शिमला/झुंझुनूं: द्वितीय विश्वयुद्ध के शहीद ताज मोहम्मद की शहादत पर फक्र हो सकता है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा उनकी वीरांगना की कहानी सुनकर आप निश्चित ही गर्व मिश्रित दुख से भर उठेंगे. उस महान वीरांगना का 8 नवंबर, शुक्रवार को इंतकाल हो गया, लेकिन उसकी कहानी भारतीय सेना के इतिहास में अमर रहेगी.
भारत देश के आजाद होने के बाद उनके पति की बटालियन टू जाट ने हमेशा उनका ध्यान रखा और कई बार समान समारोह में आमंत्रित कर उनकी शहादत को सलाम किया. सैनिक गांव धनुरी की 102 साल की वीरांगना सायरा बानो की रूह अपने उस शहीद पति से मिल गई. जिनका निकाह के बाद चेहरा तक देखना नसीब नहीं हुआ, लेकिन उनकी याद में जिंदगी के सारे बसंत गुजार दिए.
बता दें कि द्वितीय विश्वयुद्ध में जाट रेजीमेंट की दूसरी बटालियन की सेना में ताज मोहम्मद खान कायमखानी तैनात थे. शादी के लिए छुट्टी आए. निकाह के बाद बारात घर लेकर पहुंचे तो युद्ध शुरू होने का टेलीग्राम आ गया. तो ताज मोहम्मद ने बीवी को देखे बिना ही युद्ध के लिए रवानगी ली और युद्ध में जाट सेना की तरफ से शहीद हो गए. उनकी पत्नी सायरा बानो के लिए गम का पहाड़ टूट गया.
कुछ समय बाद सायरा बानो के पीहर और ससुराल वालों ने दूसरी शादी का सुझाव दिया, लेकिन इस वीरांगना ने दूसरी शादी से इनकार कर दिया और पूरी जिंदगी उस महान शहीद के नाम पर काटने का फैसला किया. उन्होंने बताया कि जब खुदा ने उन्हें इसी प्रेम के लिए बनाया तो वे इसी के साथ अपनी जिंदगी गुजारने में खुश हैं.
चेहरा नहीं देखा तो बताएं क्या
शादी के समय सायरा बानो बमुश्किल 22 वर्ष की थी. अपनी जिंदगी के करीब 80 वर्ष अपने पति की याद में काटने वाले महान महिला वीरांगना से जब पूछा जाता था कि शहीद ताज मोहम्मद खान के बारे में बताओ तो उनका एक ही जवाब होता था कि मैंने तो उन से निकाह किया था. उनका चेहरा तो देखा ही नहीं था तो फिर उनके बारे में बात क्या करें. लेकिन जब खुदा ने उन्हें इसी प्रेम के लिए बनाया तो वे इसी के साथ अपनी जिंदगी गुजारने में खुश हैं.