शिमला: प्रदेश की जेलों में अपने जुर्म की सजा काट रहे कैदी अपने सुरक्षित भविष्य के लिए तैयार हो रहे हैं. उनका अब एक ही मकसद है कि सजा खत्म होने के बाद जेलों से निकलकर आत्मनिर्भर बनकर जीवन यापन कर सकें. जेल विभाग की ओर से प्रदेश की जेलों में सजा काट रहे कैदियों को जेलों के अंदर ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे है. कैदी भी विभाग इस पहल में पूरा सहयोग कर रहे हैं.
जेलों में रहकर कई कलाएं सिख रहे कैदी
प्रदेश की जेलों में कैदियों को बिक्री के उत्पादन बनाना सिखाने के साथ ही हथकरघा से कपड़े बुनना, गरम शॉल सहित अन्य कई तरह के उत्पादों के साथ ही कारपेंटर का काम भी सिखाया जा रहा है. वहीं, अब तो बैंबू आर्ट और ज्वेलरी बनाना भी जेलों में कैदियों को सिखाया जा रहा है. इन उत्पादों को बाजारों में बेचकर जो भी आमदनी हो रही है, उसका मेहनताना कैदियों को विभाग की ओर से दिया जा रहा है. इन्हीं पैसों से जेलों के अंदर रहकर भी यह कैदी अपने परिवार का गुजर बसर कर पा रहे हैं.
गेयटी थियेटर में लगाई प्रदर्शनी
इतना ही नहीं इन उत्पादों को बेचने का काम भी इन्हीं कैदियों की ओर से किया जा रहा है. कोई बेकरी उत्पादों के स्टॉल पर तो कोई खड्डी पर बनाई गई अलग-अलग डिजाइन की शॉल के स्टाल पर तो कोई फर्नीचर के स्टॉल पर लोगों को अपने द्वारा बनाए गए उत्पादों की जानकारी देने के साथ ही उसे बेचने का काम ही बखूबी रहे हैं. ऐसा नहीं है कि इनके कोई सपने नहीं थे ओर यह अपने जीवन में कुछ करना नहीं चाहते थे. आंखों में सपने भी थे और अपने सुरक्षित भविष्य के लिए कुछ करना भी चाहते थे, लेकिन जीवन में हुई एक गलती की वजह से उन्हें अपने जीवन के कीमती साल जेल की सलाखों और चारदीवारी के पीछे बिताने को मजबूर होना पड़ रहा है.
युवाओं को नशे से दूर रहने की सलाह
प्रदर्शनी में सेल्समैन का काम कर रहे योगराज ने सोचा था कि फोटोग्राफी सीखकर अपना स्टूडियो चला कर अच्छा काम करेगा, लेकिन एक गलती की वजह से उसके जीवन के 11 साल जेल की सलाखों के पीछे बीते हैं. योगराज को पता नहीं था कि उसके जीवन में इस तरह का मोड़ भी आएगा कि वह अपनी गलती की इतनी बड़ी कीमत चुकाएगा. अब वह अपनी गलती से दूसरे युवाओं को सीख लेने की अपील कर रहा है. उनका कहना है कि युवाओं को नशे से दूर रह कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए मेहनत करनी चाहिए. उनका कहना है कि अब जब उनकी सजा खत्म होगी तो वह जेल से बाहर आकर एक नई शुरुआत करेंगे. सेल्समैन का काम करते हुए लोगों से बात करके उनके अंदर जो आत्मविश्वास आ रहा है, उसी के बल पर वह अपने नए बिजनेस को खड़ा करेंगे.
जेल में सीख रहे कला से परिवार का हो रहा गुजर बसर
इस प्रदर्शनी में आए परसराम जेल में रहकर ही खड्डी पर शॉल बुनने का काम बखुबी कर रहे हैं. 2015 से वह इस काम को कर रहे हैं. उनका कहना है कि अपनी सजा खत्म होने के बाद वह इसी काम को जारी रखेंगे और इसी को अपना व्यवसाय बनाएंगे. उनका कहना है कि मारपीट के मामले में उन्हें जेल हुई और उससे पहले वह अपना सारा समय ऐसे ही व्यतीत कर देते थे, लेकिन कुछ काम नहीं करते थे. अब उनके पास जीवन को जीने का मकसद है. उन्होंने जो इस कला को सीखा है तो उसी से अब उनके परिवार का गुजर बसर हो पा रहा है. जो उत्पाद वह तैयार कर रहे हैं, उन्हें बेचकर उन्हें आमदनी मिल रही है जिससे वह अपने परिवार को भी पैसे भेज रहे हैं. हालांकि उन्हें इस बात का पछतावा है कि अगर वह इस तरह के झगड़ों में नहीं पड़ते तो आज उनका जीवन कुछ और होता और वह अपने जीवन के किसी अच्छे मुकाम पर होते. यही वजह है कि वह दूसरे युवाओं को यही संदेश दे रहे हैं कि युवा जो आजकल नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं, उन्हें इन सबसे दूर रहना चाहिए.
जेल से रहकर सीखे रहे शॉल की बुनाई
वहीं, प्रदर्शनी में आए एक अन्य कैदी पोशु राम ऐसे हैं जो खुद तो कई वर्षों से खड्डी पर शॉल की बुनाई का काम कर ही रहे हैं. साथ ही जेल में अन्य कैदियों को भी इस हुनर में पारंगत कर रहे हैं. उन्होंने इस कला को काफी पहले सीखा था, लेकिन इस काम को जारी नहीं रखा. जब वह जेल में आए तो वहां पर उन्हें इस काम को करने का मौका दिया गया. जेल में उन्हें खड्डी मुहैया करवाई गई जिसके बाद उन्होंने अपना हुनर खड्डी पर दिखाना शुरू किया और अलग-अलग डिजाइन के शॉल बनाना शुरू कर दिया. लोगों को यह शॉल बहुत पसंद आते हैं और जब कभी भी प्रदर्शनी में अपने उत्पाद लेकर आते हैं तो लोग उन्हें बेहद पसंद करते हैं. इसके साथ ही आर्डर पर भी वह अलग अलग तरह की शॉल बनाते हैं जिससे उन्हें जो आमदनी मिलती है वह उसे अपने परिवार को भेजते हैं जिससे कि उनका भी पालन-पोषण हो सके. उनका भी यही मानना है कि अब जेल से बाहर जाकर वह एक आत्मनिर्भर जीवन जी सकते हैं और इसी काम को जारी रखते हुए अपने परिवार का पालन पोषण कर सकते हैं.
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