शिमला : देश की एप्पल स्टेट हिमाचल प्रदेश में सेब को ओलों से बचाने के लिए सरकार ने अपने स्तर पर एक भी एंटी -हेल गन नहीं लगाई(anti hail gun in Himachal) है.राज्य के बागवानों ने अपने दम पर पांच गन स्थापित की. एक एंटी -हेल गन डेढ़ करोड़ रुपए कीमत की है. ये गन विदेश से मंगवानी पड़ती है. शिमला जिले में प्रदेश के कुल सेब उत्पादन का अस्सी फीसदी होता है. यहां ओलों से हर साल करोड़ों रुपए का सेब नष्ट हो जाता है. ओलों से सेब को बचाने के लिए एंटी -हेल गन कारगार साबित होती है. हिमाचल में केवल शिमला जिले में पांच स्थानों पर बागवानों ने ये गन स्थापित की है. शिमला जिले के दशोली, बागी, रतनाड़ी, कलबोग व महासू में ये गन लगाई गई है. सबसे पहले रतनाड़ी गांव के बागवानों ने ये गन स्थापित की थी.
उन्होंने डेढ़ करोड़ रुपए में एंटी -हेल गन खरीदी थी. मौजूदा विधानसभा सत्र में जुब्बल-कोटखाई के विधायक रोहित ठाकुर ने सवाल किया था कि क्या सरकार इन गनों को अपने अधीन लेने का विचार रखती है. इस पर सरकार की तरफ से जवाब दिया गया कि ऐसा कोई विचार (no anti hell gun in himachal)नहीं है. विदेश में बनने वाली एंटी -हेल गन महंगी होती है. इसकी कीमत स्पेसिफिकेशन के आधार पर डेढ़ से तीन करोड़ रुपए तक होती है.ओलों से बचाव में गन की अहमियत देखते हुए सरकार स्वदेशी एंटी -हेल गन विकसित करने में जुटी है. आईआईटी मुंबई व सोलन की डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मिलकर स्वदेशी एंटी -हेल गन तैयार कर रहे हैं.
स्वदेशी तकनीक से बनी गन सस्ती होगी और फिर प्रदेश में अधिक से अधिक स्थानों पर इसे स्थापित किया जा सकेगा. अभी ये प्रोजेक्ट आरंभिक चरण में है. ट्रायल के लिए पहले गन को आठ से दस स्थानों पर स्थापित किया जाएगा.नौणी स्थित डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हार्टीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री के पर्यावरण विभाग से जुड़े डॉ. एसके भारद्वाज के अनुसार हवाई जहाज के गैस टर्बाइन इंजन और मिसाइल के रॉकेट इंजन की तर्ज पर स्वदेशी तकनीक वाली गन में प्लस डेटोनेशन इंजन का इस्तेमाल किया गया है.
इसमें एलपीजी और हवा के मिश्रण को हल्के विस्फोट के साथ आसमान में फायर किया जाता है. इस हल्के से विस्फोट के कारण एक शॉक वेव तैयार होती है. यह शॉक वेव एंटी -हेल गन के माध्यम से वायुमंडल में जाती और बादलों के अंदर का लोकल टेंपरेचर बढ़ा देती है. इससे ओला बनने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है. गन को लगाने के साथ ही इस तकनीक का शुरुआती खर्च करीब दस लाख होगा. बाद में प्रयोग के दौरान केवल एलपीजी गैस पर ही खर्च होगा. इस तरह विदेशी गन के मुकाबले ये बहुत अधिक किफायती साबित होगी.
इस गन के प्रयोग से न केवल सेब की फसल को ओलों से बचाया जा सकेगा, वरन बेमौसमी सब्जियों को भी सुरक्षित किया जा सकेगा. वैसे हिमाचल प्रदेश में बागवान सेब को ओलों से बचाने के लिए एंटीहेल नेट का प्रयोग करते हैं, लेकिन जब भारी ओलावृष्टि होती है तो ये नेट भी काम नहीं आते. हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल की सरकार के समय में एंटीहेल गन स्थापित करने की बात चली थी.
बाद में वर्ष 2012 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई और उसने इस कंसेप्ट को हिमाचल के लिए कारगर नहीं मानते हुए खारिज कर दिया था. बाद में ऊपरी शिमला की कोटखाई तहसील की बाघी और रतनाड़ी पंचायतों के बागवानों ने खुद पहल की और न्यूजीलैंड से डेढ़ करोड़ रुपए की लागत वाली एंटी हेल गन ले आए.
एंटी -हेल गन ओलों के गिरने की संभावना को खत्म करती है. मौसम का मिजाज देखते हुए जब ऐसा प्रतीत हो कि ओले गिर सकते हैं, तो गन चलाई जाती है. यह धमाके के साथ बादलों की इकठ्ठा होने की प्रवृति को रोकती है.
यदि बादल बरसने को तैयार हो रहा हो तो धमाके के बाद छंट जाता है.पहली बार एंटी -हेल गन बनाने वाले न्यूजीलैंड के माइक ईगर ने ही आकर इसे रतनाड़ी पंचायत में स्थापित किया और बागवानों को इसे चलाने की ट्रेनिंग भी दी थी. बाघी और रतनाड़ी इलाका ओलावृष्टि के लिहाज से संवेदनशील है. प्रगतिशील बागवान पंकज डोगरा का कहना है कि एंटी -हेल गन समय की मांग है.ओलों से बचाव में ये कारगर साबित होती है.
हिमाचल सरकार के बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह का कहना है कि सेब व अन्य फलों को ओलों से बचाने के लिए स्वदेशी तकनीक पर एंटी -हेल गन बनाई जा रही है. विदेशी गन महंगी पड़ती है. ऐसे में बागवानों के लिए भी और सरकार के लिए भी स्वदेशी गन अधिक उपयुक्त है.अभी ये प्रक्रिया ट्रायल के दौर में है.ट्रायल सफल होने पर प्रदेश में गन स्थापित करने की दिशा में तेजी से काम किया जाएगा.
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