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Himachal High court: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, मनमाने तरीके से कर्मचारियों की ट्रांसफर को ठहराया गैरकानूनी - employees Arbitrary transfer illegal in Himachal

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कर्मचारियों के ट्रांसफर मामले में दायर याचिका पर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने मनमाने तरीके से किए गए ट्रांसफर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गैरकानूनी ठहराया है. कोर्ट ने कहा बिना जनहित और प्रशासनिक अनिर्वायता के तबादले के आदेश को गलत माना जाएगा.

Himachal High court
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
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Published : Jun 23, 2023, 7:13 AM IST

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के मनमाने तरीके से किए गए ट्रांसफर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गैरकानूनी ठहराया है. अदालत ने अपने आदेश में ये स्पष्ट किया है कि यदि किसी ट्रांसफर में जनहित और प्रशासनिक अनिर्वायता का मामला न जुड़ा हो तो, ऐसे तबादला आदेश गलत माने जाएंगे. अदालत ने कहा कि सिर्फ जनहित और प्रशासनिक अनिर्वायता ही तबादले का आधार होना चाहिए न कि मनमाने ढंग से किसी को ट्रांसफर करना.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने उक्त आदेश पारित किए हैं. अदालत में नवनीश कुमार नामक सरकारी कर्मचारी ने एक याचिका दाखिल की थी. नवनीश कुमार ने याचिका के जरिए कहा था कि उसे गलत तरीके से ट्रांसफर किया गया है. हाईकोर्ट ने इसी याचिका पर उपरोक्त फैसला सुनाया है.

नवनीश कुमार की तरफ से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के स्थान पर प्रतिवादी हरिकृष्ण को एडजस्ट करने वाले आदेश को खारिज कर दिया. प्रार्थी नवनीश कुमार ने अपने तबादला आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में नवनीश कुमार ने कहा था कि वह जिला ऊना में गगरेट में अधीक्षक ग्रेड-टू के पद पर सेवाएं दे रहा है. याचिका में कहा गया कि इस स्थान पर सेवाएं देते हुए अभी उसका सामान्य कार्यकाल भी पूरा नहीं हुआ है. तबादले के लिए जरूरी सामान्य सेवाकाल से पहले ही उसे हटाया गया.

याचिका में आरोप लगाया गया था कि बिजली बोर्ड ने प्रतिवादी हरिकृष्ण को गगरेट में एडजस्ट करने के लिए उसका यानी नवनीश का तबादला शिमला के लिए कर दिया गया. अदालत को बताया गया था कि प्रतिवादी को इससे पहले राज्य बिजली बोर्ड ने शिमला के लिए स्थानांतरित किया था, लेकिन बोर्ड ने प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के स्थान पर एडजस्ट कर दिया.

हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि बोर्ड ने याचिकाकर्ता का तबादला न तो प्रशासनिक आवश्यकता के आधार पर किया और न ही जनहित में किया है. याचिकाकर्ता का तबादला सिर्फ प्रतिवादी को एडजस्ट करने के लिए किया गया है. इसलिए बोर्ड का यह निर्णय तबादला नीति और अदालत के निर्णयों के खिलाफ है. इस तरह हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को राहत दी है.

ये भी पढ़ें: 32 साल पहले दर्ज आपराधिक मामले से जुड़ा रिकॉर्ड न लोअर कोर्ट में न पुलिस के पास, लापरवाही पर हाईकोर्ट ने जताई नाराजगी

शिमला: सरकारी कर्मचारियों के मनमाने तरीके से किए गए ट्रांसफर को हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गैरकानूनी ठहराया है. अदालत ने अपने आदेश में ये स्पष्ट किया है कि यदि किसी ट्रांसफर में जनहित और प्रशासनिक अनिर्वायता का मामला न जुड़ा हो तो, ऐसे तबादला आदेश गलत माने जाएंगे. अदालत ने कहा कि सिर्फ जनहित और प्रशासनिक अनिर्वायता ही तबादले का आधार होना चाहिए न कि मनमाने ढंग से किसी को ट्रांसफर करना.

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव व न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने उक्त आदेश पारित किए हैं. अदालत में नवनीश कुमार नामक सरकारी कर्मचारी ने एक याचिका दाखिल की थी. नवनीश कुमार ने याचिका के जरिए कहा था कि उसे गलत तरीके से ट्रांसफर किया गया है. हाईकोर्ट ने इसी याचिका पर उपरोक्त फैसला सुनाया है.

नवनीश कुमार की तरफ से दाखिल याचिका का निपटारा करते हुए हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता के स्थान पर प्रतिवादी हरिकृष्ण को एडजस्ट करने वाले आदेश को खारिज कर दिया. प्रार्थी नवनीश कुमार ने अपने तबादला आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका में नवनीश कुमार ने कहा था कि वह जिला ऊना में गगरेट में अधीक्षक ग्रेड-टू के पद पर सेवाएं दे रहा है. याचिका में कहा गया कि इस स्थान पर सेवाएं देते हुए अभी उसका सामान्य कार्यकाल भी पूरा नहीं हुआ है. तबादले के लिए जरूरी सामान्य सेवाकाल से पहले ही उसे हटाया गया.

याचिका में आरोप लगाया गया था कि बिजली बोर्ड ने प्रतिवादी हरिकृष्ण को गगरेट में एडजस्ट करने के लिए उसका यानी नवनीश का तबादला शिमला के लिए कर दिया गया. अदालत को बताया गया था कि प्रतिवादी को इससे पहले राज्य बिजली बोर्ड ने शिमला के लिए स्थानांतरित किया था, लेकिन बोर्ड ने प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के स्थान पर एडजस्ट कर दिया.

हाईकोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि बोर्ड ने याचिकाकर्ता का तबादला न तो प्रशासनिक आवश्यकता के आधार पर किया और न ही जनहित में किया है. याचिकाकर्ता का तबादला सिर्फ प्रतिवादी को एडजस्ट करने के लिए किया गया है. इसलिए बोर्ड का यह निर्णय तबादला नीति और अदालत के निर्णयों के खिलाफ है. इस तरह हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए याचिकाकर्ता को राहत दी है.

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