शिमला: अडानी समूह को अपफ्रंट मनी के 280 करोड़ रुपए ब्याज सहित लौटाने से जुड़े मामले में अंतिम सुनवाई 20 जून को होगी. हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ के समक्ष इस मामले में राज्य सरकार और अडानी समूह की तरफ से दाखिल की गई अपीलों पर सुनवाई हुई. खंडपीठ ने अब इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 20 जून को लिस्ट किया है.
ब्याज सहित लौटाने के आदेश जारी किया था: इससे पूर्व हाईकोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार को जंगी-थोपन-पोवारी पावर प्रोजेक्ट के लिए अडानी समूह की तरफ से जमा करवाई गई 280 करोड़ रुपए की अपफ्रंट मनी को ब्याज सहित लौटाने के आदेश जारी किए थे. बाद में मामला डबल बेंच के पास आया, जब एकल पीठ ने आदेश जारी किया तो राज्य सरकार ने फैसले को लेकर अपील करने में देरी कर दी. इस तरह राज्य सरकार को हाईकोर्ट में अपील दाखिल करने में हुई देरी पर माफी संबंधी अर्जी भी देनी पड़ी थी.
रोक लगाने से इंकार किया था: उसी दौरान राज्य सरकार ने रकम वापसी के आदेशों पर रोक लगाने की गुहार भी लगाई थी, परंतु अदालत ने एकल पीठ के आदेशों पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था. पूर्व में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 12 अप्रैल 2022 को जारी फैसले में सरकार को आदेश दिए थे कि वह 4 सितंबर 2015 को वीरभद्र सिंह सरकार की कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के अनुसार दो महीने की अवधि में अडानी समूह को अपफ्रंट मनी की यह राशि वापस करें.
रिट याचिका की थी दायर: एकल पीठ ने यह आदेश अडानी पावर लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर पारित किये थे. एकल पीठ ने तब ये भी कहा था कि यदि सरकार यह राशि दो माह के भीतर प्रार्थी कंपनी को वापिस करने में विफल रहती है तो उसे 9 फीसदी सालाना ब्याज सहित यह रकम अदा करनी होगी. इस फैसले को सरकार ने अपील के माध्यम से खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी है. कंपनी ने विशेष सचिव (विद्युत) के 7 दिसंबर 2017 को जारी पत्राचार को हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर कर चुनौती दी थी.कंपनी की याचिका को स्वीकारते हुए 7 दिसम्बर 2017 को जारी आदेश को रद्द करते हुए एकल पीठ ने कहा था कि जब पूर्व की कांग्रेस सरकार के दौरान कैबिनेट ने 4 सितंबर 2015 को प्रशासनिक विभाग द्वारा तैयार किए गए विस्तृत कैबिनेट नोट पर ध्यान देने के बाद स्वयं ही यह राशि वापस करने का निर्णय लिया था तो फिर उस फैसले की समीक्षा करने की बात क्यों सोची गई?
ये है अडानी मामले की पृष्ठभूमि: दरअसल, हिमाचल प्रदेश में अक्टूबर 2005 में तत्कालीन राज्य सरकार ने 980 मेगावाट की हाइड्रोपावर परियोजना जंगी-थोपन-पोवारी को लेकर टेंडर जारी किए थे. आरंभ में हालैंड की कंपनी ब्रेकल कॉरपोरेशन को परियोजनाओं के लिए सबसे अधिक बोली लगाने वाला पाया गया. बोली के बाद ब्रेकल कंपनी ने अपफ्रंट प्रीमियम के तौर पर 280.06 करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकार के पास जमा कर दी थी.
परियोजनाओं की फिर से बोली लगाने का फैसला: हालांकि बाद में राज्य सरकार ने परियोजनाओं की फिर से बोली लगाने का फैसला किया. इसके बाद विदेशी कंपनी ब्रेकल ने 24 अगस्त 2013 को राज्य सरकार से पत्राचार के माध्यम से अनुरोध किया था कि अडानी समूह के कंसोर्टियम पार्टनर होने के नाते 280.00 करोड़ रुपये के अग्रिम प्रीमियम राशि को सरकार अप टू डेट ब्याज के साथ उसे वापस करें. फिर मामला राज्य सरकार व अडानी समूह के बीच हो गया. इस बीच, वीरभद्र सिंह सरकार के बाद जयराम सरकार सत्ता में आई और अब कांग्रेस की सरकार सत्ता में है. फिलहाल, हाईकोर्ट ने 20 जून को इस मामले में अंतिम सुनवाई तय की है.
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