शिमला: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा शिमला के समीप छराबड़ा में स्थित होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को अपने कब्जे में लेने के आदेशों पर रोक लगा दी है. राज्य सरकार ने शुक्रवार को वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल का प्रबंधन और संपत्ति पर कब्जा अपने हाथों में लेने के लिए कार्यकारी आदेश जारी किए थे. ओबेरॉय होटल ग्रुप से जुड़ी ईआईएच कंपनी लिमिटेड ने हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर कोर्ट से उक्त सरकारी आदेशों पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी. सरकार का कहना था कि उसके कार्यकारी आदेश हाईकोर्ट द्वारा इसी मुद्दे से जुड़े मामले में पारित फैसले की अनुपालना में जारी किए गए थे. वहीं, कंपनी का कहना था कि हाईकोर्ट ने उक्त होटल की संपत्ति और प्रबंधन को अपने अधीन लेने के कोई आदेश पारित नहीं किए हैं. हाईकोर्ट ने तो होटल की संपत्ति को अपने कब्जे में लेने के बारे में सरकार से उसका विकल्प पूछा था. सरकार को अपना विकल्प 15 दिसम्बर को कोर्ट के समक्ष रखना था. इसके बाद हाईकोर्ट ने आर्बिट्रेशन अवार्ड में दिए आदेशों की अनुपालना करवाने के बारे में वांछित आदेश पारित करने थे.
21 नवंबर को होगी सुनवाई- कंपनी की दलील थी कि सरकार ने जल्दबाजी दिखाते हुए हाईकोर्ट के आदेशों को अन्यथा लेते हुए उनकी कंपनी के वाइल्ड फ्लावर हॉल का प्रबंधन और संपत्ति को अपने अधीन लेने के आदेश जारी कर दिए. कोर्ट ने प्रार्थी कंपनी की दलीलों से फिलहाल सहमति जताते हुए कहा कि कोर्ट ने केवल सरकार से उसका विकल्प पूछा था न कि संपत्ति और प्रबंधन को अपने अधीन लेने के आदेश दिए थे. कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए सरकार के आदेशों पर रोक लगा दी और आदेश दिए कि वह होटल के प्रबंधन और संपत्ति के कब्जे में दखल न दे. सरकार की ओर से मामले को मंगलवार को सुनवाई के लिए रखने की गुहार लगाई गई थी जिसे स्वीकारते हुए कोर्ट ने मामले पर सुनवाई 21 नवम्बर को निर्धारित की है. कोर्ट ने सरकार को तब तक कंपनी के आवेदन का जवाब दायर करने के आदेश भी दिए.
शनिवार को क्या हुआ था- दरअसल शुक्रवार को सरकार की ओर से होटल को कब्जे में लेने के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर जारी किए गए थे. जिसके बाद शनिवार को जिला प्रशासन भारी पुलिस बल के साथ शिमला के छराबड़ा पहुंची थी. साथ में हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अधिकारी भी मौजूद थे. इस बीच कंपनी ने हाइकोर्ट का रुख कर लिया. जिसके बाद कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के आदेश देते हुए होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल पर राज्य सरकार के कब्जे के आदेशों पर रोक लगा दी.
लार्ड किचनर की आरामगाह था वाइल्ड फ्लावर हॉल: ब्रिटिश हुकूमत के समय शिमला भारत की समर कैपिटल थी. यहां अंग्रेज हुक्मरानों ने कई खूबसूरत जगहें विकसित की. उनमें से एक छराबड़ा स्थित वाइल्ड फ्लावर हॉल भी है. यहां ब्रिटिशकालीन भारत के ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ लार्ड किचनर ने सबसे पहले रहना शुरू किया था. ये साल 1902 की बात है. लार्ड किचनर ने छराबड़ा में इस स्थान पर एक रिहायश बनवाई और उसमें सुंदर पौधे लगवाए. उस समय लार्ड कर्जन का मशोबरा में आवास हुआ करता था. लार्ड किचनर भी वादियों में ही अपनी आरामगाह बनवाना चाहते थे. ऐसे में लार्ड किचनर ने पहाड़ी इलाके के हिसाब से धज्जी दीवाल वाली स्लेटपोश इमारत बनवाई.
ओबेराय समूह को मिला था वाइल्ड फ्लावर हॉल: आजादी के बाद ये संपत्ति ओबेराय समूह के पास आई. इस समय छराबड़ा में ये होटल 8350 फीट की ऊंचाई पर है और 23 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. इस जगह की सुंदरता का ही कमाल है ये कि लार्ड रिपन को भी पसंद थी. फिलहाल, ब्रिटिश कमांडर लार्ड किचनर गोल्डस्टिन नामक महिला से ये जमीन लीज में ली थी. आजादी के बाद ये संपत्ति भारत सरकार की हो गई. बाद में इसे हिमाचल सरकार के पर्यटन विभाग को सौंप दिया गया. पहले यहां कृषि स्कूल स्थापित करने का विचार भी आया था. खैर, बाद में 1990 में ये संपत्ति ओबेराय समूह के पास आई. मार्च 1993 में यहां आग लग गई थी और होटल राख हो गया था. फिर तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वर्ष 1995 में पर्यटन विकास निगम के इस होटल को निजी हाथों में देने का फैसला लिया. इस तरह अक्टूबर 1995 को इस संपत्ति को लेकर ईस्ट इंडिया होटल के साथ ज्वाइंट वेंचर एग्रीमेंट साइन किया गया.
वाइल्ड फ्लावर हॉल को 5 स्टार होटल बनाना था मकसद: एग्रीमेंट का मकसद पांच सितारा होटल का निर्माण व संचालन करना था. फिर कांग्रेस सरकार ने ही कन्वेंयस डीड के माध्यम से वर्ष 1997 में ये भूमि मशोबरा रिसोर्ट लिमिटेड के पक्ष में स्थानांतरित कर दी. ज्वाइंट वेंचर परियोजना की कुल लागत 40 करोड़ आंकी गई. सरकार के लिए भूमि के रूप में 35 फीसदी भागीदारी तय हुई. कांग्रेस सरकार के समय इस परियोजना की लागत लगातार बढ़ती गई और ये सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गई. जयराम ठाकुर जिस समय मुख्यमंत्री थी तो, उन्होंने 2019 में विधानसभा के मानसून सेशन में अगस्त महीने में कहा था कि कांग्रेस सरकार ने इस परियोजना में राज्य की घटती भागीदारी के मामले में कोई कदम नहीं उठाया. उस दौरान सेशन में तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर ने कहा था कि भाजपा सरकार के समय 2002 में ईस्ट इंडिया होटल के साथ ज्वाइंट वेंचर अग्रीमेंट को रद्द किया गया. फिर ये मामला हाईकोर्ट गया.
यह संपत्ति सरकार को वापस मिलनी है: अदालत ने इसमें आर्बिट्रेटर नियुक्त किया. आर्बिट्रेटर ने 23 जुलाई 2005 को इस मामले में अवार्ड दे दिया, जिसके अनुसार भूमि सरकार को वापस होनी है और सरकार इसे लीज पर कंपनी को देगी. सरकार ने आर्बिट्रेटर के फैसले को मान लिया. वहीं, ईस्ट इंडिया होटल्स लिमिटेड ने उक्त अवार्ड के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. वर्ष 2016 में वो याचिका खारिज हो गई. फिर मामला हाईकोर्ट की डबल बैंच में गया. हाईकोर्ट ने 13 अक्टूबर 2022 को वाइल्ड फ्लावर होटल की संपत्ति के मामले में ईस्ट इंडिया होटल्स (ईआईएच) की तरफ से दाखिल अपील को खारिज कर दिया है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सीबी बारोवालिया की डिविजन बैंच ने 13 अक्टूबर को ये फैसला दिया था. पूर्व में कांग्रेस सरकार के समय में जब वर्ष 1995 में वाइल्ड फ्लावर हॉल को बनाया गया था, तब जमीन की कीमत 7 करोड़ रुपए तय की गई थी. उस दौरान पूरा प्रोजेक्ट चालीस करोड़ रुपए का था.
कई शख्सियतों को बेहद पंसद है वाइल्ड फ्लावर हॉल: कंपनी ने चालाकी की और प्रोजेक्ट कॉस्ट बढ़ा दी, लेकिन लैंड वैल्यू नहीं बढ़ाई. लैंड राज्य सरकार की है, फिर राज्य सरकार को 1995 से इक्विटी के रूप में सालाना एक करोड़ रुपए मिलना तय हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट में केस की जल्द सुनवाई नहीं होने से हिमाचल को 28 करोड़ रुपए की इक्विटी का नुकसान हो चुका है. फिलहाल, अब संपत्ति पर हिमाचल सरकार का कब्जा हो गया है. देखना है कि इस संपत्ति का अब क्या प्रयोग होता है. क्या हिमाचल सरकार पहले की तरह यहां खुद होटल चलाएगी या फिर नए सिरे से ग्लोबल टेंडर होंगे. इस संपत्ति की लोकेशन और होटल की खूबसूरती का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि सोनिया गांधी, अमिताभ बच्चन, एमएस धोनी, सचिन तेंदुलकर, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी से लेकर कई वीवीआईपी यहां ठहरना पसंद करते हैं. प्रियंका वाड्रा को ये होटल इतना पसंद है कि उन्होंने इसी के समीप अपना आशियाना बनाया है.
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