शिमला: अदालती आदेश की अनुपालना न करने के मामले में हिमाचल प्रदेश सरकार के शिक्षा सचिव जेल जाने से तो बच गए, लेकिन अपनी सैलरी नहीं बचा पाए. एडिशनल एडवोकेट जनरल ने हाई कोर्ट से आग्रह किया कि शिक्षा सचिव को कारावास की सजा न दी जाए. इस पर हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर व न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी की खंडपीठ ने नरमी बरतते हुए कहा कि बेशक कारावास की सजा नहीं दे रहे, लेकिन शिक्षा सचिव का वेतन तो कुर्क किया जाएगा. दरअसल, इन दिनों हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के सख्त फैसले चर्चा का विषय बने हुए हैं. हाल ही में ऐसे ही एक मामले में अदालती आदेश की अनुपालना न होने पर हाई कोर्ट की इसी खंडपीठ ने शिक्षा सचिव का वेतन अटैच करने के आदेश दिए. उस मामले में भी शिक्षा सचिव जेल जाने से बच गए थे. अब नया मामला सामने आया है.
तीन साल पहले पारित आदेश की अनुपालना न करने पर हाई कोर्ट ने सख्त नाराजगी जताई और शिक्षा सचिव का वेतन कुर्क करने के आदेश पारित किए हैं. अदालत में मौजूद राज्य सरकार के एडिशनल एडवोकेट जनरल ने खंडपीठ से आग्रह किया कि कारावास की सजा न दी जाए. अदालत ने इस आग्रह को तो स्वीकार कर लिया, परंतु वेतन कुर्की के आदेश जारी कर सख्ती दिखाई. न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर की अगुवाई वाली खंडपीठ ने तीन वर्ष पहले पारित निर्णय को लागू न करने पर यह आदेश दिए हैं. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को कहा कि वो शिक्षा सचिव का वेतन कुर्क करने के संबंध में जरूरी निर्देश जारी करें. हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि शिक्षा सचिव की लचर प्रणाली को देखते हुए सख्त आदेश पारित करने के लिए ये अदालत मजबूर है. खंडपीठ ने कहा कि एएजी के आग्रह पर कारावास के आदेश पारित करने की बजाए सिर्फ वेतन कुर्क करने के आदेश पारित किए जाते हैं.
मामले के अनुसार प्रार्थी सुरेंद्र नाथ ने हाई कोर्ट में अनुपालना याचिका दाखिल की थी. उस याचिका की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने उपरोक्त आदेश पारित किए. याचिका में प्रार्थी ने हाई कोर्ट की ओर से उसके पक्ष में तीन साल पहले सुनाए गए निर्णय को लागू करने के लिए आग्रह किया था. हाई कोर्ट ने पाया कि 7 जनवरी 2020 को खंडपीठ ने प्रार्थी के पक्ष में निर्णय सुनाया था. इसे लागू करने के लिए अदालत ने कई बार शिक्षा सचिव को आदेश पारित किए थे.
तीन वर्ष पूर्व हाई कोर्ट ने सरकार की ओर से 95 फीसदी वित्तीय सहायता हासिल करने की कैटेगरी में आने वाले रिटायर कर्मचारियों को बकाया वेतन, ग्रेच्युटी और अन्य सेवा लाभ के लिए हकदार ठहराया था. हाई कोर्ट का आदेश तो आ गया, लेकिन तीन साल में अभी तक प्रार्थी को इस निर्णय के मुताबिक कोई सेवा लाभ नहीं दिया गया. हाई कोर्ट ने पाया कि ये मामला गंभीर है और ऐसे में सख्त फैसला पारित करना जरूरी है. उल्लेखनीय है कि अभी पिछले शुक्रवार को यानी 4 अगस्त को भी इसी नेचर के मामले में शिक्षा सचिव का वेतन रोकने के आदेश जारी किए गए थे. उस मामले की सुनवाई भी 9 अगस्त को होनी है. याचिकाकर्ता नील कमल सिंह ने हाई कोर्ट की ओर से उसके पक्ष में तीन साल पहले सुनाए गए निर्णय को लागू करने के लिए याचिका दायर की थी. कोर्ट ने पाया कि 7 जनवरी 2020 को खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय सुनाया था. सेंट बीड्स कॉलेज के स्टाफ कर्मियों की ओर से 95 फीसदी ग्रांट इन एड नीति के तहत ग्रांट, ग्रेच्युटी और लीव इनकैशमैंट के लिए सरकार को आदेश देने की मांग की थी.
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इन मांगों को स्वीकारते हुए सरकार को ये लाभ जारी करने के आदेश दिए थे. इन आदेशों को लागू करने के लिए अदालत ने कई बार शिक्षा सचिव को आदेश पारित किए थे. 31 मई 2023 को अदालत ने इस याचिका का निपटारा करते हुए 19 जुलाई 2023 के लिए अनुपालना रिपोर्ट तलब की थी. इस दिन भी अदालत के निर्णय को लागू करने के लिए अतिरिक्त समय की मांग की गई. अदालत ने फिर से शिक्षा सचिव को एक और मौका दिया. फिर भी अदालत के निर्णय को लागू नहीं किया गया तो हाई कोर्ट ने वेतन रोकने के आदेश पारित किए. अब तीन दिन बाद ही एक और मामले में शिक्षा सचिव पर गाज गिर गई है.