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मजदूर दिवस : किताबें पढ़ने की उम्र में मिट्टी ढो रहे प्रवासी मजदूरों के बच्चों

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Published : May 2, 2020, 12:25 AM IST

पूरा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा है. वहीं, आज मजदूर दिवस है. ऐसे में भी मजदूर अपने घर पर खाली नहीं बैठा है. साथ ही स्कूल बंद होने से मजदूरों के बच्चे भी घर में रह कर अपने परिजनों का हाथ बंटा रहे हैं. किताबें पढ़नें की उम्र में ये बच्चे मिट्टी ढो रहे हैं.

migrant laborers children  in theog
प्रवासी मजदूर बच्चे

ठियोग/शिमला: कोरोना बीमारी के चलते पूरे विश्व में मजदूरों की हालत इन दिनों बेहद बदतर हो गई है. इस बीमारी से बचाव करने के एहतियात बरतने के चलते कोई भी काम नहीं हो पा रहा है. इसके चलते मजदूर तबका बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर हैं.

पूरा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा है. वहीं, आज मजदूर दिवस है. ऐसे में भी मजदूर अपने घर पर खाली नहीं बैठा है. साथ ही स्कूल बंद होने से मजदूरों के बच्चे भी घर में रह कर अपने परिजनों का हाथ बंटा रहे हैं. किताबें थामने की उम्र में ये बच्चे मिट्टी ढो रहे हैं.

ऊपरी शिमला के प्रवेश द्वार ठियोग में कुछ ऐसे ही परिवार है. ये मजदूर परिवार सड़क किनारे बिना कोरोना के भय के जीवन यापन कर रहे हैं. एक ओर जहां बच्चों को डिजिटल शिक्षा स्मार्ट फोन के जरिये दी जा रही है. वहीं, मजदूरों के बच्चे डिजिटल दुनिया से दूर अपने पारंपरिक पेशे को निभाते हुए आशियाना बनाने में जुटे हैं.

Children of migrant laborers work
प्रवासी मजदूरों के बच्चे काम करते हुए

इन बहादुर बच्चों की शिक्षा सबसे बड़ी सीख देने वाली है. ये प्रवासी मजदूरों के बच्चे अपने माता-पिता के घर को बनाने में सहयोग दे रहे हैं. सुबह शहर भर का कूड़ा उठाने के बाद ये अपनी झुग्गी के लिए मिट्टी ढो रहे हैं, जिससे उनके सोने की जगह में मच्छर और पानी न आ जाए.

वहीं, शहर का कूड़ा उठाने वाले ये प्रवासी मजदूर परिवार कोरोना संकट के समय में बाहर खुले में रहने को मजबूर है. इस मजदूर परिवार में 11 लोग कूड़े उठाने का काम करते हैं. एक ओर जहां प्रशासन और समाजसेवी संस्थाएं लॉक डाउन के दौरान जरूरतमंदों की मदद का दावा करते हैं. ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों को मास्क लगाने और मास्क बांटने की फुरसत नहीं है. ये लोग सबसे ज्यादा सड़कों पर आने जाने वाले वाहनों और लोगों के संपर्क में आते हैं, जिससे इनको बीमारी फैलने का खतरा भी ज्यादा रहता है.

कालका से रोजगार की तलाश में आए ये प्रवासी परिवार कोरोना से नहीं डरते. इन लोगों का कहना है कि माता रानी की कृपा पर सब छोड़ रखा है. बीमारी आने पर भी क्या हो जाएगा. मरना तो एक दिन सबको है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल में 3 दिन होगी भारी बारिश और ओलावृष्टि, येलो अलर्ट जारी

ठियोग/शिमला: कोरोना बीमारी के चलते पूरे विश्व में मजदूरों की हालत इन दिनों बेहद बदतर हो गई है. इस बीमारी से बचाव करने के एहतियात बरतने के चलते कोई भी काम नहीं हो पा रहा है. इसके चलते मजदूर तबका बदहाली के आंसू बहाने को मजबूर हैं.

पूरा देश कोरोना वायरस से जूझ रहा है. वहीं, आज मजदूर दिवस है. ऐसे में भी मजदूर अपने घर पर खाली नहीं बैठा है. साथ ही स्कूल बंद होने से मजदूरों के बच्चे भी घर में रह कर अपने परिजनों का हाथ बंटा रहे हैं. किताबें थामने की उम्र में ये बच्चे मिट्टी ढो रहे हैं.

ऊपरी शिमला के प्रवेश द्वार ठियोग में कुछ ऐसे ही परिवार है. ये मजदूर परिवार सड़क किनारे बिना कोरोना के भय के जीवन यापन कर रहे हैं. एक ओर जहां बच्चों को डिजिटल शिक्षा स्मार्ट फोन के जरिये दी जा रही है. वहीं, मजदूरों के बच्चे डिजिटल दुनिया से दूर अपने पारंपरिक पेशे को निभाते हुए आशियाना बनाने में जुटे हैं.

Children of migrant laborers work
प्रवासी मजदूरों के बच्चे काम करते हुए

इन बहादुर बच्चों की शिक्षा सबसे बड़ी सीख देने वाली है. ये प्रवासी मजदूरों के बच्चे अपने माता-पिता के घर को बनाने में सहयोग दे रहे हैं. सुबह शहर भर का कूड़ा उठाने के बाद ये अपनी झुग्गी के लिए मिट्टी ढो रहे हैं, जिससे उनके सोने की जगह में मच्छर और पानी न आ जाए.

वहीं, शहर का कूड़ा उठाने वाले ये प्रवासी मजदूर परिवार कोरोना संकट के समय में बाहर खुले में रहने को मजबूर है. इस मजदूर परिवार में 11 लोग कूड़े उठाने का काम करते हैं. एक ओर जहां प्रशासन और समाजसेवी संस्थाएं लॉक डाउन के दौरान जरूरतमंदों की मदद का दावा करते हैं. ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों को मास्क लगाने और मास्क बांटने की फुरसत नहीं है. ये लोग सबसे ज्यादा सड़कों पर आने जाने वाले वाहनों और लोगों के संपर्क में आते हैं, जिससे इनको बीमारी फैलने का खतरा भी ज्यादा रहता है.

कालका से रोजगार की तलाश में आए ये प्रवासी परिवार कोरोना से नहीं डरते. इन लोगों का कहना है कि माता रानी की कृपा पर सब छोड़ रखा है. बीमारी आने पर भी क्या हो जाएगा. मरना तो एक दिन सबको है.

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