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वन-पर्यावरण संरक्षण में वरदान साबित हो रही 'विद्यार्थी वन मित्र योजना'

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Published : Feb 23, 2021, 10:25 PM IST

विद्यार्थी वन मित्र योजना के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में 228 स्कूलों के माध्यम से 164.30 हेक्टेयर क्षेत्र में 1,66,830 पौधे रोपे गए तथा वर्ष 2019-20 में 146 स्कूलों के माध्यम से 131.5 हेक्टेयर क्षेत्र में 86,702 पौधे रोपित किए गए हैं. वर्ष 2020-21 में 114 नए विद्यालयों के माध्यम से 106 हेक्टेयर क्षेत्र में 90,500 पौधे लगाए गए हैं. इस योजना के अन्तर्गत ऐसे स्कूलों को लाया जा रहा है जिनमें ईको क्लब गठित है और जिनके आस-पास बंजर वन भूमि उपलब्ध हो.

Vidyarthi Van Mitra Yojana
Vidyarthi Van Mitra Yojana

शिमलाः प्रदेश सरकार की ओर वन विभाग के माध्यम से विद्यार्थी वन मित्र योजना चलाई जा रही है, जिसका उदेश्य स्कूली छात्रों में वनों और पर्यावरण के महत्व को समझाना है. पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के प्रति जागरूक करके उन्हें वनों के संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना है. इस योजना से न केवल भाग लेने वाले विद्यार्थी वन एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होंगे, बल्कि इस संदेश को फैलाने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे.

विद्यार्थियों ने पौधरोपण कर दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

विद्यार्थी वन मित्र योजना के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में 228 स्कूलों के माध्यम से 164.30 हेक्टेयर क्षेत्र में 1,66,830 पौधे रोपे गए तथा वर्ष 2019-20 में 146 स्कूलों के माध्यम से 131.5 हेक्टेयर क्षेत्र में 86,702 पौधे रोपित किए गए हैं. वर्ष 2020-21 में 114 नए विद्यालयों के माध्यम से 106 हेक्टेयर क्षेत्र में 90,500 पौधे लगाए गए हैं. इस योजना के अन्तर्गत ऐसे स्कूलों को लाया जा रहा है जिनमें ईको क्लब गठित है और जिनके आस-पास बंजर वन भूमि उपलब्ध हो. जहां पर स्कूली बच्चे स्थानीय पौधों की प्रजातियां रोपित करके स्वयं इन पौधों की देखभाल कर सकें. योजना के तहत विद्यार्थियों में हरित प्रदेश की भावना जगाने का भी प्रयास किया जा रहा है.

पौधा सूख जाए तो उसके स्थान पर रोपा जाता है दूसरा पौधा

विद्यार्थी वन मित्र योजना में पौधरोपण के लिए भूमि चयन से लेकर पौधे रोपित करने तक के कार्यों में स्कूल प्रशासन व विद्यार्थियों की भूमिका अहम रहती है. पौधरोपण की सूक्ष्म योजना भी स्कूल प्रशासन द्वारा ही तैयार की जाती है, जिसकी स्वीकृति स्थानीय वन मण्डल अधिकारी द्वारा दी जाती है. वन विभाग योजना को तैयार करने और पौधरोपण करने के लिए केवल आवश्यक तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाता है. पौधरोपण क्षेत्र की फेंसिंग, खरपतवार हटाना, पौधे को पानी देना आदि के अतिरक्त यदि कोई पौधा सूख जाए तो उसके स्थान पर दूसरा पौधा लगाने का कार्य भी विद्यार्थियों द्वारा ही किया जाता है. जिससे विद्यार्थी भावनात्मक रूप से उनके द्वारा लगाए गए पौधों से जुड़ जाते हैं. पौधा रोपित भूमि और पौधों पर वन विभाग का ही अधिकार रहता है.

पढ़ें: बीजेपी का गुणगान कर रहे कुछ कांग्रेसी नेताः बंबर ठाकुर

योजना के माध्यम से जहां एक ओर वन विभाग को अपने हरित आवरण को बढ़ाने के लक्ष्य में मदद मिल रही है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों को भी पौधों की जानकारी मिल रही है. विद्यार्थी वनों के महत्व को समझ रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने के साथ-साथ वे अन्य लोगों को भी वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 37,948 वर्ग कि.मी

बढ़ती आबादी, शहरीकरण और अनेक विकास कार्यों के कारण हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. वन, जो कि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं वह भी इस बढ़ते दबाव से अछूते नहीं है. वास्तव में विकासात्मक कार्यों का सबसे अधिक प्रभाव वनों पर ही पड़ा है. हिमाचल प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 37,948 वर्ग कि.मी. है. कुल वन क्षेत्र के 15,433.52 वर्ग किलोमीटर पर ही हरित वन आवरण है. प्रदेश का लगभग 16,376 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र वृक्ष रेखा अथवा ट्री-लाइन से ऊपर है, जो हमेशा बर्फ से ढका रहता है.

हरित वन आवरण को 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का है लक्ष्य

हिमाचल प्रदेश वन विभाग का उद्देश्य प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का भावी पीढ़ियों के लिए प्रभावी प्रबंधन तथा वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के साथ-साथ वनों पर निर्भर समुदायों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं जैसे चारा, बालन, ईमारती लकड़ी, औषधीय पौधों आदि की पूर्ति व आजीविका के साधन उपलब्ध करवाना है. इसके अतिरिक्त वन विभाग का लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्रदेश के हरित वन आवरण को 30 प्रतिशत तक बढ़ाना है. अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वन विभाग को प्रदेश के प्रत्येक वर्ग के सहयोग की आवश्यकता है. प्रदेश की जनता को वनों के महत्व, उनका संरक्षण और विकास के बारे में जानकारी होना आवश्यक है. वनों के संरक्षण में समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा लोगों व वनों के बीच के पारम्परिक बन्धन को मजबूत करने के लिए वन विभाग प्रयासरत है. विभाग द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके माध्यम से लोगों को वन गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है.

ये भी पढ़ें: 24 फरवरी को मंडी आएंगे सीएम जयराम, IIT के 12वें स्थापना दिवस समारोह में होंगे शामिल

शिमलाः प्रदेश सरकार की ओर वन विभाग के माध्यम से विद्यार्थी वन मित्र योजना चलाई जा रही है, जिसका उदेश्य स्कूली छात्रों में वनों और पर्यावरण के महत्व को समझाना है. पौधरोपण और पौधों की सुरक्षा के प्रति जागरूक करके उन्हें वनों के संरक्षण के प्रति संवेदनशील बनाना है. इस योजना से न केवल भाग लेने वाले विद्यार्थी वन एवं पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होंगे, बल्कि इस संदेश को फैलाने के लिए भी एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे.

विद्यार्थियों ने पौधरोपण कर दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

विद्यार्थी वन मित्र योजना के अंतर्गत वर्ष 2018-19 में 228 स्कूलों के माध्यम से 164.30 हेक्टेयर क्षेत्र में 1,66,830 पौधे रोपे गए तथा वर्ष 2019-20 में 146 स्कूलों के माध्यम से 131.5 हेक्टेयर क्षेत्र में 86,702 पौधे रोपित किए गए हैं. वर्ष 2020-21 में 114 नए विद्यालयों के माध्यम से 106 हेक्टेयर क्षेत्र में 90,500 पौधे लगाए गए हैं. इस योजना के अन्तर्गत ऐसे स्कूलों को लाया जा रहा है जिनमें ईको क्लब गठित है और जिनके आस-पास बंजर वन भूमि उपलब्ध हो. जहां पर स्कूली बच्चे स्थानीय पौधों की प्रजातियां रोपित करके स्वयं इन पौधों की देखभाल कर सकें. योजना के तहत विद्यार्थियों में हरित प्रदेश की भावना जगाने का भी प्रयास किया जा रहा है.

पौधा सूख जाए तो उसके स्थान पर रोपा जाता है दूसरा पौधा

विद्यार्थी वन मित्र योजना में पौधरोपण के लिए भूमि चयन से लेकर पौधे रोपित करने तक के कार्यों में स्कूल प्रशासन व विद्यार्थियों की भूमिका अहम रहती है. पौधरोपण की सूक्ष्म योजना भी स्कूल प्रशासन द्वारा ही तैयार की जाती है, जिसकी स्वीकृति स्थानीय वन मण्डल अधिकारी द्वारा दी जाती है. वन विभाग योजना को तैयार करने और पौधरोपण करने के लिए केवल आवश्यक तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाता है. पौधरोपण क्षेत्र की फेंसिंग, खरपतवार हटाना, पौधे को पानी देना आदि के अतिरक्त यदि कोई पौधा सूख जाए तो उसके स्थान पर दूसरा पौधा लगाने का कार्य भी विद्यार्थियों द्वारा ही किया जाता है. जिससे विद्यार्थी भावनात्मक रूप से उनके द्वारा लगाए गए पौधों से जुड़ जाते हैं. पौधा रोपित भूमि और पौधों पर वन विभाग का ही अधिकार रहता है.

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योजना के माध्यम से जहां एक ओर वन विभाग को अपने हरित आवरण को बढ़ाने के लक्ष्य में मदद मिल रही है, वहीं दूसरी ओर विद्यार्थियों को भी पौधों की जानकारी मिल रही है. विद्यार्थी वनों के महत्व को समझ रहे हैं और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होने के साथ-साथ वे अन्य लोगों को भी वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 37,948 वर्ग कि.मी

बढ़ती आबादी, शहरीकरण और अनेक विकास कार्यों के कारण हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. वन, जो कि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं वह भी इस बढ़ते दबाव से अछूते नहीं है. वास्तव में विकासात्मक कार्यों का सबसे अधिक प्रभाव वनों पर ही पड़ा है. हिमाचल प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 37,948 वर्ग कि.मी. है. कुल वन क्षेत्र के 15,433.52 वर्ग किलोमीटर पर ही हरित वन आवरण है. प्रदेश का लगभग 16,376 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र वृक्ष रेखा अथवा ट्री-लाइन से ऊपर है, जो हमेशा बर्फ से ढका रहता है.

हरित वन आवरण को 30 प्रतिशत तक बढ़ाने का है लक्ष्य

हिमाचल प्रदेश वन विभाग का उद्देश्य प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों का भावी पीढ़ियों के लिए प्रभावी प्रबंधन तथा वनों और वन्य जीवों के संरक्षण के साथ-साथ वनों पर निर्भर समुदायों की प्रतिदिन की आवश्यकताओं जैसे चारा, बालन, ईमारती लकड़ी, औषधीय पौधों आदि की पूर्ति व आजीविका के साधन उपलब्ध करवाना है. इसके अतिरिक्त वन विभाग का लक्ष्य वर्ष 2030 तक प्रदेश के हरित वन आवरण को 30 प्रतिशत तक बढ़ाना है. अपने इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए वन विभाग को प्रदेश के प्रत्येक वर्ग के सहयोग की आवश्यकता है. प्रदेश की जनता को वनों के महत्व, उनका संरक्षण और विकास के बारे में जानकारी होना आवश्यक है. वनों के संरक्षण में समाज के प्रत्येक वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करने तथा लोगों व वनों के बीच के पारम्परिक बन्धन को मजबूत करने के लिए वन विभाग प्रयासरत है. विभाग द्वारा अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिनके माध्यम से लोगों को वन गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है.

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