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अग्नि के लिए देवताओं और असुरों के बीच हुआ था भंयकर युद्ध ! जीत की खुशी आज भी जश्न मनाते हैं लोग

निरमंड निवासी इतीहासकार दीपक शर्मा ने बताई बूढ़ी दिवाली मनाने के पीछे की कहानी. हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में प्रचीनकाल से मनाई जा रही है बूढ़ी दिवाली.

old age tradition of buddhi diwali in shimla
old age tradition of buddhi diwali in shimla
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Published : Nov 27, 2019, 6:33 PM IST

Updated : Nov 27, 2019, 8:36 PM IST

शिमलाः हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों से रात के समय बाहर निकल कर एक स्थान पर इक्ट्ठा होते हैं और आग जलाकर रामायण व महाभारत का गान करते हैं.

वहीं, इस बारे में निरमंड निवासी इतिहासकार दीपक शर्मा ने बताया कि निरमंड में बूढ़ी दिवाली के मौके पर मेला भी लगाया जाता है. इस मेले को असुरों को भगाने और क्षेत्र में शांति लाने के लिए मनाया जाता है.

वीडियो.

दीपक शर्मा का ने बताया कि प्रजापती पुत्र वृत्रासुर ने जल और अग्नि पर कब्जा कर लिया था. इससे ऋष्टि पर संकट छा गया था. देवताओं ने पानी तो प्राप्त कर लिया था, लेकिन अग्नि को प्राप्त करने के लिए देव और दानव के बीच अग्नि के लिए कड़ा संघर्ष हुआ था.

दीपक शर्मा ने बताया कि संघर्ष में दानव हार गए और वृत्रासुर के दो दैत्य मित्र मैदान छोड़ कर भाग गए थे. कहीं गांव में छिप जाते हैं. दैत्यों को भगाने के बाद देव सेना अग्नि के चारों तरफ नाचते हैं और आग पर अपना कब्जा कर लेती है.

शिमलाः हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग अपने घरों से रात के समय बाहर निकल कर एक स्थान पर इक्ट्ठा होते हैं और आग जलाकर रामायण व महाभारत का गान करते हैं.

वहीं, इस बारे में निरमंड निवासी इतिहासकार दीपक शर्मा ने बताया कि निरमंड में बूढ़ी दिवाली के मौके पर मेला भी लगाया जाता है. इस मेले को असुरों को भगाने और क्षेत्र में शांति लाने के लिए मनाया जाता है.

वीडियो.

दीपक शर्मा का ने बताया कि प्रजापती पुत्र वृत्रासुर ने जल और अग्नि पर कब्जा कर लिया था. इससे ऋष्टि पर संकट छा गया था. देवताओं ने पानी तो प्राप्त कर लिया था, लेकिन अग्नि को प्राप्त करने के लिए देव और दानव के बीच अग्नि के लिए कड़ा संघर्ष हुआ था.

दीपक शर्मा ने बताया कि संघर्ष में दानव हार गए और वृत्रासुर के दो दैत्य मित्र मैदान छोड़ कर भाग गए थे. कहीं गांव में छिप जाते हैं. दैत्यों को भगाने के बाद देव सेना अग्नि के चारों तरफ नाचते हैं और आग पर अपना कब्जा कर लेती है.

Intro:रामपुर Body:

हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में बुड़ी दिवाली नाम के त्यौहार को बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों से रात के समय बहार निकल कर एक स्थान पर इकठा हो जाते है और वहां पर मिल कर आग जलाते है और रामायण व महाभारत का गान करते है।
वहीं इस बारे में निरमंड निवासी इतीहासकार दीपक शर्मा का ने बताया कि निरमंड में भी इसी तरह से बुड़ी दिवाली मेला मनाया जाता है। इस मेले में सुरों को भगाने का कार्य व क्षेत्र में शांती लाने के लिए लोग इस मेले को मनाते है। यह मेला प्रचीन काल से मनाया जा रहा है।
उन्होंने बताया कि त्वष्टा प्रजापती पुत्र वृतरासुर ने जल व अगनी पर कब्जा कर दिया था। इससे सृष्टी पर संकट छा गया था। नदियों का पानी सुख गया था। अग्नी को उसने अपने कब्जे में ले लिया था। पानी तो प्राप्त कर लिया गया था लेकिन अग्नी को प्राप्त करने के लिए देव व दानव के बीच अग्नी के लिए कड़ा संघर्ष किया । रात के समय

इसी कारण आज भी मशाल जलाई जाती है और दो गुटों के लोग आपस में मशाल को छीनने के लिए छीना - झपटी करते है।
दिपक शर्मा ने बताया कि जो दिवाली अभी मनाई जाती है मार्गशीर्ष की आमावस्या की रात्रि को मनाई जाती है। उन्होंने बताया कि उस समय इस संघर्ष में दानव हार जाते है और वृतरासुर के दो दैत्य मित्र मैदान छोड़ कर भाग जाते है और कही गांव में छीप जाते है। दैत्यों को भगाने के बाद देव सैना आग्नी के चारों तरफ नाचती है और आग पर अपना कब्जा कर लेती है।


दुसरे दिन रसी से बाध कर उन्हें देव सेना लाती है और छल से काट देते है ।

देवरााज इन्पद्र की की सैना काटते है। इसके बाद दैत्य वंश समाप्त कर दिया जाता है और अग्नी देवताओं के पास आ जाती है और सृष्टी का काम फिर से चलता है।
Conclusion:
Last Updated : Nov 27, 2019, 8:36 PM IST
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