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एडवांस स्टडी दिल्ली में आयोजित करेगा डॉ. राधाकृष्णन मेमोरियल लेक्चर, प्रणव मुखर्जी करेंगे शिरकत

दिल्ली में नवंबर माह में देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला मेमोरियल लेक्चर का आयोजन करवाने जा रहा है. राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी आयोजन में शिरकत करेंगे.

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Published : Oct 18, 2019, 11:28 PM IST

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला

शिमला: भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की ओर से दिल्ली में नवंबर माह में देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में करवाए जा रहे आयोजन में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी शिरकत करेंगे. संस्थान की ओर से ये आयोजन राधाकृष्ण फाउंडेशन के सहयोग से इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के फाउंटेन लॉन में 21 नवंबर को होगा.

डॉ. एस. राधाकृष्णन का संस्थान से गहरा नाता था. उन्होंने साल 1965 में शिमला के भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान की नींव रखी थी. इससे पहले ब्रिटिशकाल में बनी इस इमारत को राष्ट्रपति भवन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था,लेकिन स्वर्गीय डॉ. राधाकृष्णन की दुर्गामी सोच ही थी कि उन्होंने इस भवन को उच्च अध्ययन का एक ऐसा संस्थान बनाने की चाह रखी, जिसमें आज शोध के नए आयाम स्थापित हो रहे हैं.

यही वजह है कि शिमला में स्थित इस संस्थान में राधाकृष्णन की स्मृतियां आज भी बसती हैं. उन्हीं की याद में संस्थान हर वर्ष ये व्याख्यान करवाता है. आयोजन में शिरकत कर रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी का भी संस्थान से गहरा जुड़ाव है.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान जब भी शिमला आते तो एडवांस स्टडी जरूर जाते थे. उनकी बातों में भी संस्थान का जिक्र रहता था. मुखर्जी 24 मई 2013 को संस्थान में आयोजित प्रथम रावेंद्र नाथ टैगोर स्मृति व्यख्यान देने के लिए शिमला आए थे.

उन्होंने इस पर प्रसन्नता भी जाहिर की थी. उस समय उन्होंने कहा था कि करीब पांच दशक पूर्व मेरे पूर्ववर्ती डॉ राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का उद्घाटन किया था और करीब 50 वर्ष बाद मुझे इस परिसर में आकर टेगौर संस्कृति और सभ्यता अध्ययन केंद्र का उद्घाटन का सौभाग्य मिला.

वीडियो.

बता दे की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय में तैयार किया गया भवन है, जहां तक जानकारी है इस भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है.

इस भवन की ऐतिहासिकता की खास बात ये है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुईं और फैसले लिए गए. भारत और पाकिस्तान का विभाजन भी 1945 में इसी भवन हुआ था, जिसका निशान आज भी यहां उस टेबल पर दिखाई देता है, जिस पर ये ऐतिहासिक फैसला लिया गया था.

आजादी के बाद इस भवन को एक नई पहचान देते हुए इसे राष्ट्रपति निवास का नाम दिया गया. इसके बाद राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने इस भवन को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान बनाने का फैसला लिया और तब से ये संस्थान अपनी इस पहचान को कायम रखे हुए हैं. भवन को बनाने की शैली और इसके इतिहास के चलते यह इंस्टीट्यूट विश्वभर में प्रसिद्ध है.

जून 2016 में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान शिमला प्रवास पर आए थे तो उन्हें किसी रेफरेंस के लिए एक किताब की जरूरत महसूस हुई. वह किताब 'डिप्लोमेसी इन पीस एंड वॉर' शीर्षक से थी. मुखर्जी ने जब अपने स्टाफ से किताब को लेकर चर्चा की तो अधिकारियों ने किताब की खोज बीन शुरू कर दी.

किताब की खोज शिमला कि सबसे बड़ी और विख्यात लाइब्रेरी में की गई जो भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में है. किताब को लेकर उस समय के संस्थान के निदेशक प्रो.चेतन सिंह से बात की गई. उन्होंने पता करवाया तो मालूम हुआ कि संस्थान की दो लाख किताबों वाली लाइब्रेरी में ये पुस्तक नहीं थी. इसके बाद यह किताब प्रणव मुखर्जी को शिमला सचिवालय की लाइब्रेरी से मिल पाई.

शिमला: भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की ओर से दिल्ली में नवंबर माह में देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में करवाए जा रहे आयोजन में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी शिरकत करेंगे. संस्थान की ओर से ये आयोजन राधाकृष्ण फाउंडेशन के सहयोग से इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के फाउंटेन लॉन में 21 नवंबर को होगा.

डॉ. एस. राधाकृष्णन का संस्थान से गहरा नाता था. उन्होंने साल 1965 में शिमला के भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान की नींव रखी थी. इससे पहले ब्रिटिशकाल में बनी इस इमारत को राष्ट्रपति भवन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था,लेकिन स्वर्गीय डॉ. राधाकृष्णन की दुर्गामी सोच ही थी कि उन्होंने इस भवन को उच्च अध्ययन का एक ऐसा संस्थान बनाने की चाह रखी, जिसमें आज शोध के नए आयाम स्थापित हो रहे हैं.

यही वजह है कि शिमला में स्थित इस संस्थान में राधाकृष्णन की स्मृतियां आज भी बसती हैं. उन्हीं की याद में संस्थान हर वर्ष ये व्याख्यान करवाता है. आयोजन में शिरकत कर रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी का भी संस्थान से गहरा जुड़ाव है.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान जब भी शिमला आते तो एडवांस स्टडी जरूर जाते थे. उनकी बातों में भी संस्थान का जिक्र रहता था. मुखर्जी 24 मई 2013 को संस्थान में आयोजित प्रथम रावेंद्र नाथ टैगोर स्मृति व्यख्यान देने के लिए शिमला आए थे.

उन्होंने इस पर प्रसन्नता भी जाहिर की थी. उस समय उन्होंने कहा था कि करीब पांच दशक पूर्व मेरे पूर्ववर्ती डॉ राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का उद्घाटन किया था और करीब 50 वर्ष बाद मुझे इस परिसर में आकर टेगौर संस्कृति और सभ्यता अध्ययन केंद्र का उद्घाटन का सौभाग्य मिला.

वीडियो.

बता दे की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय में तैयार किया गया भवन है, जहां तक जानकारी है इस भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है.

इस भवन की ऐतिहासिकता की खास बात ये है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुईं और फैसले लिए गए. भारत और पाकिस्तान का विभाजन भी 1945 में इसी भवन हुआ था, जिसका निशान आज भी यहां उस टेबल पर दिखाई देता है, जिस पर ये ऐतिहासिक फैसला लिया गया था.

आजादी के बाद इस भवन को एक नई पहचान देते हुए इसे राष्ट्रपति निवास का नाम दिया गया. इसके बाद राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने इस भवन को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान बनाने का फैसला लिया और तब से ये संस्थान अपनी इस पहचान को कायम रखे हुए हैं. भवन को बनाने की शैली और इसके इतिहास के चलते यह इंस्टीट्यूट विश्वभर में प्रसिद्ध है.

जून 2016 में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान शिमला प्रवास पर आए थे तो उन्हें किसी रेफरेंस के लिए एक किताब की जरूरत महसूस हुई. वह किताब 'डिप्लोमेसी इन पीस एंड वॉर' शीर्षक से थी. मुखर्जी ने जब अपने स्टाफ से किताब को लेकर चर्चा की तो अधिकारियों ने किताब की खोज बीन शुरू कर दी.

किताब की खोज शिमला कि सबसे बड़ी और विख्यात लाइब्रेरी में की गई जो भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में है. किताब को लेकर उस समय के संस्थान के निदेशक प्रो.चेतन सिंह से बात की गई. उन्होंने पता करवाया तो मालूम हुआ कि संस्थान की दो लाख किताबों वाली लाइब्रेरी में ये पुस्तक नहीं थी. इसके बाद यह किताब प्रणव मुखर्जी को शिमला सचिवालय की लाइब्रेरी से मिल पाई.

Intro:भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला की ओर से दिल्ली में नवंबर माह में देश के पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन की याद में करवाए जा रहे आयोजन में देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पहुचेंगे।हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी संस्थान की ओर से राधा कृष्णन मेमोरियल लेक्चर का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें प्रणव मुखर्जी मुख्यातिथि शिरकत करेंगे। संस्थान की ओर से यह आयोजन राधाकृष्ण फाउंडेशन के सहयोग से दिल्ली में किया जा रहा है। यह आयोजन दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के फाउंटेन लॉन में 21 नवंबर को होगा। डॉ. एस. राधाकृष्णन का संस्थान से बेहद गहरा नाता है। उन्होंने ही 1965 में शिमला के भारतीय उच्च शिक्षण संस्थान की नींव रखी थी। इससे पहले ब्रिटिशकाल में बनी इस इमारत को राष्ट्रपति भवन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था,लेकिन यह स्वर्गीय डॉ. राधाकृष्णन की दुर्गामी सोच ही थी कि उन्होंने इस भवन की भव्यता ओर ऐतिहासिक को बनाए रखने के लिए इस भवन को उच्च अध्ययन का एक ऐसा संस्थान बनाने की चाह रखी, जिसमे आज शोध के नए आयाम स्थापित है।


Body:यही वजह है कि शिमला ओर शिमला में स्थित इस संस्थान में राधाकृष्णन की स्मृतियां आज भी बसती है और इन्ही की याद में संस्थान हर वर्ष यह व्याख्यान करवाता है। इस आयोजन में शिरकत कर रहे पूर्व राष्ट्रपति प्रवण मुखर्जी का भी संस्थान से भी एक अलग ही जुड़ाव है।यह भी एक वजह है कि उन्हें इस आयोजन का खास हिसा बनाया जा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान जब भी शिमला आते तो एडवांस स्टडी जाते भी थे और उनकी बातों में भी संस्थान का जिक्र रखता था। मुखर्जी 24 मई 2013 को संस्थान में आयोजित प्रथम रावेंद्र नाथ टैगोर स्मृति व्यख्यान देने के लिए शिमला आए थे और उन्होंने इस पर प्रसन्नता जाहिर की थी। उस समय उन्होंने कहा था कि लगभग पांच दशक पूर्व मेरे पूर्ववर्ती डॉ राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का उद्घाटन किया था और करीब 50 वर्ष बाद मुझे इस परिसर में आकर टेगौर संस्कृति और सभ्यता अध्ययन केंद्र का उदघाटन का सौभाग्य मिला ।


Conclusion:बता दे की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडी ब्रिटिशकालीन समय ने तैयार किया गया भवन है। जहां तक जानकारी है इस भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसरॉय लॉर्ड डफरिन के लिए किया गया था और इसी की तर्ज पर इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है । इस भवन की ऐतिहासिकता की एक खास बात यह है कि आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में कई ऐतिहासिक बैठकें हुए और फ़ैसले लिए गए। भारत और पाकिस्तान के विभाजन का भी 1945 में इसी भवन हुआ था जिसका निशान आज भी यहां उस टेबल पर दिखाई देता है जिसपर इस ऐतिहासिक फैसले को लिया गया था। आजादी के बाद इस भवन को एक नई पहचान देते हुए इसे राष्ट्रपति निवास का नाम दिया गया। इसके बाद राष्ट्रपति एस. राधाकृष्णन ने इस भवन को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान बनाने का फ़ैसला लिया और तब से यह संस्थान अपनी इस पहचान को कायम रखे है। इस भवन को बनाने की शैली और इसके इतिहास के चलते यह इंस्टीट्यूट विश्वभर में प्रसिद्ध है।

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जब भारतीय अध्ययन उच्च संस्थान के पुस्तकालय में खोजी गई थी पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की पंसद की किताब

जून 2016 में जब पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी गर्मियों के दौरान शिमला प्रवास पर आए थे तो उन्हें किसी रेफरेंस के लिए एक किताब की जरूरत महसूस हुई। वह किताब डिप्लोमेसी इन पीस एंड वॉर शीर्षक से थी। प्रणव दा ने जब अपने स्टाफ से किताब को लेकर चर्चा की तो अधिकारियों ने किताब की खोज बीन शुरू कर दी।किताब की खोज शिमला कि सबसे बड़ी ओर विख्यात लाइब्रेरी में की गई जो भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में है। किताब को लेकर उस समय के संस्थान के निदेशक प्रो.चेतन सिंह से बात की गई। उन्होंने पता करवाया तो मालूम हुआ कि संस्थान की दो लाख किताबों वाली लाइब्रेरी में यह पुस्तक नहीं थी। इसके बाद यह किताब प्रणव मुखर्जी को शिमला सचिवालय की लाइब्रेरी से मिल पाई।
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