी थी. किसी भी सरकार ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाटी समुदाय का दर्द समझा. उन्होंने कहा कि 12 से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर दुर्गम इलाकों में बसे इस समुदाय के लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग आगे बढ़ाई थी. दुर्गम इलाकों के लोग राजधानी आकर बार-बार अपनी मांग नहीं रख सकते. उन्होंने हाटी समुदाय के संघर्ष की चर्चा की और कहा कि अब उनको नरेंद्र मोदी सरकार के समय में हक मिलने जा रहा है. मुंडा ने कहा कि हिमाचल में पहले से साढ़े तीन लाख अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं. अब हाटी समुदाय के लोगों को मिलाकर ये संख्या साढ़े पांच लाख के करीब हो जाएगी. उन्होंने कहा कि हिमाचल में अनुसूचित जनजातियों के लोगों की संख्या पहले 8 फीसदी थी, जो बढक़र अब 20 फीसदी के करीब होगी.

इससे पहले चर्चा में शामिल हुए हिमाचल से राज्यसभा सांसद डॉ. सिकंदर कुमार ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में एससी व एसटी समुदाय के हितों की रक्षा हुई है. उन्होंने विपक्ष पर तंज कसा कि जिन दलों ने एससी-एसटी के वोटों पर सत्ता पाई और राज किया, वे इस बिल के समर्थन की बजाय सदन से बाहर चले गए. डॉ. सिकंदर कुमार ने सिरमौर के हाटी समुदाय के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि 1960 के दशक से हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही थी. जौनसार बावर क्षेत्र को ये दर्जा पहले ही मिल चुका है. हिमाचल की 154 पंचायतों के लाखों लोगों की ये मांग थी.

केंद्रीय कैबिनेट ने 14 सितंबर 2022 को इसकी मंजूरी दी थी. लोकसभा से ये बिल 16 दिसंबर 2022 को पारित हुआ. उन्होंने कहा कि हाट में सामान बेचने के कारण इस समुदाय को हाटी कहा जाता है. ये जौनसार बावर के समाज से मिलता जुलता है. जौनसारी समुदाय की आबादी 88 हजार है, लेकिन हाटी समुदाय की आबादी 1.60 लाख के करीब है. उन्होंने जोरदार शब्दों में बिल का समर्थन किया. बिल के समर्थन में भाजपा सांसद डॉ. सुमेर सोलंकी, डॉ. कल्पना सैनी, समीर उरांव, सकलदीप राजभर आदि ने चर्चा की. हिमाचल भाजपा ने बिल पारित होने पर खुशी जताई है और केंद्र सरकार को धन्यवाद किया है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर, सांसद सुरेश कश्यप व अन्य नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी नेतृत्व को इस मांग को पूरा करने का श्रेय दिया है. केंद्रीय हाटी संघर्ष समिति ने इसे हाटी समुदाय के संघर्ष की जीत बताते हुए केंद्र सरकार का आभार जताया है.

ये है मामले की पृष्ठभूमि: हिमाचल प्रदेश का दुर्गम जिला सिरमौर पिछड़ेपन का दंश झेलता आया है. गिरिपार इलाका तो इतना दुर्गम है कि जनता को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लाने के लिए उत्तराखंड के चूड़पुर, विकासनगर, हरियाणा का अंबाला तक जाना पड़ता था. हाट का सामान लाने की इसी कसरत ने गिरिपार इलाके की जनता को हाटी बनाया. वे इन इलाकों में अपने यहां के उत्पाद भी बेचने के लिए ले जाते रहे हैं. इस तरह अपना सामान बेचने और अपनी जरूरत का सामान लाने अथवा हाट करने के लिए जाने वाले लोग हाटी कहलाए.

दशकों तक पिछड़ेपन और विकास से महरूम हाटियों के जख्म पर अब मरहम लगा है. उन्हें जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास योजनाओं के लिए जनजातीय मदों में फंड मिलेगा और आरक्षण की सुविधा भी. एक जैसी परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के जौंसार बावर इलाके को लंबे समय से ये दर्जा मिला हुआ है. इस बार सिरमौर के गिरिपार इलाके के लोगों ने आरपार की लड़ाई ठानी थी. केंद्र के समक्ष भी मजबूती से पक्ष रखा गया और परिणाम सभी के सामने है. उत्तराखंड के अटाल के रहने वाले पदम सम्मान से अलंकृत प्रेमचंद शर्मा ने भी सिरमौर की इस मांग का समर्थन किया था.

हिमाचल और उत्तराखंड इन दोनों पहाड़ी राज्यों की एक जैसी परिस्थितियां हैं. उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका और हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार इलाका. दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी और दोनों इलाकों में बसने वाले लोगों की पीड़ाएं भी एक समान. उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया था. हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी था, लेकिन अब पूरी हुई. हाटी समुदाय ने अपने हक के लिए निरंतर शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन किया. हिमाचल में चुनावी साल में गिरिपार इलाके की तीन लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान था और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत थी कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे. केंद्रीय हाटी समिति के महत्वपूर्ण पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ी गई.

गिरिपार इलाका कैसा है और यहां के हाटी समुदाय की पीड़ा क्या है, इस पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल के पिछड़े जिले सिरमौर का इलाका है गिरिपार. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां विकास परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य मुश्किल हो जाते हैं. यहां के युवा कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं. उन्हें अध्ययन के लिए वैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती. इलाज की व्यवस्था भी आसानी से नहीं होती. ऐसे में गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए, ताकि आरक्षण व अन्य सुविधाएं मिलने से यहां का विकास हो सके. मूल रूप से आंदोलन की यही प्रमुख वजह है. जनजातीय दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास व ट्राइबल इलाके के लिए केंद्रीय योजनाओं का फंड मिल सकेगा. नौकरियों में आरक्षण भी मिलेगा. शिक्षण संस्थान व स्वास्थ्य संस्थानों के निर्माण में गति आएगी. सडक़ों का विस्तार होगा और कृषि उपज मार्केट में आसानी से पहुंचेगी. एक तरह से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके का कायाकल्प होगा. जौनसार बावर इलाका इसकी मिसाल है. वहां के निवासियों के जीवन में जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद सार्थक बदलाव आया है.

हाटी समुदाय के प्रयासों पर नजर डाली जाए तो यहां की जनता ने केंद्रीय हाटी समिति के बैनर तले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई के समक्ष सभी दस्ताजेव पेश किए. इनमें 1979-1980 की अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट, वर्ष 1993 में पेश हिमाचल की सातवीं विधानसभा की याचिका समिति की रिपोर्ट, 1996 में जनजातीय अध्ययन संस्थान शिमला की रिपोर्ट, हिमाचल कैबिनेट और राज्यपाल की तरफ से वर्ष 2016 की रिपोर्ट के साथ ही सितंबर 2021 की ताजा रिपोर्ट ( आरजीआई के सभी बिंदुओं की क्लैरिफिकेशन सहित) शामिल थी.

हाटी आंदोलन में सक्रिय रहे डॉ. रमेश सिंगटा का कहना है कि गिरिपार इलाके विकास के लिए उसे जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना समय की मांग थी. वैसे तो इस हक को काफी पहले ही दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी ये हक मिल गया है तो हाटी समुदाय पिछली पीड़ा भूलने की कोशिश करेगा. ये इलाका शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आता है. शिमला के पूर्व सांसद प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय की मांग को कई मर्तबा प्रभावी तरीके से आरजीआई के समक्ष व संसद में भी उठाया है. मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप का कहना है कि भाजपा ने प्रभावी रूप से इस मांग को उठाया है.

उन्होंने कहा कि पार्टी पूरी तरह से हाटी समुदाय के साथ है. पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस विषय को उठाया था. हाटी समुदाय की अपनी विशिष्ट जनजातीय संस्कृति है. यहां का खानपान, लोक संगीत, लोक परंपराएं अद्भुत हैं. ये परंपराएं पांडव काल से भी जुड़ती हैं. यहां की लोक गायन शैलियों में कई पौराणिक बातों का जिक्र आता है. वहीं, दुर्गम इलाका होने के कारण यहां रोजमर्रा के जीवन का संघर्ष बहुत अधिक था. हाटी समुदाय के लोगों की विशिष्ट पहचान उनका पहनावा भी है. वे लोइया और सुथण पहनते हैं. सिर पर सफेद कश्ती टोपी उनकी खास पहचान है. हाटी समुदाय के लोक व्यंजन भी विशिष्ट हैं. गायन परंपरा अभी भी जीवित है. करीब डेढ़ सौ पंचायतों में फैले हाटी समुदाय के लोगों की संख्या तीन लाख के करीब है.

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राज्यसभा में पास हुआ हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने वाला संशोधन बिल

शिमला: हिमाचल के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय को छह दशक के संघर्ष के बाद जनजातीय दर्जा मिल गया है. बुधवार को राज्यसभा में हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने से जुड़ा संशोधन बिल पेश किया गया. बिल पर चर्चा के बाद केंद्रीय ट्राइबल अफेयर्स मिनिस्टर अर्जुन मुंडा ने चर्चा का जवाब दिया. बाद में सदन ने ध्वनिमत से संशोधन बिल को पास कर दिया. बिल के पास होते ही सदन की कार्यवाही गुरूवार तक के लिए स्थगित कर दी गई. राज्यसभा में बिल पारित होने के बाद हिमाचल के सिरमौर जिला के हाटी समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई. पूर्व विधायक बलदेव तोमर, हाटी संघर्ष समिति के पदाधिकारियों व इलाके के लोगों ने इस पर केंद्र सरकार का आभार जताया.

बिल पर चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि हिमाचल के हाटी समुदाय की ये मांग दशकों पुरानी थी. किसी भी सरकार ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाटी समुदाय का दर्द समझा. उन्होंने कहा कि 12 से 13 हजार फीट की ऊंचाई पर दुर्गम इलाकों में बसे इस समुदाय के लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांग आगे बढ़ाई थी. दुर्गम इलाकों के लोग राजधानी आकर बार-बार अपनी मांग नहीं रख सकते. उन्होंने हाटी समुदाय के संघर्ष की चर्चा की और कहा कि अब उनको नरेंद्र मोदी सरकार के समय में हक मिलने जा रहा है. मुंडा ने कहा कि हिमाचल में पहले से साढ़े तीन लाख अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं. अब हाटी समुदाय के लोगों को मिलाकर ये संख्या साढ़े पांच लाख के करीब हो जाएगी. उन्होंने कहा कि हिमाचल में अनुसूचित जनजातियों के लोगों की संख्या पहले 8 फीसदी थी, जो बढक़र अब 20 फीसदी के करीब होगी.

इससे पहले चर्चा में शामिल हुए हिमाचल से राज्यसभा सांसद डॉ. सिकंदर कुमार ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में एससी व एसटी समुदाय के हितों की रक्षा हुई है. उन्होंने विपक्ष पर तंज कसा कि जिन दलों ने एससी-एसटी के वोटों पर सत्ता पाई और राज किया, वे इस बिल के समर्थन की बजाय सदन से बाहर चले गए. डॉ. सिकंदर कुमार ने सिरमौर के हाटी समुदाय के बारे में चर्चा की. उन्होंने कहा कि 1960 के दशक से हाटी समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की जा रही थी. जौनसार बावर क्षेत्र को ये दर्जा पहले ही मिल चुका है. हिमाचल की 154 पंचायतों के लाखों लोगों की ये मांग थी.

केंद्रीय कैबिनेट ने 14 सितंबर 2022 को इसकी मंजूरी दी थी. लोकसभा से ये बिल 16 दिसंबर 2022 को पारित हुआ. उन्होंने कहा कि हाट में सामान बेचने के कारण इस समुदाय को हाटी कहा जाता है. ये जौनसार बावर के समाज से मिलता जुलता है. जौनसारी समुदाय की आबादी 88 हजार है, लेकिन हाटी समुदाय की आबादी 1.60 लाख के करीब है. उन्होंने जोरदार शब्दों में बिल का समर्थन किया. बिल के समर्थन में भाजपा सांसद डॉ. सुमेर सोलंकी, डॉ. कल्पना सैनी, समीर उरांव, सकलदीप राजभर आदि ने चर्चा की. हिमाचल भाजपा ने बिल पारित होने पर खुशी जताई है और केंद्र सरकार को धन्यवाद किया है. नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर, सांसद सुरेश कश्यप व अन्य नेताओं ने पीएम नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह सहित पार्टी नेतृत्व को इस मांग को पूरा करने का श्रेय दिया है. केंद्रीय हाटी संघर्ष समिति ने इसे हाटी समुदाय के संघर्ष की जीत बताते हुए केंद्र सरकार का आभार जताया है.

ये है मामले की पृष्ठभूमि: हिमाचल प्रदेश का दुर्गम जिला सिरमौर पिछड़ेपन का दंश झेलता आया है. गिरिपार इलाका तो इतना दुर्गम है कि जनता को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान लाने के लिए उत्तराखंड के चूड़पुर, विकासनगर, हरियाणा का अंबाला तक जाना पड़ता था. हाट का सामान लाने की इसी कसरत ने गिरिपार इलाके की जनता को हाटी बनाया. वे इन इलाकों में अपने यहां के उत्पाद भी बेचने के लिए ले जाते रहे हैं. इस तरह अपना सामान बेचने और अपनी जरूरत का सामान लाने अथवा हाट करने के लिए जाने वाले लोग हाटी कहलाए.

दशकों तक पिछड़ेपन और विकास से महरूम हाटियों के जख्म पर अब मरहम लगा है. उन्हें जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास योजनाओं के लिए जनजातीय मदों में फंड मिलेगा और आरक्षण की सुविधा भी. एक जैसी परिस्थितियों वाले उत्तराखंड के जौंसार बावर इलाके को लंबे समय से ये दर्जा मिला हुआ है. इस बार सिरमौर के गिरिपार इलाके के लोगों ने आरपार की लड़ाई ठानी थी. केंद्र के समक्ष भी मजबूती से पक्ष रखा गया और परिणाम सभी के सामने है. उत्तराखंड के अटाल के रहने वाले पदम सम्मान से अलंकृत प्रेमचंद शर्मा ने भी सिरमौर की इस मांग का समर्थन किया था.

हिमाचल और उत्तराखंड इन दोनों पहाड़ी राज्यों की एक जैसी परिस्थितियां हैं. उत्तराखंड का जौनसार बावर इलाका और हिमाचल के सिरमौर जिले का गिरिपार इलाका. दोनों की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी और दोनों इलाकों में बसने वाले लोगों की पीड़ाएं भी एक समान. उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके को साठ के दशक में ही जनजातीय इलाके का दर्जा मिल गया था. हिमाचल की मांग अब तक अनसुनी था, लेकिन अब पूरी हुई. हाटी समुदाय ने अपने हक के लिए निरंतर शांतिपूर्ण और रचनात्मक आंदोलन किया. हिमाचल में चुनावी साल में गिरिपार इलाके की तीन लाख की आबादी को नजर अंदाज करना न तो भाजपा के लिए आसान था और न ही कांग्रेस में इतनी हिम्मत थी कि हाटी आंदोलन की अनदेखी करे. केंद्रीय हाटी समिति के महत्वपूर्ण पदाधिकारी एफसी चौहान कहते हैं कि इस बार आर-पार की लड़ाई लड़ी गई.

गिरिपार इलाका कैसा है और यहां के हाटी समुदाय की पीड़ा क्या है, इस पर चर्चा जरूरी है. हिमाचल के पिछड़े जिले सिरमौर का इलाका है गिरिपार. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां विकास परियोजनाओं से जुड़े निर्माण कार्य मुश्किल हो जाते हैं. यहां के युवा कठिन भौगोलिक परिवेश के कारण कई समस्याओं का सामना करते हैं. उन्हें अध्ययन के लिए वैसी सुविधाएं नहीं मिल पाती. इलाज की व्यवस्था भी आसानी से नहीं होती. ऐसे में गिरिपार इलाके के हाटी समुदाय की मांग है कि उन्हें जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाए, ताकि आरक्षण व अन्य सुविधाएं मिलने से यहां का विकास हो सके. मूल रूप से आंदोलन की यही प्रमुख वजह है. जनजातीय दर्जा मिलने के बाद अब केंद्र से विकास व ट्राइबल इलाके के लिए केंद्रीय योजनाओं का फंड मिल सकेगा. नौकरियों में आरक्षण भी मिलेगा. शिक्षण संस्थान व स्वास्थ्य संस्थानों के निर्माण में गति आएगी. सडक़ों का विस्तार होगा और कृषि उपज मार्केट में आसानी से पहुंचेगी. एक तरह से कठिन भौगोलिक परिस्थितियों वाले इलाके का कायाकल्प होगा. जौनसार बावर इलाका इसकी मिसाल है. वहां के निवासियों के जीवन में जनजातीय का दर्जा मिलने के बाद सार्थक बदलाव आया है.

हाटी समुदाय के प्रयासों पर नजर डाली जाए तो यहां की जनता ने केंद्रीय हाटी समिति के बैनर तले रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया यानी आरजीआई के समक्ष सभी दस्ताजेव पेश किए. इनमें 1979-1980 की अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्ट, वर्ष 1993 में पेश हिमाचल की सातवीं विधानसभा की याचिका समिति की रिपोर्ट, 1996 में जनजातीय अध्ययन संस्थान शिमला की रिपोर्ट, हिमाचल कैबिनेट और राज्यपाल की तरफ से वर्ष 2016 की रिपोर्ट के साथ ही सितंबर 2021 की ताजा रिपोर्ट ( आरजीआई के सभी बिंदुओं की क्लैरिफिकेशन सहित) शामिल थी.

हाटी आंदोलन में सक्रिय रहे डॉ. रमेश सिंगटा का कहना है कि गिरिपार इलाके विकास के लिए उसे जनजातीय क्षेत्र का दर्जा दिया जाना समय की मांग थी. वैसे तो इस हक को काफी पहले ही दिया जाना चाहिए था, लेकिन अब भी ये हक मिल गया है तो हाटी समुदाय पिछली पीड़ा भूलने की कोशिश करेगा. ये इलाका शिमला संसदीय क्षेत्र के तहत आता है. शिमला के पूर्व सांसद प्रोफेसर वीरेंद्र कश्यप का कहना है कि उन्होंने इस समुदाय की मांग को कई मर्तबा प्रभावी तरीके से आरजीआई के समक्ष व संसद में भी उठाया है. मौजूदा सांसद सुरेश कश्यप का कहना है कि भाजपा ने प्रभावी रूप से इस मांग को उठाया है.

उन्होंने कहा कि पार्टी पूरी तरह से हाटी समुदाय के साथ है. पूर्व सीएम जयराम ठाकुर ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय से इस विषय को उठाया था. हाटी समुदाय की अपनी विशिष्ट जनजातीय संस्कृति है. यहां का खानपान, लोक संगीत, लोक परंपराएं अद्भुत हैं. ये परंपराएं पांडव काल से भी जुड़ती हैं. यहां की लोक गायन शैलियों में कई पौराणिक बातों का जिक्र आता है. वहीं, दुर्गम इलाका होने के कारण यहां रोजमर्रा के जीवन का संघर्ष बहुत अधिक था. हाटी समुदाय के लोगों की विशिष्ट पहचान उनका पहनावा भी है. वे लोइया और सुथण पहनते हैं. सिर पर सफेद कश्ती टोपी उनकी खास पहचान है. हाटी समुदाय के लोक व्यंजन भी विशिष्ट हैं. गायन परंपरा अभी भी जीवित है. करीब डेढ़ सौ पंचायतों में फैले हाटी समुदाय के लोगों की संख्या तीन लाख के करीब है.

ये भी पढ़ें- Himachal Hati ST Status: राज्यसभा में पारित हुआ बिल, सिरमौर जिले के हाटी समुदाय की दशकों पुरानी है मांग

Last Updated : Jul 26, 2023, 8:18 PM IST
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